रक्त मांस से बने नए जीवन का सफर

       
एक नया जीवन 
                   जब मैं बी.एच.एस सी यानी की होमसाइंस सब्जेक्ट पढ़ रही थी मेरे सब्जेक्ट में नये - नये विषय थे उनमें एक विषय था मानव विकास जो मुझे पढ़ना बहुत अच्छा लगता था हालांकि बाद में जब मैंने एम्.एस सी किया तो इसी मानव विकास विषय में ही किया ये विषय मुझे इसलिए पसंद आया क्योंकि हम वैसे तो अपने स्वयं के बारे में बहुत कुछ जानते है पर कौन सी प्रकियाओं से गुजरने के बाद वह एक पूरी तरह एक पूर्ण विकसित शिशु बनकर अस्तित्व में आता है और उस जीव का नया जीवन शुरू होता है वह तभी जान पाते है जब हम इसका अध्ययन करते है ऐसे ही मैंने एक शिशु जब माँ के गर्भ में होता है तब उसका किस तरह से विकास होता है और उस विकास की प्रकिया कैसी होती है सबके बारे में पढ़ा वैसे जानती तो हर माँ है अपने बच्चे की हरकत के बारे में पर छोटे - छोटे डिटेल वह नहीं जान पाती है या फिर और जो होमसाइंस के अलावा और भी कई सब्जेक्ट्स के स्टूडेंट होते है उन्हें भी जानना चाहिए कि एक नई जिन्दगी की शरुआत किस तरह होती है आज मैं आपको यहाँ बताने जा रही हूँ एक जीवन एक शिशु के पूरी तरह से वो शिशु बनता है

      1 मानव शिशु के जीवन की पहली अवस्था डिम्ब अवस्था होती है डिम्ब अवस्था को बीज की अवस्था भी कहते है इसकी अवधि निषेदन होने के दो सप्ताह तक होती है इस अवस्था में डिम्ब एक अंडे के जैसे होते है इसकी आंतरिक रचना में बहुत तेजी से जरूरी परिवर्तन होते है और अलग होने की प्रकिया के बाद वह बहुत सारे पार्ट्स में अलग हो जाता है जब निषेचित अंडाणु डिम्ब नलिका यानी fallopian tube से गर्भाशय में पहुंचता है तब तक यूटरेस में बहुत से बदलाव हो चुके होते है गर्भाशय की मोटी दीवार से यह अंडाणु चिपक जाता है यह प्रकिया रोपण कहलाती है
      2 यह दूसरी अवस्था पीरियड ऑफ़ embryo पिंड अवस्था - इसके बाद विकास की दूसरी जो अवस्था होती है वो गर्भाधान के बाद 14 दिन से शुरू होकर 2 महीने के अंत तक रहती है इसकी अवधि 6 हप्ते तक की होती है कोशिकाओं के बढ़ते हुए गुच्छे cluster को embryo कहा जाता है embryo का विकास बहुत तेजी से होता है यह गर्भाशय की अंदुरनी सतह से मजबूती से connecting tissue से जुड़ा होता है जिसे प्लेसेंटा गर्भनाल कहते है माँ के एक प्रवाह से बच्चे के लिए पोषण umblical cord से बच्चे तक पहुँचता है
  • दूसरे महीने तक embryo केवल 6 मी.मी . लम्बा रहता है बढ़ता हुआ जल्द ही एक द्रव पदार्थ की थैली से घिरने लगता है इसे उल्बतरल amniotic fluid कहते है यह एक गद्दी जैसा होता है जो छोटे - मोटे धक्को से बच्चे की रक्षा करता है अगर कभी माँ गिर भी जाएं तो यह फ्लूइड बच्चे को बचा लेता है बच्चे इस तरल पदार्थ में अपने जन्म लेने के ठीक पहले तक रहता है इस अवस्था में विकास तेजी से होता है और अंत तक गर्भ मानव की आकृति धारण कर लेता है
  • इम्प्लीमेंटेशन के बाद इसकी कोशिकाओं का जो समूह होता है वः स्वय को तीन परतों में बाँट लेता है और इन्ही तीन परतों में भ्रूण के समस्त अंग बनते है - 
  1.  बाहरी परत के माध्यम से त्वचा की बाहर की परत बाल, नाखून , दांत के भाग , त्वचा की ग्रन्थियां , सेंसरी सेल्स और नर्वस सिस्टम बनते है
  2.  बीच की परत के माध्यम से त्वचा की भीतर की परत , मांसपेशियां , अस्थि का ढांचा , रक्त परिवहन तंत्र और उत्सर्जन अंग बनते है
  3.  आंतरिक परत - इसमें सम्पूर्ण आमाशय आंत मार्ग की अंदर की दीवार , फेफड़े , यकृत , लार ग्रन्थियां , थायराइड ग्रन्थि , बाल ग्रन्थि , सांस की नली और कंठ बनते है
  • 18 दिनों में ही भ्रूण की आकृति बनने लगती है बच्चे की लम्बी आकृति स्पष्ट हो जाती है उसका अगला, पिछला , दांया ,बांया भाग एक सर दिखने लगते है तीसरे हफ्ते के अंत तक दिल का पहला विकास हो जाता है और धड़कना शुरू कर देता है
  • पहले महीने के अंत तक भ्रूण की आहार नलिका का प्रारंभ मुँह वाले हिस्से से होने लगता है यकृत बनने लगता है ह्दय ,सर और मस्तिष्क का विकास हो जाता है 8 - 9 हफ्ते तक भ्रूण की लम्बाई एक इंच हो जाती है
  • चेहरा , मुँह ,आँखे , कान एक अच्छा रूप और आकार धारण कर लेते है बांहे , पैर और हाथ में ठूंठ जैसे उंगलिया भी दिखने लगती है इस अवस्था में शिशु में sex organs बनने शुरू होते है मांसपेशिया , नर्म अस्थियाँ भी बनने लगती है पर तंत्रिका तन्त्र क्रियाएं नहीं होती है शरीर के आंते म यकृत , अग्नाशय , फेफड़े इन सबका एक निशिचत आकार बन जाता है और ऐसा माना जाता है काफी हद तक ये काम करने लगते है जैसे यकृत लाल रक्त कणिकाओ बनाने लगते है

         3 अवस्था भ्रूण अवस्था यह अवस्था गर्भस्थ शिशु के विकास की सबसे अंत की अवस्था होती है यह                   अवस्था माता के गर्भधारण से बच्चे के जन्म तक रहती है गर्भ में पल रहा नया जीव अब embryo न                 कहलाकर fetus कहलाता है embryo अर्थात भ्रूण की अपरिपक्व अवस्था और fetus अर्थात पूर्णत                      विकसित गर्भ को fetus कहते है
  • इस अवस्था में भ्रूण के शरीर जो पहले से विकसित होकर सुस्त थे अब पूरी तरह विकसित होकर अपना काम करना शुरू कर देते है 8 1/2 सप्ताह तक भ्रूण में कुछ हलचल देखी जा सकती है जैसे फ्लूइड में तैरना इस अवस्था में भ्रूण स्पर्श के प्रति प्रतिकिया करने में समर्थ होता है धड़ झुक सकता है हाथ फ़ैल सकते है 
  • तीसरे महीने के अंत तक भ्रूण करीब 3 इंच लम्बा 3/4 आउंस वजन का हो जाता है वह अब मानव आकृति से मिलने लगता है पर शरीर के अनुपात में सिर अभी भी बड़ा होता है , मांसपेशिया अच्छी तरह विकसित हो जाती है हाथ पैर की गति देखी जा सकती है आँखों की पलकें नाखून बनना शुरू हो जाते है तंत्रिका तन्त्र अभी भी अपूर्ण रहता है
  • सोलाह सप्ताह के अंत तक माँ भ्रूण के मोवमेंट को महसूस कर सकती है इस समय लगभग 4 1/2 इंच लम्बा होता है उसके सर और शरीर पर बाल दिखने लगते है मुँह फैला व खोल बंद कर  सकता है और चूसन कर सकता है आँखे झपका सकता है पलकें आपस में कसकर जुडी रहती है हाथो में पकड़ने और बंद करने की क्षमता आ जाती है
  • आंठ्वे सप्ताह के अंत प्रजनन तन्त्र विकास होने शुरू हो जाते है बीस सप्ताह पाँच महीने के बाद त्वचा एक व्यस्क जैसा रूप लेने लगती है त्वचा के नीचे वसा जमने लगती है बाल ,नाखून स्पष्ट दिखने लगते है पसीने की ग्रन्थिया बन जाती है
  • चौबीस सप्ताह 6 महीने में आँखे पूरी तरह बन जाती है और जीभ पर स्वाद की कलिकाएँ दिखने लगती हिया इस अवस्था में लात मारना , प्रहार , और धक्का मारने जैसी क्रिया करने लगता है यह इसलिए क्योंकि वह खाली जगह को भरना शुरू कर देता है वः अब तेजी से बढ़ रहा है उसकी गतियाँ माँ को अनुभव होती है
  • सातवे माह में वह 15 इंच और वजन 2 पाउंड हो जाता है हर सप्ताह शिशु के जीवित रहने के अवसर बढ़ते जाते है और जीवित रहने के अवसर उसके वजन पर असर होने लगते है
  • आंठ्वे माह में fetus लगभग 17 इंच लम्बे और 4 - 5 पाउंड वजन के हो जाते है इस अवस्था में premature birth हो जाए तो शिशु के जीवित रहने की सम्भवना अच्छी रहती है पर उसे विशेष देखभाल की जरूरत होती है
  • आंठ्वे माह में शिशु के सिर के बाल अच्छे घने मोटे हो जाते है पर कुछ बच्चे गंजे ही रहते है त्वचा में वसा का जमाव बढ़ता जाता है जो बाद में त्वचा की झुर्रियों को दूर करता है शिशु में आवाजों के लिए सम्वेदना का विकास हो जाता है वह तेज आवाज होने पर चौंक सकता है और झटका लग सकता है इसे माँ अनुभव कर सकती है
  • इस अवस्था में अजन्मा शिशु अंगूठा चूसना , खांसना , छींकना , उबासी लेना , हिचकियाँ लेना जैसी चकित करने वाली क्रियाएं करता है यहाँ तक की बच्चा जन्म के पहले रो भी सकता है
  • नौवे महीने में शिशु का वजन बढ़ जाता है वह भर जाता है और उसकी झुर्रीदार त्वचा में बदलाव हो जाता है शिशु पूरी तरह चिकनाई वाले पदार्थ से ढका होता है कुछ इसे जन्म के पहले ही छोड़ देते है या ये हट जाता है
  • नौवे माह की शुरुआत में फीटस की लम्बाई 18 -19 इंच हो और वजन 6 पाउंड हो जाता है गर्भावस्था के अंतिम सप्ताह में शिशु जो वजन ग्रहण करता है वो उसे जन्म के समय शरीर की गर्मी बनाये रखने में मदद करता है
  • नौवे माह के अंत तक शिशु की लम्बाई ५१ सेमी या 20 इंच वजन 3.3 किलोग्राम या 7 पाउंड होता है वह माँ से रोगों से लड़ने की क्षमता और बीमारियों और संक्रमण से लड़ने के लिए अपनाता है
  • नौ माह जब पूरे हो जाते है तब शिशु का सिर नीचे की ओर हो जाता है उसका सिर माँ की पेल्विस में स्थिर हो जाता है इसे हेड फिक्स होना कहते है यह बच्चे के लिए सबसे आराम वाली कंडीशन होती है और माँ की डिलेवरी के लिए सरल सुर सुरक्षित स्थति है अब उसकी क्रियाएं कम हो जाती है अब अब नौ महीने पूरे होने शिशु जन्म लेने के लिए पूरी तरह तैयार है

तो इन सब प्रकियाओं को पूरा करने के बाद एक शिशु एक जीव के अपने अलग एक नए जीवन की शुरुआत होती है  

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