बचपन

                                









                               
                                 बचपन के दिन बहुत ही प्यारे होते है न कोई फिक्र होती है न कोई चिंता होती है कहते है बच्चे कच्ची मिट्टी के समान होते है उन्हे जिस रुप में ढालो वे ढल जाते है । चैन से खेलने , खाने , मस्ती करने , धमा चौकडी मचाने की उमर होती है । ये एक ऐसी उमर है जो बीत जाये तो फिर नही दुबारा हाथ आती । हर व्यक्ति एक बार अपना बचपन जरुर जीना चाहता है । आज बाल दिवस है । बच्चे किसे प्यारे नहीं होते है । बचपन के दिन पंख लगाकर तेजी से आते है उतनी ही तेजी से गुजर जाते है ।
                               बचपन के दिन वाकई बहुत खूबसूरत और यादगार होते है । बेशकीमती होते है इन्हे सहेज कर रखिये कही खो ना जाये बच्चे । कल ये बच्चे ही जीवन की , समाज की , घर परिवार की एक नयी तस्वीर बनायेंगे । आज बहुत दुख होता है , जब देखते है कि छोटे छोटे बच्चे अपने नन्हे नन्हे हाथों से नाजाने ऐसे ऐसे काम कर रहे है जिनके बारे में हम सोच भी नहीं सकते है ।
                            आये दिन अखबार कितनी खबरों से सामना होते है जो सिर्फ बच्चो पर होती है बच्चो के साथ ये काम किया गया , उन्हें मारा पिटा गया , उन पर अत्याचार किया गया और ना जाने क्या क्या । तब बहुत दुख होता है कि क्या ये है हमारे देश की तस्वीर । हम अपनी प्रक़ृति को ,देश को हर बेशकीमती चीज को बचा सकते है तो फिर बच्चो पर हो जुर्म को क्यों नहीं रोक सकते है । हम भी तो कभी बच्चे थे तो हमें मिलकर ही इन्ही चीजों को रोकना होगा । वरना आने वाले वर्षो में हमारे समाज की देश की जो तस्वीर होगी वो कल्पना से भिन्न होगी । आज बाल दिवस पर आप सभी को बाल दिवस की शुभकामनायें ।
बच्चे
घर परिवार की शान होते है बच्चे ।
हर पहचान की शान होते है बच्चे ।
हर इंसान की शान होते है बच्चे ।
देश की ,समाज की ,शान होते है बच्चे ।
मासूमियत से ,चुलबुलाहट से ,मस्ती से
प्रेम से , उमंग से , बचपन की शान होते है बच्चे
लड़का हो या लड़की माता पिता की जान होते है बच्चे ।
जीने की संग रहने की हर बात की तालीम देते है बच्चे ।
माता पिता की आँखो का तारा होते है बच्चे ।
हर रुप प्यारे लगते है बच्चे ।
चाहे बुरे हो या भले हर इंसान की चाहत होते है बच्चे ।
बड़े प्यारे होते है बच्चे ।

बारिश का मौसम

       


                           बारिश का इंतजार वैसे तो सबको होता है पर सबसे ज्यादा उसे होता है जिसे बारिश और बारिश का मौसम दोनों ही पसंद हो । मुझे भी बारिश बेहद पसंद है बारिश में भीगना फुहारों के साथ मस्ती करना उन फुहारों से खुद को भीगाना पानी में छप छप करना पानी में नाव तैराना । सबसे ज्यादा तो तब भीगती जब मैं स्कूल से घर वापस आती थी तब मुझे बारिश उतनी पसंद नही थी जितनी की बेहद पसंद आती है उस वक्त मेरे पास मेरे घर में छत नही थी पर आज है तो मैं अपनी छत पर जाकर खूब भीगती हूँ मस्ती करती हूँ मेरे कमरे से ही छत पर जाने का रास्ता है मेरे घर में दो छत है एक बड़ी एक छोटी मैं दोनो पर जाकर मस्ती करती हूँ ।
                          पहले मुझे बारिश इसलिये पसंद नहीं थी क्योंकि मैनें अपने दादा जी और दादी माँ को अगस्त माह की बारिश में ही खोया था इसलिए उस वक्त बारिश से नफरत होती थी पर अब नहीं होती । आज बारिश में भीगते हुए कहीं भी जाने में बड़ा मजा आता है बारिश में भुट्टा पकौड़े चने चपटे खाने का अलग ही मजा है । हर मौसम की बात अलग होती है पर बात जहाँ बात बारिश के मौसम की हो वहाँ तो मजा ही मजा है । बारिश में ही ना जाने कितने फूल पत्तियाँ फल कलियाँ उगती होगी वैसे एक बागवान या माली बागवानी के लिए बारिश उत्तम मौसम और कोई नहीं मानता होगा। खेत के किसान खेती के लिए इन्द्र देवता से कितनी प्राथनायें करते होगें हे भगवान बारिश कर दें । उनकी बारिश से ना जाने कितनी उम्मीदें आशाऐं जुड़ी हुई होगीं । वो कहतें है ना आशा से आकाश थमा है ।

  •              बारिश के गानों का भी अलग ही मजा है उन गानों में ना जाने कितनी मधुरता होती है कि वे गाने बारिश में भीगने को मजबूर कर देते है । मुझे भी बारिश के गाने अच्छे लगते है । बारिश से जाने कितनी दुख औए सुख जुड़े होगें कितनो को बारिश पसंद होगी कितनो को नापसंद । कितने ही लोग घर के अंदर बैठकर पकौड़े खाते चाय की चुस्कियों और टीवी कोई मूवी देखते हुए बारिश का लुत्फ उठाते है और कितने बाहर बारिश में भीगतें हुए सैर करते हुए मस्ती करते हुए लुत्फ उठाते होगें । सबके बारिश के मजे अलग अलग है । कालेज जाते समय छाते के साथ जाने में बड़ा मजा आता है छत में थोड़ा बहुत तो भीग जाते है पर जब छत हवा में उड जाये तब भीगने का सही मायने में मजा आता है ।


                       आज जब भी भीगकर आती हूँ तो मैं माँ की ना जाने कितनी ही हिदायतें सुनने को मुफ्त में मिल जाती है बेटी जल्दी कपडे बदल लें ठंड लग जायेगी जल्दी सिर पोछो सर्दी लग जायेंगी जब जब बारिश का मौसम आता है तब तब माँ की हिदायतों की पोटली खुल जाती है । माँ सुनाती है पर भीगने के बाद सुनता कौन है जो होना होगा वो तो होगा ही । इस बारिश के मौसम का लुत्फ उठाईयें मजें कीजिये खुद को इस फुहारों से भीगा दीजिये । ऐसे मौसम साल भर देखने को नही मिलते है । बारिश को बच्चा बड़े बुजुर्ग सभी पसंद करते है । बारिश का सबसे ज्यादा मजा तो स्कूल के बच्चों को आता होगा क्योंकि उनके स्कूल शुरु होने पर ही बारिश का मौसम आता है । इस बारिश पर बारिश के पानी को बचाइये उसका प्रयोग कीजिये । बारिश का लुत्फ उठाइये जी भरके । खुशियों से भरा हो आपका बारिश का मौसम और बारिश के हर साथ अपने हर लम्हे को सजाइयें ।

मेरे प्यारे दादा जी और मेरी प्यारी दादी माँ



                   





                       मेरे दादाजी श्री जगमोहन कोकास और मेरी दादी माँ श्रीमती शीला कोकास भंडारा ( महाराष्ट ) में रहते थे । मैनें अपने दादा जी और दादी माँ के साथ अपनी जिदंगी के बहुत खूबसूरत और यादगार लम्हे गुजारे है उन लम्हो को मैं आप लोगों के साथ यहाँ आज बाँटना चाहूँगी । हम ज्यादातर गर्मी की छुट्टियों में होली दिवाली में ही भंडारा जाते थे क्योंकि मेरे पापा श्री शरद कोकास बैंक में नौकरी करते थे और मेरी मम्मी श्रीमती लता कोकास स्कूल में पढ़ाने जाती थी और हम स्कूल जाती थी तो हमें छुटटी नहीं मिल पाती थी इसलिए हम त्योहारो पर या जब छुट्टी मिलती थी तब जाते थे । हमारे दादा जी और दादी माँ को हमारे आने का बेसब्री से आने का इंतजार होता था । वे बार बार घडी देखते रहते थे हम वहाँ जाकर सबसे मिलते थे बहुत अच्छा लगता था । शाम को मैं कभी दादा जी के साथ घूमने जाती थी तो कभी दादी माँ के साथ । हमारे घर के पीछे रेत का मैदान हुआ करता था मेरी दादी माँ मोहल्ले के बच्चों को उन बच्चों मैं यानि कोपल , हमारी सहेली मोनिका ,दीपिका ,शिल्पा रानी , प्रतीक , निखिल, हनी को रेत पर खिलाने ले जाती । हम रेत पर कभी मंदिर बनाते तो कभी कोई घर बनाते थे । बनाते बनाते सारे बच्चे दादी माँ से ढेर सारी बातें भी करते जाते । भागा दौडी मचती तो दादी माँ चिलाती कि कहीं कोई गिर ना जाये । सारे बच्चे हमारी दादी माँ को दादी माँ कहते थे । जब खेलना हो जाता था तो सब दादी माँ से कहते दादी माँ अब घर जाना है । फिर दादी माँ सबको सबके घर छोड़्ती उसके बाद हम दादी माँ मोनिका दीपिका घर आ जाते

                     मोनिका दीपिका हमारे किरायेदार श्री अनिल सारवे और श्रीमती विजयालक्ष्मी सारवे की प्यारी प्यारी बेटियाँ है वे भंडारा में ही पैदा हुई और पली बढ़ी इसलिए वे मुझसे और दादा जी दादी माँ से बहुत ही अटूट रिश्ते से जुडी हुई है । हमने उन्हे कभी अपना किरायेदार नहीं समझा बल्कि अपने परिवार का सदस्य ही समझा । घर आकर हम मोनिका दीपिका को या तो पढ़ाने लग जाती या उनके साथ खेलने लग जाती । इधर दादी माँ और मम्मी खाने की तैयारी में लग जाते वहाँ आँटी खाने की तैयारी में लग जाती । हमारे दरवाजे पीछे से जुड़े हुये थे इसलिए हमारा आना जाना और आसान था । हम दिनभर खेलते रहते थे मेरे पास एक पेटी थी जिसमें बहुत सारा खेलने का सामान होता था । मेरे पास बहुत सारी कपड़े की गुड़ियाँ थी उसे हम मोनिका के साथ मिलकर सजाते थे कभी उसके लिए हार बनाते थे तो कभी कुछ कभी फूलों से उसका गजरा बनाते थे उसका मेकअप किट बनाते थे गुड्डे गुडिया की शादी करते पर इन सब में हमारी दादी माँ हमारे साथ होती थी कभी हम घराती बन जाते तो कभी मोनिका बराती शानदार तरीके से सारी रस्में निभाते शादी होती खाना होता हम मिलकर मडंप सजाते गाना बजाते बिदाई होती फिर दुल्हा दुल्हन का गृहप्रवेश होता रिस्पेशन होता और फिर हम और मोनिका एक हो जाते । दूल्हा दुल्हन के लिए झूला बनाते उस झूले को बहुत सारे फूले से सजाते उसमें उन्हे सुलाते । हम दादी माँ से पूछते जाते अब क्या करें । दादी माँ हमें सब बताती जाती हम करते जाते ।
                कभी हम मेरी दादी माँ की पुरानी साडियाँ निकालकर पहनते थे एक दूसरे को सजाते सवांरते थे । दिन में जब सब सो जाते थे तो हम और मोनिका हमारे बगीचे में जाकर जाम तोड़्कर खाते थे जब जाम नहीं गिरते थे या नहीं निकलते थे तो हम पेड़ को धक्का लगाते या जोर जोर से हिलाते थे । जब जाम हाथ में आ जाते थे तो आराम से बैठकर खाते थे कभी हम आम वाले टोकने से कच्चे आम उठाकर खाते थे तो कभी नीबू तोड़्कर नीबू का शरबत बनाकर पीते तो कभी क्च्चे पापड़ निकालकर खाते थे । दादा जी हम काजू वाले बिस्किट खिलाते थे जो नमकीन होते थे । हम दादी माँ के हाथ के साबूदाने की खिचड़ी खाते तो कभी चावल और आम का अचार खाते आम का अचार तीखा होता तो हमें और मोनिका को मिर्ची लगती तो हम दादा जी के पास जाते और उनसे ठंडाई मांगकर खाते हमें ठंडाई खाने के लिए दादा जी बहुत मनाना पड़ता था वे हमें घुट्ने टेकने कर और हाथ आगे बढाने को कहते थे दादा जी पान के शौकिन थे तो वे पान में ( चमन बहार ) की ठंडाई डालते थे । वे पान खाते थे और हम इसका लाभ उठाते थे ।
                  अगर हम किसी त्योहार पर जाते तो मैं दादी माँ और मम्मी मिलकर ढेर सारे पकवान बनाते । उन पकवानों में पहले भगवान के लिए भोग निकाला जाता फिर हमें खाने मिलता । दिवाली पर हम कभी अपने दादा जी और चाचा के साथ खरीददारी करने जाती उस खरीददारी की लिस्ट बनती उसमें हमारें लिए सबसे पहले रंगोली लिखी जाती । जब सारा सामान आता तो सबसे पहले दादा जी हमें हमारी रंगोली देते । उसके बाद हम मोनिका के साथ मिलकर रंगोली डालते हमारा बहुत बड़ा आंगन था उसमें हम बहुत सारी रंगोलिया ड़ालते थे उसके बाद हाथ मुँह धोकर सुन्दर से कपडे पहनकर तैयार हो जाते तब तक मम्मी , दादी माँ , दादा जी और बबलू चाचा पूजा की तैयारी करते फिर शुभ मुहर्त के अनुसार दादा जी और सब मिलकर पूजा आरती करते फिर प्रसाद बँटता सब फटाखे छोड़्ते हमें फटाखों से डर लगता तो हम नहीं छोड्ते थे । फिर सबके साथ मिलकर हमारी सीमा बुआ के घर जाते जो वही भंडारा में ही रहती है । वहाँ सबसे मिलते फिर घर आकर खाना होता ढेर सारी बाते होती अगले दिन सुबह से हम और मोनिका तैयार होकर सबके घर प्रसाद बाँटने जाते । पहले हम होली नहीं खेलते थे सब खेलते थे और हम घर के अंदर छुपकर बैठ जाते क्योंकि हमें तब रंगों से डर लगता पर हम पिछ्ले एक साल से जी भरके होली खेलते अब हमें रंगों से कोई डर नहीं लगता ।
                      सन 2001 हमारी दादी माँ हमें छोड़कर चली गई तो हम दादा जी को अपने साथ अपने केलाबाडी वाले घर में ले आये और सन 2003 हमारे दादा जी भी हमें छोड़कर चले गये । अब तो बहुत कुछ बदल गया है अब हम भंडारा भी नहीं जा पाते या जानें का मन नहीं करता क्योंक़ि वहाँ जाने हमें दादी माँ और दादा जी बहुत याद सताती है अब हमारे किरायेदार श्री अनिल सारवे अपने परिवार को लेकर नागपुर में बस गये है और हमारी सहेली मोनिका अब यहाँ दुर्ग में अपनी नानी के यहाँ रहकर अपनी बारहवी की पढ़ाई कर रही है उससे भी कभी कभी मुलाकात हो जाती है । अब भंडारा वाले घर में हमारे चाचा जी श्री शेखर कोकास अपनी पत्नी श्रीमती रंजना कोकास और अपने बेटे पार्थ कोकास बिटिया पलक कोकास के साथ रहते है । वो वक्त के गुज़रे लम्हे और हमारे दादा जी दादी माँ हमारी यादों में रह गये है । अब ना वो प्यारे प्यार लम्हे मिलेंगे ना वो प्यारे प्यारे दादा जी और दादी माँ बस अगर हमारे पास कुछ है तो बस उनकी यादें है । “ जिदंगी के सफर में लोग चले जाते है और अपनी यादें दे जाते है । “ यादें बेशकीमती होती है इन्हे संभालकर रखिये और अपने से जुडें इंसानो और रिश्तों का सम्मान कीजिये ना जाने ये रिश्ते आपसे कब दूर हो जाये फिर आपको मिले या न मिलें । यही जिदंगी का फलसफा है कि इंसान चले जाते है और अपनी यादें छोड जाते है । हम सम्मान करते है अपने रिश्तों का आप भी करिये ।