हमारा घर बारह साल का हो गया

     
       आज हमारे घर की बारहवीं सालगिरह है देखते देखते इतना वक़्त बीत गया । एक इमारत बनने से लेकर यहां इस घर में रमने जमने में । ऐसा लगता है जैसे यह कल की बात है हम इस घर में रहने आये हैं । याद आते हैं वे सभी दिन जब यह मकान बन रहा है इसमें लगी सभी लोगों की मेहनत , समय रोज देखने की इच्छा अब यह हो गया यह बाकी है । धीरे धीरे 2 साल में यह मकान बनकर तैयार हो गया और 2 दिसम्बर 2007 को हमने इस घर में प्रवेश किया । उसके बाद से यही रहने लगे ।
एक छोटे से घर बड़े घर में रहने के सुख की आदत होने लगी । 2007 के बाद से इस घर की बहुत सारी सालगिरह आयी जो खास ही थी पर जबसे हमारी शादी हुई उसके बाद से यह पहली बार है जो अनिल इस दिन पर हमारे साथ है और आज का यह दिन बेहद खास है ।

मेरे मार्गदर्शक का जन्मदिन

     
         आज मेरे मार्गदर्शक दिवगंत दादा जी का जन्मदिन है उनका जन्म विजयादशमी पर्व पर हुआ था औऱ उस दिन गांधी जयंती भी थी आज अगर वे जीवित होते 89 वर्ष के होते मेरे लिए वो सिर्फ मेरे दादा जी नहीं थे वे दिन भर के साथी , मित्र शिक्षक मार्गदर्शक थे दिन में उन्हें खाना परोसकर देना । उनके लिए चाय बनाना । शाम को उनके साथ सैर पर जाना वहां से फूल तोड़कर लाना औऱ हर सोमवार को जिस भी रास्ते से निकलते थे बच्चों को टॉफी जरूर देते थे ये उनका पक्का नियम था (दादा जी का देहांत गुरुवार 28 अगस्त को हुआ था उसके बाद जो सोमवार आया मैं उसी रास्ते से किसी काम के लिए निकली दादा जी को साथ ना पाकर औऱ मेरे हाथ में टॉफी ना देखकर बच्चों ने पूछा दीदी दादा जी कहाँ है मैंने कहा बेटा अब दादा जी मायूस हो गए फिर कुछ दिन तक मैं उस रास्ते से निकलती रही बच्चों के लिए हर सोमवार टॉफी लेकर पर उस दिन के बाद मुझे फिर कोई बच्चा उसी समय बाहर नहीं दिखा )

     
       हां जब कभी मौका मिलता है बच्चों को टॉफी जरूर देती हूं देते हुए सोचती हूँ दादा जी की तरह अपना प्यार देना बहुत जरुरी है क्योंकि बच्चे मुस्कुराते हुए थैंक्यू कहते हैं तो अच्छा लगता है , फिर पूजा करना बैठकर रामचरित मानस का पाठ सुनना । दिन भर उनके साथ रहने की इस तरह की आदत हुई मुझे की उनके ना रहने पर मेरे लिए एक लड़की को रखा था जिससे वो मेरी देखभाल कर सके क्योंकि सबको डर था अकेले में पागल ना हो जाऊं । उनके ही मार्गदर्शन औऱ अथक सहयोग से मेरा दाखिला अंग्रेजी माध्यम से हिंदी माध्यम में हुआ क्योंकि वे ध्यान देते थे कि मुझे अंग्रेजी पढ़ने में दिक्कत होती है भले ही आज में किसी पद पर नहीं हूँ परंतु जो मैं इतनी पढ़ाई की है सच मानो तो उसके पीछे सहयोग दादा जी का ही है ।
   
        मुझे ख़ुशी होती है जब कोई कहता है आप अपने दादा जी की तरह दिखती हो । हां हूं मैं उनकी तरह । क्योंकि उनके साथ रहते हुए मैंने बहुत सारी बातें सीख ली थी जैसे बुजुर्गों का सम्मान करना, सेवा करना , अपने से छोटो को प्यार देना , कड़ी मेहनत करना , जीवन में कितना भी कठिन वक़्त क्यों ना आ जाए ना घबराते हुए हिम्मत से काम लेना , मीठा बोलना , दूसरों का सहयोग करना, जीवन में किसी भी परिस्थिति में घबराना नहीं । खेल खेल में बहुत सारी बातें सीखा गए ।
       बस एक ही अफसोस मुझे रह गया कि उनके अंतिम समय में उनकी मृत्यु ने इतना भी समय नहीं दिया कि कुछ बातें उनसे कर पाती कुछ पूछ पाती जो अधूरा था वो अधूरा ही रह गया । हर साल उनके जन्मदिन पर कुछ विशेष करते थे हम ।

     
        उनके होने से मुझे एक जीवन की बहुत बड़ी सीख मिली की जब तक एक बुजुर्ग इंसान आपके बीच है उनकी बहुत सेवा कर लीजिए क्योंकि ना होने पर कुछ भी शेष नहीं रहता है । कल वो बुजुर्ग थे कभी आप भी होंगे अगर अपेक्षा नहीं करते कि आपके साथ बुरा व्यवहार हो तो उन बुजुर्गों के साथ मत कीजिए वे तो सिर्फ प्यार औऱ थोड़ी सेवा चाहते हैं । दादा जी ने हमें अपने निजी काम करने के मौके नहीं दिए अपने जीवन के अंत समय तक वे स्वंय ही करते रहे बस कुछ दिन जब वे असमर्थ हो गए तब हमने उनकी बहुत सेवा करो । सेवा कर लीजिए फिर जो पुण्य औऱ आशीर्वाद मिलता है वो जीवन भर की पूंजी होती है । फिर तो कहीं से भी वापस नहीं आ सकते औऱ उनके बिना बड़ी सी दुनिया में अकेले रह जाने के अलावा कुछ नहीं रहता।

       
      हर विजयादशमी पर मुझे मेरे दादा जी याद आते हैं । हां दादा जी अपने जन्मदिन पर भंडारा में पूरी कॉलोनी के स्वयं बाजार जाकर चॉकलेट का पूरा पैकेट लेकर आते थे बच्चों को बुलाकर उनसे कहते थे पहले सोनापत्ती दो बच्चे सोनापत्ती देकर आशीर्वाद लेते एक - एक करके सभी बच्चों को दादा जी चॉकलेट देते औऱ खूब दुलारते क्योंकि उन्हें बच्चे बहुत पसंद थे । दादा जी मेरे मार्गदर्शक आप मुझे बहुत याद आते हैं मुझे आपकी तरह हरा भरा छाया देने वाला वृक्ष बनना है जिससे मैं अपने सभी अपनों को जोड़कर रख सकूं ।
जन्मदिन की शुभकामनाएं दादा जी 🍁☘️🍀

मैं बेटी नहीं हूँ मैं पूरा जीवन हूँ



 
     कितना अच्छा महसूस होता है कि मैं बेटी हूँ । बेटी होना अपने आप में एक अदभुत एहसास है अगर कल को मेरी बेटी जन्म लेती है तब उस एहसास में खुद बेटी होना मेरा आत्मविश्वास है । पर मैं बेटी हूँ अपने आंगन की ये मेरा विश्वास है ।

       हम बेटियां हैं हम में विश्वास है दो - दो परिवार को जोड़कर रखने का हमको एक मजबूत धागा बनना है क्योंकि जब एक एक धागे पर मोती को पिरोया जाता है तब जाकर एक माला बनती है औऱ हमें इतना मजबूत बनना चाहिए कि परिवार के हर सदस्य को हम जोड़कर एक जुटकर करके रख सके । बहुत से लोगों की मानसिकता है कि हमें बेटी नहीं चाहिए बेटा चाहिए मतलब बेटी का कोई अस्तित्व नहीं है बेटा बड़ा होगा तो बहू लाएगा ये नहीं सोचते कि अगर ऐसा ही सोचेंगे कि बहू लाना है तो उसे सांसे जीवन देने वाली भी तो बेटी एक माँ ही होगी । बेटी ही नहीं होगी तो बहू भी कौन देगा ।

   
      कुछ लोगों से सुना है बेटी बदनाम करती है दुख होता है सुनकर अरे बेटी बदनाम नहीं करती बल्कि वो तो सिर्फ अपने होने से पिता के नाम को रोशन कर देती है । माँ उसमें अपना बचपन देखती है पर याद रखिएगा मित्रों एक माँ स्वंय बेटी है इसलिए वो अपनी परछाईं बेटी में ही देख सकती है । बेटे होकर भी एक माँ को बेटी ना हो तो उसे जाकर एक बेटी जरूर गोद ले लेना चाहिए क्योंकि बेटा तो सिर्फ पिता के वंश को आगे बढ़ाता है पर बेटी पिता के वंश के साथ बेटी को जन्म देकर अपनी माँ के वंश को भी आगे बढ़ाती है । बेटी तो जीवन का सृजन है वो सबके जीवन का शृंगार करती है सिर्फ अपने होने से ।

 
    एक बेटी कितने सारे रिश्ते निभाती हैं देखा जाए तो हर रिश्ता सिर्फ इसलिए बनता है या होता है क्योंकि वो है । शायद इसलिए कहा जाता है कि बेटा तो है पर एक माँ बेटी के बिना फिर भी अधूरी है । बेटी जब घर में होती है तो उसका होना उसकी हंसी उसकी बातें , उसकी खिलखिलाहट , उसकी मस्ती बहुत अनमोल होती है । बेटी है तो कल  है वो नहीं तो जिंदगी है क्या फिर ।

     
    एक माँ तो हमें पूरा जीवन दे देती है । अगर आप बेटी है तो खुशी रहिए क्योंकि बेटी सिर्फ अपनी खुशी से ही घर को घर बना देती है औऱ अगर आप एक बेटी के माता पिता है तो उत्सव मनाइये क्योंकि बेटी आपके दुख सुख की सबसे बड़ी भागीदार होती है क्योंकि एक बेटी सबसे पहले आपको पूछेगी फिर दुनिया को । इसलिए कभी मत सोचिए कि बेटी का जन्म हुआ तो उसका गला घोंटकर हत्या कर दे उसकी ।

      बेटी है तो सब कुछ है वो नहीं तो फिर कुछ भी शेष नहीं है पता नहीं लोग ये बात कब समझेंगे क्योंकि आज भी बहुत सारी जगहें ऐसी है जहाँ बेटी के पैदा होते उसे या मार दिया जाता है या फिर अगर बच गई है तो उसके होने का मातम मनाते है औऱ बच्ची के साथ बुरा व्यवहार किया जाता है । या फिर अपनी हवस को शांत करने के लिए उसकी अस्मिता के साथ खेला जाता है उस दरिंदे के घर में भी कभी बेटी हो सकती है , कभी दहेज के लिए उसे पीड़ित किया जाता है , कभी औऱ किसी वजह से । कब तक ना जाने ये खेल चलेगा औऱ कब तक बेटियों के साथ बुरा होता रहेगा ।

         मेरे लिए हर दिन बेटी दिवस है क्योंकि हर दिन मुझे एहसास जगाता है कि मैं अपने मम्मी डैडी की बिटिया हूँ और उनसे बहुत प्यार करती हूं ।
बेटियों को कभी भी अपने साथ हो रहे दुर्व्यवहार के लिए चुप नहीं रहना चाहिए बल्कि हमला करना चाहिए ।


सिर्फ इतना नहीं हूँ मैं ।।
मैं तो एक नहीं हूँ
सब कुछ हूँ मैं ।।
सिर्फ आज नहीं
आना वाला कल भी हूँ मैं ।।
कहते हैं लोग बेटी है तो कल है
बेटी नहीं तो एक पल नहीं हूँ मैं ।।
अपने पापा का सहारा
अपनी मम्मी का आईना हूँ मैं ।।
बचपना अब भी मेरा वैसा ही है
क्योंकि उसी में जीवित हूँ मैं ।।
सिर्फ इतना नहीं हूँ मैं ।।
ससुराल की लाड़ली भी हूँ
पर बेटी और सिर्फ बेटी हूँ मैं ।।
जब तक जीवित है मम्मी पापा
सिर्फ तब तक ही बेटी हूँ मैं ।।



 मुझे प्यारी प्यारी बच्चियां बहुत पसंद है । पसंद तो बेटे भी है पर प्यारी सी एक नन्ही कली हूँ इसलिए ज्यादा बेटियों का होना मुझे पसंद है ।

बेटी दिवस की शुभकामनाएं 

नन्ही कोपल की शादी हो गई


      बात कोपल औऱ अनिल के प्यारे से रिश्ते की है । एक रिश्ते को लम्बे वक़्त तक निभाने के लिए विवाह बन्धन में बंधने के लिए जज्बा चाहिए थोड़ा सा प्यार ,एक दूसरे के लिए समझ , गहरी मित्रता और विश्वास । मुझे विश्वास था यह रिश्ता शादी की मंजिल तक जरूर पहुँचेगा ।



       बस तीन साल पूरे होने से पहले 5 जनवरी को हम तीन जबलपुर पहुंच गए 11 जनवरी को मेरे हाथ पैर में पिया के नाम की मेहंदी रच गई 12 को रंग लिया रंग हल्दी । मेरी मेहंदी बहुत गहरी बहुत सुंदर रची थी ।13 जनवरी 2019 रविवार को जबलपुर मेरे ननिहाल की श्री राधा होटल में मैं लाल रंग के लहंगा चुनरी पहने हुए अपने पिया अनिल की बारात का इंतजार कर रही थी औऱ घबराते शर्माते मैं हाथों में वरमाला लिए अपने निल के पास पहुंच गई ।





    हमने गुलाब के फूलों से सजी वरमाला एक दूसरे को पहना दी । सबने स्टेज पर आकर हमें बधाई आशीर्वाद दिए फ़ोटो खिंचवाई ।




      रात ढलने लगी मम्मी पापा की प्यारी सी नन्ही कोपल बनारसी साड़ी , आशीर्वाद स्वरूप गहने पहन और सर पर लाल औऱ चमकीले सितारों वाली चुनर ओढ़कर तैयार हो गई अपने पिया अनिल संग सात फेरे लेने के लिए । मंद मंद मुस्कुराते दुल्हे राजा बने शेरवानी में अनिल जंच रहे थे ।


   मम्मी पापा ने कर दिया कन्यादान मेरा हाथ थाम लिया दूल्हे राजा निल ने फूफाजी ने हमारा गठबंधन कर दिया एक दूसरे का हाथ थामकर हमने साथ फेरे लिए ।



   मेरी सूनी जिंदगी को अनिल के नाम के सिंदूर ने खूब चमका दिया उन्होंने गले में मंगलसूत्र पहना दिया । तीन साल से जिस दिन का इंतजार था मेरी मांग भरते वक्त मेरी खुशी में नजर आ रहा था ।
    एक तरफ मैं खुश थी कि अब से मेरा नया जीवन शुरू हो गया पर मन ही मन दुखी थीं कि एक जीवन छूट रहा है अपने पापा के घर को छोड़कर चिड़िया उड़ रही है पर एक घर को सूना करके तिनका तिनका जोड़कर अपने नए घर को रोशन करना था ।



       अनिल ने मेरा बहुत साथ दिया मम्मी पापा बहुत खुश थे अनिल जैसे समझदार बेटा उन्हें खूब प्यार देने वाले खयाल रखने वाला बेटा मिल गया था । माँ पापा खुश थे उन्हें एक प्यारी सी बहुरिया मिल गई । विदाई हो गई मैं मम्मी पापा से दूर हो गई पर मेरे निल ने मुझे मजबूती से सम्भहाल लिया मेरी आँखों में आँसू नहीं आने दिया ।



     
     फिर शुरू अनिल संग कोपल का नया सफर,नया जीवन ,नए सपने ,नई उम्मीदें । मन में नए परिवार के लिए प्यार लिए मैं अन्नपूर्णा बनकर चावल से भरा कलश गिराकर घर मे प्रवेश कर गई ।



   
      कुछ दिन ससुराल में बिताए । फिर हम दुर्ग के लिए रवाना हो गए वहां पापा ने एक रिस्पेशन रखा था वहां हमने विवाह के बाद के कुछ शानदार दिन बिताए कुछ दिन बाद निल मुझे मम्मी डैडी के पास छोड़कर नौकरी ज्वाइन करने के सिलवासा गुजरात चले गए ।

     खुद को देखा तो लगा मांग में सिंदूर , गले में मंगलसूत्र माथे पर बिंदी हाथों में चूड़ियां , पैरों में पायल ,बिछिया तन पर दुपट्टा एक अवतार मैं आ गई थी मेरा पूरा जीवन बदल गया था । मैं अपनी पिया की प्यारी बन गई थी । एक ही दिन में मैं पत्नी , बहू, भाभी नए रिश्तों से बंध गई थी ।


   
      2 महीने मायके में बिताने के बाद मेरी विदाई कराने के लिए ससुराल से पापा जी औऱ बड़े भाई साहब आ गए । मम्मी की चुनाव की ट्रेनिंग में डयूटी लग गई थी तो मम्मी नहीं आ सकी स्टेशन मुझे छोड़ने मैं शादी के बाद पहली बार पापा से लिपटकर बहुत रोई । हौले से नन्ही कोपल घर को सूना करके चली गईं औऱ जैसे ही ट्रेन ने गति पकड़ी मुझसे बहुत सी चीज़े दूर पीछे छूट गई थी ।

     दुबारा ससुराल आने पर शुरू हुई जद्दोजहद अलहड़ कोपल से एक सुदढ़ गृहणी बनने की समझ आया कि अपने मायके के नियम , तौर तरीके , रहन सहन बहुत अलग होते हैं । नई जिम्मेदारियां मुझे जकड़ रही थी ।


    दिन महीने साल यूंही गुजर जाएंगे इस महीने 6 महीने हो गए हमारी शादी को पूरा जीवन भी प्यार से हंसते गाते सबको खुश रखते हुए निकल जाए ।

धीरे धीरे नई चीजों में ढल रही हूं
मैं अंदर ही अंदर कुछ बदल रही हूँ ।

सनबर्न से होने वाली खुजली से कैसे बचे




       अल्ट्रावायलेट किरणों के बहुत एक्सपोजर होने की वजह गर्मी के दिनों में अक्सर हमारी त्वचा लाल हो जाती है और खुजली होने लगती है अगर आपको बाहर जाकर काम करना ही है तो कोशिश करें वह सुबह या शाम को निपटा ले भरी दुपहरी में ना निकलें सनबर्न होने के कारण त्वचा में दर्द भी हो सकता है या त्वचा सनस्क्रीन लोशन के प्रति बहुत संवेदनशील हो जाए तो फुल बाहों वाले कपड़ें पहने अगर कुछ उपाय को ध्यान में रखकर फ़ॉलो करें तो कुछ राहत मिल सकती है

धूप में निकलने से पहले 3 गिलास पानी - हाइड्रेट रहने के लिए गर्मी के दिन में तरल चीजों का सेवन ज्यादा से ज्यादा करना चाहिए क्योंकि इन दिनों शरीर को पानी बहुत जरूरत होती है जब भी आपको धूप में बाहर जाना है तो घर से निकलने से पहले 3 गिलास पानी जरुर रख ले नमक का सेवन करें मगर कम करें

बारबेक्यू के फ़ूड आइटम लेने से बचे - इन दिनों मौसमी फलों और दही का सेवन करना चाहिए बारबेक्यू के फ़ूड से बचना चाहिए उनसे पेट खराब हो सकता है अगर जी मचलने , चक्कर आने , थकान हो तो डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए

ठंडक के लिए 2 बार शावर ले - शरीर को ठंडा रखने के लिए इन दिनों दो बार नहाए पीने के लिए हमेशा अपने पास पानी की बोतल रखे

सनस्क्रीन और कूल कम्प्रेस - तेज धूप में झुलसने से बचने के लिए धूप में निकलने से 20 मिनिट पहले 30 एसपीएफ या उससे ज्यादा वाला सनस्क्रीन लोशन लगाएं एक ठंडा गीला टॉवेल सनबर्न से बहुत आराम दे सकता है और खुजली को कम कर सकता है

माँइस्चराइजर का प्रयोग करे - सनबर्न हो जाने पर त्वचा में खिचाव महसूस हो सकता है वो सूखी और खुजली वाली हो जाती है गर्मियों की ऊष्मा इस स्थिति को और खराब कर देती ऐ त्वचा को हाइड्रेट रखने के लिए विटामिन सी और ई वाला माँइस्चराइजर का प्रयोग करे

एलोवेरा का प्रयोग - एलोवेरा सनबर्न का सबसे पारम्परिक उपचार है एलोवेरा के रस या जेल का प्रयोग करे इसमें खुशबू नही मिलाएं इससे त्वचा में जलन हो सकती है

करें डॉक्टर से तुरंत सम्पर्क -  अगर सनबर्न हो जाने पर बुखार आ गया हो शरीर की 20 % त्वचा पर फफोले आ गए हो चक्कर आ रहे हो तो डिहाइड्रेशन हो सकता है ऐसी स्थति में तुरंत डॉक्टर को दिखाना चाहिए
दूध में रूई के फाहे भिगोकर रखे - त्वचा जहां - जहां झुलसी हो वहां ठंडे दूध में भिगोकर रूई के फाहे रखें लेकिन ध्यान रखें दूध ज्यादा ठंडा ना हो और झुलसी हुई जगह पर परफ्यूम और साबुन ना लगाएं

नहाने के पानी में खाने का सोडा मिलाएं - नहाने के पानी में एक कप एप्पल सिडर विनेगर मिला लें ताकि त्वचा का पीएच संतुलन बनाने में मदद मिल सके और त्वचा हील हो सके नहाने के पानी में एक कप एप्पल सिडर विनेगर मिला लें ताकि त्वचा का पीएच संतुलन बनाने में मदद मिल सके और त्वचा हील हो सके

हल्दी , पुदीन और खीरे का पेस्ट - खीरे में एंटी ऑक्सीदेंतेस होते है दर्द निवारक के गुण होते है इसकी वजह से यह सनबर्न होने आराम पहुंचाता है ठंडे खीरे को मैश करे और पेस्ट को जली हुई जगह पर लगाएं सनबर्न से प्रभावित क्षेत्र पर हल्दी ,पुदीने और दही का मिश्रण लगाने से भी त्वचा को आराम मिलता है



तेनू काला चश्मा जचदा ऐ

सनग्लास पहनना हर किसी को पसंद होता है क्योंकि यह धूप , धूल से हमारी आंखों को बचाता है ।

आपको काला चश्मा पहनना है तो कुछ बातें जरूर याद रखे

1हमेशा चश्मा खरीदते समय यह ध्यान रखें कि जो भी शेड का आप खरीद रहे हो वह सूरज की किरणों से आपकी आंखों को पूरी सुरक्षा देंगे या नहीं ।

2 लेंस का रंग कैसा है यह भी जरूर ध्यान दे आपके लेंस का रंग चाहे ग्रे , ब्लू , ब्लैक या किसी भी रँग का हो वह प्रोटेक्ट फैक्टर पर कोई असर नहीं डालना चाहिए ।

3 स्क्रेच सही है ऐसा नहीं है अगर आपके शेड्स में स्क्रेच है तो आप देखने के लिए अपनी आंखों पर ज्यादा जोर देते हैं ऐसा करने से आंखों पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है ।

4 आप अक्सर यह सोचते हैं कि सनग्लास के साइज से कोई फर्क नहीं पड़ता तो आप गलत सोचते हैं एक्सपर्ट कहते हैं कि बड़े लेंस वाले शेड्स अच्छे होते हैं क्योंकि वो रोशनी को आंखों में जाने नहीं देते हैं ।

5 लो क्वालिटी के नहीं बल्कि अच्छी क्वालिटी के ही सनग्लासेस खरीदना चाहिए ।

जो भी सनग्लास खरीदे आप उससे अच्छी तरह देख सके मजबूत हो औऱ आंखों को नुकसान नहीं पहुँचाए ।

आज के दिन चिपको आन्दोलन की शुरुआत

     
       जब कभी भी हम पर्यावरण संरक्षण की बात करते है तो दिमाग़ में आता है उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्र में ८० के दशक में चले चिपको आन्दोलन के बारे में आज 26 मार्च के ही दिन चिपको आन्दोलन किया गया था वनों को संरक्षित करने के लिए इस अनूठे आन्दोलन की वजह से आज देशभर में पर्यावरण के प्रति जागरूकता फ़ैल गई है यह आन्दोलन पर्यावरण व् प्रकृति की रक्षा के लिए चलने वाली प्रक्रिया है ।

क्या है चिपको आन्दोलन की कहानी 

भारत में पहली बार 1927 में वन अधिनियम 1927 को लागू किया गया था इस अधिनियम के कई प्रावधान आदिवासी और जंगलो में रहने वाले लोगों कि हितों के खिलाफ़ थे । ऐसी ही नीतियों के खिलाफ़ १९३० में टिहरी में एक बड़ी रैली का आयोजन किया गया अधिनियम के कई प्रावधानों के खिलाफ़ जो विरोध १९३० में शुरू हुआ था वह 1970 में एक बड़े आन्दोलन के रूप में सबके सामने आया जिसका नाम चिपको आन्दोलन रखा गया । 1970 से पहले महात्मा गांधी के एक शिष्य सरला बेन ने १९६१ में एक अभियान की शुरुआत की जिसके तहत उनहोंने लोगों को जागरूक करना शुरू किया । 30 मई १९६८ में बड़ी संख्या में आदिवासी पुरुष और महिलाएं पर्यावरण संरक्षण के मुहीम के साठ जुड़ गए । इस प्रकार आगे चलकर इन्ही छोटे - छोटे आंदोलनों से मिलकर विश्वव्यापी जनांदोलन की शुरुआत हुई ।

चिपको आन्दोलन की शुरुआत 

१९७४ में वन विभाग ने जोशीमठ के रैनी गाँव के करीब ६८० हेक्टेयर जंगल ऋषिकेश के एक ठेकेदार को नीलाम कर दिया । इसके अंतर्गत जनवरी १९७४ में रैनी गाँव के २४५९ पेड़ों को चिन्हीत किया गया । 23 मार्च को रैनी गाँव में पेड़ो का काटन किये जाने के विरोध में गोपेश्वर में एक रैली का आयोजन हुआ , जिसमें गौरा देवी ने महिलाओं का नेतृत्व किया ।

प्रशासन ने सड़क निर्माण के दौरान हुई क्षति का मुआवजा देने की तिथि 26 मार्च टी की गई जिसे लेने के लिए सभी को चमोली आना था । इसी बीच वन विभाग ने सुनियोजित चाल के तहत जंगल काटने के लिए ठेकेदारों को निर्देशित कर दिया कि 26 मार्च को गाँव के मर्द चमोली में रहेंगे और सामाजिक कार्यकर्ताओं को वार्ता के बहाने गोपेश्वर बुला लिया जाएगा और आप मजदूरों को लेकर चुपचाप रैनी की और चल पड़े और पेड़ों को काट डालो इसी योजना पर अम्ल करते हुए श्रमिक रैनी की और चल पड़े । इस हलचल को एक लड़की द्वारा देख लिया गया और उसने तुरंत इससे गौरा देवी को अवगत कराया पारिवारिक संकट झेलने वाली गौरा देवी पर आज एक सामूहिक उतरदायित्व आ पड़ा गाँव में उपस्थित 21 महिलाओं और कुछ बच्चों को लेकर वह जंगल की और चल पड़ी । ठेकेदार और जंगलात के आदमी उन्हें डराने धमकाने लगे लेकिन अपने स्साहस का प्रदर्शन करते हुए उन्होंने डटकर सामना किया और उन्होंने गाँव की महिलाओं को गोलबंद किया और पेड़ों से चिपक गए ठेकेदार व् मजदूरों को इस विरोध का अंदाज न था जब सैकड़ो की तादाद में उन्होंने महिलाओं को पेड़ों से चिपके देखा तो उनके होश उड़ गए उन्हें खाली हाथ लौटना पड़ा ओरिस तरह यह विरोध चलता रहा ।

उस समय अलकनंदा घाटी से उभरा चिपको का संदेश जल्दी ही दोसोरे इलाकों में भी फ़ैल गया नैनीताल और अल्मोड़ा में आन्दोलनकारियों ने जगह - जगह हो रहे जंगल की नीलामी को रोका ।

टिहरी से ये आन्दोलन सुन्दरलाल बहुगुणा के द्वारा शुरू किया गया जिसमें उन्होंने गाँव -गाँव जाकर लोगो में जागरूकता लाने के लिए १९८१ से १९८३ तक लगभग 5000 कि. मी लम्बी ट्रांस - हिमालय पदयात्रा की । और १९८१ में हिमालयी क्षेत्रों में एक हज़ार मीटर से ऊपर के जंगल में कटाई पर पूरी पाबंदी की मांग लेकर आमरण अनशन पर बैठे इसी तरह से कुमाऊं और गढ़वाल के विभिन्न इलाकों में अलग - अलग समय पर चिपको की तर्ज पर आन्दोलन होते रहे ।

अंतत: सरकार ने एक समिति बनाई जिसकी सिफारिश पर इस क्षेत्र में जंगल काटने पे 20 सालों के लिए पाबंदी लगा दी गई ।

आन्दोलन का प्रभाव 

इस आन्दोलन की मुख्य उपलब्धि ये रही कि इसने केन्द्रीय राजनीति के एजेंडे में पर्यावरण को एक सघन मुद्दा बना दिया जैसा कि चिपको के नेता रहे कुमाऊं यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर डॉ शेखर पाठक कहते है '' १९८० का वन संरक्षन अधिनियम और यहाँ तक कि केंद्र सरकार में पर्यावरण मंत्रालय का गठन भी चिपको की वजह से ही सम्भव हो पाया .''

उत्तर प्रदेश में इस आन्दोलन ने १९८० में तब एक बड़ी जीत हासिल की जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने प्रदेश के हिमालयी वनों में वृक्षों की कटाई पर 15 वर्षो के लिए रोक लगा दी बाद के वर्षो में यह आन्दोलन पूर्व में बिहार , पश्चिम में राजस्थान , उत्तर में हिमाचल प्रदेश , दक्षिण में कर्नाटक और मध्य भारत में विंध्य पर्वतमाला में वृक्षों ली कटाई को रोकने में सफल रहा साथ ही यह लोगों की आवश्यकताओं और पर्यावरण के प्रति अधिक सचेत प्राकृतिक संसाधन नीति के लिए दबाब बनाने में भी सफल रहा l


नोट 

चिपको आन्दोलन के सूत्रधार श्रीमती गौरा देवी थी l

इस आन्दोलन को शिखर तक पहुँचाने का काम पर्यारवरणविद सुन्दरलाल बहुगुणा ने किए l

सं १९८१ में सुन्दरलाल बहुगुणा को पद्मश्री पुरस्कार दिया गया लेकिन उन्होंने स्वीकार नही किया कि क्योंकि उन्होंने कहा जब तक पेड़ों की कटाई जारी मैं अपने को इस समान के योग्य नहीं समझता हूँ ।

इस आन्दोलन को १९८७ में सम्यक जीविका पुरस्कार ( Livelihood Award से सम्मानित किया गया ।

जिस तरह से इन लोगों ने एक आंदोलन के माध्यम से वनों को काटने से रोका उसी तरह हमें भी अपने पेड़ पौधों, वनों को बचाना चाहिए । एक दिन कहीं ऐसा ना आ जाए कि धरती पर पेड़ ही ना बचे फिर बिना पेड़ो का जीवन कैसा होगा यह तो सोचा ही जा सकता है । इसलिए पेड़ो को बचाइए और हरियाली के बीच अपना जीवन अच्छे से बिताइए ।