, कभी
गिल्ली डंडा , कभी कंचे लूडो , सांप
सीढ़ी तो कभी फुगडी जिनका कोई जिक्र बीएस करे आज हम पुरानी यादों में सैर करने चले
जाते है कभी कुछ आज का बचपन तो बस या तो मोबाइल के अन्दुर छुपे हुए गेम्स में कैद
या फिर दर्जनों भर किताब के कोर्स में आज के बच्चों से पूछो की कंचे क्या होते है
उनका जवाब इतना ही मिलेगा हमें नहीं पता पर कौन सा वीडियो गेम ये बहुत अच्छे से
पता है
बचपन के खेल खेलों में की बात ही निराली है एक वो दौर था जब बच्चे घर के
बाहर ही खेलों को खेलते हुए दिखा करते थे कभी कब्बडी
सच मानिये यह सब सिर्फ खेल या सिर्फ
नाम नहीं, बल्कि एक एहसास हुआ करते है जिन्हें याद करते
ही ये खेल हमें जो पल भर में हमें बचपन से मिला देता है. हम कहने लगते हैं कि वो
दिन भी क्या दिन थे, जब हम इन खेलों के मजे लिया करते
थे.
आज बचपन के वे खूबसूरत मस्ती वाले दिन पता नहीं कहाँ गुम हो गये है जिन्हें
याद क्रो तो बचपन के दोस्त , खेल और यादें ताज़ा हो जाती है
बचपन तो बचपन एक बार बीत गया बीएस यादों तस्वीरों और एहसासों में जीवित रह जाता है
जब याद करो बचपन को कभी हंसते हुए कभी रोते हुए मन उन बचपन की गलियों में घूमने
चला जाता है ऐसी ही पता नहीं अनगिनत यादों से सजा होता है
ये सब बचपन की वो यादें हैं, वो बातें है जो सभी के ज़ेहन में हैं और बचपन से जुड़ी इन्ही खूबसूरत यादों में शुमार है, वो बचपन के खेल, बचपन के वो खूबसूरत खेल, जिन्हे खेलते खेलते दिन कब बीत जाता था,
कुछ पता नहीं चलता था
स्कूल से आकर जल्दबाजी में ही सही पर खाना खाना, होमवर्क करना और उसके बाद मोहल्ले के दोस्तों की टोली के साथ खेलने के लिए निकल जाना घर पर उधम मचाना सामान फैलाना घर का नक्शा बदलना और अगर खेलते वक्त कोई ज़रा सा भी डिस्टर्ब कर दे तो बस पूरा मूड ही बिगड़ जाया करता था।
जी हां, वो बचपन के खेल और बचपन का वो दौर कुछ ऐसा ही था जब ना केवल हमें खेल खेलना अच्छा लगता था बल्कि हमारा कोई भी दिन बिना खेल खेले पूरा नहीं हुआ करता था।
याद कीजिए, कभी गली में दोस्तों के साथ क्रिकेट खेलना, कभी कैरम खेलते हुए खाने-पीने का मज़ा लेना, तो कभी लूडो में एक-दूसरे की गोटी काटने पर ऐसी खुश होना जैसे जहां ही जीत लिया हो। बिजनेस में ढ़ेर सारे शहर खरीद कर करोड़पति बन जाना, तो कभी पकड़म पकड़ाई खेलते हुए ऊधम मचाना, कभी अन्ताक्षरी खेलते हुए वक्त बिताना, एक टांग पर चलते हुए एक-दूसरे को पकड़ने की कोशिश करना ये कुछ ऐसी बातें थी जिनके बिना बचपन पूरा ही नहीं हुआ करता था लेकिन अब ये सब बातें कहीं सिमट सी गईं है। खेलों की वो दुनिया मानो कही गुम ही हो गई है।
अब ना तो गलियों में क्रिकेट का हल्ला होता है और ना ही पकड़म पकड़ाई का शोर, लूडो और कैरम भी खेले तो जाते हैं लेकिन बस मोबाइल पर, बचपन के वो खूबसूरत खेल कही गुम से हो गए हैं।
आइये फिर घूमने चलते है बचपन के खेलों की अनोखी दुनिया में
सांप सीढ़ी
यह भारत का एक बहुत ही लोकप्रिय खेल है. इस खेल को खेलने के लिए एक बोर्ड होता है, जिस पर 1 से 100 तक की गिनती लिखी होती है. साथ ही जगह-जगह सांप बैठे होते हैं और सीढ़ियां
भी बनी होती हैं. इस खेल को पासे के माध्यम से खेला जाता है. पासा फेंकने पर जितने
नम्बर आते हैं उतने कदम आगे बढ़ना होता है. इसमें जहां एक तरफ सीढ़ी मिलने पर सीधे
ऊपर पहुंचने का मौका मिलता है तो वहीं दूसरी तरफ सांप के कांटने पर सीधे नीचे आना
होता है.
98वें नम्बर पर बैठा सांप लोगों को बहुत डंसता है और एकदम
नीचे पहुंचा देता है. इस खेल को खेलने के लिए कम से कम दो लोग तो चाहिए ही होते
हैं. जब 99 पर आते आते सांप काट देता था तोआंसू आ जाते थे और मुँह से निकलता था
अरे ये क्या अब मैं नहीं जीतूंगा
डिब्बा आईस-पाईस, याद कीजिए कभी
सुनी है ये आवाज़, जो अभी के दौर के बच्चे हैं उन्होने
तो ये शब्द शायद ही सुना हो लेकिन हम जब बच्चे रहे थे तब ये शब्द हमारे बहुत करीब
था और हमसे अच्छी दोस्ती भी रखा करता था।
अगर बॉल
बैट का इंतजाम हो गया तो गली क्रिकेट का भी मजा ले लिया करते थे …
घोड़ा बादाम छाई -
जब रिसेस होती थी
सब दौडकर मैदान में क्लास के बच्चों के साथ जगह बनाते और इस खेल को खेलते थे
जिसमें जोर जोर से चिल्लाते थे घोड़ा बादाम छाई पीछे देखी मार खाई ।
पिठ्ठू
इस खेल को खेलने के लिए सात चपटे पत्थर और एक गेंद की जरुरत होती है.
इसमें पत्थरों को एक के ऊपर एक जमाया जाता है. इस खेल में दो टीमें भाग लेती हैं.
एक टीम का खिलाड़ी पहले गेंद से पत्थरों को गिराता है और फिर उसकी टीम के साथी को पिट्ठू गरम बोलते हुए उसे फिर से जमाना पड़ता है. इस बीच
दूसरी टीम के ख़िलाड़ी गेंद को पीछे से मारते हैं. यदि वह गेंद पिट्ठू गरम बोलने
से पहले लग गयी तो टीम बाहर.पिट्ठू दो टीमों के बीच खेला जाने वाला खेल है। यह लागोरी, सतोलिया, सात पत्थर, डिकोरी, सतोदिया, लिंगोचा, ईझू, डब्बा काली जैसे नामों से भी जाना जाता है।
क्या चाहिए:
पिट्ठू खेलने के लिए चाहिए टेनिस या कॉस्को की रबर बॉल। छोटी बास्केटबॉल से भी खेल सकते हैं। बस ध्यान रहे कि यह बहुत भारी न हो, वरना चोट भी लग सकती है। इसके अलावा पिट्ठू टावर बनाने के लिए चाहिए संगमरमर, लाल पत्थर, पतली ईंटों जैसे छोटे-बड़े सात फ्लैट पत्थर। हर पत्थर का आकार दूसरे से कम होना चाहिए, तभी एक के ऊपर एक रख कर टावर बना सकते हैं।
कर लें तैयारी:
पिट्ठू खेलने के लिए 10-15 मीटर की खुली जगह हो तो अच्छा है ताकि खिलाड़ी आसानी से दूरी बनाते हुए अपनी पारी खेल सकें। मैदान की आउटर बाउंड्री तय कर लें और बीचोबीच एक सर्कल बनाकर पिट्ठू का टावर बनाएं। इस सर्कल के पैरलल दोनों तरफ करीब 3 मीटर की दूरी पर छोटी लाइन खीचें। दो टीमें बनानी होंगी, जिनमें कम-से-कम तीन खिलाड़ी हों। लेकिन जितने ज्यादा खिलाड़ी होंगे, खेलने में उतना ही मजा आएगा।
गिल्ली डंडा
पिट्ठू खेलने के लिए चाहिए टेनिस या कॉस्को की रबर बॉल। छोटी बास्केटबॉल से भी खेल सकते हैं। बस ध्यान रहे कि यह बहुत भारी न हो, वरना चोट भी लग सकती है। इसके अलावा पिट्ठू टावर बनाने के लिए चाहिए संगमरमर, लाल पत्थर, पतली ईंटों जैसे छोटे-बड़े सात फ्लैट पत्थर। हर पत्थर का आकार दूसरे से कम होना चाहिए, तभी एक के ऊपर एक रख कर टावर बना सकते हैं।
कर लें तैयारी:
पिट्ठू खेलने के लिए 10-15 मीटर की खुली जगह हो तो अच्छा है ताकि खिलाड़ी आसानी से दूरी बनाते हुए अपनी पारी खेल सकें। मैदान की आउटर बाउंड्री तय कर लें और बीचोबीच एक सर्कल बनाकर पिट्ठू का टावर बनाएं। इस सर्कल के पैरलल दोनों तरफ करीब 3 मीटर की दूरी पर छोटी लाइन खीचें। दो टीमें बनानी होंगी, जिनमें कम-से-कम तीन खिलाड़ी हों। लेकिन जितने ज्यादा खिलाड़ी होंगे, खेलने में उतना ही मजा आएगा।
गिल्ली डंडा
ग्रामीण क्षेत्रों में गिल्ली डंडा सबसे लोकप्रिय खेल है. इस खेल को खेलते
समय अगर थोड़ी सी भी चूक हो जाये तो किसी की आंख को नुकसान हो सकता है. इस लिहाज
से इस खेल को एक खतरनाक खेल भी माना जाता है. इस खेल में गिल्ली एक स्पिंडल के
आकार की होती है और साथ में होता है एक छोटा सा डंडा. गिल्ली के एक सिरे को डंडे
से मारा जाता और गिल्ली को जहां तक हो सके, फेंका जाता
है. जो जितनी दूर तक फेंक सके, उसी के आधार पर स्कोर का
निर्णय होता है. इस खेल के अपने-अपने स्थानीय नियम होते हैं.
छुपन-छुपाई
छुपन-छुपाई बच्चों का एक लोकप्रिय खेल है. इसे हाइड एंड सीक
भी कहा जाता है. इस खेल में एक व्यक्ति को कुछ दूर तक जाकर 100 तक गिनती गिननी होती है, ताकि इस समय में खेलने
वाले खिलाड़ियों को छिपने का समय मिल सके. गिनती पूरी करने के बाद सभी खिलाड़ियों
को एक-एक करके ढूंढ़ना होता है और जो सबसे पहले पकड़ा जाता है, उसे फिर इस प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है.
कंचा
कंचा एक परम्परागत खेल है. इसे आज भी
गाँव की गली मौहल्ले में बच्चे आसानी से खेलते हुए मिल जाते हैं. इस खेल में, कुछ मार्बल्स की गोलियां बच्चों के पास होती हैं. इसमें एक गोली से दूसरी
गोली को निशाना लगाना होता है और निशाना लग गया तो वह गोली आपकी हो जाती है. इसके
अलावा एक गड्ढा बनाकर उसमें कुछ दूरी से कंचे फेंके जाते हैं. जिसके कंचे सबसे
ज्यादा गिनती में गड्ढे में जाते हैं वह जीतता है.
पोसंपा
आज भी ये खेल बहुत याद है मैं भी अपनी सहेलियों के संग खेला करती थी
पोसंपा भई पोसंपा, लाल किले में क्या हुआ, सौ रूपए की घड़ी चुराई, अब तो जेल में जाना
पड़ेगा, जेल की रोटी खानी पडे़गी. इस गीत से आपको कुछ याद आता है… मुझे स्कूल के
वो दिन याद आते हैं, जिसमें
हम स्कूल जाते ही बैग को क्लास में रखकर भागते थे पोसंपा खेलने. इसमें दो बच्चे
अपने हाथों को जोड़कर एक गेट बना लेते थे और इस गेट से सब साथियों को बाहर निकलना
पड़ता था
यहां एक गीत गाया जाता था, पोसंपा
भई पोसंपा…और तभी इस गेटको बंद कर दिया जाता था, यदि कोई इस गेट में रह गया और गाना खत्म हो गया, तो उसे आउट माना जाता था. और फिर सब उसे मार मार के भागते थे
चोर-सिपाही
यह खेल बड़ा मजेदार होता है. इसमें दो टीमें खेलती हैं. एक
पुलिस की भूमिका में होती है और दूसरी चोर की भूमिका में. यह खेल बिलकुल सच वाले चोर पुलिस की तरह होता है.
इसमें पुलिस चोरों की तलाश में रहती है. एक-एक जब वह सभी को पकड़ने में सफल हो
जाती है, तो गेम पलट जाता है मतलब चोर अब सिपाही बन
जाते हैं और सिपाही चोर बन जाते हैं. क्लासरुम का फ्री
आवर हो या घर पर दोस्तों की मंडली जमा हो..राजा-रानी-चोर-सिपाही का खेल खेलना तो
जरुरी हो जाता था। इसका मजा आज शायद ही किसी खेल में आता हो।
रंग बिरंगे कंचे
रंग बिरंगे कंचे जमा करने का शौक तो बचपन में सभी का रहा
होगा इकठ्ठे करना और फिर दोस्तों को दिखाना यह सभी को भुत पसंद था
आंख-मिचौली
यह बहुत मजेदार गेम होता है. इसमें एक प्रतिभागी की आंखों
पर पट्टी बांध दी जाती है और उसे दूसरे को पकड़ना होता है. पकड़े जाने पर दूसरे
खिलाड़ी को इसी प्रक्रिया से गुजरना होता है. इस गेम को एक और तरीके से खेला जाता
है. इस दूसरे तरीके में एक खिलाड़ी की आंखों को बंद कर दिया जाता है और बाकी
खिलाड़ी उसके सिर पर एक-एक करके थपकी मारते हैं. सबसे पहले थपकी मारने वाले की
पहचान हो जाने पर उसे आंखे बंद करनी होती है. मजे की बात तो यह है कि इस खेल में
कितने भी लोग खेल सकते हैं.
चुटपुटिया
आज लगता है की काश उन खेलो को जब खेला
करते थे दोस्तों के साथ तब कोई तस्वीर क्यों नही खींची तब बचपन में गुम जो थे
सोचते ही नही थे ये खेल प्यारा सा बचपन यूं गुम हो जाएगा
तस्वीरों में कहाँ समाएगा
बचपन तो तस्वीरों से बड़ा है
यादों के खजानों में कैद हो जाएगा
वक्त निकल गया उन खेलों से खेलते खेलते
3 टिप्पणियाँ:
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (02-12-2017) को "पढ़े-लिखे मुहताज़" (चर्चा अंक-2805) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत खूबसूरत
धन्यवाद संजय जी
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