यहाँ रहते है हम |
ये पृथ्वी घर हम
सबके जिस पर हम रहते है सांस लेते है सोते जागते , उठते - बैठते ,चलते फिरते , काम करते है भोजन ग्रहण करते है । हम सभी को अपने इस पृथ्वी
नामक घर के बारे में जानना चाहिए तो चलिए आज हम पृथ्वी के बारे में कुछ रोचक बातें जानते है
- पृथ्वी गोलाकार है पृथ्वी की इस आकृति को लध्वक्ष गोलाभ ( oblate spheroid ) कहते है Ι
- पृथ्वी का भूमध्यरेखीय व्यास 12,756 की.मी और ध्रुवीय व्यास 12,713 किलोमीटर है Ι
- पृथ्वी की भूमध्यरेखीय परिधि 40,०७५ की.मी और ध्रुवीय परिधि 40,000 की.मी है Ι
- पृथ्वी का पृष्ठीय क्षेत्रफल 51,01,00,500 वर्ग किलोमीटर है Ι
- पृथ्वी पर 29 % (14,८९,५१,००० वर्ग की.मी .) क्षेत्र पर स्थल खंड व् ७१% 36,11,50,००० वर्ग की.मी ) क्षेत्र पर जल मंडल है Ι
- पृथ्वी सूर्य के चतुर्दिक एक अंडाकार मार्ग (94.14 मि.कि.मी .) पर 365 दिन 5 घंट , 48 मिनट और 46 सेकंड अर्थात 365 1/4 दिन में 1,07,160 किमी प्रति घंटे की चाल से एक परिक्रमा करती है । इसे परिभ्रमण कहते है इस कारण पृथ्वी पर मौसम परिवर्तन होता है Ι
- पृथ्वी अपनी धुरी पर 23 ० -32 (23 1/2 ० ) अक्षांश झुकी है Ι
- वर्ष का वह समय जब सूर्य भूमध्य रेखा पर मध्यान्ह में उध्वार्धर होता है और पृथ्वी का आधा प्रदीप्त भाग दोनों ध्रुवों को सामान रूप में शामिल करता है भूमंडल पर दिन व् रात्रि बारह - बारह घंटे के होते है इसे विषुव (equinox ) कहते है विषुव दो होते है 21 मार्च के आस-पास बसंत विषुव (vernal equinox ) और 22 सितम्बर को शरद विषुव (autumn equinox) कहते है Ι
- सूर्य 21 जून को उत्तरी अय्नात (कर्क रेखा ) और 22 सितम्बर को दक्षिणी अयनांत (मकर रेखा ) पर पहुँचता है इन अवधियों को उत्तरी गोलार्ध में क्रमश: कर्क संक्रान्ति या ग्रीष्म अयनांत (summer solstice) और मकर संक्राति या शीत अयनांत (winter solstice) कहते है Ι
- पृथ्वी की परिक्रमण गति के दौरान 4 जुलाई को पृथ्वी अपनी कक्षा में सूर्य से अधिकतम दूरी (15.2 करोड़ कि .मी .) और 3 जनवरी को पृथ्वी सूर्य से निकटतम दूरी (14.73 करोड़ कि .मी पर होती है इन्हें क्रमश सूर्योच्च (aphelion) व् उपसौर (perihelion) कहते है Ι
- जब पृथ्वी सूर्य और चन्द्रमा के मध्य आ जाती है तो उसकी छाया चन्द्रमा पर पड़ती है तो चन्द्रमा धूमिल हो जाता है इसे चन्द्र ग्रहण ( lunar eclipse ) कहते है ⃓
- जब चन्द्रमा पृथ्वी और सूर्य के मध्य आ जाता है तो चन्द्रमा के कारण सूर्य पूरी तरह स्प्ध्त दिखाई नहीं देता इसे सूर्य ग्रहण ( solar eclipse ) कहते है ।
- भूपष्ठ पर विषुवत रेखा ( equator ) के ऊपर या दक्षिण में एक याम्योतर किसी भी बिंदु की कोने दूरी जो पृथ्वी के केंद्र से नापी जाती है और अंशो ,मिनटों व् सेकण्डो में व्यक्त की जाती है , अक्षांश (latitude ) कहलाती है ।
- किसी स्थान की कोणीय दूरी जो प्रधान याम्योतर (0 ० या ग्रीनविच ) के पूर्व व् पश्चिम में होती है देशांतर ( longitude ) कहलाती है ।
- 1 ० अक्षांश की दूरी लगभग 111 किलोमीटर व् 1 ० देशांतर की दूरी लगभग 111.32 किलोमीटर होती है ।
- पृथ्वी के मानचित्र पर 180 ० याम्योतर के लगभग साथ - साथ स्थल खंडो को छोड़ते हुए खींची जाने वाली काल्पनिक रेखा को अन्तराष्ट्रीय तिथि रेखा (international date line ) कहते है ।
- पृथ्वी पर किसी स्थान विशेष का सूर्य स्थिति से परिकलित का समय स्स्थानीय समय (local time कहलाता है ।
- किसी देश के मध्य से गुजरने वाली याम्योतर का मध्य प्रामाणिक समय (standard time ) होता है ।
- भारत का प्रमाणिक समय 82 1/2 ० (इलाहाबाद के पास का देशांतर) के समय को माना जाता है ।
- कठोर पर्पटी ( crust ) , जो पृथ्वी के आंतरिक गुरुमंडल (barysphere) को ढके है , स्थलमंडल (lithosphere) कहलाता है ।
- पुर्थ्वी की आंतरिक संरचना सियाल , सीमा और निफे से हुई है ।
- पृथ्वी की आंतरिक भाग की ऊपरी परत सियाल कहलाती है जिसमें सिलिका और एल्युमिनियम की प्राधानता होती है इस परत का घनत्व 2.75 से 2.9 के मध्य होता है ।
- सियाल के नीचे सीमा नामक परत है जिसमें सिलिका और मैग्नीशियम की प्रधानता होती है इस परत का घनत्व 2.9 से 4.75 है ।
- पृथ्वी का केन्द्रीय भाग कोर या निफे कहलाता है यह निकिल और लोहे का बना है इसका घनत्व 8 से 11 तक है ।
- पृथ्वी की पर्पटी के पदार्थो या स्थ के कठोर भाग को चट्टान या शैल कहते है ।
- सामन्यतया चट्टान तीन तरह की होती है 1 आग्नेय 2 परतदार 3 परिवर्तित या रुपातान्त्रित ।
- पृथ्वी के आंतरिक भाग के पिछले पदार्थ मेग्मा के शीतल होने से बनी चट्टानें आग्नेय चट्टान कहलाती है ।
- जब लावा का जमाब उर्ध्वाधर होता है तो उसे डाइक कहते है ।
- अवसादी या परतदार शैल का निर्माण चट्टान चूर्ण और जीवावशेषों और वनस्पतियों के एकत्रीकरन से होता है भूपृष्ठ के लगभग 75 % भाग में इन्ही चट्टानों का विस्तार है ।
- अवसादी या परतदार चट्टानें वायु ,जल ,सागर की लहरों और हिमानी द्वारा लाए अवसादों से बनती है ।
- अवसादी चट्टानों में बलुआ पत्थर शैल , चिकनी मिट्टी , चूने का पत्थर , खड़िया , डोलोमाईट कोयला से मिलते है ।
- आग्नेय और परतदार चट्टानों में ताप दबाव और रासयनिक परिवर्तनों से उनकी संरचना ,रूप,रंग और आकृति बदल जाटी है तब इन्हें रूपांतरिक व् कायांतरित चट्टान कहते है ।
- कायान्तरण पाँच तरह के होते है संस्पर्श , गतिक , स्थैतिक , जलीय , उष्ण जलीय ।
5 टिप्पणियाँ:
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा आज शुक्रवार (17-11-2017) को
"मुस्कुराती हुई ज़िन्दगी" (चर्चा अंक 2790"
पर भी होगी।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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