हमारा घर बारह साल का हो गया

     
       आज हमारे घर की बारहवीं सालगिरह है देखते देखते इतना वक़्त बीत गया । एक इमारत बनने से लेकर यहां इस घर में रमने जमने में । ऐसा लगता है जैसे यह कल की बात है हम इस घर में रहने आये हैं । याद आते हैं वे सभी दिन जब यह मकान बन रहा है इसमें लगी सभी लोगों की मेहनत , समय रोज देखने की इच्छा अब यह हो गया यह बाकी है । धीरे धीरे 2 साल में यह मकान बनकर तैयार हो गया और 2 दिसम्बर 2007 को हमने इस घर में प्रवेश किया । उसके बाद से यही रहने लगे ।
एक छोटे से घर बड़े घर में रहने के सुख की आदत होने लगी । 2007 के बाद से इस घर की बहुत सारी सालगिरह आयी जो खास ही थी पर जबसे हमारी शादी हुई उसके बाद से यह पहली बार है जो अनिल इस दिन पर हमारे साथ है और आज का यह दिन बेहद खास है ।

मेरे मार्गदर्शक का जन्मदिन

     
         आज मेरे मार्गदर्शक दिवगंत दादा जी का जन्मदिन है उनका जन्म विजयादशमी पर्व पर हुआ था औऱ उस दिन गांधी जयंती भी थी आज अगर वे जीवित होते 89 वर्ष के होते मेरे लिए वो सिर्फ मेरे दादा जी नहीं थे वे दिन भर के साथी , मित्र शिक्षक मार्गदर्शक थे दिन में उन्हें खाना परोसकर देना । उनके लिए चाय बनाना । शाम को उनके साथ सैर पर जाना वहां से फूल तोड़कर लाना औऱ हर सोमवार को जिस भी रास्ते से निकलते थे बच्चों को टॉफी जरूर देते थे ये उनका पक्का नियम था (दादा जी का देहांत गुरुवार 28 अगस्त को हुआ था उसके बाद जो सोमवार आया मैं उसी रास्ते से किसी काम के लिए निकली दादा जी को साथ ना पाकर औऱ मेरे हाथ में टॉफी ना देखकर बच्चों ने पूछा दीदी दादा जी कहाँ है मैंने कहा बेटा अब दादा जी मायूस हो गए फिर कुछ दिन तक मैं उस रास्ते से निकलती रही बच्चों के लिए हर सोमवार टॉफी लेकर पर उस दिन के बाद मुझे फिर कोई बच्चा उसी समय बाहर नहीं दिखा )

     
       हां जब कभी मौका मिलता है बच्चों को टॉफी जरूर देती हूं देते हुए सोचती हूँ दादा जी की तरह अपना प्यार देना बहुत जरुरी है क्योंकि बच्चे मुस्कुराते हुए थैंक्यू कहते हैं तो अच्छा लगता है , फिर पूजा करना बैठकर रामचरित मानस का पाठ सुनना । दिन भर उनके साथ रहने की इस तरह की आदत हुई मुझे की उनके ना रहने पर मेरे लिए एक लड़की को रखा था जिससे वो मेरी देखभाल कर सके क्योंकि सबको डर था अकेले में पागल ना हो जाऊं । उनके ही मार्गदर्शन औऱ अथक सहयोग से मेरा दाखिला अंग्रेजी माध्यम से हिंदी माध्यम में हुआ क्योंकि वे ध्यान देते थे कि मुझे अंग्रेजी पढ़ने में दिक्कत होती है भले ही आज में किसी पद पर नहीं हूँ परंतु जो मैं इतनी पढ़ाई की है सच मानो तो उसके पीछे सहयोग दादा जी का ही है ।
   
        मुझे ख़ुशी होती है जब कोई कहता है आप अपने दादा जी की तरह दिखती हो । हां हूं मैं उनकी तरह । क्योंकि उनके साथ रहते हुए मैंने बहुत सारी बातें सीख ली थी जैसे बुजुर्गों का सम्मान करना, सेवा करना , अपने से छोटो को प्यार देना , कड़ी मेहनत करना , जीवन में कितना भी कठिन वक़्त क्यों ना आ जाए ना घबराते हुए हिम्मत से काम लेना , मीठा बोलना , दूसरों का सहयोग करना, जीवन में किसी भी परिस्थिति में घबराना नहीं । खेल खेल में बहुत सारी बातें सीखा गए ।
       बस एक ही अफसोस मुझे रह गया कि उनके अंतिम समय में उनकी मृत्यु ने इतना भी समय नहीं दिया कि कुछ बातें उनसे कर पाती कुछ पूछ पाती जो अधूरा था वो अधूरा ही रह गया । हर साल उनके जन्मदिन पर कुछ विशेष करते थे हम ।

     
        उनके होने से मुझे एक जीवन की बहुत बड़ी सीख मिली की जब तक एक बुजुर्ग इंसान आपके बीच है उनकी बहुत सेवा कर लीजिए क्योंकि ना होने पर कुछ भी शेष नहीं रहता है । कल वो बुजुर्ग थे कभी आप भी होंगे अगर अपेक्षा नहीं करते कि आपके साथ बुरा व्यवहार हो तो उन बुजुर्गों के साथ मत कीजिए वे तो सिर्फ प्यार औऱ थोड़ी सेवा चाहते हैं । दादा जी ने हमें अपने निजी काम करने के मौके नहीं दिए अपने जीवन के अंत समय तक वे स्वंय ही करते रहे बस कुछ दिन जब वे असमर्थ हो गए तब हमने उनकी बहुत सेवा करो । सेवा कर लीजिए फिर जो पुण्य औऱ आशीर्वाद मिलता है वो जीवन भर की पूंजी होती है । फिर तो कहीं से भी वापस नहीं आ सकते औऱ उनके बिना बड़ी सी दुनिया में अकेले रह जाने के अलावा कुछ नहीं रहता।

       
      हर विजयादशमी पर मुझे मेरे दादा जी याद आते हैं । हां दादा जी अपने जन्मदिन पर भंडारा में पूरी कॉलोनी के स्वयं बाजार जाकर चॉकलेट का पूरा पैकेट लेकर आते थे बच्चों को बुलाकर उनसे कहते थे पहले सोनापत्ती दो बच्चे सोनापत्ती देकर आशीर्वाद लेते एक - एक करके सभी बच्चों को दादा जी चॉकलेट देते औऱ खूब दुलारते क्योंकि उन्हें बच्चे बहुत पसंद थे । दादा जी मेरे मार्गदर्शक आप मुझे बहुत याद आते हैं मुझे आपकी तरह हरा भरा छाया देने वाला वृक्ष बनना है जिससे मैं अपने सभी अपनों को जोड़कर रख सकूं ।
जन्मदिन की शुभकामनाएं दादा जी 🍁☘️🍀

मैं बेटी नहीं हूँ मैं पूरा जीवन हूँ



 
     कितना अच्छा महसूस होता है कि मैं बेटी हूँ । बेटी होना अपने आप में एक अदभुत एहसास है अगर कल को मेरी बेटी जन्म लेती है तब उस एहसास में खुद बेटी होना मेरा आत्मविश्वास है । पर मैं बेटी हूँ अपने आंगन की ये मेरा विश्वास है ।

       हम बेटियां हैं हम में विश्वास है दो - दो परिवार को जोड़कर रखने का हमको एक मजबूत धागा बनना है क्योंकि जब एक एक धागे पर मोती को पिरोया जाता है तब जाकर एक माला बनती है औऱ हमें इतना मजबूत बनना चाहिए कि परिवार के हर सदस्य को हम जोड़कर एक जुटकर करके रख सके । बहुत से लोगों की मानसिकता है कि हमें बेटी नहीं चाहिए बेटा चाहिए मतलब बेटी का कोई अस्तित्व नहीं है बेटा बड़ा होगा तो बहू लाएगा ये नहीं सोचते कि अगर ऐसा ही सोचेंगे कि बहू लाना है तो उसे सांसे जीवन देने वाली भी तो बेटी एक माँ ही होगी । बेटी ही नहीं होगी तो बहू भी कौन देगा ।

   
      कुछ लोगों से सुना है बेटी बदनाम करती है दुख होता है सुनकर अरे बेटी बदनाम नहीं करती बल्कि वो तो सिर्फ अपने होने से पिता के नाम को रोशन कर देती है । माँ उसमें अपना बचपन देखती है पर याद रखिएगा मित्रों एक माँ स्वंय बेटी है इसलिए वो अपनी परछाईं बेटी में ही देख सकती है । बेटे होकर भी एक माँ को बेटी ना हो तो उसे जाकर एक बेटी जरूर गोद ले लेना चाहिए क्योंकि बेटा तो सिर्फ पिता के वंश को आगे बढ़ाता है पर बेटी पिता के वंश के साथ बेटी को जन्म देकर अपनी माँ के वंश को भी आगे बढ़ाती है । बेटी तो जीवन का सृजन है वो सबके जीवन का शृंगार करती है सिर्फ अपने होने से ।

 
    एक बेटी कितने सारे रिश्ते निभाती हैं देखा जाए तो हर रिश्ता सिर्फ इसलिए बनता है या होता है क्योंकि वो है । शायद इसलिए कहा जाता है कि बेटा तो है पर एक माँ बेटी के बिना फिर भी अधूरी है । बेटी जब घर में होती है तो उसका होना उसकी हंसी उसकी बातें , उसकी खिलखिलाहट , उसकी मस्ती बहुत अनमोल होती है । बेटी है तो कल  है वो नहीं तो जिंदगी है क्या फिर ।

     
    एक माँ तो हमें पूरा जीवन दे देती है । अगर आप बेटी है तो खुशी रहिए क्योंकि बेटी सिर्फ अपनी खुशी से ही घर को घर बना देती है औऱ अगर आप एक बेटी के माता पिता है तो उत्सव मनाइये क्योंकि बेटी आपके दुख सुख की सबसे बड़ी भागीदार होती है क्योंकि एक बेटी सबसे पहले आपको पूछेगी फिर दुनिया को । इसलिए कभी मत सोचिए कि बेटी का जन्म हुआ तो उसका गला घोंटकर हत्या कर दे उसकी ।

      बेटी है तो सब कुछ है वो नहीं तो फिर कुछ भी शेष नहीं है पता नहीं लोग ये बात कब समझेंगे क्योंकि आज भी बहुत सारी जगहें ऐसी है जहाँ बेटी के पैदा होते उसे या मार दिया जाता है या फिर अगर बच गई है तो उसके होने का मातम मनाते है औऱ बच्ची के साथ बुरा व्यवहार किया जाता है । या फिर अपनी हवस को शांत करने के लिए उसकी अस्मिता के साथ खेला जाता है उस दरिंदे के घर में भी कभी बेटी हो सकती है , कभी दहेज के लिए उसे पीड़ित किया जाता है , कभी औऱ किसी वजह से । कब तक ना जाने ये खेल चलेगा औऱ कब तक बेटियों के साथ बुरा होता रहेगा ।

         मेरे लिए हर दिन बेटी दिवस है क्योंकि हर दिन मुझे एहसास जगाता है कि मैं अपने मम्मी डैडी की बिटिया हूँ और उनसे बहुत प्यार करती हूं ।
बेटियों को कभी भी अपने साथ हो रहे दुर्व्यवहार के लिए चुप नहीं रहना चाहिए बल्कि हमला करना चाहिए ।


सिर्फ इतना नहीं हूँ मैं ।।
मैं तो एक नहीं हूँ
सब कुछ हूँ मैं ।।
सिर्फ आज नहीं
आना वाला कल भी हूँ मैं ।।
कहते हैं लोग बेटी है तो कल है
बेटी नहीं तो एक पल नहीं हूँ मैं ।।
अपने पापा का सहारा
अपनी मम्मी का आईना हूँ मैं ।।
बचपना अब भी मेरा वैसा ही है
क्योंकि उसी में जीवित हूँ मैं ।।
सिर्फ इतना नहीं हूँ मैं ।।
ससुराल की लाड़ली भी हूँ
पर बेटी और सिर्फ बेटी हूँ मैं ।।
जब तक जीवित है मम्मी पापा
सिर्फ तब तक ही बेटी हूँ मैं ।।



 मुझे प्यारी प्यारी बच्चियां बहुत पसंद है । पसंद तो बेटे भी है पर प्यारी सी एक नन्ही कली हूँ इसलिए ज्यादा बेटियों का होना मुझे पसंद है ।

बेटी दिवस की शुभकामनाएं 

नन्ही कोपल की शादी हो गई


      बात कोपल औऱ अनिल के प्यारे से रिश्ते की है । एक रिश्ते को लम्बे वक़्त तक निभाने के लिए विवाह बन्धन में बंधने के लिए जज्बा चाहिए थोड़ा सा प्यार ,एक दूसरे के लिए समझ , गहरी मित्रता और विश्वास । मुझे विश्वास था यह रिश्ता शादी की मंजिल तक जरूर पहुँचेगा ।



       बस तीन साल पूरे होने से पहले 5 जनवरी को हम तीन जबलपुर पहुंच गए 11 जनवरी को मेरे हाथ पैर में पिया के नाम की मेहंदी रच गई 12 को रंग लिया रंग हल्दी । मेरी मेहंदी बहुत गहरी बहुत सुंदर रची थी ।13 जनवरी 2019 रविवार को जबलपुर मेरे ननिहाल की श्री राधा होटल में मैं लाल रंग के लहंगा चुनरी पहने हुए अपने पिया अनिल की बारात का इंतजार कर रही थी औऱ घबराते शर्माते मैं हाथों में वरमाला लिए अपने निल के पास पहुंच गई ।





    हमने गुलाब के फूलों से सजी वरमाला एक दूसरे को पहना दी । सबने स्टेज पर आकर हमें बधाई आशीर्वाद दिए फ़ोटो खिंचवाई ।




      रात ढलने लगी मम्मी पापा की प्यारी सी नन्ही कोपल बनारसी साड़ी , आशीर्वाद स्वरूप गहने पहन और सर पर लाल औऱ चमकीले सितारों वाली चुनर ओढ़कर तैयार हो गई अपने पिया अनिल संग सात फेरे लेने के लिए । मंद मंद मुस्कुराते दुल्हे राजा बने शेरवानी में अनिल जंच रहे थे ।


   मम्मी पापा ने कर दिया कन्यादान मेरा हाथ थाम लिया दूल्हे राजा निल ने फूफाजी ने हमारा गठबंधन कर दिया एक दूसरे का हाथ थामकर हमने साथ फेरे लिए ।



   मेरी सूनी जिंदगी को अनिल के नाम के सिंदूर ने खूब चमका दिया उन्होंने गले में मंगलसूत्र पहना दिया । तीन साल से जिस दिन का इंतजार था मेरी मांग भरते वक्त मेरी खुशी में नजर आ रहा था ।
    एक तरफ मैं खुश थी कि अब से मेरा नया जीवन शुरू हो गया पर मन ही मन दुखी थीं कि एक जीवन छूट रहा है अपने पापा के घर को छोड़कर चिड़िया उड़ रही है पर एक घर को सूना करके तिनका तिनका जोड़कर अपने नए घर को रोशन करना था ।



       अनिल ने मेरा बहुत साथ दिया मम्मी पापा बहुत खुश थे अनिल जैसे समझदार बेटा उन्हें खूब प्यार देने वाले खयाल रखने वाला बेटा मिल गया था । माँ पापा खुश थे उन्हें एक प्यारी सी बहुरिया मिल गई । विदाई हो गई मैं मम्मी पापा से दूर हो गई पर मेरे निल ने मुझे मजबूती से सम्भहाल लिया मेरी आँखों में आँसू नहीं आने दिया ।



     
     फिर शुरू अनिल संग कोपल का नया सफर,नया जीवन ,नए सपने ,नई उम्मीदें । मन में नए परिवार के लिए प्यार लिए मैं अन्नपूर्णा बनकर चावल से भरा कलश गिराकर घर मे प्रवेश कर गई ।



   
      कुछ दिन ससुराल में बिताए । फिर हम दुर्ग के लिए रवाना हो गए वहां पापा ने एक रिस्पेशन रखा था वहां हमने विवाह के बाद के कुछ शानदार दिन बिताए कुछ दिन बाद निल मुझे मम्मी डैडी के पास छोड़कर नौकरी ज्वाइन करने के सिलवासा गुजरात चले गए ।

     खुद को देखा तो लगा मांग में सिंदूर , गले में मंगलसूत्र माथे पर बिंदी हाथों में चूड़ियां , पैरों में पायल ,बिछिया तन पर दुपट्टा एक अवतार मैं आ गई थी मेरा पूरा जीवन बदल गया था । मैं अपनी पिया की प्यारी बन गई थी । एक ही दिन में मैं पत्नी , बहू, भाभी नए रिश्तों से बंध गई थी ।


   
      2 महीने मायके में बिताने के बाद मेरी विदाई कराने के लिए ससुराल से पापा जी औऱ बड़े भाई साहब आ गए । मम्मी की चुनाव की ट्रेनिंग में डयूटी लग गई थी तो मम्मी नहीं आ सकी स्टेशन मुझे छोड़ने मैं शादी के बाद पहली बार पापा से लिपटकर बहुत रोई । हौले से नन्ही कोपल घर को सूना करके चली गईं औऱ जैसे ही ट्रेन ने गति पकड़ी मुझसे बहुत सी चीज़े दूर पीछे छूट गई थी ।

     दुबारा ससुराल आने पर शुरू हुई जद्दोजहद अलहड़ कोपल से एक सुदढ़ गृहणी बनने की समझ आया कि अपने मायके के नियम , तौर तरीके , रहन सहन बहुत अलग होते हैं । नई जिम्मेदारियां मुझे जकड़ रही थी ।


    दिन महीने साल यूंही गुजर जाएंगे इस महीने 6 महीने हो गए हमारी शादी को पूरा जीवन भी प्यार से हंसते गाते सबको खुश रखते हुए निकल जाए ।

धीरे धीरे नई चीजों में ढल रही हूं
मैं अंदर ही अंदर कुछ बदल रही हूँ ।