कौन है वो महान व्यक्ति जिसका जीवन ग्रन्थ से कम नहीं




 सुकरात यूनान के एक महान दार्शनिक


          सुकरात यूनान के एक महान दार्शनिक थे उन्हें पश्चिम दर्शन का जनक भी कहा जाता है पश्चिमी सभ्यता के विकास में सुकरात ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है सुकरात का जन्म ४६९ इसवी पूर्व एथंस में हुआ था उनके पिता एक मूर्तिकार थे सुकरात अपने जीवन के शुरुआती दिनों में ने अपने पिटा के पैतृक व्यवसाय को अपनाया था सुकरात ने मातुभाषा,यूनानी कविता ,गणित , ज्यामिति और खगोल विज्ञान की पढाई की थी उन्होंने एक पैदल सैनिक के रूप में देश के दुश्मनों के खिलाफ युध्द में भी भाग लिया था और उनके दोस्तों ने उनकी सराहना की थी |सुकरात को सूफियों की भाँति मौलिक शिक्षा और आचार द्वारा उदाहरण देना ही पसंद था। वस्तुत: उसके समसामयिक भी उसे सूफी समझते थे। सूफियों की भाँति साधारण शिक्षा तथा मानव सदाचार पर वह जोर देता था और उन्हीं की तरह पुरानी रूढ़ियों पर प्रहार करता था। वह कहता था, ""सच्चा ज्ञान संभव है बशर्ते उसके लिए ठीक तौर पर प्रयत्न किया जाए; जो बातें हमारी समझ में आती हैं या हमारे सामने आई हैं, उन्हें तत्संबंधी घटनाओं पर हम परखें, इस तरह अनेक परखों के बाद हम एक सचाई पर पहुँच सकते हैं। ज्ञान के समान पवित्रतम कोई वस्तु नहीं हैं।'
           मूर्तिकला में जब सुकरात का मन नहीं लगा तो उन्होंने अपना एक स्कूल खोल लिया इस स्कूल में युवा लोग अपने मन में उपजे सवालों को हल करने के लिए सुकरात के पास आते थे सुकरात के जीवनकाल में एथेंस में भारी राजनितिक उथल पुथल मची हुई थी क्योकि देश पेलोपोनिशियन युद्द में भारी हार से अपमानित होना पड़ा था | इससे लोगो में राष्ट्रीयता की भावना और वफादारी गहरा गयी थी लेकिन Socrates सुकरात देशवासियों की परीक्षा लेते थे | वो किसी सम्प्रदाय विशेष के पक्ष के खिलाफ थे और स्वयं को विश्व का नागरिक मानते थे |
सुकरात की शिक्षण पध्दति
1 संदेह पध्दति - सुकरात अपने दार्शनिक विश्लेष्ण लो प्रारम्भ करते समय हमेशा अज्ञान प्रदर्शित करते थे अपने निजी ज्ञान क छुपा कर रखते थे सुकरात का उद्देश्य लोहो को उपदेश देना या प्राभावित करना नहीं था स्व स्वयं को साधारण व्यक्ति ही प्रादार्षित करते थे और विनम्र होकर समस्या प्रारम्भिक और प्राथमिक तथ्यों से प्रारम्भ करते थे
2 वाद - विवादास्पद - सुकरात हमेशा वाद -विवाद के द्वारा ही दार्शिंक विश्लेष्ण का कार्य किया करते थे वे उपदेश नही बातचीत किया करते थे उनकी बातचीत व्यर्थ या उद्देश्यरहित नहीं हुआ करते थे सुकरात दारा किया विवाद सत्य को प्राप्त करने का साधन हुआ करता था वे सम्बन्धित समस्या के कई समाधान उपस्थित करते थे और तब हर समाधान की आलोचना करते थे और अन्य लोगो से आलोचना करवाते थे और प्रश्नोतरो के द्वारा यह अभीष्ट निष्कर्ष पर पहुँच जाता था
3 अवधाराणात्मक और परिभाषात्मक - स्कुरात ज्ञान को अवधाराणाओ और परिभाषाओं के माध्यम से प्राप्त करने के पक्ष में थे उनके अनुसार यदि किसी घटना के विषय में ज्ञान प्राप्त करना है तो पहले सम्बन्धित शब्दों को पूरी तरह से परिभाषित और निश्चित कर लेना चाहिए
4 अनुभावात्म्क और आगमनात्मक - सुकरात की अध्ययन और दार्शनिक विवेचन की पध्दति का सम्बन्ध रोजमर्रा के जीवन के अनुभवों से था सुकरात दारा विश्लेषित हर समस्या का यथार्थ जीवन से सम्बन्ध होता था किसी तथ्य से सम्बन्धित परिभाषा या अवधारणा की रचना के लिए यह वः सैदेव ही वास्तविक जीवन के आधार उधाह्र्ण एकत्रित करता था पहले समस्या से सबंधित स्नेक घटनाओं और तथ्यों को संकलित करता तब उनमें से तथ्यों को हटा देता था
5 निग्नात्म्क - सत्य को प्राप्त करने के लिए केवल आगमन पर ही निर्भर नहीं रहता था आगमन के साथ साथ वे परिभाषाओं और अवधाराणाओ को निगमन द्वारा सत्यापित किया करता था उनका विचार था की पूरी तरह संतोष के किसी परिभाषा का आगमन और निगमन दोनों तरह से सत्यापन करना आवश्यक है

          सुकरात अथेन्स के बहुत ही गरीब घर में पैदा हुए थे। गंभीर विद्वान् और ख्यातिप्राप्त हो जाने पर भी उन्होंने वैवाहिक जीवन की लालसा नहीं रखी। ज्ञान का संग्रह और प्रसार, ये ही उनके जीवन के मुख्य लक्ष्य थे। उनके अधूरे कार्य को उनके शिष्य अफलातून और अरस्तू ने पूरा किया।


नवयुवकों को बिगाड़ने, देवनिंदा और नास्तिक होने का झूठा आरोप लगाकर उन्हें जहर देकर मारने का दंड दिया गया।  
          सुकरात अक्सर रस्ते चलते लोगो से सवाल करते थे और उनके समक्ष आडम्बरो ,रुढियो और राजनेताओ की आलोचना करते थे | इससे कई लोग उनके दुश्मन हो गये थे | शक के उस माहौल में कई लोगो ने उन्हें शत्रु का भेदिया तो कई ने देशद्रोही तक कह दिया था | आखिर युवाओं को गुमराह करने के इल्जाम में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया | उन पर मुकदमा चलाया गया | उनके शिष्य प्लेटो ने उनका मुकदमा लड़ा लेकिन जब जजों ने सुकरात को आरोपित किया कि उन्होंने युवाओं को गलत रास्ते पर जाने के लिए प्रेरित किया तो उन्होंने चुपचाप आरोप स्वीकार कर लिए थे |
           यदि Socrates सुकरात अपनी गलती मान लेते और अपने मत से हट जाते तो वो बच सकते थे लेकिन उन्होंने वैसा नही किया | उन्हें जहर पीकर मौत को गले लगाने की सजा मिली |अंतिम समय में सुकरात अपने दोस्तों के साथ आत्मा की शाश्वत पर चर्चा करते रहे | मरने से कुछ समय पहले उन्होंने कहा था जाने की घड़ी आ गयी है , हम अपने रास्ते चले जायेंगे , मै मरने जा रहा हु और तुम जीवित हो , दोनों में अच्छा क्या है केवल ईश्वर जानता है “|Socrates सुकरात ने स्वयं कोई ग्रन्थ नही लिखा था लेकिन उनके शिष्यों ने उन पर बहुत से लेख लिखे थे , उन्ही के आधार पर हमारे सामने सुकरात का व्यक्तित्व उभरा है | उन्होंने परम्परा से हटकर , बिलकुल उससे उपर उठकर सत्य को खोजने की बात की थी | उस समय लोग तथागतित सूफियो , संतो की बातो पर आँखे मूंदकर भरोसा कर लेते थे , सुकरात ने उन्हें अपनी बुद्धि का इस्तेमाल करने की सलाह दी | उनके कुछ विचार हमे आज भी ताजगी से भर देते है |
झूठे शब्द सिर्फ बुरे नही होते , बल्कि वो आपकी आत्मा को भी बुराई से संक्रमित कर देते है |”
वो सबसे धनवान है जो कम से कम संतुष्ट है , क्योंकि संतुष्टि प्रकृति की दौलत है
मूल्यहीन व्यक्ति केवल खाने पीने के लिए जीते है मूल्यवान व्यक्ति केवल जीने के लिए खाते पीते है


सुकरात ने जहर का प्याला खुशी-खुशी पिया और जान दे दी। ऐसे महान व्यक्ति का जीवन किसी ग्रन्थ से कम नहीं है। 

2 टिप्पणियाँ:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (18-11-2017) को "नागफनी के फूल" (चर्चा अंक 2791) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

Paise Ka Gyan ने कहा…

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