मेरे दादाजी श्री जगमोहन कोकास और मेरी दादी माँ श्रीमती शीला कोकास भंडारा ( महाराष्ट ) में रहते थे । मैनें अपने दादा जी और दादी माँ के साथ अपनी जिदंगी के बहुत खूबसूरत और यादगार लम्हे गुजारे है उन लम्हो को मैं आप लोगों के साथ यहाँ आज बाँटना चाहूँगी । हम ज्यादातर गर्मी की छुट्टियों में होली दिवाली में ही भंडारा जाते थे क्योंकि मेरे पापा श्री शरद कोकास बैंक में नौकरी करते थे और मेरी मम्मी श्रीमती लता कोकास स्कूल में पढ़ाने जाती थी और हम स्कूल जाती थी तो हमें छुटटी नहीं मिल पाती थी इसलिए हम त्योहारो पर या जब छुट्टी मिलती थी तब जाते थे । हमारे दादा जी और दादी माँ को हमारे आने का बेसब्री से आने का इंतजार होता था । वे बार बार घडी देखते रहते थे हम वहाँ जाकर सबसे मिलते थे बहुत अच्छा लगता था । शाम को मैं कभी दादा जी के साथ घूमने जाती थी तो कभी दादी माँ के साथ । हमारे घर के पीछे रेत का मैदान हुआ करता था मेरी दादी माँ मोहल्ले के बच्चों को उन बच्चों मैं यानि कोपल , हमारी सहेली मोनिका ,दीपिका ,शिल्पा रानी , प्रतीक , निखिल, हनी को रेत पर खिलाने ले जाती । हम रेत पर कभी मंदिर बनाते तो कभी कोई घर बनाते थे । बनाते बनाते सारे बच्चे दादी माँ से ढेर सारी बातें भी करते जाते । भागा दौडी मचती तो दादी माँ चिलाती कि कहीं कोई गिर ना जाये । सारे बच्चे हमारी दादी माँ को दादी माँ कहते थे । जब खेलना हो जाता था तो सब दादी माँ से कहते दादी माँ अब घर जाना है । फिर दादी माँ सबको सबके घर छोड़्ती उसके बाद हम दादी माँ मोनिका दीपिका घर आ जाते
मोनिका दीपिका हमारे किरायेदार श्री अनिल सारवे और श्रीमती विजयालक्ष्मी सारवे की प्यारी प्यारी बेटियाँ है वे भंडारा में ही पैदा हुई और पली बढ़ी इसलिए वे मुझसे और दादा जी दादी माँ से बहुत ही अटूट रिश्ते से जुडी हुई है । हमने उन्हे कभी अपना किरायेदार नहीं समझा बल्कि अपने परिवार का सदस्य ही समझा । घर आकर हम मोनिका दीपिका को या तो पढ़ाने लग जाती या उनके साथ खेलने लग जाती । इधर दादी माँ और मम्मी खाने की तैयारी में लग जाते वहाँ आँटी खाने की तैयारी में लग जाती । हमारे दरवाजे पीछे से जुड़े हुये थे इसलिए हमारा आना जाना और आसान था । हम दिनभर खेलते रहते थे मेरे पास एक पेटी थी जिसमें बहुत सारा खेलने का सामान होता था । मेरे पास बहुत सारी कपड़े की गुड़ियाँ थी उसे हम मोनिका के साथ मिलकर सजाते थे कभी उसके लिए हार बनाते थे तो कभी कुछ कभी फूलों से उसका गजरा बनाते थे उसका मेकअप किट बनाते थे गुड्डे गुडिया की शादी करते पर इन सब में हमारी दादी माँ हमारे साथ होती थी कभी हम घराती बन जाते तो कभी मोनिका बराती शानदार तरीके से सारी रस्में निभाते शादी होती खाना होता हम मिलकर मडंप सजाते गाना बजाते बिदाई होती फिर दुल्हा दुल्हन का गृहप्रवेश होता रिस्पेशन होता और फिर हम और मोनिका एक हो जाते । दूल्हा दुल्हन के लिए झूला बनाते उस झूले को बहुत सारे फूले से सजाते उसमें उन्हे सुलाते । हम दादी माँ से पूछते जाते अब क्या करें । दादी माँ हमें सब बताती जाती हम करते जाते ।
कभी हम मेरी दादी माँ की पुरानी साडियाँ निकालकर पहनते थे एक दूसरे को सजाते सवांरते थे । दिन में जब सब सो जाते थे तो हम और मोनिका हमारे बगीचे में जाकर जाम तोड़्कर खाते थे जब जाम नहीं गिरते थे या नहीं निकलते थे तो हम पेड़ को धक्का लगाते या जोर जोर से हिलाते थे । जब जाम हाथ में आ जाते थे तो आराम से बैठकर खाते थे कभी हम आम वाले टोकने से कच्चे आम उठाकर खाते थे तो कभी नीबू तोड़्कर नीबू का शरबत बनाकर पीते तो कभी क्च्चे पापड़ निकालकर खाते थे । दादा जी हम काजू वाले बिस्किट खिलाते थे जो नमकीन होते थे । हम दादी माँ के हाथ के साबूदाने की खिचड़ी खाते तो कभी चावल और आम का अचार खाते आम का अचार तीखा होता तो हमें और मोनिका को मिर्ची लगती तो हम दादा जी के पास जाते और उनसे ठंडाई मांगकर खाते हमें ठंडाई खाने के लिए दादा जी बहुत मनाना पड़ता था वे हमें घुट्ने टेकने कर और हाथ आगे बढाने को कहते थे दादा जी पान के शौकिन थे तो वे पान में ( चमन बहार ) की ठंडाई डालते थे । वे पान खाते थे और हम इसका लाभ उठाते थे ।
अगर हम किसी त्योहार पर जाते तो मैं दादी माँ और मम्मी मिलकर ढेर सारे पकवान बनाते । उन पकवानों में पहले भगवान के लिए भोग निकाला जाता फिर हमें खाने मिलता । दिवाली पर हम कभी अपने दादा जी और चाचा के साथ खरीददारी करने जाती उस खरीददारी की लिस्ट बनती उसमें हमारें लिए सबसे पहले रंगोली लिखी जाती । जब सारा सामान आता तो सबसे पहले दादा जी हमें हमारी रंगोली देते । उसके बाद हम मोनिका के साथ मिलकर रंगोली डालते हमारा बहुत बड़ा आंगन था उसमें हम बहुत सारी रंगोलिया ड़ालते थे उसके बाद हाथ मुँह धोकर सुन्दर से कपडे पहनकर तैयार हो जाते तब तक मम्मी , दादी माँ , दादा जी और बबलू चाचा पूजा की तैयारी करते फिर शुभ मुहर्त के अनुसार दादा जी और सब मिलकर पूजा आरती करते फिर प्रसाद बँटता सब फटाखे छोड़्ते हमें फटाखों से डर लगता तो हम नहीं छोड्ते थे । फिर सबके साथ मिलकर हमारी सीमा बुआ के घर जाते जो वही भंडारा में ही रहती है । वहाँ सबसे मिलते फिर घर आकर खाना होता ढेर सारी बाते होती अगले दिन सुबह से हम और मोनिका तैयार होकर सबके घर प्रसाद बाँटने जाते । पहले हम होली नहीं खेलते थे सब खेलते थे और हम घर के अंदर छुपकर बैठ जाते क्योंकि हमें तब रंगों से डर लगता पर हम पिछ्ले एक साल से जी भरके होली खेलते अब हमें रंगों से कोई डर नहीं लगता ।
सन 2001 हमारी दादी माँ हमें छोड़कर चली गई तो हम दादा जी को अपने साथ अपने केलाबाडी वाले घर में ले आये और सन 2003 हमारे दादा जी भी हमें छोड़कर चले गये । अब तो बहुत कुछ बदल गया है अब हम भंडारा भी नहीं जा पाते या जानें का मन नहीं करता क्योंक़ि वहाँ जाने हमें दादी माँ और दादा जी बहुत याद सताती है अब हमारे किरायेदार श्री अनिल सारवे अपने परिवार को लेकर नागपुर में बस गये है और हमारी सहेली मोनिका अब यहाँ दुर्ग में अपनी नानी के यहाँ रहकर अपनी बारहवी की पढ़ाई कर रही है उससे भी कभी कभी मुलाकात हो जाती है । अब भंडारा वाले घर में हमारे चाचा जी श्री शेखर कोकास अपनी पत्नी श्रीमती रंजना कोकास और अपने बेटे पार्थ कोकास बिटिया पलक कोकास के साथ रहते है । वो वक्त के गुज़रे लम्हे और हमारे दादा जी दादी माँ हमारी यादों में रह गये है । अब ना वो प्यारे प्यार लम्हे मिलेंगे ना वो प्यारे प्यारे दादा जी और दादी माँ बस अगर हमारे पास कुछ है तो बस उनकी यादें है । “ जिदंगी के सफर में लोग चले जाते है और अपनी यादें दे जाते है । “ यादें बेशकीमती होती है इन्हे संभालकर रखिये और अपने से जुडें इंसानो और रिश्तों का सम्मान कीजिये ना जाने ये रिश्ते आपसे कब दूर हो जाये फिर आपको मिले या न मिलें । यही जिदंगी का फलसफा है कि इंसान चले जाते है और अपनी यादें छोड जाते है । हम सम्मान करते है अपने रिश्तों का आप भी करिये ।
13 टिप्पणियाँ:
यादें बेशकीमती होती है इन्हे संभालकर रखिये और अपने से जुडें इंसानो और रिश्तों का सम्मान कीजिये ना जाने ये रिश्ते आपसे कब दूर हो जाये फिर आपको मिले या न मिलें ।
" बहुत सुन्दर यादे और उतना ही अच्छा चित्रण ओं यादो का. और जिन्दगी का ये फलसफा बहुत सुन्दर लगा....
कोंपल बेटे!लिखा बहुत अच्छा है। पर इस में पैरा एक भी नहीं बनाया। पैरा नहीं बनाने से पढ़ने वाले को परेशानी होती है। इस आलेख को कम से कम तीन पैरा में तो विभाजित किया ही जा सकता था।
संस्मरण बहुत बढ़िया रहा!
1 तुमने यह अच्छा संस्मरन लिखा है ।
2 दादा दादी ही नहीं जीवन मे हर रिश्ता अनमोल होता है इसलिये उस रिश्ते की मिठास को सहेज कर रखना चाहिये ।
3. ऐसे ही अन्य रिश्तों के बारे में लिखो ।
4 . उपर द्विवेदी अंकल ने जो सलाह दी है उसका पालन करो ।
5. तुम्हारे पास दादा- दादी की तस्वीर है उसे भी लगाना चाहिये था ।
6. हैप्पी ब्लॉगिंग ।
बहुत बढ़िया संस्मरण
आपका संस्मरण पढ़कर मुझे भी अपने दादा-दादी और नाना-नानी की याद आ गई.
________________________
कल 7 जून को 'पाखी कि दुनिया' में समीर अंकल जी की प्यारी सी कविता पढना ना भूलियेगा.
It was really good
Durga Puja 2016
Happy Navratri Day 2016
Happy Dussehra 2016
Happy Navratri 2016
Durga Puja wishes in Hindi
Happy Durga Puja Messages
Durga Puja Images free Download
Induction Meaning In Hindi
Kalpana Chawla in Hindi
Vitthal Mandir Pandharpur
DNA in Hindi
Rani Ki Vav
Saxophone in Hindi
Swarn Mandir Amritsar
Karwa Chauth Ki Kahani
Raksha Bandhan in Hindi
Stephen Hawking Hindi
Albert Einstein in Hindi
Sarvepalli Radhakrishnan In Hindi
Maharishi Valmiki Jayanti
Resistance Meaning in Hindi
Ohms Law in Hindi
Pradhan Mantri Ujjwala Yojana
RTI in Hindi
Advertisement In Hindi
Vigyan Science in Hindi
Names Of Months In Hindi
Toranmal
Proprietorship Meaning In Hindi
Sapno Ka Matlab
Rabindranath Tagore In Hindi
Atal Bihari Vajpayee In Hindi
Munshi Premchand In Hindi
PM Jan Arogya Yojana
Pradhan Mantri Awas Yojana In Hindi
एक टिप्पणी भेजें