इसकी बोली उसकी बोली तरह तरह की बोली

बोली हर प्रांत की 


            मित्रों हम अपने पूरे जीवन में ना जाने कितने सारे लोगो से मिलते है कोई इस प्रांत का कोई उस प्रांत का हर व्यक्ति की अलग बोली ये बोली ही तो है जिससे हम पहचान जाते है यह इंसान फलां जगह है जैसे कोई व्यक्ति बुन्देली बोली बोल रहा है उसके बात करने का तरीका , उसके उच्चारण , उसका व्याकरण उसके शब्दों उसकी बोली से ही हम समझ जाते है अरे यह तो इंदौर का या जबलपुर का रहने वाला होगा । उस व्यक्ति की बोली से ही हम यह अंदाजा लगा पाते है की यह बोली किसी समुदाय द्वारा बोली जाने भाषा है ।
       किसी क्षेत्र के पढ़े - लिखे और शिष्ट लोग अपनी बातों और विचारों को एक दुसरे से बांटने के लिए कामकाज , शिक्षा , साहित्य धर्म और राजनीति में इस्तेमाल करते है वो उस क्षेत्र विशेष की आदर्श भाषा बन जाती है ।
            प्रत्येक प्राणी के हृदय में परिस्थितियों के अनुसार भिन्न-भिन्न प्रकार के भावों का उदय हुआ करता है और इन भावों को दूसरों पर प्रकट करने की भी प्रत्येक प्राणी को आवश्यकता होती है। एक समय वह था जब मनुष्य एक विकसित और शक्ति सम्पन्न प्राणी नहीं था। वह जंगलों में रहता था और जंगली जानवरों का शिकार कर उन्हीं के चर्म से अपने शरीर को ढंकता था। संकेत ही उसके भाव प्रकाशन थेजिसके चिह्न आज भी गुफ़ाओंकंदराओं में पाए जाते हैं परन्तु धीरे-धीरे वह आगे बढ़ा और सभ्यता की ओर चला उसने अपनी भाव प्रकाशन प्रणाली में उन्नति की और जीभकंठआदि का सहारा लेकर उसने नई-नई ध्वनियों को जन्म दिया। ये ध्वनियाँ ही भाषा के नाम से पुकारी जाने लगीं।
          हर भाषा का विकास बोलियों से ही होता है जब बोलियों का व्याकरण का मानकीकरण हो जाता है और उस बोली के बोलने या लिखने वाले इसका ठीक से अनुकरण करते हुए व्यवहार करते है और यह बोली भावाव्य्क्ति में इतनी सक्षम हो जाती है की लिखित सहित का रूप धारण कर सके तो उसे भाषा का स्तर प्राप्त हो जाता है किसी बोली का महत्व इस बात पर निर्भर करता है की समाजिक व्यवहार और शिक्षा व् साहित्य में उसका क्या महत्व है अनेक बोलियाँ मिलाकर किसी एक भाषा को समृध्द करती है अत: खा जा सकता है की भाषा व् बोलियाँ परस्पर एक दोस्सरे को समृद्ध करते है पशु- पक्षी अपनी भावाभिव्यक्तियों के लिए जिन ध्वनियों का प्रयोग करते है उन्हें भी बोली कहते है इन बोलियों का भी नाम होता है जैसे शेर की बोली को दहाड़ना कहते है , हाथी की बोली को चिंघाड़ना और घोड़े की बोली को हिनहिनाना ।



जगह - जगह की बोलियां
{ पश्चिमी हिन्दी } 

   ब्रज भाषा - 

 ब्रज भाषा का विकास ब्रज प्रदेश से हुआ है इस ब्रजभाषा का क्षेत्र बहुत विस्तुत हैबोलीआगराउत्तरप्रदेश,अलीगढ़,मथुरा,एटा,बुलन्दशहर,मैनपुरी,बरेली,गुरगांव,धौलपुर,भरतपुर,जयपुर,ग्वालियर,हाथरस,फिरोजाबाद जिलों में बोली जाती है इसे हम ''केन्द्रीय ब्रजभाषा'' भी ख सकते है ब्रजभाषा में ही प्रारम्भ में काव्य की रचना हुई सभी भक्त कवियों ने अपनी रचनाएं इसी भाषा में लिखी है जिनमें प्रमुखत: सूरदास,रहीम,रसखान,केशव,घनानंद,बिहारी है ।


 खडी बोली 
दिल्ली और उसके पूर्व और उतर पूर्व के निकटवर्ती प्रदेशों और जिलों की भाषा खडी    बोली है खड़ी बोली का परिष्कृत रूप राष्ट्भाषा हिन्दी है रामपुर,बिजनौर,मेरठ,मुजफ्फरपुर,मुरादाबाद,सहारनपुर,देहरादून का मैदानी भाग अम्बाला और कलसिया और पटियाला के पूर्वी भाग आते है ।
बुन्देली - बारहवीं सदी में दामोदर पंडित ने उक्ति व्यक्ति प्रकरण की रचना की. बुन्देलखण्ड में प्रमुख रूप से बुन्देली बोली जाती है जालौन,हमीरपुर,झांसी,भोपाल,ओरछा,ग्वालियर,सागर,होशंगाबाद,नरसिंहपुर,सिवनी जिलों में यह अपने मूल रूप में बोली जाती है पर दतिया,पण,दमोह,बालाघाट,छिंदवाड़ाचरखारी स्थानों पर यह बोली मिश्रित रूप में बोली जाती है बुन्देली बोली की उपबोलियाँ भी है जैसे राथौरीलौघन्ती,बनाफरी 
हरियाणवी - 
भारत के हरियाणा प्रांत में बोली जाने वाली भाषा है वैसे तो हरियाणवी में कई लहजे है साथ ही विभिन्न क्षेत्रों में बोलियों की भिन्नता है लेकिन इसके दो भाग है 
एक उत्तर हरियाणवी दुसरा दक्षिण  हरियाणवी 
उत्तर हरियाणा में बोली जाने वाली हरियाणवी थोड़ा सरल होती है तथा हिन्दी भाषी व्यक्ति इसे थोड़ा बहुत 'समझ सकते हैं। दक्षिण हरियाणा में बोली जाने वाली बोली को ठेठ हरियाणवी कहा जाता है।\यह कई बार उत्तर हरियाणा वालों को भी समझ में नहीं आती।इसके अतिरिक्त विभिन्न क्षेत्रों में हरियाणवी के कई रूप प्रचलित हैं जैसे बाँगरराँघड़ी आदि।
कन्नौजी - 

 ऊतरप्रदेश के फरुखाबाद जिलें में कन्नौज एक प्रसिध्द ऐतिहासिक नगर है कन्नौज शब्द कान्यकुंज का तद्रूप है कुछ लोग कन्नौजी को ब्रज की एक बोली मानते है ।
 फरुखाबाद,शाह्ज्न्हापुर,पीलीभात,हरदोई,मैनपुरी,इटावा,कानपुर जिलों के ग्रामीण अंचल में बोली जाती है कन्नौजी भाषा / कनउजी पश्चिमी हिन्दी के अंतर्गत आती है और कानपुर जिलों में बोली जाती है ।

{ पूर्वी हिन्दी }


अवधी -
उर्र्तप्र्देश के आधार पर ही इस बोली का नाम पड़ा है अवधी गंगा के दक्षिण में फतेहपुर , बांदा ,इलाहाबाद , मिर्जापुर जिलों में बोली जाती है पश्चिम में उन्नाव लखनऊ , रायबरेली , सुल्तानपुर , हरदोई , लखीमपुर ,सीतापुर , फैजाबाद ,प्रतापगढ़ में अवधी को बैंसवाडी कहा जाता है इसकी उत्पति अयोध्या से हुई है 

बघेली या बाघेली - बघेली बोली हिन्दी की एक बोली है  इस बोली का नाम राजपूतों के कारण हुआ रीवा बघेलखंड का प्रमुख क्षेत्र है जो भारत के बघेलखंड क्षेत्र में बोली जाती है यह मध्यप्रदेश के रीवा ,सतना , उमरिया अनूपपुर में उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद और मिर्जापुर जिलों में बिलासपुर और कोरिया जनपदों में बोली जाती है इसे बघेलखंडी रिम्ही और रीवी भी कहा जाता है

छत्तीसगढ़ी 
 छत्तीसगढी प्रमुख रूप से छत्तीसगढ की बोली है कुछ भागों में इस बोली को खलौटीऔर लारिया कहा जाता है यह बोली जबलपुर से लेकर छोटा नागपुर तक और उत्तर में रीवा से लेकर दक्षिण में बस्तर तक बोली जाती है 
छत्तीसगढी 2 करोड लोगों की मातृभाषा है। यह पूर्वी हिन्दी की प्रमुख बोली है और राज्य की प्रमुख भाषाहै  छत्तीसगढी ही ऐसी भाषा है हो समूचे राज्यमें बोली और समझी जाती है 

{ राजस्थानी }

 मारवाड़ी - राजस्थान में बोली जाने वाली एक क्षेत्रीय भाषा है । यह राजस्थान की एक मुख्य भाषाओं में से एक है मारवाड़ी गुजरात,हरियाणा और पूर्वी पकिस्तान में भी बोली जाती है इसकी मुख्य लिपि देवनागरी है इसकी कई उपबोलियाँ भी है

मेवाती
मेवाती एक बोली है जो पूर्वी राजस्थान के अलवर और भरतपुर जिलों में बोली जाती है मेवाती बोली को मो जाती के लोग बोलते है ये जाती इस्लाम धर्म को मानने वाली होती है वास्तव में मेवाती बोली हिन्दी का ही विकर्त रूप है इसमें निर्मन हिन्दी और हरियाणवी के शब्दों से हुआ है ।
 मालवी -
 यह मालव प्रदेश की प्रमुख भाषा है इसका शुद्ध रूप उज्जैन ,इंदौर, नीमचमन्दसौर जापुर जिलों देवास ,रतलाम इंदौर संभाग के धारझाबुआअलीराजपुरहरदा और इन्दौर जिलोंभोपाल संभाग के सीहोरराजगढ़भोपालरायसेन और विदिशा जिलोंग्वालियर संभाग के गुना जिलेराजस्थान के झालावाड़प्रतापगढ़बाँसवाड़ा एवं चित्तौड़गढ़ जिलों के सीमावर्ती क्षेत्रों में होता है। मालवी की सहोदरा निमाड़ी भाषा का प्रयोग बड़वानीखरगोनखंडवाहरदा और बुरहानपुर जिलों में होता है। और इसके आसपास के क्षेत्र में देखने को मिलता है इस मालवी बोली में उत्तम कोटि की काव्य रचनाएं लिखी गई है 

 { पहाड़ी }

·         पूर्वी पहाड़ी जिसमें नेपाली आती है
·         मध्यवर्ती पहाड़ी जिसमें कुमाऊंनी  और गढ़वाली आती है।
·         पश्चिमी पहाड़ी जिसमें हिमांचल प्रदेश की अनेक बोलियां आती हैं।

कुमाऊँनी

भारत की मान्यता प्राप्त भाषाओं में से एक है कुमाऊंनी है ये उत्तराखंड के अलमोड़ा,नैनीताल,पिथौरागढ़,बागेश्वर,उधमसिंह नगर के असम बिहार,दिल्ली,मध्यप्रदेश ,महाराष्ट ,पंजाब ,हिमाचल प्रदेश और नेपाल के कुछ क्षेत्रों में बोली जाती है  

{ बिहारी भाषा }
मैथिली -
भारत के उत्तरी बिहार और नेपाल के तराई क्षेत्र में बोली जाने वाली भाषा है यह हिन्द आर्य परिवार की सदस्य है इसका प्रमुख स्रोत संस्कृत भाषा है जिसके शब्द तत्सम व तद्भव रूप में मैथिली में प्रयुक्त होते है मैथिली मुख्यतः पूर्व बिहार की भाषा है दरभंगा, मुजफ्फरपुर,मुंगेर,भागलपुर,सहरसा,पूर्णियाऔर पटना और नेपाल के पाँच जिलों में ( रोहतास,सरलाही,सप्तरी,मोह्तरीऔर मोरंग) में बोली जाती है

भोजपुरी -
भोजपुरी शब्द का निर्माण बिहार का प्राचीन जिला भोजपुर के आधार पर पड़ा। जहाँ के राजा "राजा भोज" ने इस जिले का नामकरण किया था। भाषाई परिवार के स्तर पर भोजपुरी एक आर्य भाषा है के स्तर पर भोजपुरी एक आर्य भाषा है और मुख्य रूप से पश्चिम बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश तथा उत्तरी झारखंड के क्षेत्र में बोली जाती है। आधिकारिक और व्यवहारिक रूप से भोजपुरी हिन्दी  की एक उपभाषा या बोली  है।
·         उत्तर प्रदेश  : बलिया जिलावाराणसी जिला,चन्दौली जिलागोरखपुर जिलामहाराजगंज जिलागाजीपुर जिलामिर्जापुरमऊ ,इलाहाबाद , जौनपुर , प्रतापगढ़,सुल्तानपुर , फैजाबाद बस्ती,गोंडा ज़िला ,भारीच ,सिद्धार्थ ,आजमगढ़

झारखंड
भारत के झारखंड प्रदेश में बोली जाने वाली भाषा झारखन्डी है
मगही
मगही या मागधी भाषा भारत के मध्य पूर्व में बोली जाने वाली एक प्रमुख भाषा है। इसका निकट का संबंध भोजपुरी और  मैथिली  भाषा से है और अक्सर ये भाषाएँ एक ही साथ बिहारी भाषा  के रूप में रख दी जाती हैं। इसे देवनागरी लिपि में लिखा जाता है। मगही बोलने वालों की संख्या (2002) लगभग करोड़ ३० लाख है। मुख्य रूप से यह बिहार के गया  ,पटनाराजगीर,नालंदा,जहानाबाद ,अरवल नवादा और औरंगाबाद के इलाकों में बोली जाती है।
अंगिका 
 एक भाषा है जो झारखंड के उत्तर पूर्वी भागों में बोली जाती है जिसमें गोह्दा,साहिबागंज,पाकुड़,दुमका,देवघर ,गिरिडीह,भागलपुर,मुंगेर,खगडिया,बेगूसराय,पूर्णिया,कटिहार,अररिया आते है यह नेपाल के तराई भाग में भी बोली जाती है अंगिका भारतीय आर्य भाषा है ।



3 टिप्पणियाँ:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (14-11-2017) को
"कभी अच्छी बकवास भी कीजिए" (चर्चा अंक 2788)
पर भी होगी।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

Paise Ka Gyan ने कहा…

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