हर साल ’’ पोला ’’ पर्व के समय हमारे मोहल्ले में एक मिट्टी के खिलौने वाले अंकल निकलते थे । वे अंकल अक्सर दोपहरी के समय आते थे । जब वे आते थे तब हमारे मोह्ल्ले के बच्चे या तो अपनी पढ़ाई कर रहे होते या तो स्कूल से आकर भोजन कर आराम फरमा रहे होते थे । हमारी मम्मी हमें देखकर सोचती थी चलो अच्छा है ये थोड़ी सो जाये तो हम अपना कुछ काम निपटायें । बस खिलौने वाले अंकल का आना जब होता था तब अचानक हमारे घर पर मेरे साथियों मे से किसी कोई एक आता और कहता कि आंटी वो अपने मोहल्ले में खिलौने वाला आया है । फिर मैनें सुन लिया तो मैनें अपनी मम्मी से जिद की मुझे भी खिलौने दिलाओ ना सारे मोहल्ले के घरों पर यही दृश्य होता था कि हर बच्चा अपनी मम्मी के आगे पीछे तो उनका पल्लू थामे तो कभी उन्हे उनकी पसंद की चीज देकर उन्हे फुसलाता तो कभी मनाता कि मम्मी मुझे भी खिलौने दिलाओ ना मम्मी मैं थोड़ी देर खेलने के बाद अपना होमवर्क पूरा करुंगी या करुंगा जो भी हो मम्मी तो समझ ही जाती की ये सारे बहाने तो हर साल के है ( खिलौने लेने के लिए ) । आखिर इतनी मनुहार करने के बाद मम्मी मानी । उसके बाद जल्दी से मोहल्ले के सारे बच्चे अपनी अपनी मम्मियों व टोकनी को लेकर जिसमें हम बहुत सारे खिलौने लेगें वो टोकनी बड़ी होती है वहाँ जाते है जहाँ खिलौने वाले अंकल आये हुये होते है । फिर हम वहाँ जाकर अपनी अपनी पसंद के खिलौने खरीदते है बहुत सारे खिलौने, हमारी मम्मियाँ खिलौने वाले अंकल से मोल भाव करती है और हम सोचते है चलो लाख मनुहार के बाद आखिर खिलौने मिलें तो सही । खिलौने लेनें के बाद पहले तो हम घर जाते है घर जाते ही मम्मी की कि इस बार घर पर ही खेलना अपने दोस्तों के साथ मत खेलना पर हम कहाँ मानने वाले है मम्मी अपने काम में इधर उधर हुई कि हमने खिलौने वाला टोकना उठाये और उनसे नज़रें चुराकर बचाकर चल दिये दोस्तों के साथ खेलने दोस्तो के घर ये खेल होते थे किसी कि छत पर या तो किसी के घर पर , हमने किसी को कड़ाही दिखाई किसी को चक्की किसी गिलास किसी को कुछ । कुछ देर प्रेमपूर्वक खेले फिर लड़ाईयाँ शुरु हुई इस मारपिट में खिलौने तोड़े गये। किसी को कुछ मारा फेंका और रो धोकर खेल खत्मकर वापस अपने टोकने उठाकर चल दिये अपने घरों की ओर फिर घर पहुँचकर मम्मी की डाँट सुनी टोकने जगह पर रखे गए । मम्मी से बार बार कहा कि अब लड़ाई नहीं करना । मम्मी ने फिर से हिदायतें दी की कल मत जाना पर हमने नहीं सुनी । कल फिर खिलौने वाला टोकना उठाया और । खा पीकर निकल गए अपने दोस्तों के साथ खेलने बिना इस बात की फिक्र किये कि घर जाने पर मम्मी से डाँट पड़ेगी ।
कभी मैं अपने दोस्तो को अपने घर पर बुलाती खेलने के लिए कभी मैं जाती । मेरे उस ग्रुप में लड़के व लड़कियाँ भी शामिल थे । कुछ तो भाई बहन भी थे वे भाई बहन आपस में लड़ते झगड़ते ,रुठते मनाते फिर खेलने लग जाते बड़ा प्यारा लगता उनका यह प्यारा सा अनोखा सा रिश्ता । मेरे घर पर दोपहर के समय अक्सर बहुत सारे बच्चों की रोनक होती थी । मेरी मम्मी स्कूल पढ़ाने जाती थी और मैं घर पर रहती थी हम सारे बच्चे दिनभर खेलते मस्ती करते हम बच्चे इतना खेलते इतनी मस्ती करते कि शाम तक मेरे घर का नक्शा ही बदल जाता और जब मेरी शाम पाँच बजे स्कूल से घर आती तो पूछती कि आज कितना खेला क्या – क्या किया सब कुछ पूछती ।