बहू को बेटी समझे ना दहेज़ दे ना दहेज़ ले

             

        दहेज़ वह धन एवं सम्पति है जो कन्या-पक्ष की ओर से वर-पक्ष को दी जाती है

       मक्स्रेडीन ने कहा है '' दहेज वह सम्पत्ति है जो पुरुष विवाह के समय अपनी पत्नी या उसके परिवार से प्राप्त करता है ''

       व्यबस्टर ने कहा है '' दहेज वह सम्पत्ति है हो एक स्त्री विवाह के समय अपने साथ लाती है या उसे दिया जाता है ''

        प्राचीन भारत में दहेज़ ऋग्वेद तथा अर्थवर्वेद की विवाह सम्बन्धी फ्ह्र्ज प्रथा प्रचलित थी दहेज़ प्रथा का वीभत्स रूप 20 वी शताब्दी के प्रारम्भ में शुरू हुआ इस समय दहेज प्रथा समाज द्वारा स्वीकार कर ली गई थी प्राचीन काल राजा महाराजा तथा धनिक लोग अपनी बेटियों की शादी में हीरे जवाहरात , सोना , चांदी आदि प्रचुर मात्रा में दिया करते थे। धीरे-धीरे यह प्रथा पूरे विश्व में फैल गई यह कहावत तो सुनी होगी कि समाज जिसे ग्रहण कर ले वह दोष भी गुण बन जाता है तथा इसका एक कारण औऱ यह भी है कि भारतीय समाज में नारी को पुरूष की अपेक्षा निम्न समझा जा रहा है। 











दहेज़ प्रथा के कारण
  •                  सामाजिक प्रथा दहेज़ प्रथा हिन्दू समाज की शक्तिशाली सामाजिक प्रथा है व्यक्तियों को दहेज इसलिए अपनी पुत्री को दहेज़ इसलिए देना पड़ता है की समाज में होता आया है नहीं देगे तो समाज के लोग क्या कहेंगे की बेटी को खाली हाथ ही ससुराल भेज दिया  
  •                 हिन्दू समाज में जाती व्यवस्था अत्र्यन्त सामाजिक संस्था है कोई व्यक्ति अपनी जाती के बाहर विवाह नहीं कर सकता लोगो को अपनी ही जाती में विवाह करना पड़ता है साथी चुनने के लिए दायरा सीमित कर दिया जाता है और वर-पक्ष के लोग अधिक से अधिक दहेज़ मांगते है
  •                     हिन्दू समाज में अनुलोम विवाह बहुत प्रचलित है प्रत्येक पिता अपनी बेटी का विवाह अपनी जाती से ऊँची जाती में ही कर सकता है ऊँची जाती के लडको से सभी लोग अपनी बेटियों का विवाह करना चाहते है इससे प्रतिस्पर्धा आरम्भ हो जाती है लोग कुलीन ब्राम्हण शादी करते है और बहुत सारा दहेज़ ले लेते है  
  •                  कुछ लोग अपनी सामजिक स्थति को उंचा दिखाने के लिए अधिक से अधिक दहेज़ लेने लगे और यह रिवाज बन गया और फिर लाचार होकर दहेज देना सबसे जरुरी हो गया  
  •                आधुनिक युग में धन व्यक्ति की सामजिक प्रतिष्ठा को निश्चित करता है ज्यादा धन है तो लोग न केवल वस्तुओ का लेन देन करते है बल्कि मनुष्यों का भी कर लेते है वर चुनने में प्रतिस्पर्धा का आधार गुण या सुंदरता नहीं बल्कि धन होता है  
  •                 दहेज़ एक चक्र है जो एक बार यदि शरू हो जाए तो खत्म नहीं होता है कुछ लोग दहेज़ इसलिए स्वीकार नहीं करते है क्योकि उन्हें अपनी बेटियों या बहनों के विवाह में दहेज देना पड़ेगा और ये भी की अगर वर अपने पिता से विरोध करता है तो उसे यह कहा जाता है हमने भी तुम्हारी माँ से शादी करते वक्त दहेज़ लिया था तुम्हारे दादा परदादा ने भी बेटा दहेज़ लेना तो रिवाज है और पारिवारिक चक्र उस वर के कदम को रोक देता है 
  •                       कुरूप लडकियों के विवाह में भुत कठनाई आती है दहेज लेकर लोग लडकियों के कुरूपपण का मुआवजा चुकाते है  बेटी के माता पिता सोचते है उनकी बेटी सुंदर नहीं दिखती है और वर-पक्ष को विवाह करने के लिए ज्यादा से ज्यादा दहेज में धन अदि देते है ताकि दहेज की आड़ में उनकी बेटी सुखी रहे और उसे उसके बदसूरत होने का दुःख ना झेलना पड़े



दहेज़ प्रथा के दोष

मानव जीवन में दो स्तम्भ है स्त्री और पुरुष पर हिन्दू परिवार में लडकियों के पैदा होने पर शोक मान्या जाता है और लडको के पैदा होने पर खुशियाँ यह सब दहेज प्रथा के कारण है

  • ·         पारिवारिक संघर्ष - दहेज़ पकम मिलने के कारण वधु की सास व् ननदे ताना मारती है दुर्व्यवहार करती है पति उसे प्रताड़ित करता है
  • ·         निम्न जीवनस्तर - जिनका जीवन स्तर बहुत निम्न है उन्हें लगातार यह चिंता रहती है बेटी के विवाह के लिए जोड़ना है
  • ·         शिशु हत्या - लोग दहेज़ से बचने के लिए नवजात कन्या की हत्या कर देते है
  • ·         आत्महत्याएं - जिन लडकियों के पिता पूरा दहेज़ नहीं देते पाते और अगर विवाह हो जाता है तो उसे ससुराल में अपमान सहना पड़ता है अत्याधिक होने पर वह आत्महत्या कर लेती है पर्याप्त धन ना होने पर विवाह नहीं होता तो लडकी सोचती है मेरा जीवन व्यर्थ है और वह जीवन अंत कर लेती है
  • ·         लडकी का कुवारी रह जाना - दहेज़ के लिए धन ना होने पर लडकियां कुवारी रह जाती है
  • ·         बेमेल विवाह - दहेज़ की कमी होने पर पिटा अपनी बेटी का विवाह कैसी भी प्रुरुष से कर देते है चाहे वह उम्र में लड़की से बड़ा क्यों न हो
  • ·         विवाह का टूट जाना - दहेज़ की रकम पूरी न हो सकने के कारण कई बार विवाह नहीं हो पाटा है सगाई हो गई विवाह की तिथि तय हो गई दहेज का प्रश्न आते ही शादी टूट जाती है
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  • ·         मानसिक बीमारियों के उतरदायी - दहेज़ की रकम जोड़ने की चिंता में माता पिता में मानसिक रोग हो जाते है
  • ·         स्त्री शिक्षा में रुकावट - कुछ लोग अपनी बेटी को ज्यादा पढ़ने नही देते है की ज्यादा शिक्षित होने पर उतना ही योग्य वर ढूंढना पड़ता है और उतना ही दहेज देना पड़ेगा



दहेज़ प्रथा को समाप्त करने के सुझाव

·                               शिक्षा का प्रसार ज्यादा से ज्यादा होना चाहिए युवको में नवीन मूल्यों का निर्माण करना चाहिए तत्कि वे इस कुप्रथा का पूरी तरह से विरोध कर सके स्त्री शिक्षा  को बढ़ावा दिया जाए 

·                                     लड़कियों का आत्मनिर्भर बनना भी दहेज रोकने का एक अच्छा उपाय है | लडकियाँ केवल घरेलू कार्य में ही व्यस्त न रहें, बल्कि आजीविका कमाएँ ; नौकरी या व्यवसाय करें | इससे भी दहेज की माँग में कमी आयगी |

·                             दहेज़ प्रथा को समाप्त करने के लिए अंतरजातीय विवाह का आन्दोलन अत्राधिक सहायता कर सकता है इससे वर चुनने में अत्याधिक सहायता मिलेगी और शेत्र भी बढ़ जाएगा

कानून
दहेज निषेध अधिनियम, 1961 के अनुसार दहेज लेने, देने या इसके लेन-देन में सहयोग करने पर 5 वर्ष की कैद और 15,000 रुपए के जुर्माने का प्रावधान है।
     ·         दहेज के लिए उत्पीड़न करने पर भारतीय दंड संहिता की धारा 498-ए जो कि पति और उसके रिश्तेदारों द्वारा सम्पत्ति अथवा कीमती वस्तुओं के लिए अवैधानिक मांग के मामले से संबंधित है, के अन्तर्गत 3 साल की कैद और जुर्माना हो सकता है।
    ·         धारा 406 के अन्तर्गत लड़की के पति और ससुराल वालों के लिए 3 साल की कैद अथवा जुर्माना या दोनों, यदि वे लड़की के स्त्रीधन को उसे सौंपने से मना करते हैं।
    ·         यदि किसी लड़की की विवाह के सात साल के भीतर असामान्य परिस्थितियों में मौत होती है और यह साबित कर दिया जाता है कि मौत से पहले उसे दहेज के लिए प्रताड़ित किया जाता था, तो भारतीय दंड संहिता की धारा 304-बी के अन्तर्गत लड़की के पति और रिश्तेदारों को कम से कम सात वर्ष से लेकर आजीवन कारावास की सजा हो सकती है।[3]
   ·         दहेज को रोकने के लिए सरकार और समाज दोनों को प्रयास करना होगा । सरकार को इस प्रथा को रोकने के लिए कडे कानून का सहारा लेना होगा । यदि कानून इस प्रथा का सच्चाई तथा कडाई के साथ पालन करे तो सफलता मिल सकती है । कानून से बढ़कर जन-सहयोग है हर जनता ये चाहिए कि दहेज न ले तभी ये प्रथा रुक सकती है । इसमे युवा वर्ग के लोगो को आगे आना जाहिए लड़के व् लडकी यह प्रतिज्ञा ले की हम स्वेच्छा से बिना दहेज के आदर्श विवाह करेंगे और हम परिवार या समाज के अनुसार कही गई बातो को नहीं सुनेगे और हम दहेज ना लेकर ना देकर एक मिसाल पेश करेंगे
·                                         लड़की को इतना मजबूत बनना है की कोई वर या वर पक्ष लोग यदि दहेज़ की मांग करे तो लडकी को कड़ाई से साफ़ मना करना चाहिए की ऐसे परिवार में मैं विवाह नहीं करुगी जिस परिवार में मेरे पिता से मेरे बेटी होने का मेरे दुल्हन होने का मूल्य माँगा जाए , जहां दहेज की आड़ में मेरे रूप, मेरे गुणों , मेरे स्वभाव , मेरी शिक्षा का मूल्य नहीं सम्मान नहीं उसे परिवार में मैं विवाह में मेरे विवाह का कोई स्थान नहीं  

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