पहले शिक्षक माता पिता पहली पाठशाला परिवार

                 हमारे जीवन में हमारे पहले शिक्षक माता-पिता होते है व परिवार पाठशाला वे बच्चों को जो मूल्य और आदर्श सिखाते हैंवही उनके जीवन का आधार बनते हैं। सिर्फ स्कूल में शिक्षित बच्चा संस्कारवान नहीं हो सकता । माता पिता बच्चे को जिन्दगी का क,कग,ग सिखाते है जीवन में उपयोग में आना वाला ज्ञान देते है Ι




मेरी मम्मी मेरी पहली शिक्षक 

                   

                    

                    हम स्कूल बाद में जाते है चलना -फिरना ,उठना-बैठना , खाना-पीना, रिश्तो को समझना ,मेहनत करना ,दूसरो की मदद करना , अच्छी आदते सिखाने और अच्छा इंसान बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते है ताकि वो एक अच्छा सफल और गुणी इंसान बने और यह शिक्षा उसके लिए जीवन भर काम आ सके Ι
  मेरे मम्मी पापा मेरे शिक्षक 


                                                                        
                  शिक्षा का प्रारम्भ प्रागौतिहासिक काल में ही प्रारम्भ माना जाता है मनुष्य ने वातावरण के अनुकूल ढलने व् आचरण करने का प्रयत्न किया Ι मानव  के बुद्धि के आधार पर वातावरण से अनुकूलन करने में सफल हो जाता है यही से शिक्षा प्रारम्भ हो जाती है Ι







               
             शिक्षा एक सहज प्रक्रिया है जो जन्म मत्युपर्यन्त चलती रहती है माता के गर्भ से ही बालक की शिक्षा प्रारम्भ हो जाती है जन्म के पश्चात माता पिता उसे बोलना सिखाते है कुछ बड़ा होने पर उठना बैठना , चलना फिरना , खाना पीना तथा आचरण के नियम सिखाते हैं । वह विद्यालय में शिक्षा ग्रहण करता है समाज में रहकर रीति रिवाज सीखता है यह सीखने की प्रक्रिया जीवनपर्यंत चलती रहती है यही शिक्षा है  




मेरे दादाजी दादी माँ मेरे शिक्षक 

                 एक इंसान जो कुछ भी है वह माता -पिता , परिवार, समाज, पाठशाला और स्वय मेहनत की वजह से होता है Ι माता पिता वे शिक्षक है जिनके पास हमारे हर सवाल का जवाव होता है और घररुपी पाठशाला जहां से जीवन का आधार स्तम्भ तैयार होता है Ι

राष्टपिता महात्मा गांधी के अनुसार - शिक्षा से तात्पर्य उस प्रक्रिया से है जो बालक एवं मनुष्य के शरीर , मन का सर्वोत्कृष्ट विकास कर सके ।

हर्बट के अनुसार -शिक्षा नैतिक चरित्र का उचित विकास है ।

फ्रोबेल के अनुसार - शिक्षा वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा बालक की जन्मजात शक्तियां बाहर प्रकट होती हैं ।

ज्ञान तथा अनुभव को हासिल करना एवं व्यक्तिगत गुणोंनिपुणताओं तथा क्षमताओं का विकास करना ताकि व्यक्ति एक पूर्ण एवं सन्तोषजनक जीवन बिता सके ।

जॉन लॉक के शब्दों में
"जीवन ही शिक्षा है शिक्षा ही जीवन है "
शिक्षा मानव के विकास की कुंजी है शिक्षा जीवनपर्यंत चलने वाली अनवरत क्रिया है बालक अपने वातावरण में प्रत्येक समय कुछ न कुछ सीखता रहता है तथा दूसरों को सिखाता रहता है यह सीखने व सिखाने की प्रक्रिया का नाम ही शिक्षा है ।

 शिक्षा का उद्देश्य 

ज्ञान का उद्देश्य ,- विद्वानों के अनुसार शिक्षा का उद्देश्य ज्ञान प्राप्त करना ।
शारिरिक विकास का उद्देश्य -शिक्षा ऐसी हो जिससे बालक का शरीर स्वस्थसुन्दरव बलवान हो ।
चरित्र विकास का उद्देश्य -विद्वानों के अनुसार शिक्षा का उद्देश्य चरित्र निर्माण होना चाहिए  
सांस्कृतिक विकास का उद्देश्य -शिक्षा ही एक ऐसा माध्यम है जिसके आधार पर किसी देश की संस्कृति का विकास संभव होता है जो एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में हस्तांतरित होता है ।
आध्यत्मिक विकास का उद्देश्य - बालक का आध्यत्मिक विकास होना चाहिए ताकि वह संसार की भौतिकता में न फँसकर असीम आंनद प्राप्त करने का प्रयास करें ।
जीविकोपार्जन का उद्देश्य - मनुष्य की तीन मूलभूत आवश्यकताएं है रोटीकपड़ामकान यदि शिक्षा इनको देने में असफल है तो इसका उद्देश्य पूर्ण नहीं कहा जा सकता है ।
संतुलित विकास का उद्देश्य -संतुलित विकास का आशय मनुष्य की शारिरिकमानसिकनैतिक तथा कलात्मक शक्तियों के विकास से होता है ।
पूर्ण जीवन का उद्देश्य - पूर्ण जीवन का आशय यह है कि शिक्षा द्वारा जीवन के सभी अंगों का विकास किया जाना चाहिए ताकि व्यक्ति जीवन की पूर्णता को पा सके ।
नागरिकता का उद्देश्य - नागरिकता के रूप में प्रत्येक व्यक्ति के कुछ अधिकार तथा कर्तव्य होते हैं उसमें कुछ विशेष गुणों के होने की आशा की जाती है ।
10 अनुकूलन का उद्देश्य - शिक्षा का उद्देश्य व्यक्ति को उसकी परिस्थितियों तथा वातावरण के अनुकूल कार्य करने योग्य बनाना है ।
11 भावी जीवन की तैयारी का उद्देश्य - मानवीय जीवन में शिक्षा का उद्देश्य बालक को भावी जीवन के लिए तैयार करना है ।






 
हम विधार्थी अपनी अपनी शिक्षिका संध्या मैडम के साथ 


शिक्षा की प्रक्रति 

 सामाजिक विकास की प्रक्रिया है- शिक्षा एक सामाजिक  प्रक्रिया है इसके तीन अंग है सिखाने वाला , सीखने वाला सीखने सिखाने की क्रिया ।
 विकास की प्रक्रिया है - प्रत्येक बालक एवं व्यक्ति कुछ जन्मजात शक्तियों व सम्भावनाओं को लेकर जन्म लेता है शिक्षा इन शक्तियों एवं सम्भावनाओं के विकास में योग देती है ।
 अन्तः शक्तियों का सर्वांगीण विकास है - शिक्षा बालक में अंर्तनिहित शक्तियों का विकास मात्र नहीं है बल्कि वह उनका सर्वागीण व पूर्ण विकास है ।
 गतिशील प्रकिया है - शिक्षा स्थिर रहने वाली प्रक्रिया न होकर एक गतिशील प्रक्रिया है Ι
 अविरल प्रक्रिया है - शिक्षा समाज में सदैव चलती रहती है मनुष्य के जन्म प्रारभ होकर जीवन के अंत तक चलती रहती है व्यक्ति समाप्त हो जाते हैं परंतु शिक्षा आजीवन पीढ़ी दर पीढ़ी चलती रहती है ।
 उद्देश्यपूर्ण प्रक्रिया है - शिक्षा की सफलता इस बात पर निर्भर करती है वह लक्ष्य प्राप्ति में सहयोग दे ।
 अनवरत चलने वाली प्रक्रिया है - बालक जब समाज का सदस्य बनता है औऱ जब तक इसका सदस्य रहता है शिक्षा की प्रक्रिया चलती रहती है बालक हमेशा कुछ न कुछ ग्रहण करता रहता है यही अनुभव उसको शिक्षा देने का कार्य करते हैं ।
 प्रकाशपुंज है - शिक्षा वह है जो मानव को अज्ञान रूपी अंधकार से ज्ञान रूपी प्रकाश की ओर आगे बढ़ाती है शिक्षा के द्वारा व्यक्ति रूढिवादिता के घेरे से बाहर आकर अपनी विचारधारा को वस्तुनिष्ठ बनाने का प्रयास करता है ।
शिक्षा एक समायोजन है - शिक्षा वह प्रकिया है जो बालक को सामाजिक परिवेश के समायोजित होना सिखाती है Ι






         जॉन डीवी ने कहा है शिक्षा जीवन की तैयारी नही है शिक्षा अपने आप में जीवन है शिक्षा मनुष्य को एक अच्छा इंसान बनाती है व् व्यक्ति का सम्पूर्ण विकास ही शिक्षा का मुख्य उद्देश्य होता है शिक्षा वह प्रकाश है जिसके द्वारा बालक की समस्त शक्तियों का विकास होता है हर्बर्ट स्पेंसर ने कहा है शिक्षा का महत्वपूर्ण कार्य हमे जीवन के लिए तैयार करना है Ι

         शिक्षा मानव के विकास कुंजी है शिक्षा जीवन भर चलने वाली क्रिया है बालक अपने जीवन में कुछ ना कुछ सीखता रहता है था दूसरो को सिखाता रहता है यह सीखने सिखाने की क्रिया ही शिक्षा है Ι

1 टिप्पणियाँ:

कोपल कोकास ने कहा…

कृपया यह शिक्षा से परिपूर्ण पोस्ट पढ़े

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