मोंटेसरी पध्दति ढाई
से 6 वर्ष के बालको के लिए प्रयोग में लाई जाने वाली पध्दति है जिसकी शुरुआत बीसवी
सदी में डॉ मारिया मोंटेसरी द्वारा हुआ रोम विश्विद्यालय में मंद्बुध्धि बालको की
चिकित्सा का काम करते हुए उनका ध्यान बालको की शिक्षा की ओर गया और उन्होंने
मोंटेसरी पध्दति का विकास किया जो बाद में समान्य बुध्दि बालको के शिक्षा के लिएय
भी उपयोग में लाइ गई इस पध्दति पर चालाया जाने वाला पहला स्कूल अर्ध बर्बर श्रमिक
बालको के लिएये सों लोर्र्जो में 6 जनवरी १९०७ को खुला १९१३ में प्रथम
अन्तराष्ट्रीय मोंटेसरी प्रशिक्षण पाठ्यक्रम का आयोजन हुआ जिसमे अमेरिका, अफ्रीका,
भारत और कई यूरोपीय देशो के लोग सम्मलित हुए डॉ मोंटेसरी स्वयं अपने दत्तक पुत्र
मारिओ मातेस्री के साथ जीवन भर इसके प्रसार में लगी रही
मोंटेसरी पध्दति के
अनुसार बालक के स्वाभाविक विकास के लिए उपयुक्त वातावरण पाया जाना अनिवार्य है यदि
उसे इस वातावरण में बिना किसी हस्तक्षेप के इच्छा से कार्य पूरा करने की स्वत्रंता
दी जाए तो वह अपनी आवश्यकताओ को स्वयं पूरा करने में सफल होगा और आत्मनिर्भर बनकर
व्यवहारकुशल हो जाएगा
शिक्षा के उद्देश्य
को मोंटेसरी ने अपनी पुस्तक 'A Discovery of child' में कहा
है '' मानव जाती अपनी समस्याओं का जिनमें शक्ति व् सुरक्षा एकता मुख्य है तभी
समाधान कर सकती है जब उसका ध्यान एव सब शक्तियाँ मानव व्यक्तित्व की असीम
सम्भावनाओं के विकास में लग जाएं
play
is the work of child
गोलों को जमाती बच्ची |
मोंटेसरी का शिक्षा सिद्धांत -
1 आत्म विकास का
- बालक एक शरीर जो बढ़ता है एक आत्मा है जो विकसिट होती है अत; शरीर और आध्यात्मिक
दोनों विकास में रहस्यपूर्ण शक्तियों को न तो नष्ट करना चाहिए न अवरुध्द
2 स्वत्रंता का
- बालक का स्वाभविक विकास तबी ही सम्भव है जब उसे अपने आप अपने विचारों व् रूढ़ियो
को अभिव्यक्त करने की स्वत्रन्त्रता दी जाए
3 ज्ञानेन्द्रिय
प्रशिक्षण का - इन्द्रयो को प्रशिक्षित करके बालक का बौध्दिक विकास किया जा
सकता है इसलिए उन्होंने इन्दिर्यो का सार बताया है
4 मांसपेशियों के
प्रशिक्षण का - बालक एक ऐसा मानव है जिसकी मांसपेशियों को प्रशिक्षित करने में
वे क्रियाशील हो जाती है और बालक को लिखने पढ़ने में मदद मिलती है आत्मविश्वास और
निर्भरता के गुण विकसित होते है
5 स्वशिक्षा -
स्वशिक्षा ही वास्तविक शिक्षा है बालक अपने प्रयत्न से ही शिक्षा ले सकता है उसे
ज्ञान प्राप्त की पूर्ण स्वतन्त्रता होनी चाहिए उसमे कोई प्रतिबन्ध न हो
6 व्यक्तित्व
विकास - शिक्षा को बालक का अधिकतम विकास करना चाहिए
7 खेल विधि
द्वारा विकास - खेल ही बालक ज्ञानेंद्र्यो को प्रशिक्षित करते है
8 सामाजिक प्रशिक्षण
का - जब शिशु शिशुगृह में अनेक कार्य अकेले या मिल जुलकर करते है तो उनमे
सहयोग सामंजस्य उतरदायित्व की भावना का विकास होता है
1 कर्मेन्द्रियो की
शिक्षा - मोंटेसरी विद्यालय में 3 से 7 वर्ष की आयु के बालको को शिक्षा दी जाती है
ये बच्चे अपने शारीरिक अंगो का ठीक से इस्तेमाल नहीं कर पाते है जैसे उठाना- बैठना
, घूमना-दौड़ना, मुँह धोना, कपड़े पहनना और उतारना, कमरा साफ़ करना इन कामो में बच्चो
को आनन्द आता है और उनकी कर्मेन्द्रियो का प्रशिक्षण भी हो जाता है
2 ज्ञानेंद्र्यो की
शिक्षा - इन्द्रिय अनुभव ही बालक की शिक्षा का आधार है यह जरूरी है की उनको
इन्द्रिय अनुभव कराया जाए जैसे
1 स्वाद्न्द्रिय
2 घ्रानेंद्रिय
3 स्पर्शेन्द्रीय
4 चक्शुन्द्रिय
पढ़ने लिखने व् गणित
की शिक्षा - मोंटेसरी ने कहा है पढने से ज्यादा लिखने का कार्य सरल ही क्योंकि
लिखने में केवल मांसपेशियों का प्रयोग होता है पढ़ने में स्वर और उच्चारण सबंधी
मानसिक शक्तियों का इसलिए पढ़ने का काम तब शरू नहीं करना चाहिए जब तक बालक लिखना ना
सीख जाए
शिक्षा के लिए उपकरण -
छोटे बड़े आकार के
बेलन व् घन
छोटे बड़े आयताकार
ठोस
लकड़ी का तख्ता
विभिन्न रंगीन लकड़ी
ध्वनी वाली घंटियाँ
भिन्न सुगंध वाली बोतेले
अक्षरों की कटी
आकृतियाँ
फ्लैश कार्ड
भिन्न प्रकार के
चित्र
अंको के कार्ड
गिनती के लिए लकड़ी
के गुटके
फीते और बटन के
फ्रेम
ड्राइंग पोथी व्
रंगीन पेंसिले
कपड़े और रुमाल
बालको को व्यक्तिगत
रूप से प्रशिक्षण देना
बुध्दि के स्थान पर
ज्ञानेन्द्रियों को जागरूक करना
बालक को सामान्य
विकास में क्रियात्मक सहायता देना
प्रारम्भिक अवस्थाओं
में स्पर्श ज्ञान की अवहेलना नहीं होनी चाहिए
जिस व्यायाम का
प्रयोग किया जाए वह बालक के सभी अंगो के विकास में आवश्यक पूर्ती करे
मनोवैज्ञानिक क्षणों
की प्रतीक्षा क्रो जब तक किसी बात की आवश्यकता का अनुभव ना हो कुछ नही सिखाना
चाहिए
कोई जटिल पाठ्यक्रम
नहीं
कोई पारितोषिक नहीं
बालक का स्वयं का विकास ही पारितोषिक है
बालक की भूल- सुधार
शिक्षक की ओर न होकर बालक के आधार पर हो जिसके माध्यम से बालक शिक्षा ले
आत्म शिक्षा पर बल
बालक को पूर्ण स्वत्रन्त्रता
अपने व्यक्तित्व के
उन्मुक्त प्रदर्शन के लिए बालको को स्वतन्त्रता मिलनी चाहिए
भारत में इस शिक्षा का प्रचलन अधिक है क्योंकि
डॉ॰ मांटेसरी ने स्वयं भारत में दस वर्ष तक रहकर इसका प्रचार किया और 1949 में उनके जाने के बाद से उनके व्यक्तिगत प्रतिनिधि उत्साहपूर्वक इस कार्य
में संलग्न हैं। अधिकतर स्कूलों में आवश्यकता, रुचि और समझ
के अनुसार मांटेसरी पाठ्यक्रम में कुछ परिवर्तन और संशोधन किया हुआ पाया जाता है।
आज हर जगह मारिया जी मोंटेसरी शिक्षा बच्चो के लिए प्रसिध्द हो चुकी है
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