बच्चा होता है कोरी स्लेट जो लिखना चाहे लिख ले


              
john dewy 1859 -1952

             जॉन डीवी का जन्म व्लिंग्त्न नामक ग्राम में सन 1859 को हुआ सामाजिक परम्पराओं को तोडकर बी.ए की उपाधि ग्रहण कर उन्होनो मिनसोटा एव शिकागो में अध्यापन कार्य किया इसी समय हापकिंस विद्यालय द्वारा पी.एच.दी की उपाधि से नवाजे गये शिकागो विश्विधालय में दर्शनशास्त्र विभाग में अध्यक्ष के पद पर कार्य करते हुए डीवी ने प्रयोगात्मक विधालय की स्थापना की 
           1904 में कोलम्बिया विश्विद्यालय में दर्शनशास्त्र के प्रोफेसर नियुक्त हुए और अपने जीवन का अधिकाँश समय वही बिताया यही से वे तथा एनी देशो जैसे जापान ,चीन विश्वविधालयो में व्याख्यान देने के लिए आमंत्रित किये गे इस प्रकार डीवी ने अपने नवीन विचारों का जादू फैला दिया था उन्हें महान दार्शानिक माना गया इस महान शिक्षाशास्त्री का 1952 का निधन हो गया

             डीवी अपने विचारों पर अम्ल करते थे और उन्होंने दर्शन और शिक्षा की समस्याओं के हल अपने बालको के साथ खेलते खेलते प्राप्त किये थे उन्होंने अनेक पुस्तके लिखी है

        शिकागो के स्कूल ऑफ एडुकेशन में उनके कार्यों ने लोगो का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया। इन्हीं वर्षों में उन्होंने अपने कार्यों में प्रयोगवादी झुकाव दिखाया जो 1952 में उनकी मृत्यु के समय तक बना रहा। उनका मस्तिष्क अंत तक शिक्षा में किसी भी नये प्रयोग के लिए खुला रहा। स्कूल्स ऑफ टूमॉरो में उनकी रूचि अंत तक बनी रही। 

         डीवी की महानतम रचना डेमोक्रेसी एण्ड एडुकेशन (1916) है जिसमें उन्होंने अपने दर्शन के विभिन्न पक्षों को एक केन्द्र बिन्दु तक पहुँचाया तथा उन सबका एकमात्र उद्देश्य उन्होंने बेहतर पीढ़ी का निर्माण करनारखा है। प्रत्येक प्रगतिशील अध्यापक ने उनका बौद्धिक नेतृत्व स्वीकार किया। अमेरिका का शायद ही कोर्इ विद्यालय हो जो डीवी के विचारो से प्रभावित न हुआ हो। उनका कार्यक्षेत्र वस्तुत: सम्पूर्ण विश्व था। 1919 में उन्होंने जापान का दौरा किया तथा अगले दो वर्ष (मर्इ 1919 से जुलार्इ 1921) चीन में बिताये- जहाँ वे अध्यापकों एवं छात्रों को शिक्षा में सुधार हेतु लगातार सम्बोधित करते रहे। उन्होंने तुर्की की सरकार को राष्ट्रीय विद्यालयों के पुनर्गठन हेतु महत्वपूर्ण सुझाव दिया। इस प्रकार सम्पूर्ण विश्व में प्रगतिशील शिक्षा आन्दोलन को चलाने में डीवी की भूमिका महत्वपूर्ण रही।




डीवी की लिखी किताबे

interest and effert as releated to will 1896
The child and society 1899
Tht child and curriculum 1902
Reltion of theory and practice in the education of teachers 1904
The school and the child 1907
Moral principle in education 1907
How we think 1910
Schools of tommorrow 1915
Democracy and education 1916
Human nature in conduct 1922
Experince and nature 1925
Socurces of a science education 1929
Philosophy and civilation 1931
Education of today 1940


         डीवी शिक्षा को अनिवार्य गति मानते है उनके मतानुसार बिना शिक्षा के समाज प्रगति नही क्र सकता वह यह मानते है बच्चे के स्कूल जाने पर ही शिक्षा का प्रारम्भ होता है शिक्षा तो उसके जन्म से ही प्रारम्भ हो जाती है जीवनभर चलती रहती है शिक्षा जीवन की तैयारी न होकर स्वयं ही जीवन है डीवी के अनुसार शिक्षा जीवन की आवश्यकता है
         डीवी का कहना था की बच्चा कोरी स्लेट जैसा होता उस ओर हम जो लिखना चाहते है लिख सकते है

डीवी की शिक्षा के उद्देश्य


डीवी शिक्षा के किसी भी पूर्व निश्चित उद्देश्य का समर्थन नही करते बल्कि वे परिस्थियों ,समस्याओं,सिध्द्दान्तो के परिवर्तन के साथ शिक्षा के उद्देश्यों पर जोर देते है Ι
शिक्षा का सदैव तात्कालिक उद्देश्य होता है
डीवी का विचार है बालको को उन्ही अनुभवों को प्राप्त करने का अवसर देना चाहिए जो उनके विकास के लिए सबसे उपयुक्त हो Ι
वातावारण के साथ समायोजन होना चाहिए Ι
बालक के मन को गतिशील एव लचीला बनाना चाहिए ताकि वह परिस्थतियो एव कठिनाइयो का धैर्य एव साहसपूर्ण ढ़ंग से समाना कर सके Ι
शिक्षा का उद्देश्य समाजिक कुशलता होना चाहिए Ι
व्यक्ति के विकास पर समाज का विकास आधारित है Ι
बालको की व्यक्तिगत रुचियों एव योग्यताओं के आधार पर शिक्षा दी जाए Ι
बालको में नैतिक विकास का साधन क्रियाशीलता है Ι
शिक्षालयो में हस्तकला समबन्धी विषयों को प्रमुख स्थान देना चाहिए Ι
खेल, रचना , वस्तुओ का प्रयोग , प्रकृति निरीक्षण शिक्षा के प्रमुख उपकरण होΙ

शिक्षा का प्रमुख कार्य बालक को एसा वातावरण देना है जिससे वह समाजिक जागृति में अपना योगदान दे सके Ι














विधालय में सामजिक अनुशासन पर बल दे
उनके अनुसार शिक्षा का उद्देश्य व्यक्ति में निहित उन सभी क्षमताओं का विकास करना है जो उसे अपने वातावरण पर नियंत्रण करने में सक्षम बनाएंगी. Ι
विद्यालय का वातावरण ऐसा हो जैसा घर का होता है ताकि बालक घर का आनन्द लेते हुए कार्य रूचि के साथ कर सके Ι
बालको जीविकाओर्जन की शिक्षा दी जाए इससे वे अपनी आवश्यकताओ को पूरा क्र सके Ι
स्कूल में सामूहिक क्रिया कराई जाए ताकि समाजिक भावना का विकास हो Ι
शिक्षा का सर्वोच्च लक्ष्य प्रजातांत्रिक शासन के लिए योग्य एव कुशल शासक तैयार करना है Ι
शिक्षा का प्रमुख कार्य बालको को सामजिक एव जनतांत्रिक जीवन के अनुरूप बनाना है Ι
डीवी के अनुसार विद्यालय एक समाजिक संस्था है और शिक्षा सामाजिक प्रक्रिया है Ι
शिक्षा अनुभवो का सतत पुनिर्माण है Ι
स्कूल में उधोगो के माध्यम से शिक्षा देना चाहिए लकड़ी का काम , लोहे का काम ,मिट्टी का , रसोई का ,सीना पिरोना आदि Ι


         जॉन डिवी क्रांतिकारी शिक्षाशास्त्री थे क्योंकि उन्होंने कल की चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए शिक्षा देने पर जोर दिया। इसके साथ ही यह भी माना कि स्कूल छोड़ने का तात्यपर्य शिक्षा की प्रक्रिया का पूर्ण हो जाना नहीं है। शिक्षा एक अनवरत चलने वाली प्रक्रिया है। इसलिए यह स्वाभाविक ही लगता है कि डिवी ने सैद्धांतिक या किताबी शिक्षा की बजाय व्यावहारिक शिक्षा पर अधिक ज़ोर दिया। इससे शिक्षार्थी परिवेश की चुनौतियों का सामना करने                                            में अधिक समर्थ हो सकता है।
         स्कूल को एक छोटे-मोटे वर्कशॉप की तरह काम करना चाहिए। ताकि समाज की आवश्यकताओं और प्रक्रिया में शिक्षार्थी का प्रशिक्षण हो सके और स्कूल छोड़ने के बाद भी वह अफनी जानकारी और अनुभवों को बढ़ाता रह सके।
      
          डिवी बच्चे को पूरी शैक्षिक प्रक्रिया का हृद्य(केंद्र) मानते थे. उनका मानना था कि बच्चों की शिक्षा उनकी क्षमताओं, रुचि और आदतों की मनोवैज्ञानिक समझ के साथ शुरू होनी चाहिए. हालांकि बच्चे की अपनी रुचियां और प्रवृत्तियां तभी उपयोगी और महत्वपूर्ण हो सकती हैं जब वे सामाजिक रूप से उपयोगी बन जाएं
.
               अपने आदर्श स्कूल के बारे में डिवी का मानना था कि यह एक ऐसी जगह होगी जो बच्चों का उनके घर से अलग नहीं करेगा. इसकी बजाय यह उन गतिविधियों को संरक्षित करेगा, जारी रखेगा और उन गतिविधियों को फिर से करने का मौका देगा जिनसे बच्चे परिचित हैं. उनकी मान्यता थी स्कूल परिवार का विस्तार होना चाहिए











1 टिप्पणियाँ:

शरद कोकास ने कहा…

बढिया लिखा है ब्लैक अक्षरों में लिखो

एक टिप्पणी भेजें