पत्नियाँ भी करती है पति की पिटाई


        परिवार के निकट सम्बन्धियों के बीच होने वाली हिंसा को घरेलू हिंसा कहते हैं । पिता तथा माता के बीच , भाई तथा बहनों के बीच , भाई तथा भाई के बीच , होने वाली हिंसक घटनाएं पारिवारिक हिंसा के उदाहरण है । पति तथा पत्नी के बीच हिंसक घटनाएं देखी जाती है ।

        किसी उत्तेजक घटना के कारण व्यक्ति अपने संवेगों पर नियंत्रण खो बैठता है औऱ परिवार के सदस्य जैसे पत्नी , बच्चे या अन्य सदस्यों के साथ शारिरिक हिंसा पर उतर आता है । यहां तक कि पिता अपनी पत्नी अपने पति  , बेटीबेटे की हत्या तक कर देता है । बेटों के हाथों पितामाता की हत्या कर दी जाती है ।










       बेरोन तथा बीन ने बताया कि निकट सम्बन्धियों के बीच हिंसक घटनाएँ हमारी अपेक्षा से अधिक घटती है ।
       पारिवारिक हिंसा या घरेलू हिंसा तब घटित होती है जबकि परिवार का एक सदस्य , भागीदार अथवा पूर्व भागीदार शारिरिक रूप से या मनोवैज्ञानिक रूप से परिवार के अन्य सदस्यों को अधिकार में रखने या उन पर शासन करने का प्रयास करता है । इसी तरह घरेलू हिंसा का अर्थ पत्नी को मारना , पत्नी पर प्रहार करना , , पुरूष को मारना , पति को मारना पति पर प्रहार करना  पति-पत्नी के साथ दुर्व्यवहार आदि ।


       आधुनिक मनोवैज्ञानिकों का ध्यान महिलाओं की ओर उनके पतियों द्वारा किये जाने वाले हिंसक व्यवहारों की ओर अधिक हो चला है। इस तरह घरेलू हिंसा का मुख्य आकर्षण केंद महिलाओं के साथ होने वाले हिंसक व्यवहार बना हुआ है । पुरुषों के विरुद्ध हिंसा की अपेक्षा महिलाओं के विरुद्ध हिंसा के क्षेत्र में अधिक अनुसन्धान हुए हैं और आज भी हो रहे हैं ।


घरेलू हिंसा के कारण 
  • अधिकार एवं नियंत्रण की आवश्यकता - व्यक्ति अपने अधिकार तथा नियंत्रण की आवश्यकता को पूरा करने के लिए अपने यौन संगी , मासूम बच्चे , परिवार के सदस्यों के साथ हिंसक व्यवहार करता है।
  • निम्न स्वाभिमान- जो व्यक्ति निम्न स्वाभिमान से पीड़ित रहता है वह अपनी पत्नी , बच्चे अन्य सदस्य के साथ अनुचित व्यवहार करता है ।
  • विपरीत लिंग के प्रति बैर- विपरीत लिंग के प्रति पुरूष तथा स्त्री के बीच विद्वेष का भाव है तो पुरूष स्त्री के साथ हिंसक व्यवहार करता है ।
  • मानवद्वेषी व्यक्त्वि विकृतियां - कुछ पुरूष मानवद्वेषी व्यक्त्वि विकृति से पीड़ित होते हैं इस कारण वे अपनी पत्नी , लड़की या अन्य सदस्य के साथ हिंसक व्यवहार करते हैं । महिलाएं पति , लड़के व अन्य सदस्यों के साथ करती है।
  • सामाजिक सांस्कृतिक कारक - जिस समाज एवं संस्कृति में हिंसक व्यवहार प्रायः होते रहते हैं उस समाज के बच्चे हिंसक व्यवहार सीख लेते हैं वयस्क होने पर वे हिंसक व्यवहार करते हैं ।
  • जैविक कारक - जिन बच्चों के माता पिता हिंसक प्रवृत्तियों से पीड़ित होते हैं बच्चों में भी यह प्रवृत्ति विकसित हो जाती है वे भी अपने माता पिता के साथ हिंसक व्यवहार करने पर मजबूर हो जाते हैं ।
  • पदार्थ दुरुपयोग - हिंसा का एक कारण ड्रग्स लेना है नशे की हालत में पुरूष ज्यादा हिंसक व्यवहार करता है विशेष यौन व्यवहार ।
  • गरीबी - गरीबों के मनोरंजन का एक मात्र सुलभ साधन मैथुन है इसलिए पुरूष अपनी पत्नी के साथ यौन की संतुष्टि में बाधा होने पर हिंसक व्यवहार करता है ।
  • मानसिक रोग - मानसिक रोग से पीड़ित पुरूष/महिला अपने यौन साथीबच्चों के साथ अनुचित व्यवहार करते हैं ।


उपचारी उपाय -
  • महिला संरक्षण अधिनियम 2005 - घरेलू हिंसा औऱ विशेष रूप से महिलाओं के साथ होने वाले हिंसक व्यवहारों को नियंत्रित करने के लिए महिला संरक्षण अधिनियम का उपयोग किया जा सकता है पीड़ित महिला मजिस्ट्रेट के पास सम्बद्ध हिंसा की सूचना अदालत से सम्बद्ध पदाधिकारी को देती है निर्धारित आवश्यकताओं को पूरा करने के बाद पीड़ित महिला के संरक्षण की व्यवस्था की जाती है ।
  • महिला सशक्तिकरण - घरेलू हिंसा औऱ हिंसक व्यवहारों की रोकथाम के लिए महिला सशक्तिकरण को प्रोत्साहित किया जाना बहुत आवश्यक है ऐसी व्यवस्था करना की महिला अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए स्वयं आत्मनिर्भर हो वे सशक्त बनेगी तो पुरुष द्वारा हिंसक व्यवहार का सामना करके हिंसक व्यवहार से मुक्त हो सकती है। 
  • शिक्षा पर बल - स्त्री शिक्षा पर बल दिया जाना चाहिए भारतीय समाज में एक लंबे समय से महिलाओं को शिक्षा देने की परंपरा कुंठित रही है जिस कारण महिला बहुत सी हिंसा की शिकार हो रही है यह अंधविश्वास सदियों से प्रचलित रहा है महिलाएं घर के लिए पुरूष घर से बाहर के लिए होते हैं लेकिन अब यह धारणा कमजोर हो चली है अब यह विश्वास हो रहा है कि महिलाओं के लिए शिक्षा उतनी जरूरी है जितनी पुरुषों के लिए अतः महिला शिक्षा को प्रोत्साहन देकर उनके साथ हो रहे हिंसक व्यवहार को रोका जा सकता है।
  •  व्यवसायिक निर्देशन-  महिलाओं को व्यवसाय तथा नौकरी के प्रति अभिमुखी बनाना है उनकी बौद्धिक योग्यता , अभिरुचि , शैक्षिक योग्यता तथा आवश्यकता के अनुकूल व्यवसाय या नौकरी से युक्त हो जाने पर वे सामाजिक तथा आर्थिक दृष्टि से सशक्त बन सकती है साथ हो रही हिंसक व्यवहार समाप्त हो सकते हैं । 
  • धार्मिक हस्तक्षेप- घरेलू हिंसा की रोकथाम के लिए धार्मिक विश्वासों में परिवर्तन लाना आवश्यक है । 
  • दहेज परम्परा की समाप्ति - वर्तमान समय मे दहेज पंरपरा के कारण महिलाओं के साथ हिंसक घटनाएं होती है मनचाहा दहेज न मिलने पर स्त्री को मारा पीटा , शारिरिक दुरुपयोगकभी कभी हत्या भी कर दी जाती है । इनकी रोकथाम के लिए सरकार , समाज के सुधारक इस दिशा में आवश्यक कदम उठाए ताकि हिंसा का यह सबल स्रोत विलोपित हो सके ।
  •  मनोवृत्ति में परिवर्तन - पुरूष तथा महिला अपनी मनोवृत्ति में परिवर्तन लाएं दोनों एक दूसरे के प्रति सामानता का भाव रखे इससे पुरूष को श्रेष्ठता के भाव से मुक्ति मिल जाएगी महिलाओं को हीनता की भावना से इस तरह की सामानता से हिसा को रोका जा सकता है  


घरेलू हिंसा से महिला संरक्षण अधिनियम, 2005


घरेलू हिंसा से महिला संरक्षण अधिनियम, 2005भारत की संसद द्वारा पारित एक अधिनियम है जिसका उद्देश्य घरेलू हिंसा से महिलाओं को बचाना है। यह २६ अक्टूबर २००६ को लागू हुई। इसके अंतर्गट विभिन्न धाराएं बनाई गई है - 


धारा 4

घरेलू हिंसा किया जा चुका हो या किया जाने वाला है या किया जा रहा है , की सूचना कोई भी व्यक्ति संरक्षण अधिकरी को दे सकता है जिसके लिए सूचना देने वाले पर किसी प्रकार की जिम्मेदारी नहीं तय की जाएगी। पीड़ित के रूप में आप इस कानून के तहत 'संरक्षण अधिकारीया 'सेवा प्रदातासे संपर्क कर सकती हैं।

धारा 5

यदि धरेलू हिंसा की कोई सूचना किसी पुलिस अधिकारी या संरक्षण अधिकारी या मजिस्ट्रेट को दी गयी है तो उनके द्वारा पीड़िता को जानकारी देनी होगी किः-

(क) उसे संरक्षण आदेश पाने का(ख) सेवा प्रदाता की सेवा उपलब्धता(ग) संरक्षण अधिकारी की सेवा की उपलब्धता(घ) मुफ्त विधिक सहायता प्राप्त करने का(ङ) परिवाद-पत्र दाखिल करने का अधिकार प्राप्त है। पर संज्ञेय अपराध के लिए पुलिस को कार्रवाई करने से यह प्रावधान नहीं रोकता है।

धारा 10

सेवा प्रदाताजो नियमतः निबंधित होवह भी मजिस्ट्रेट या संरक्षा अधिकारी को घरेलू हिंसा की सूचना दे सकता है।

धारा 12

पीड़िता या संरक्षण अधिकारी या अन्य कोई घरेलू हिंसा के बारे में या मुआवजा या नुकासान के लिए मजिस्ट्रेट को आवेदन दे सकता है। इसकी सुनवाई तिथि तीन दिनों के अन्दर की निर्धारित होगी एवं निष्पादन 60 दिनों के अन्दर होगा।

धारा 14

मजिस्ट्रेट पीड़िता को सेवा प्रदात्ता से परामर्श लेने का निदेश दे सकेगा।

धारा 16

पक्षकार ऐसी इच्छा करें तो कार्यवाही बंद कमरे में हो सकेगी।

धारा 17 तथा 18

पीड़िता को साझी गृहस्थी में निवास करने का अधिकार होगा और कानूनी प्रक्रिया के अतिरिक्त उसका निष्कासन नहीं किया जा सकेगा। उसके पक्ष में संरक्षण आदेश पारित किया जा सकेगा।

धारा 19

पीड़िता को और उसके संतान को संरक्षण प्रदान करते हुए संरक्षण देने का स्थानीय थाना को निदेश देने के साथ निवास आदेश एवं किसी तरह के भुगतान के संबंध में भी आदेश पारित किया जा सकेगा और सम्पत्ति का कब्जा वापस करने का भी आदेश दिया जा सकेगा।

धारा 20 तथा 22

वित्तीय अनुतोष- पीड़िता या उसके संतान को घरेलू हिंसा के बाद किये गये खर्च एवं हानि की पूर्ति के लिए मजिस्ट्रेट निदेश दे सकेगा तथा भरण-पोषण का भी आदेश दे सकेगा एवं प्रतिकर आदेश भी दिया जा सकता है।

धारा 21

अभिरक्षा आदेश संतान के संबंध में दे सकेगा या संतान से भेंट करने का भी आदेश मैजिस्ट्रेट दे सकेगा।

धारा 24

पक्षकारों को आदेश की प्रति निःशुल्क न्यायालय द्वारा दिया जाएगा।