महाराणा प्रताप उदयपुर, मेवाड में शिशोदिया राजवंश के राजा
थे। राजपूतों की सर्वोच्चता एवं स्वतं के प्रति दृणसंक्लपवान वीर शासक एव महान देशभक्त महाराणा
प्रताप का नाम इतिहास के पन्नों पर स्वर्ण अक्षरों में अंकित है महाराणा प्रताप
अपने युग के महान व्यक्ति थे उनके गुणों का सभी लोग सम्मान करते थे ज्येष्ठ शुक्ल
तीज सम्वत (9 मई ) १५४० को राजस्थान के कुम्भलगढ़ के राजा उदय सिंह और माता राणी जैवन्ताबाई कंवर के घर में जन्मे ज्येष्ठ पुत्र महाराणा प्रताप को उनके बचपन से ही
अच्छे संस्कार , अस्त्र , शस्त्रों का ज्ञान और अपने धर्म की रक्षा किस तरह करना
है की प्रेरणा अपने माता पिता से मिली Ι २५,००० राजपूतों को १२ साल तक चले उतना अनुदान देकर
भामा शाह भी अमर हुआ। शत्रु सेना से घिर चुके महाराणा प्रताप को झाला मानसिंह ने
आपने प्राण दे कर बचाया ओर महाराणा को युद्ध भूमि छोड़ने के लिए बोला। शक्ति सिंह
ने आपना अशव दे कर महाराणा को बचाया। प्रिय अश्व चेतक की भी मृत्यु हुई। यह
युद्ध तो केवल एक दिन चला परन्तु इसमें १७,००० लोग मारे गएँ।
मेवाड़ को जीतने के लिये अकबर ने सभी प्रयास किये। महाराणा की हालत दिन-प्रतिदिन
चिंतीत हुई।
सादा जीवन जीने वाले और
स्वभाव से दयालु महाराणा प्रताप की वीरता और स्वाभिमान और देशभक्ति की भावना से
अकबर भी भुत प्रभावित हुए थे जब मेवाड़ की सत्ता राणा प्रताप ने सम्भाली तब आधा
मेवाड़ मुगलों के अधीन था और शेष मेवाड़ पर शासन स्थापित करने के लिए अकबर प्रयासित
थे Ι
राजस्थान के कई परिवार अकबर
की शक्ति के आगे घुटने टेक चुके थे , किन्तु महाराणा प्रताप अपने वंश को बनाये
रखने के लिए अपना संघर्ष जारी रखा और अकबर के सामने अपना आत्मसमर्पण नहीं किया
जंगल - जंगल भटकते हुए तृण - मूल और घास - पाट की रोटियों में गुजर -बसर कर अपनी
पत्नी और बच्चे को विकराल परिस्थितियों में अपने साथ रखते हुए भी उन्होंने अपना
धैर्य नहीं खोने दिया पैसे के अभाव में सेना के टूटते हुए मनोबल को पुन: जीवित
करने के लिए दानवीर भाभाशाह ने अपना पूरा खजाना समर्पित कर दिया तो भी महाराणा
प्रताप ने कहा सैन्य आवश्यकताओं के अलावा मुझे आपके खजाने की एक पाई भी नहीं चाहिए
Ι
अकबर के अनुसार - महाराणा प्रताप के पास साधन सीमित थे किन्तु फिर वो झुका
नहीं , डरा नहीं
वीर सपूत महाराणा प्रताप |
हल्दीघाटी युद्ध
इतिहास का सबसे बड़ा युद्ध था इसमें मुगलों और राजपूतों के बीच घमासान गा था
राजपूतों ने प्रताप का साथ छोड़कर अकबर की अधीनता स्वीकार की थी हल्दीघाटी की युद्द
18 जून 1576 को हुआ था यह युद्ध इतिहास के पन्नो में
महाराणा प्रताप के वीरता के लिए जाना जाता है महज 20000 सैनिको
को लेकर महाराणा प्रताप ने मुगलों के 80000 सैनिको का मुकबला
किया जो की अपने आप में अद्वितीय और अनोखा है Ι
इस युद्ध में मुगल सेना
का संचालन मानसिंह और आसफ खां ने किया था जबकि मेवाड़ के सैनिको का संचालन खुद
महाराणा प्रताप और हाकिम खान सूरी ने किया था इतिहासकारों की दृष्टि से देखा जाय
तो इस युद्ध का कोई नतीजा नही निकलता दिखाई पड़ता है लेकिन महाराणा प्रताप के वीरता
के मुट्ठी भर सैनिक, मुगलों के विशाल सेना के छक्के छुड़ा दिए थे और फिर फिर जान बचाने के लिए
मुगल सेना मैदान छोड़ कर भागने भी लगी थी इस युद्ध की सबसे बड़ी यही खासियत थी की
दोनों सेना का आमने सामने लडाई हुई थी जिसमे प्रत्यक्ष रूप से महाराणा प्रताप की
विजय मानी जाती है Ι
अकबर और महाराणा प्रताप |
महाराणा प्रताप का हल्दीघाटी
के युद्ध के बाद का समय पहाड़ो और जंगलो में व्यतीत हुआ अपने पर्वतीय युद्ध नीति के
द्वारा उन्होंने अकबर को कई बार मात दी यद्दपि जंगलो और पहाड़ो में रहते हुए
महाराणा प्रताप को कई कष्टों का सामना करना पड़ा , पर उन्होंने अपनों आदर्शो को
नहीं छोड़ा महाराणा प्रताप के मजबूत इरादों ने अकबर के सेनानायकों के सभी प्रयासों
लो नाकाम बना दिया उनके धैर्य और साहस का ही असर था की 30 वर्ष के लगातार प्यास के
बावजूद अकबर महाराणा प्रताप को बंदी नहीं बना पाया महाराणा प्रताप का सबसे प्रिय
घोड़ा 'चेतक' था जिसने उनकी अंतिम सांस तक अपने स्वामी का साथ दिया था Ι
हल्दीघाटी के युद्ध में उन्हें भले हार का
सामना करना पड़ा पर हल्दीघाटी के बाद अपनी शक्ति को संगठित करके शत्रु को फिर से
चुनौती देना प्रताप की युद्द नीति का एक अंग था महाराणा प्रताप ने भीलों की शक्ति
को पहचान कर अचानक धावा बोलने की कारवाई को समझा और छापामार युद्द पद्दति से अनेक
बार मुगल सेना की कठिनाइयों में डाला था महाराणा प्रताप ने अपनी स्वतन्त्रता का
संघर्ष उन्होंने जीवनभर जारी रखा था अपने शौर्य , उदारता और अच्छे गुणों से
जनसमुदाय में प्रिय थे महाराणा प्रताप सच्चे योद्द्धा थे उन्होंने अमरसिंह द्वारा
पकड़ी गई बेगमों को सम्मान पूर्वक वापस भिजवाकर अपनी विशाल ह्दय का परिचय दिया Ι
महाराणा
प्रताप को स्थापत्य , कला , भाषा और साहित्य से लगाव था वे स्वय विद्वान और कवि थे
उनके shaasn में अनल विद्वानों और साहित्यकारों को आश्रय प्राप्त था अपने शासनकाल
में उन्होंने युद्ध में उजड़े गाँवों को पुन: व्यवस्थित किया नवीन राजधानी चावण्ड
को और अधिक आकर्षक बनाने का श्रेय महाराणा प्रताप को जाता है राजधानी के भवनों पर
कुम्भाकालीन स्थापत्य की अमित छाप देखने को मिलती है पद्मिनी
चरित्र की रचना और दुरसा आढा की कविताएँ महाराणा प्रताप के युग को आज भी अम्र
बनाये हुए है Ι
महाराणा प्रताप में अच्छे सेनानायक के गुणों
के साथ-साथ अच्छे व्यवस्थापक की विशेषताएं भी थी अपने सीमित साधनों से ही अकबर
जैसी शक्ति से दीर्घ काल तक टक्कर लेने वाले वीर महाराणा प्रताप की मृत्यु पर अकबर
पर भी दुखी हुआ था अकबर की उच्च महत्वकांक्षा ,शासन निपुणता और असीम साधन जैसी
भावनाएं भी महाराणा प्रताप की आदमी वीरता, दृणसाहस
और उज्ज्वल कीर्ति को परास्त न कर सकी आखिरकार शिकार के दौरान लगी चोटों की वजह से
महाराणा प्रताप की मृत्यु 29 जनवरी 1597 को चावंड में हुई Ι
महाराणा प्रताप सिंह के डर से अकबर अपनी राजधानी लहौर लेकर चला गया और महाराणा के स्वर्ग सीधरने के बाद अगरा ले आया।
'एक सच्चे राजपूत,
शूरवीर, देशभक्त, योद्धा, मातृभूमि के रखवाले के रूप में महाराणा प्रताप दुनिया में सदैव के लिए अमर हो गए।
आज भी महाराणा प्रताप का नाम असंख्य भारतीयों
के लिए प्रेरणा स्त्रोत है राणा प्रताप का स्वाभिमान भारत माता की पूंजी है वः सजर
अमरता के गौरव और मानवता के विजय सूर्य है राणा प्रताप की देशभक्ति , पत्थर की अमित
लकीर है ऐसे पराक्रमी भारत मां के वीर सपूत महाराणा प्रताप को शत-शत नमन Ι
5 टिप्पणियाँ:
बहुत अच्छी प्रस्तुति ।
बहुत अच्छी प्रस्तुति ।
बढ़िया लेख
धन्यवाद सुधाकल्प जी
धन्यवाद ओंकार जी
एक टिप्पणी भेजें