महान
हास्य कलाकार चार्ली चैपलीन
जर्मनी में जब हिटलर की तानाशाही से सभी खौफजदा थे तब उस दौर में एक
कलाकार लोगों में व्याप्त डर को मिटाकर उनमें सुंदर कल्पना को साकार करने निकल पङा
था। राह आसान नही थी पर हौसला बुलंद था। गरीबी और बदहाली की भट्टी में पक कर वो कुंदन बना चुका था। जिसकी चमक ने करोङों लोगों के
चेहरों पर मुस्कान बिखेर दी। ऐसे हास्य महानायक का जन्म आज से 125 वर्ष पूर्व हुआ था और आज भी
उनकी फिल्में पूरे विश्व को हँसा रही हैं। वो कोई और नहीं बल्कि हम सबका प्रिय
हास्य कलाकार चार्ली चैप्लिन है। वर्ष 2014 में पूरी दुनिया चार्ली चैप्लिन की 125वीं जयंती मना रही है।
चार्ली ने लोगों को सिखाया कि मखौल को खौफ के खिलाफ बतौर हथियार कैसे इस्तेमाल
किया जाता है। चार्ली ने लोगों के दिमाग में घर कर गए डर को मिटाकर उनमें बेहतर
भविष्य की उम्मीदें भरी।
ऐसे
हास्य महानायक का जन्म 16 अप्रैल 1889 को लंदन
में हुआ था। माँ हैना चैप्लिन और पिता चार्ल्स स्पेंसर चैप्लिन, सीनियर म्युजिक हॉल में
गाते और अभिनय करते थे। शुरुवात के तीन वर्षों को छोङकर चार्ली का बचपन बहुत ही
मुश्किलों से गुजरा था। एक बार जब माँ गाना गा रही थी तभी उसकी आवाज बंद हो गई वो
स्टेज पर गाना न गा सकी। बाहर बैठे दर्शक जोर-जोर चिल्लाने लगे, ऐसे में मैनेजर ने लगभग
पाँच साल के चार्ली को स्टेज पर खाङा कर दिया। इस प्रकार पहली बार चार्ली दर्शकों
से मुखातिब हुआ। उसने अपनी भोली आवाज में माँ के गाने की नकल की जिसे दर्शकों ने
खूब सराहा और स्टेज पर सिक्कों की बारिश होने लगी। यही चार्ली की पहली कमाई थी।
शायद तभी चार्ली के बाल मन ने हास्य के उस सिद्धान्त को गढ लिया था कि असल में जो
बातें दुःख का कारण होती हैं वो नाट्य या फिल्म में हास्य का कारण बनती हैं। यही
वजह है कि आगे चलकर चार्ली की फिल्मों में दुःख, दरिद्रता, अकेलापन तथा बेरोजगारी का चित्रण किया गया है।
माता-पिता
के अलग हो जाने से चार्ली का बचपन बहुत मुश्किलों में गुजरा। गरीबी और बदहाली की
वजह से चार्ली को अपनी माँ और भाई के साथ यतीमखाने में भी रहना पङा था। माँ के
पागल हो जाने की वजह से उसे एंव उसके भाई को कोर्ट के आदेशानुसार पिता चार्ल्स
स्पेंसर चैप्लिन के साथ रहना पङा,
जहाँ उसे सौतीली माँ की प्रताङना भी सहनी पङी। जब पागलखाने से माँ
ठीक होकर वापस आई तो जीवन में माँ के लौटने से खुशियाँ वापस आने लगी थी। स्कूल
जाना भी नियमित हुआ किन्तु चार्ली का मन पढ़ाई में नही लगता था। चार्ली की अदाकारी
को सही आकार जैक्सन से मिलने के बाद मिला। जैक्सन भले आदमी होने के साथ-साथ
रंगमंचीय कला के पारखी थे। एक बार उन्होने चार्ली को द ओल्ड क्यूरोसिटी शॉप नाटक
में बुढे का रोल करते देखा था,
तभी पहचान लिया था कि चार्ली में अभूतपूर्व क्षमता है। रोजगार मिल
जाने से चार्ली के जीवन की गाङी थोङी पटरी पर आ गई थी। परंतु अभी भी जीवन मझधार
में हिलोरे ले रहा था। रोजमर्रा के जीवन संर्घषों से जूझने के लिये चार्ली तरह-तरह
के कामों में किस्मत आजमाता रहा। लेकिन उसके जीवन का लक्ष्य अभिनेता बनना था
इसलिये वो नियमित रूप से ब्लैक मोर थियेटर जाता रहता था। वहाँ पर कार्यरत क्लर्क
के माध्यम से चार्ली को ई हैमिल्टन से मिलने का मौका मिला, उसके बाद तो चार्ली की
जिंदगी का काया-कल्प ही हो गया। चार्ली को पढना नही आता था, तो उसे उसके संवाद रटवाये
जाते थे। शरलॉक होम्स नाटक में भूमिका करके चार्ली ने कई महीनो तक धूम मचाई।
हालांकी इसके बाद भी कुछ समय तक चार्ली का जीवन गर्दिश में गुजरा। कुछ समय खाली
रहने के बाद चार्ली ने फोरेस्टर म्युजिक हॉल में एक ट्रॉयल परफॉर्मेंस की योजना
बनाई, हालांकि
फोरेस्टर की निराशा के बावजूद कार्नों के पहले ट्रायल शो ने चार्ली के उत्साह को
बुलंद किया।
19 वर्ष की उम्र में चार्ली और उसके भाई की माली हालत
अच्छी हो गई थी। चार्ली अपनी ज्यादातर फिल्मों में ट्रैप नामक किरदार का चित्रण
करते थे, जो चार्ली का अपना ही अतीत था। दुबले, ठिगने और फटेहाल ट्रैंप की मुफलिसी और बेफिक्री ने फिल्मी दर्शकों को खूब
हँसाया। आज भी चार्ली का जादू कायम है। ट्रैप के बहाने चार्ली ने पुराने मानकों को
तोङते हुए एक ऐसे सौंदर्यबोध को गढने की कोशिश की जिसमें गरीबी और अभाव में भी
खुशमिजाजी है। चार्ली ने अपने जीवन के संघर्षों से एक ऐसा नजरिया हासिल कर लिया था,
जिससे वह अपनी फिल्मों में मेहनतकश आवाम की भावनाओं को बुलंदी के
साथ जाहिर करता था। चार्ली की सफलता का राज अभिनय की एक अनोखी शैली को विकसित करना
था।
चार्ली की पहली बोलती फिल्म द ग्रेट डिक्टेटर में उसका संवाद था, “हैना, जहाँ कहीं भी तुम हो, यहाँ देखो। धूप पसर रही है। अँधियारे से निकलकर हम लोग प्रकाश में आ रहे हैं। हम लोग अपनी नफरत, अपनी हवस और वहशत से ऊपर उठेंगे। देखो हैना! इंसानी रुह को पंख लग गये हैं और आखिरकार उसने उङान भरना शुरु कर दिया है। वह इन्द्रधनुष में उङ रहा है…उम्मीदों के उजाले में…भविष्य की ओर…महान भविष्य की ओर, जो कि तुम्हारा है, मेरा है और हम सबका है।“
चर्ली के ये शब्द भले ही हैना के लिये कहे गये हों, परंतु इन शब्दों को पुरी
दुनिया ने बङे ध्यान से सुना था। इतिहास साक्षी है कि, उस दौर में पुरा युरोप
आर्थिक महामंदी की तबाही से गुजर रहा था। चारो ओर तानाशाहों का आतंक था। ऐसे में
चार्ली के पास हिटलर के नाजीवाद से लङने के लिये हास्य और व्यंग के हथियार
थे। चार्ली ने लोगों को सिखाया कि हास्य को डर के खिलाफ हथियार कैसे बनाया जा सकता
है। इस तानाशाही दौर में चार्ली के संवाद, दृश्य और पटकथा, मानवीय
हितों की रक्षा की ढाल बनकर सामने आये।
चार्ली के जीवन में एक ऐसा दौरा भी आया जब वह सभाओं-गोष्ठियों में
वामपंथी पक्ष लेते हुए दिखता था। प्रेस ने चार्ली पर रूसी एंजेंट होने का आरोप
मढा। चार्ली के जीवन में दस सालों का एक ऐसा कालखंड रहा, जिसमें अमेरिकी सरकार और
मिडिया हमेशा चार्ली के लिये आफत का कारण रही। चार्ली की फिल्म लाइमलाइट 1952 में
रिलीज हुई लेकिन उसे अमेरीका में प्रतिबंधित कर दिया गया। अमेरिका से चार्ली को
बहुत लगाव था इसिलिये वह अपने वतन इंग्लैंड से भी दूर गया किन्तु अमेरिका की
बेरुखी ने उसे अंदर तक हिला दिया था। उसकी पत्नी ऊना ओनिल ने भी अमेरिका की
नागरिकता को छोङ दिया और चार्ली के साथ लंदन चली आई परंतु वहाँ सही घर न मिलने की
वजह से वे लोग स्विट्जर लैंड में जाकर रहने लगे। यहीं पर चार्ली की मुलाकात
जवाहरलाल नेहरु और इंदिरा गाँधी से हुई थी। उस समय नेहरु जी भारत के प्रधानमंत्री
थे।
चार्ली ने
अपनी आत्मकथा में लिखा है कि वह गाँधी जी की राजनीतिक स्पष्टवादिता और मजबूत मनोबल
का सदा कायल रहा। एक बार चर्चिल से मुलाकात के दौरान चार्ली ने गाँधी जी से मिलने
की इच्छा जाहिर की थी। संजोगवश उस समय गाँधी जी गोलमेज सम्मेलन हेतु लंदन में ही
थे। लंदन में गाँधी जी से चार्ली की मुलाकात बहुत रोमांचक रही। गाँधी जी
झोपङ-पट्टी इलाके में डेरा डाले हुए थे, चार्ली उनसे मिलने वहीं पहुँचे। मुलाकात के दौरान भारत में आजादी के
लिये हो रहे आंदोलनो पर चार्ली ने गाँधी जी से अपने नैतिक सर्मथन को स्पष्ट किया।
साक्ष्य बताते हैं कि दोनो के बीच काफी देर तक राजनितिक विषय पर बातचीत चली। ये
वाक्या 1931 का है, इसी दौरान चार्ली की
मुलाकात बर्नार्ड शॉ, एच.जी.वेल्स, श्रीमती एस्टर और
प्रधानमंत्री मैकडोनाल्ड से भी हुई। 1931 में चार्ली दस वर्षों बाद अपने वतन लंदन आया था, अवसर था सिटी लाइट फिल्म का
मुहर्त शो इस उपलक्ष्य पर उसका भव्य स्वागत हुआ था।
चार्ली को जीवन में अनेक पुरस्कारों से भी सम्मानित किया गया था। 1929 में
अकादमी मानद पुरस्कार द सर्कस के लिये दिया गया। 1972 में लाइफ टाइम अकादमी
पुरस्कार से अलंकृत किया गया। 1952
में सर्वोत्तम ओरिजनल म्युजिक स्कोर पुरस्कार लाइमलाइट के लिये
प्राप्त हुआ। 1940 में द
ग्रेट डिक्टेटर में किये अभिनय के लिये सर्वोत्तम अभिनेता पुरस्कार, न्यूयॉर्क फिल्म क्रिटिक
सर्कल अवार्ड से सम्मानित किया गया। 1972 में करिअर गोल्डन लायन लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार
से सम्मानित किया गया।
चार्ली की प्रसिद्धी का आलम ये है कि, वर्ष 1995 में ऑस्कर अवार्ड के दौरान द गार्जियन अखबार ने एक
सर्वेक्षण करके ये जानना चाहा कि फिल्म समिक्षकों और दर्शकों का सबसे पसंदीदा हीरो
कौन है, तो सर्वे
रिपोर्ट देखकर आश्चर्य हुआ कि,
चार्ली की मृत्यु के दो दशक बाद भी चार्ली अधिकतर लोगों के पसंदीदा
हीरो थे। ये कहना अतिश्योक्ति न होगी कि चार्ली आज भी लगभग सभी के दिलों में बसते
हैं, उनके
अभिनय से आज की पीढी भी आंनदित होती है। आज भी कई कलाकार उनके अभिनय की नकल करते
हैं।
चार्ली चैप्लिन का जीवन एक ऐसी कहानी है जो दर्द के साये में भी
हास्य का सबक सिखाती है। 1977 में जब
दुनिया 25 दिसम्बर
को क्रिसमस का त्योहार हर्ष उल्लास के साथ मना रही थी, उसी दिन हास्य का महानायक
चार्ली चैप्लिन इस दुनिया को अलविदा कह दिया । आज भले ही चार्ली इस दुनिया में न
हो परंतु उनका अभिनय आज भी कई उदास चेहरे पर मुस्कराहट ला देता है। उन्होने अपने
जीवन के आधार पर बहुत ही सार्थक और सटिक संदेश दुनिया को दिया। उनका कहना था कि,
“My pain may be the reason for
somebody’s laugh. But my laugh must never be the reason for somebody’s pain. “
“मेरा दर्द
किसी के लिए हंसने की वजह हो सकता है। पर मेरी हंसी कभी भी किसी के दर्द की वजह
नहीं होनी चाहिए। “
फिल्मी हास्य और प्रहसन की दुनिया के इस सिरमौर ने हास्य का
ऐसा स्वरूप रचा, जिसमें विनोद के साथ-साथ संवेदनशीलता, विचार,
व्यंग्य और क्रूर व्यवस्था पर प्रहार भी था। चार्ली चैप्लीन हास्य
की दुनिया के इकलौते ध्रुवतारे है जिसका कोई विकल्प नहीं है ।
1 टिप्पणियाँ:
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (25-10-2017) को
"प्रीत के विमान पर, सम्पदा सवार है" (चर्चा अंक 2768)
पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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