एक कुशल योध्दा वीर शिवाजी


                      
जन्म जयंती 19 फरवरी पुण्य तिथि 3 अप्रेल
विगत एक सहस्त्राब्दि में शिवाजी जैसा कोई हिन्दू सम्राट नहीं हुआ था.
स्वामी विवेकानन्द.


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                        दृणनिश्चयी, महान देशभक्त राष्ट्र निर्माता और कुशल प्रशासक शिवाजी का व्यक्तित्व बहुमुखी था माँ जीजा बाई के प्रति उनकी श्रद्धा और आज्ञाकारिता उन्हें एक आदर्श सुपुत्र सिद्ध करती है शिवाजी का व्यक्तित्व इतना आकर्षक था की उनसे मिलने वाला हर व्यक्ति उनसे प्रभावित हो जाता था साहस ,शौर्य और तीव्र बुद्धि के धनी शिवाजी का जन्म 19 फरवरी १६३० को शिवनेरी दुर्ग में हुआ था शिवाजी की जन्मतिथि के विषय में सभी विद्वान एक मत नहीं है कुछ विद्वान 30 अप्रैल १६२७ कहते है  ये भोंसले उपजाति के थे जो कि मूलतः क्षत्रिय मराठा जाति के थे उनके पिता अप्रतिम शूरवीर थे और उनकी दूसरी पत्नी तुकाबाई मोहिते थीं। 

                      शिवाजी की शिक्षा - दीक्षा जीजाबाई के संरक्षण में हुई थी माता जीजाबाई धार्मिक प्रवृति की महिला थी उनकी इस प्रवृति का घर प्रभाव शिवाजी पर भी था शिवाजी की प्रतिभा को निखारने में दादाजी कोंणदेव का भी विशेष योगदान था उन्होंने शिवाजी सैनिक और प्रशासकीय दोनों ही शिक्षा दी थी सेनापति बाजी पासलकर ने मार्शल-आर्ट का प्रशिक्षण दिया था। उन्होंने गोमाजी नाईक पनसम्बल से तलवारबाज़ी सीखी थी।शिवाजी में उच्चकोटी की हिंदुत्व की भावना लाने का श्रेय माता जीजाबाई को और दादा कोंणदेव को जाता है छत्रपति शिवाजी महाराज का विवाह सन 14 मई १६४० में सईंबाई निम्बालकर के लाल महल पूना में हुआ था  
कुशल वीर शिवाजी 
                 शिवाजी की बुध्दि बहुत व्यवहारिक थी वे सामाजिक, धार्मिक और सासंकृतिक परिस्थितीयो के लिए बहुत सजग थे हिन्दू धर्म ,गौ और ब्राह्मणों की रक्षा करना उनका उद्देश्य था शिवाजी हिन्दू धर्म के रक्षक के रूप में मैदान में उतरे और मुगल शासकों के विरुद्ध उन्होंने युध्द की घोषणा कर दी वे मुगल शासको के अत्याचारों से भली -भाँती परिचित थे इसलिए उनके अधीन नहीं रहना चाहते थे उन्होंने मावल प्रदेश के युवकों में देशप्रेम की भावना का संचार कर कुशल और वीर सैनिकों का एक दल बनाया शिवाजी अपने वीर और देशभक्त सैनिकों के सहयोग से जावली , रोहिडा , जुन्नार , कोंकण , कल्याणी अनेक प्रदेशों पर अधिकार स्थापित करने में कामयाब रहे प्रतापगढ़ और रायगढ़ दुर्ग जीतने के उन्होंने रायगढ़ को मराठा राज्य की राजधानी बनाया था
                     शिवाजी पर महाराष्ट्र के लोकप्रिय संत रामदास और तुकाराम का भी बहुत प्रभाव था संत रामदास शिवाजी के अध्यत्मिक गुरु थे उन्होंने ही शिवाजी को देश-प्रेम और देशोध्दार के लिए प्रेरित किया था ।
                  शिवाजी की बढती शक्ति बीजापुर के लिए चिंता का विषय थी आदिलशाह की विधवा बेगम अफजल खां को शिवाजी के विरुद्ध युद्ध के लिए भेजा था कुछ परिस्थितिवश दोनों खुल्लम - खुल्ला युध्द नहीं कर सकते थे अत : दोनों पक्षों ने समझौता करना उचित समझा 10 नवम्बर 16५९ को भेंट का दिन तय हुआ शिवाजी जैसे ही अफजल खां के गले मिले , अफजल खां ने शिवाजी पर वार कर दिया शिवाजी को उसकी मंशा पर पहले से ही शक था ,वो पूरी तैयारी से गए थे शिवाजी अपना बगनखा अफजल खां के पेट में घुसेड दिया अफजल खान की मृत्यु के बाद बीजापुर पर शिवाजी का अधिकार हो गया इस विजय के उपलक्ष्य में शिवाजी प्रतापगढ़ में एक मन्दिर का निर्माण करवाया जिसमें माँ भावनी की प्रतिमा को प्रतिष्ठित किया गया ।
कुशल योध्दा 
                शिवाजी एक कुशल योध्दा थे उनकी सैन्य प्रतिभा ने औरंगजेब जैसे शक्तिशाली शासक को भी विचलित कर दिया था शिवाजी की गोरिल्ला रणनीति (छापामार रणनीति) जग प्रसिध्द है अफजल खां की हत्या शाइस्ता खान पर सफल हमला और औरंगजेब जैसे चीते की मांद से भाग आना उनकी इसी प्रतिभा और विलक्षण बुध्दि का परिचायक अहि शिवाजी एक सफल कूनीतिज्ञ थे इसी विशेषता के बल पर वे अपने शत्रुओं को कभी एक होने नहीं दिए औरंगजेब से उनकी मुलाकात आगरा में हुई थी जहाँ उन्हें और उनके पुत्र को गिरफ्तार कर लिया था परन्तु शिवाजी अपनी कुशाग्र बुध्दि के बल पर फलों की टोकरियों में छुपकर भाग निकले थे मुगल- मराठा सम्बन्धों में यह एक प्रभावशाली घटना थी ।
                      बीजापुर के सुल्तान के सेनापति अफज़ल खान के विरुद्ध प्रतापगढ़ के संग्राम ने उन्हें एक महत्वपूर्ण सफलता दिलवायी जिसने उन्हें रातोंरात मराठों का नायक बना दिया। उन्होंने नियोजन, गति और उत्कृष्ट रणकौशल के माध्यम से यह जीत हासिल की। इसके बाद उन्होंने बीजापुर के सुल्तान के खिलाफ अनेको लड़ाइयाँ लड़ी जैसे की कोल्हापुर की लड़ाई, पवन खिंड की लड़ाई, विशालगढ़ की लड़ाई और अन्य कई लड़ाइयाँ।        
                      बीस वर्ष तक लगातार अपने साहस , शौर्य और रण कुशलता द्वारा शिवाजी ने अपने पिता की छोटी सी जागीर को एक स्वतंत्र और शक्तिशाली राज्य के रूप में स्थापित कर लिया था 6 जून १६७४ को शिवाजी का राज्यभिषेक हुआ था शिवाजी जनता की सेवा को ही अपां धर्म मानते थे उन्होंने अपने प्रशासन में सभी वर्गो और सम्प्रदाय के अनुयायियों के लिए समान अवसर दिए  कई इतिहासकारों के अनुसार शिवाजी केवल निर्भीक , शिवाजी के मंत्रीपरिषद् में आठ मंत्री थे जिन्हें अधत -प्रधान कहते है । शिवाजी के राष्ट्र ध्वज केशरिया रंग का है
                     जिस समय शिवाजी का साम्राज्य ढलान पर थाशिवाजी ने 360 किलों पर कब्ज़ा कर लिया था जिनमे से मुख्य थे कोंडना (सिंहगढ़)तोरणमुरंबदेवऔर पुरंदर , चाकन का किला ,सूपा का दुर्ग  किलों का भी आक्रमण कर लिया था।
                    कुशल और वीर शासक छत्रपति शिवाजी का अंतिम समय बड़े कष्ट और मानसिक वेदना से गुजरा घरेलू उलझनों और समस्याएं उनके दुःख का कारण थी बड़े पुत्र सम्भाजी के व्यवहार से वे ज्यादा चिंतित थे तेज ज्वर के प्रकोप से को अप्रैल 3, 1680 को शिवाजी का पुणे के रायगढ़ किले में स्वर्गवास हो गया  उनके साम्राज्य को उनके बेटे संभाजी ने संभाल लिया। लेकिन इससे सभी भारतीयों के मन पर उनकी छोड़ी छाप को कोई नहीं मिटा पाया। छत्रपति शिवाजी का नाम हमेशा लोकगीत और इतिहास में एक महान राजा के रूप में लिया जायेगा जिसका शासन एक स्वर्ण युग था, जिसने भारत की आज़ादी का रास्ता साफ़ करते हुए स्वतंत्रता की राह दिखायी।
                    शिवाजी केवल मराठा राष्ट्र के निर्माता ही नहीं थे अपितु मध्ययुग के सर्वश्रेष्ठ मौलिक प्रतिभा - सम्पन्न व्यक्ति थे महाराष्ट्र की विभिन्न जातियों के संघर्ष को समाप्त क्र उनको एक सूत्र में बाँधने का श्रेय शिवाजी को ही है इतिहास में शिवाजी का नाम , हिन्दू रक्षक के रूप में सैदेव सभी के मानस पटल पर विद्यमान रहेगा भारतीय इतिहासकारों के शब्दों के साथ कलम को विराम देते है
             शिवाजी महाराज एक वीर पुरुष थे जिन्होंने अपना पूरा जीवन मराठा , हिन्दू साम्राज्य के लिए समर्पित कर दिया मराठा इतिहास में सबसे पहले पहले नाम शिवाजी का ही आता है और उच्च कर्म करने से इतिहास में वीर शिवाजी का नाम सदा के लिए अम्र हो गया आज महाराष्ट्र में ही नहीं पूरे देश में वीर शिवाजी महाराज की जयंती बड़े ही धूम धाम के साथ मनाई जाती है

छत्रपति शिवाजी महाराज का जन्म स्थान शिवनेरी दुर्ग
शिवाजी महाराज कहा करते थे :
'' अगर मनुष्य के पास आत्मबल है तो वो समस्त संसार पर अपने हौसले से विजय पताका लहरा सकता है ''
डॉ . रमेश चन्द्र मजुमदार के अनुसार -
'' भारतीय इतिहास के रंगमंच पर शिवाजी का अभिनय केवल एक कुशल सेनानायक और विजेता का न था ,वह एक उच्च श्रेणी के शासक भी थे । ''
सर जदुनाथ सरकार के अनुसार -
'' शिवाजी भारत के अंतिम हिन्दू राष्ट्र निर्माता थे , जिन्होंने हिन्दुओं के मस्तक को एक बार पुन: उठाया ''

शिवाजी महाराज  की  विशेषता 

1. अच्छी संगठन शक्ति  का होना ( Good Organizer )
शिवाजी ने बिक्री हुए मराठाओ को इक्कठा करके उनकी शक्ति को एक जुट कर एक महान मराठा राज्य की स्थापना की
2. वीर सैनिक ( Brave Soldier )
शिवाजी जैसे वीर भारत देश में बहुत कम हुए हैं , आज भी उनकी वीरता की कहानियो लोगो के उत्साह को बढ़ा देती हैं
3. महान मार्गदर्शक (* Good Leader )
शिवाजी ने मुगलो के राज्य में हिन्दू साम्राज्य स्थापित करने वाले एक मात्र राजा थे , उन्होंने केवल मराठाओ को ही नहीं वल्कि सभी भारतवासियो को भी नयी दिशा दिखाई

4.आज्ञाकारी पुत्र और शिष्य ( Obedient Son )
कहा जाता है शिवाजी अपनी माता की हर आज्ञा का पालन करते थे

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