सन २०१६ की यह तस्वीर है सुवा की सुग्गी |
हमारे घर हर साल दीपावली के कुछ दिन पहले से बालिकाएं आवाज लगाती है
आंटी सुआ नाच कारवे का हमन सुआ नाचे बर आवे है फिर हम अपने आंगन में उनका सुआ
नृत्य देखते है उनकी आपसी एकता , लय, आपसी तालमेल देखकर मन परम्परा , हर्ष , उल्लास खुशी से आत्मविभोर हो जाता है ऐसा महसूस
होने लगता है की अब दीपावली त्यौहार शुरू हो गया है ।
सुआ गेट मूलत: गोंड आदिवासी नारियों का नृत्य गीत है जिसे सिर्फ स्त्रियाँ ही गाती है । सुआ नृत्य छत्तीसगढ़ राज्य की स्त्रियों द्वारा दीपावली के पहले महिलाओं एवं
छोटी बालिकाओं के द्वारा किया जाने वाला सुआ(गौरा) नृत्य अधिक प्रसिद्ध है स्त्री
मन की भावना , उनके सुख - दुःख की अभिव्यक्ति और उनके अंगो का लावण्य 'सुवा' या
'सुवना' नृत्य में देखने को मिलता है सुवा नृत्य का प्रारम्भ दीपावली से हो जाता
है और यह नृत्य अगहन मास तक चलता है ।
सुवा नृत्य सभी जाति की स्त्रियाँ करती है पर ग्रामीण क्षेत्रों की
युवतियां ज्यादा करती है इसका समापन दीपावली की रात को शिव-गौरा विवाह से होता है
इस कारण इसे गौरा नृत्य भी कहते है । टोकरी में रखे सुवे को हरे रंग के नए कपड़े और धान की नई मंजरियो से सजाया जाता है । तोतों के मृदा हस्तशिल्प को शिव- गौरा का प्रतीक बनाया जाता है और उसे एक
युवती के सर पर रखी टोकनी में रख हुए धान में रखा जाता है । इसका
भाग सुआ गीत भी है जो तोते के माध्यम से प्रेम संदेश का सम्प्रेष्ण है महिलाएं
दुसरे गाँवों में भी नृत्य करने जाती है सुआ नृत्य छत्तीसगढ़ी महिलाओं व किशोरियों
का नृत्य पर्व है । इस नृत्य की छत्तीसगढ़ी जनमानस में सर्वाधिक लोकप्रियता है ।
सुआ नृत्य गीत
गाने की यह अवधि धान के फसल के खलिहानों में आ जाने से लेकर उन्हारी फसलों के
परिपक्वता के बीच का ऐसा समय होता है जहां कृषि कार्य से कृषि प्रधान प्रदेश की
जनता को किंचित विश्राम मिलता है।
दीपावली के कुछ दिनों पहले शुरू होता है और इस
नृत्य का समापन दीपावली की रात में शिवगौरी के विवाह आयोजन के साथ समाप्त होता है
इस नृत्य में महिलाएं अपने - अपने गाँवों में भ्रमण के लिए निकलती है और इस दौरान
वे गाँव के लगभग सभी घरों के सामने झुण्ड बनाकर ताली की थाप पर नृत्य करती हुए गीत
गाती है । छोटी बालिकाएं इस नृत्य में सलवार कमीज के उपर साड़ी पहनती है
सुवना |
वृत्ताकार
रूप में किया जाने वाल यह नृत्य के बीच लड़की 'सुग्गी' कहलाती है ,घेरे सर पर लाल दुपट्टा
ढंके टोकनी लिए नृत्य करती है टोकनी में धान भरकर उसमें मिट्टी के बने दो सुआ जैसे
तोते शिवपार्वती के प्रतीक के रूप में सजाकर रखे जाते है इस नृत्य के समय महिलाएं
टोकनी को घेरे के बीच में रखकर सामूहिक स्वर में सुआ गीत गाते हुए वृत के चारों ओर
झूमझूमाकर व् महिलायें
सुआ की ओर ताकते हुए झुक-झुक कर चक्राकार चक्कर लगाते ताली बजाते हुए नृत्य
करती है । ताली
एक बार दायें तथा एक बार बायें झुकते हुए बजाती हैं, उसी क्रम में पैरों को बढाते हुए शरीर में लोच भरती हैं।
'चंदा के अंजोरी म
जुड़ लागय रतिहा,
न रे सुवना बने लागय
गोरसी अऊ धाम।
अगहन पूस के ये
जाड़ा न रे सुवना
खरही म गंजावत हावय धान।'
जुड़ लागय रतिहा,
न रे सुवना बने लागय
गोरसी अऊ धाम।
अगहन पूस के ये
जाड़ा न रे सुवना
खरही म गंजावत हावय धान।'
सुआ गीत की प्रत्येक पंक्तियाँ विभिन्न गुणों से सजी होती है। प्रकृति की
हरियाली देखकर किसान का प्रफुल्लित होता मन हो या फिर विरह की आग मे जलती हुई प्रेयसी की व्यथा हो, या फिर ठिठोली
करती ग्राम बालाओं की आपसी नोंक-झोंक हो या फिर अतीत की विस्तार गाथा हो, प्रत्येक संदर्भ में सुआ मध्यस्थ का कार्य करता है।[1] जैसे-
सुआ गीत हमेशा एक ही बोल से शुरु होता है और वह
बोल हैं -
""तरी नरी नहा नरी नहा नरी ना ना रे
सुअना''
और गीत के बीच-बीच में ये दुहराई जाती हैं। गीत
की गति तालियों के साथ आगे बढ़ती है।
१. तरी
नरी नहा नरी नहा नरी ना ना रे सुअना
कइसे के बन गे वो ह निरमोही
रे सुअना
कोन बैरी राखे बिलमाय
चोंगी अस झोइला में जर- झर
गेंव
रे सुअना
मन के लहर लहराय
देवारी के दिया म बरि-बरि
जाहंव
रे सुअना
बाती
संग जाहंव लपटाय
ंगी
इस गीत में प्रेमिका बहुत ही कातर है कि उसका
प्रेमी वापस नहीं आ रहा है। कह रही है प्रेमिका कि क्या मेरा प्रेमी निर्मोही बन
गया है? पर मन इस बात को मानने के लिए तैयार नहीं है।
इसीलिये प्रेमिका सुआ से पूछती है क्या उसे किसी शत्रु ने रोक रखा है? शत्रु का अर्थ यहां यह भी हो सकता है कि किसी और स्री ने उसे रोक रखा है।
इसके बाद कहती है प्रेमिका कि जैसे राख, चोंगी की राख जल जल
कर झर जाती है, उसी तरह मैं भी इन्तजार करते करते झर गई हूं
पर फिर भी मन उस प्रेमी के लिये ही बेकरार है। इसके बाद कहती है प्रेमिका सुआ से
कि इस बार भी अगर वे नहीं आये, मैं दीपावली के वक्त दिये की
आग से लिपट जा और अपनो प्राण त्याग दूंगी।
२.तरी नरी नहा नरी नहा नरी ना
ना रे सुअना
तिरिया जनम झन देव
तिरिया जनम मोर गऊ के बरोबर
रे सुअना
तिरिया जनम झन देव
बिनती करंव मय चन्दा सुरुज के
रे सुअना
तिरिया जनम झन देव
चोंच तो दिखत हवय लाले ला
कुदंरु
रे सुअना
आंखी मसूर कस दार...
सास मोला मारय ननद गारी देवय
रे सुअना
मोर पिया गिये परदेस
तरी नरी नना मोर नहा नारी ना
ना
रे सुअना
तिरिया
जनम झन देव.........
इस गीत में प्रेमिका भगवान से प्रार्थना कर रही
है कि अगले जनम में वह स्री बनकर न जनम ले। सुआ से कहती है प्रेमिका बड़े व्याकुलता
से कि अगले जनम में वे स्री बनकर जनम नही लेना चाहती, चांद
सूरज से विनती करती है कि अगले जनम में वे स्री न बने। उसका प्रिय परदेश चला गया
है। प्रिय परदेश जाने के बाद सास उसे मारती है, ननद गाली
देती है। इस तरह की जिन्दगी से वह बहुत ही परेशान हो गई है। और इसीलिये प्रेमिका
बार-बार विनती करती है भगवान से कि अगले जनम में उसे स्री जनम न मिले।
३. तरी
नरी नहा नरी नही नरी ना ना रे सुअना
तुलसी के बिरवा करै सुगबुग-सुगबुग
रे सुअना
नयना के दिया रे जलांव
नयनन के नीर झरै जस औरवांती
रे सुअना
अंचरा म लेहव लुकाय
कांसे पीतल के अदली रे बदली
रे सुअना
जोड़ी
बदल नहि जाय
इस गीत में प्रेमिका इंतजार कर रही है प्रेमी
का। तुलसी के नीचे अपने नयनों के दीप जलाकर इन्तजार कर रही है कब प्रेमी लौटे।
प्रेमिका के आंखों से आंसू निरन्तर बह रही हैं। सुआ से कह रही है प्रेमिका कि आंसू
के निरन्तर बहने के कारण नयनों का दीप न बुझ जाये। उसे छिपाकर रखती है अपने आंचल
में। सुआ से कहती है कि कांसा या पीतल को तो अदला-बदली कर सकते हैं पर प्रिय को तो
बदला नहीं जा सकता। कितना ही कठोर क्यों न हो, प्रिय को तो
बदला नहीं जा सकता।
४. तरी
नरी नहा नरी नही नरी ना ना रे सुअना
मोर नयना जोगी, लेतेंव पांव ल पखार
रे सुअना तुलसी में दियना बार
अग्धन महीना अगम भइये
रे सुअना बादर रोवय ओस डार
पूस सलाफा धुकत हवह
रे सुअना किट-किट करय मोर दांत
माध कोइलिया आमा रुख कुहके
रे सुअना मारत मदन के मार
फागुन फीका जोड़ी बिन लागय
रे सुअना काला देवय रंग डार
चइत जंवारा के जात जलायेंव
रे सुअना सुरता में धनी के
हमार
बइसाख........ आती में मंडवा
गड़ियायेव
रे सुअना छाती में पथरा-मढ़ाय
जेठ महीना में छुटय पछीना
रे सुअना जइसे बोहय नदी धार
लागिस असाढ़ बोलन लागिस मेचका
रे सुआना कोन मोला लेवरा उबार
सावन रिमझिम बरसय पानी
रे सुअना कोन सउत रखिस बिलमाय
भादों खमरछठ तीजा अऊ पोरा
रे सुआना कइसे के देईस बिसार
कुआंर कल्पना ल कोन मोर देखय
रे सुखना पानी पियय पीतर दुआर
कातिक महीना धरम के कहाइस
रे सुअना आइस सुरुत्ती के
तिहार
अपन अपन बर सब झन पूछंय
रे
सुअना कहां हवय धनी रे तुंहार
लोक गीत सुआ |
विदाई गीत
सुआ नृत्य के आयोजन में घर की मालकिन रुपया और पैसा अथवा धान या चावल आदि देकर नृत्य समूह को विदा करती है।
तब सुआ नृत्य की टोली विदाई गीत का गान करती है-
'जइसे ओ मइया लिहे दिहे आना रे सुअना।
तइसे तैं लेइले असीस
अन धन लक्ष्मी म तोरे घर भरै रे सुअना।
जिये जग लाख बरीस।'
तइसे तैं लेइले असीस
अन धन लक्ष्मी म तोरे घर भरै रे सुअना।
जिये जग लाख बरीस।'
सुआ वास्तव में प्रेम गीत है जिसमे युवतियों द्वारा कभी - कभी प्रश्नोतर
शैली भी अपनाई जाती है और इस नृत्य के माध्यम से किशोरियां अपने प्रेमी को संदेश
भेजती है ।
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