मेरी दोस्त डॉली का जन्मदिन और हमारी दोस्ती की अनोखी कहानी

     
मैं और मेरी दोस्त डॉली ( फोटो सन 2006 ) 
                आज 6 फरवरी है हर दिन किसी न किसी व्यक्ति के लिए ख़ास होता है वैसे ही आज का ये दिन मेरे लिए बहुत ख़ास दिन है क्योंकि आज मेरी प्रिय सहेली डॉली(अनिका) का जन्मदिन है मेरी दोस्त डॉली और मेरी बहुत गहरी मित्रता है हमारी मित्रता की शुरुआत 1996 में हुई डॉली मुझसे दो साल छोटी थी वे लोग नये - नये केलाबाड़ी में ही रहने आये थे डॉली के पापा रज़ा प्रधान जो की रेंज ऑफिसर थे और तब उन्हें यहाँ दुर्ग में पोस्टिंग मिली थी डॉली के घर में वो उसके डैडी ,मम्मी और बड़ा भाई रहते थे और डॉली उस वक्त 3 - 4 साल की थी और मैं 6 साल कि थी तब उसने स्कूल जाना शुरू नहीं किया था मैं क्लास १ में ही गई थी मैं उसके घर जाती थी और उसके घर में सभी मुझे बहुत प्यार करते थे और डॉली को भी मेरे मम्मी पापा बहुत चाहते थे


                 हम साथ खेलते भी थे एक बार जब मैं और डॉली घर के बाहर खेल रहे थे तो हमारे घर के पास जगह थी जहां से लोग पानी भरते थे और एक नाली भी थी हम छोटे - छोटे बर्तनों से खेलते थे मैंने डॉली से कहा कि जा जाकर छोटे से बर्तन में पानी भरकर लेकर आ वो गई मगर उसे देर हो गई क्योंकि वो छोटी सी थी देर होने के कारण मुझे गुस्सा आया मैं वहां पहुँच गई मैंने उससे पूछा की अभी तक भरकर क्यों नहीं लाई तो वो मेरा गुस्सा देखकर रोने लगी और मैंने उसे जोर के धक्का दे दिया तो उसका पैर फिसला और वो नाली में गिर गई मुझे मेरी गलती का अहसास हुआ मैंने उसे उठाया देखा की उसके सारे कपड़े गंदे हो गये है फिर वो और जोर से रोने लगी मैं उसे उसके घर लेकर गई तो उसकी मम्मी ने मुझे बहुत डांट लगाई की डॉल तेरे से छोटी है उसका ध्यान रखना चाहिए तो मैंने आंटी से कहा आंटी सॉरी आगे से रखूंगी आंटी ने कहा नहीं अब तुम दोनों साथ में नहीं खेलोगे यही तुम्हारी सजा है ये तो बचपन की नासमझी के दिन थे कुछ दिन बीते तो आंटी इस घटना को भूल गई मैं और डॉली फिर खेलने लगे आंटी तो भूल गई उस घटना को पर उस घटना ने मुझे जीवन की अनमोल सीख दे दी कि अब से जीवन के हर मोड़ पर मुझे अपनी दोस्त का साथ निभाना है सदा उसके साथ रहना है और उसे मुश्किलों से बचाना है । फिर थे तो हम दोनों ही छोटे पर उस दिन हम रोज ही खेलने और मिलने लगे थे

            आगे वो भी पढ़ने जाने लगी और वो मेरे ही स्कूल में पढ़ने लगी हम साथ पढ़ते थे मैं उसे पढ़ाती थी वो पढ़ाई में बहुत तेज थी और लोगो से बहुत आगे थी मुझसे पहले उसकी पढ़ाई हो जाती थी धीरे - धीरे वक्त बीतने लगा हम और बड़े होने लगे हमारे मित्रों की संख्या भी बढने लगी तब भी हम एक दुसरे को बहुत अच्छी तरह नहीं समझते थे एक साथ खाना खाना , उसके घर में उसकी मम्मी ने कभी मुझे पराया नहीं समझा जैसे डॉली चीकू भाई वैसे मैं वो हम तीनो को एक साथ खाना खिलाती थी हम अंकल के साथ बहुत मस्ती करते थे और जीभर कर तंग करते थे

              वक्त बीतने लगा तो डॉली के जीवन की सबसे बड़ी बात पता चली की डॉली को रतौंधी नाम की बीमारी है उसे रात को अँधेरे में दिखाई नहीं देता है पर वो देख सकती थी तब इस बीमारी के बारे में ज्यादा कुछ पता नहीं था । मैं उसका साथ उसकी रोशनी बनकर देती थी मैंने कभी उसकी बीमारी का अपमान नही किया बल्कि समझा उसके दर्द को , उसकी परेशानियों को की उसे कैसा महसूस होता होगा , उसकी पढ़ाई में मदद करना , वो कहीं जाएँ तो उसके साथ उसके साथ जाना , स्कूल से आने पर उसका इन्तजार करना इन कामों में मैं हमेशा साथ निभाती थी

              दिन बीते तो आ गया सन २००३ मैं हम रोज उसके घर की छत पर घंटो बैठकर दुनिया जहान की बाते करते थे कभी टीवी सीरियल की बातें कभी अपने जीवन के सूख -दुःख हर विचार ,हर सोच ,अहसास , जीवन कि तमाम घटने वाली चीजों पर हमारी बातें होती थी जब मैं उससे मिलने जाती थी तो बहुत तैयार होकर जाती थी तब अंकल यदि घर में रहते थे तो मुझे चिढ़ाते थे की क्या बात है इतना तैयार होकर आई है मुझसे मिलने आए हैंया फिर कंही घूमने जा रही है तो मैं मुस्कुरा के जवाब देती थी की नहीं अंकल मैं तो डॉली से मिलने आई हूँ फिर अंकल हमें मिलने की इजाजत दे देते थे ठीक 5 बजे मिलने पहुँचती और ठीक शाम 7 बजे अंकल छत पर आते थे कहते थे टाइम अप चलो पढ़ाई का टाइम हो गया रोज मिलने के सिलसिलों में वक्त की नब्ज ही पकड़ नहीं पाते थे और वक्त तेजी से आगे बढ़ता जाता था । इसी बीच मेरे दादाजी का देहांत हुआ डॉली ने इस मुश्किल वक्त में जिस मजबूती से मेरा साथ निभाया उसे शब्दों में बयान करना मुश्किल सा है इतनी सी लड़की जो मुझसे भी छोटी है कहती की ये तो जीवन है जो आया है वो जाएगा पर तू अपने आपको कमजोर मत पड़ने दे अभी तो जीवन में ऐसे कई मौके आयेंगे तुझे उनका सामना पूरी मजबूती से करना है बिना हिम्मत हारे और कोपल मैं तो हमेशा तेरे साथ हूँ वो मेरा जिस तरीके से हौसला बढ़ाती तो वो यही मुश्किलों से लड़ने का जज्बा और हौसला था  उस वक्त डॉली ने एक बहुत अच्छी बात कही थी जब कोई हमारे पास रहता है ना तो हम उसकी कद्र नहीं करते है पर जब वही व्यक्ति दूर चला जाए हमसे तब हमें समझ आता है की उसका हमारे जीवन में कितना महत्व है तब हम उसकी कद्र करते है

              हम सन 2007 तक रोज मिलते रहे कभी उसके कुछ खाने के लिए लेकर आती थी कुछ कोई गहना कभी कुछ मेरा पर्स देखकर कोई न कोई पूछ ही लेता की पर्स में कोई खज़ाना है जो इतना छिपाकर ले जा रही है मैं चुपचाप मुस्कुरा के आगे बढ़ जाती और डॉली को आकर बताती तो हम दोनों खूब हंसते थे मैं उसको कहती थी अरे खज़ाना तो हमारी दोस्ती है । डॉली लोगो का घर रायपुर शहर में तैयार हो रहा था और हमारा न्यू आदर्श नगर दुर्ग में हमें ये तो पता था की एक दिन घर बन जाएगा और हम दोनों में से मैं नए घर में रहने चली जाउंगी और डॉली लोगो का विचार था उनके रायपुर वाले घर में उनकी मौसी रहेंगी पर क्या पता वक्त ऐसी करवट लेगा सब बिखर जाएगा । और वक्त ने अपनी ऐसी करवट लेना शुरू कर दी थी एक ऐसी अनहोनी,ऐसा दुःख जिसका कोई अंदेशा नहीं था वो होने वाला था अंकल को किडनी की प्रोब्लम थी मगर उनकी तबीयत ज्यादा खराब रहने लगी थी । डॉली लोग उनको बार - बार ट्रीटमेंट के लिए रायपुर लेकर जाते थे । फिर मैं और डॉली अब रोज तो नहीं कभी - कभी ही मिल पाते थे अंकल को देखने की , डॉली से मिलने की बेचैनी रोज होती थी । कभी जब वो लोग आते थे तो उनके घर के सामने एक ग्रिल गेट था अगर वो खुला दिख जाता था तो मैं तुरंत उसके पास जाने के लिए निकल जाती थी पर कभी - कभी भाई आता था तो बता देता था अभी नहीं आयेंगे आयेंगे तो बता दूँगा ।अंकल को एक किडनी आंटी ने दे दी थी मगर फिर भी कुछ नहीं हो सका अंकल की तबीयत और खराब रहने लगी

                 और वो एक दिन 17 जून २००७ का जिस दिन अंकल नहीं रहे थे डॉली , भाई ,आंटी और मुझे छोड़कर हमेशा के लिए जा चुके थे । मुझे उनके ना रहने की खबर डॉली के घर के नीचे एक पहचान वाली दीदी रहती थी उन्होंने मुझे बताया मुझे शॉक लगा मैं उनके पास बैठकर फूट फूटकर रोने लगी मुझे लगा सारे सपने एक घर ,एक दुनिया उनका घर और डॉली आंटी , भाई सबका सब कुछ बिखर गया , सब छीन गया मुझे डॉली की बहुत फ़िक्र होने लगी बहुत याद आने लगी उसकी मुझे लगा की मेरी डॉली तो पहले ही अपनी तकलीफों से इतनी टूटी हुई थी अब और टूट जायेगी मुझे महसूस हुआ की अब कभी मैं उसमें वो पहले वाली हँसती मुस्कुराती डॉली को नहीं देख पाउंगी क्योंकि अपने रिश्तो को खो दे तो फिर खोने के बाद वापस कभी नहीं मिलता है वो रिश्ता वो इंसान ये उस दिन समझ आ गया था

                   कुछ दिनों बाद 30 जून डॉली उसकी मम्मी , भाई दुर्ग लौटकर आये थे उन लोगों के आते ही मैं और मम्मी उसके घर गये उनके घर पर कोई मिलने आया था । वो गये तो हमने बातें की आंटी मेरी मम्मी के गले लगकर रोने लगी कहने लगी भाभी देखो ना क्या हो गया मैं डॉली के पास बैठी वो चुपचाप गुमसुम सी गुडिया जैसे बैठी थी हम दोनों उठकर दूसरे कमरे में गये मैंने दरवाजा बंद कर दिया तुरंत वो मुझसे लिपट गई इस तरह रोई की उसने जिस सब्र के बाँध इतने दिनों तक रोके रखा था वो आज मेरी बांहों में टूटकर फूट फूट कर रो रहा था मैं उसके सर पर हाथ फेर रही थी मैंने उसे रोने दिया की रो ले जी हल्का हो जाएगा जब वो चुप हुई उसने कहा की कोपल डैडी गए डैडी गए मुझे अकेला छोड़कर मेरे दोस्त , मेरे मस्ती करने वाले मेरी प्रोब्लम्स को सुलझाने वाले मुझे राह दिखाने वाले उसने कहां की कोपल दुनिया में कोई कभी किसी की कमी को पूरा नहीं कर सकता है  भाई भी नहीं डैडी कि जगह ले सकता है । उसने उस बीच घटित हुई सारी घटनाएँ मुझे बताई मुझे बहुत ज्यादा बुरा लगा इतने बुरे वक्त में मैं उसके पास नहीं थी उसने मुझे एक खबर दी जिससे मेरा मन बिखर गया उसने कहा की आने वाले सन्डे को ये घर खाली करके वो लोग रायपुर जा रहे है और वो अब अपनी चाची के स्कूल में पढ़ेगी चिकू भाई बैंगलोर में आगे की पढ़ाई करेगा ये सब सुनकर मेरा मन बहुत उदास हो गया पर डॉली कहने लगी सब कैसे होगा कोपल अब । मैंने उसे समझाया की दोस्त जीवन का नया मोड़ शुरू हुआ है घबराओ मत मैं हूँ तुम्हारे साथ । मैंने मन ही मन सोचा की चलो अच्छा है वो वहां रहेगी तो उसका मन बहलेगा मन में ये भी आ रहा था उसे रोक लूं यहाँ पर फिर मन में सोचा की किसलिए वो यहाँ रहेगी तो उसे और दुःख होगा अब उसका यहाँ से जाना ही सही है मेरी यही दुआ है तू जहां रहे खुश रहे आर तू दुखी रहेगी तो मैं यहाँ खुश नहीं रह पाउंगी

                 फिर हमने कहा की आजकल तो फोन है बात करने का मन होगा तो फोन पर बात कर लेंगे हम एक दुसरे के बहुत करीब है तो भला कैसे दूर हो जायेगे कभी एक दुसरे से दूर नहीं रहे है ना लेकिन धीरे - धीरे आदत बन जायेगी कुछ दिनों तक याद आयेगी फिर सब स्थिर हो जाएगा फिर हम छत पर गये अक्सर हमें डॉली का भाई चीकू मिलने नहीं देता था उस दिन उसने कुछ नहीं कहा शायद वो भी समझ गया था की मिलने दो पता नही दोनों फिर कब मिलंगे उस दिन छत पर बैठकर हमने ढेर सारी बातें की बहुत अच्छा लगा पर ये दुःख भी हुआ ये हमारी आखिरी शाम थी उस छत पर जिस छत पर बैठकर हमने एक साथ कई सपने देखे ,मस्तियाँ की , कई हसीन शामें गुजारी , मीठे - मीठे पल बिताये , सुख - दुःख बांटे , एक दुसरे के आंसुओं को अपना समझा , उस छत के साथ हमारी कई यादें जुडी हुई थी कभी सोचा ही नहीं था एक दिन ऐसा आएगा जब हमें एक दुसरे से हमेशा के लिए दूर भी होना पड़ेगा मैंने डॉली से कहा की आज वादा कर दोस्त की कभी तू रोयेगी नहीं आज जितना रोना है रो ले आज मैं तुझे रोकूंगी नहीं पर मैं आगे आने वाले वक्त में मैं तुझे बहुत खुश देखना चाहती हूँ  जून कि उस उमस भरी गर्मियों के दिन में भी वो शाम बहुत सुकून दे रही थी । वो मुझसे फिर लिपट गई लगा की पता नहीं ये प्यारा मौका फिर कब मिलेगा बहुत देर तक हम ऐसी ही तारों की छाँव में बैठे रहे उस वक़्त ये भी पता नहीं था कि अब आने वाले वक्त में हम रोज इस तरह अब फिर कभी नहीं मिल सकेंगे । बहुत देर तक हम नई:शब्द होकर सिर्फ एक दूसरे को देखते रहे । और वक्त का पता ही नहीं चला की कब रात हो गई नीचे से किसी ने आवाज भी नहीं दी क्योंकि सब जानते थे की अब तो ऐसे ही मुलाकातें होगी कुछ बातें होंगी और फिर अपनी - अपनी दुनिया में लौट जाना होगा उसके बाद जब हमें नीचे जाना था तो उसे फिर गले लगाया मन ही नहीं कर रहा था एक दुसरे से दूर होने का । हमने एक दुसरे का हाथ थामा औऱ चल पड़े जीवन के एक नए सफर की ओर । मैं छत से नीचे उतरते हुए उसे हमेशा अपने पीछे रखती ताकि अगर वो अँधेरे को देख ना पाए तो मेरे हाथ के सहारे से तुझे पता चल जाएगा की कहाँ कदम रखना है और अगर गिरेगी तो पहले मैं गिरूंगी तो उसे चोट नहीं आयेगी इसलिए मैं उसका हमेशा ऐसे ही हाथ पकड़कर उतारती और नीचे जाने के बाद ही छोडती थी

                 उस रात ना उसे नींद आई ना मुझे ना हमने खाना खाया । अगले दिन सुबह ही डॉली को रायपुर के लिए निकलना था पहले वो मुझसे और मम्मी से मिलने के लिए मेरे घर आई हमने थोड़ी बातें की उसने कहा सबकुछ बिलकुल अच्छा नहीं लग रहा है कुछ भी पहले जैसा नहीं रहा कोपल ! डॉली ने मेरी डायरी में अपना ऑटोग्राफ दिया और कुछ अच्छी बाते लिखी  । उसके बाद वो अपने घर चली गई थोड़ी देर बाद मैं उसके घर गई आंटी से मिली आंटी मेरा माथा चूमा और कहा बेटा खूब खुश रहना और आगे बढ़ना फिर गले लग गई मैं डॉली से कहा था रोना नहीं लेकिन मैं उसके मन की स्थिति को अच्छी तरह समझती थी की स्वाभाविक है इतने साल जिस घर में रही बहुत सारे सपने देखे , जिस मौहल्ले में पली - बढी उसे हमेशा के लिए छोड़कर जाना आसान नहीं था । जिस दुनिया में फिर लौटना ही नहीं था इसलिए वो सबसे मिलकर रोई उसने मुझसे हाथ मिलाया और कहा बाय कोपल आउंगी तो बता दूंगी फोन पर फिर वो लोग कार में बैठकर चले गये

            समय बढ़ गया रोज उसकी याद सताती थी फोन पर ज्यादा बातें नहीं हो पाती थी आधी बातों में बातें खत्म हो जाती थी डॉली कहती थी क्या बात करे यहाँ कुछ अच्छा नहीं लगता है मैं उसे समझाती थी धीरे - धीरे सब सही होगा '' मन लगता नहीं है लगाना पड़ता है " हमारी दोस्ती बहुत ज्यादा गहरी हो गई  । पर उस दिन के बाद से हम हमेशा फोन में बातें करते है कभी - कभी मिलना हो जाता है । कभी वो दुर्ग आ जाती है कभी मैं रायपुर आ जाती हूँ जब भी मिलते है बहुत सारी बातें करते है कोई हमें डिस्टर्ब नहीं करता । एक घटना ने सब कुछ बदल दिया था जो भाई पहले हमें मिलने से रोकता था और कहता था पढ़ाई करो फालतू मिलकर टाइम वेस्ट करते हो आज वही भाई जिम्मेदार और समझदार हो गया था वो अब हमें नहीं रोकता बल्कि जब कभी रायपुर जाती हूँ तो वो मुझे लेना आता है मेरा ध्यान रखता है । अब मैं औऱ डॉली बहुत कम मिल पाते है पहले रोज मिलने का सिलसिला था आज दो साल हो गए है हमने एक दुसरे को देखा तक नहीं है । साथियो आप लोगों को सुनकर यह आश्चर्य होगा की हम दोस्तों की सिर्फ अब तक एक ही फोटो है जो 2006 में मेरे जन्मदिन पर खींची थी वो कहते है ना अच्छी और गहरी दोस्ती कभी फोटो में फिट नहीं होती है ये मित्रता सदा आपके जीवन में और मन मस्तिष्क में फिट रहते है । इसलिए कभी इस बात की कमी महसूस नहीं हुई कि की हमारी औऱ फ़ोटो क्योोंनहीं है आज डॉली एक कंपनी में काम करती है आंटी जी को तो उसी वक्त अंकल की जगह पर ऑफिस में नौकरी मिल गई थी आज तक वो आँखों की उस बीमारी के लिए लड़ रही है अगर आपको किसी जगह के बारे में सूचना मिलती है जहां रतौंधी का अच्छा इलाज होता है तो अवश्य बताइयेगा मैं चाहती हूँ मेरी दोस्त भी अपने अंधेरो से बाहर निकलकर उजाले देखे

हम मित्रों के दूर होने पर कुछ बातें मुझे जो सीख के रूप में मिली वो ये है -

'' जब कोई हमारे पास रहता है ना तो हम उसकी कद्र नहीं करते है पर जब वही व्यक्ति दूर चला जाए हमसे तब हमें समझ आता है की उसका हमारे जीवन में कितना महत्व है तब हम उसकी कद्र करते है ''

'' अच्छी और गहरी दोस्ती कभी फोटो में फिट नहीं होती है ये मित्रता सदा आपके जीवन में और मन मस्तिष्क में फिट रहती है इसलिए हम एक दुसरे फोटो में भी नहीं देखते है ''

'' किसी से अगर लम्बे अरसे से नहीं मिले हो ना तो अफ़सोस मत कीजियेगा क्योंकि लम्बे वक्त तक ना मिलने का दुख और तड़पने के बाद मिलने का जो मजा है ना मित्रों उसकी खुशी अलग होती है जिससे मिलते है ना उससे पूछने की जरूरत नहीं है बस उसकी आँखो की चमक और चेहरे की खुशी और होंठो पर खिलती हुई मुस्कान बता देगी की इस तरह मिलने की खुशी कैसी होती है ''

'' आज भी जब मिलते है तो डॉली को गिफ्ट जरुर देती हूँ कभी उससे खाली हाथ मिलने नहीं जाती हूँ ''

'' गहरी दोस्ती , प्यार, अपनापन , एक दूसरे के लिए समझदारी, सुख - दुःख समझना, और भरोसा एक अच्छी दोस्ती की पहचान है आज भी हम बिना एक दुसरे के कहे एक दुसरे के मन में छिपी बात को समझ जाते है की वो क्यों खामोश है यही हमारी दोस्ती की पहचान है और इसलिए अनोखी है हमारी दोस्ती जो आज भी कायम है और हमेशा रहेगी ''

" खासियत है हमारी मित्रता की बिना कहे बिना बताये समझ जाते हैं क्यों परेशान हैं दुःख , तकलीफ , कोई खुशी या फिर औऱ कोई बात सब बस सांसो के उतार चढ़ाव , अंदरूनी खुशी औऱ दुःख , चुप्पी ये ज़ाहिर कर देते हैं कि वजह क्या है  "


              मेरी दोस्त डॉली जन्मदिन की शुभकामनाएं खूब खुश रहो और आगे बढो !

31 टिप्पणियाँ:

शरद कोकास ने कहा…

अच्छा लिखा है । इसे थोड़ा और एडिट करो तथा छीटे छोटे पैराग्राफ बनाओ । दो पैराग्राफ के बीच थोड़ी गैप भी होना चाहिए ।
डॉली को जन्मदिन की शुभकामनाएं

Unknown ने कहा…

डाली को जन्मदिन की शुभकामनायें

कोपल कोकास ने कहा…

Thank you

कोपल कोकास ने कहा…

जी आँटी जी सादर धन्यवाद

BUDDHI LAL PAL ने कहा…

Dali ko janm din ki badhai

Mahendra Kumar ने कहा…

बहुत ही उम्दा लेखन है। हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (07-02-2017) को "साहित्यकार समागम एवं पुस्तक विमोचन"; चर्चामंच 2872 पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

Pravin Kumar ने कहा…

बढ़िया। अच्छा लगा पढ़कर। कहीं कहीं वर्तनी की अशुद्धियाँ हैं। योजक के रूप में "की" की जगह "कि" कर दीजिए। मुनासिब जगहों पर सही विराम चिह्नों के प्रयोग पर ध्यान दीजिए। शुक्रिया।
डॉली को जन्मदिन की शुभकामनाएं।

कविता रावत ने कहा…

मर्मस्पर्शी प्रस्तुति
डॉली जन्मदिन की बहुत- बहुत हार्दिक शुभकामनाएं

Daisy jaiswal ने कहा…

जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं बहुत सुन्दर

कोपल कोकास ने कहा…

जी सलाह व शुभकामनाओ के लिए धन्यवाद

कोपल कोकास ने कहा…

धन्यवाद डेजी जी

कोपल कोकास ने कहा…

धन्यवाद कविता जी

कोपल कोकास ने कहा…

धन्यवाद महेन्द्र जी

कोपल कोकास ने कहा…

जी सही कहा आपने अंकल जी मुझे यह कला विरासत में मिली है औऱ अपनी भावनाओं को इस तरह लिखना मुझे अच्छा लगता है ।
सादर धन्यवाद आपकी शुभकामनाओ के लिए
यही मेरे औऱ डॉली के रिश्ते की खास बात है कि हम एक दूसरे से मजबूती से आज भी जुड़े हुए हैं वो भी अभी 2 साल हो रहे हैं हमने एक दूसरे को देखा नहीं है ।
आज की पीढ़ी ऐसी अनोखी मित्रता को नहीं समझती है ना अंकल जी । यह तो दो मित्रों पर निर्भर करता है की वे कितनी दूर तक मित्रता और मित्र के साथ जा सकते हैं । सब एक जैसे नहीं होते हैं ।

धन्यवाद

कोपल कोकास ने कहा…

धन्यवाद पाल अंकल जी

कोपल कोकास ने कहा…

नरेश अंकल जी की यह टिप्पणी डिलीट हो गई थी
कोपल औऱ डाली की कहानी बहुत अच्छी लगी , लगता है कोपल को लिखने की कला पिता औऱ दादा जी से विरासत में मिली है .कोपल औऱ डाली की कहानी निस्वार्थ दोस्ती की मिसाल है जिसे इन दिनों हम बच्चों में मिस करते हैं ... दोनों की दोस्ती ताउम्र कायम रहे .
शुभकामनाएं एवं स्नेहाशीष

कोपल कोकास ने कहा…

जिस रिश्ते में स्वार्थ , दुश्मनी बुरा व्यवहार जगह बना लेता है वहां दो लोगों में मित्रता का रिश्ता नहीं रह सकता है ।
इसलिए मैं औऱ डॉली निस्वार्थ प्रेम से जुड़े हुए हैं आज भी औऱ जीवनपर्यंत ऐसे ही जुड़े रहेंगे चाहे दुनिया के किसी भी कोने में रहे मित्रता सदा इतनी गहराई से आगे बढ़ती रहेगी ।

कोपल कोकास ने कहा…

जी सही कहा आपने अंकल जी मुझे यह कला विरासत में मिली है औऱ अपनी भावनाओं को इस तरह लिखना मुझे अच्छा लगता है ।
सादर धन्यवाद आपकी शुभकामनाओ के लिए
यही मेरे औऱ डॉली के रिश्ते की खास बात है कि हम एक दूसरे से मजबूती से जुड़े हुए हैं वो भी अभी दो साल हो रहे हैं हमने एक दूसरे को देखा नहीं है ।
आज की पीढ़ी ऐसी अनोखी मित्रता को नहीं समझती है ना अंकल जी यह तो दो मित्रों पर निर्भर करता है की वे कितनी दूर तक मित्रता औऱ मित्र के साथ जा सकते हैं । सब एक जैसे नहीं होते हैं ।

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