जीवन
में वैसे तो बहुत सारी घटनाएं घटित होती है कुछ हमें याद रहती है कुछ भूल जाते है
कुछ घटनाएं ऐसी भी होती है कि अगर उस घटना से जुडी कोई वस्तु अस्तित्व में है तो
उसे देखने पर हमें वो घटना याद आ जाती है और हम उस घटना को भूल नहीं पाते है । ऐसा ही कुछ मेरे जीवन में भी हुआ था बहुत समय पहले की बात है 1999 की जब मैं 3 क्लास में ही पढ़ती थी । आज के समय में हम कितनी
सारी चीजें खरीदते है जो याद रहती है और कितनी ही चीज़े होती है जो भूल जाते है और
उस वक्त हम कोई भी चीज़ खरीदते थे तो वो हमें याद जरुर रहती थी कि अच्छा ये उस वक्त
खरीदी थी और अगर उसी चीज़ से जुडी घटना घट जाए तो समझिए वो याद में पक्की हो जाती
थी ।
मेरे घर के पास में मेरी बहुत सारी सहेलियाँ रहती
थी चूंकि मैं पूरे मोहल्ले में घूमती रहती थी तो अपनी सहेलियों के घर भी चली जाती
थी और मेरे घर के 10 कदम दूरी पर मेरी सहेली रोशनी का घर था । उस दिन मैंने सोचा कि अभी तो स्कूल जाने में देर है तो तब तक उससे मिलकर
आ जाउंगी बस पापा को यह कहकर निकली पापा मैं रोशनी के घर जाकर आती हूँ थोड़ी देर
में । पापा ने कहा बेटा जल्दी आना निकली तो थी बहुत अच्छे से मगर कुछ क्षण बाद
घटने वाली घटने से बेखबर होकर झूमते हुए नई चप्पल पहनकर चल पड़ी थीं । मुझे इस बात का जरा
भी अंदेशा नहीं था ये कुछ पलों में घटित होने वाली घटना मेरे लिए बहुत बड़ी मुश्किल
खड़ी करने वाली थी ।
मैं
अपने ही घुन मग्न होकर घर से कुछ कदम बढ़ा रही थी अपनी धुन में थी इसलिए मैंने चलते
हुए देखा नहीं था कि नीचे गिट्टी पड़ी हुई है और थोड़ा सा कीचड़ भी फैला हुआ है हालांकि
गलती थी तो मेरी ही मैंने देखा नहीं पर मेरी गलती तो यह भी नहीं थी मैंने नीचे
गिट्टी डाली है । यह तो हमारे देश के लोगो की सबसे पुरानी आदत है कि घर पर कोई कामकाज
चल रहा हो तो काम भले ही खत्म हो जाएं पर कुछ भी हो जाएं गिट्टी या मलबा हम नहीं
उठाएंगे फिर भले ही उस पर चलते हुए कोई राहगीर गिर जाएं या वे खुद गिर जाएं जब 2 -
4 लोग गिर जाएंगे तब वे उठाने आयेंगे गिट्टी वगैरह ।
और फिर वह घटना घट ही गई मेरा ध्यान नीचे
था ही नहीं और पैरो में थी नई चप्पल बस मेरा पैर कीचड़ में फिसला और मैं अपना बैलेंस
नहीं सम्भाल पाई और मुँह के बल नीचे जमीन पर पड़ी हुई गिट्टियों पर गिर गई l वहां बहुत
सारी गिट्टियां थी सो 4 बार उठने के प्रयास करने के बाद भी मैं उठ नहीं पाई और
रोने लगी क्योंकि मेरे घुटने पर गिट्टियां लगकर बुरी तरह मेरे घुटने को चोटिल कर
चुकी थी बुरी तरह गिरने के बाद और ना उठ पाने के कारण जब तक कोई उठाने नहीं आया तब
वहीं चीखते हुए दर्द से तड़पते हुए पड़ी रही ।
यह तो अच्छा था कि उस दिन ऊपर नानी अम्मा
बैठी हुई थी और मेरे पापा घर पर ही अपना लेखन कार्य कर रहे थे ।नानी ने जब मुझे गिरते हुए
देखा तो नानी घबरा गिया नानी ने तुरंत मेरे पापा को ऊपर से आवाज दी आवाज़ का स्वर कुछ
ऐसा ही था नानी मेरे पापा को आवाज़ दी अरे शरद बेटा जल्दी आ बेटा देख तेरी लड़की गिर गई
उससे उठते नहीं बन रहा है । पापा ने अपनी कविता बीच में छोडी और मुझे उठाने के लिए दौड़ चले आए । पापा
ने मेरे पास आकर बोला अरे बेटा कैसे गिर गई तुम तो रोशनी के घर जा रही थी फिर कैसे
गिर गई । पापा ने कहा कि अच्छा चलो अपना हाथ दो पर मुझे इतना तेज़ दर्द हो रहा था
कि मैं स्वयं से उठ भी नहीं जा रहा था । इसलिए फिर पापा ने मुझे अपनी
गोद में उठाया और दौड़कर घर के अंदर लेकर आये मेरे बाएँ घुटने से बहुत तेजी से खून
निकल रहा था और खून लगातार निकलने की वजह से मेरी फ्राक भी खराब हो गई थी ।
पापा अंदर लेकर आये तो पहले मुझे आराम से
सोफे पर बैठाया और कहा धीरे से अपने पैर को सीधा करने की कोशिश करो । पापा ने
फ्राक हटाकर देखा चोट बहुत गहरी लगी थी । फिर पापा अंदर जाकर
तुरंत मग्गे में पानी लेकर आये और मेरे घुटने पर लगे खून को साफ़ किया मुझे बहुत
ज्यादा तेज़ दर्द हो रहा था पापा मुझे चुप कराते हुए चोट साफ़ कर रहे थे । साफ़ करने के बाद फ्रिज में रखी ठंडी सोफ़्रमाइसिन क्रीम लगाई ताकि दर्द से कुछ
राहत मिल सके ।
फिर पापा ने मुझे खाने के लिए पोहा दिया क्योंकि मैंने सुबह
से कुछ खाया नहीं था ।
पापा ने कहा अभी आराम कर लो मम्मी आ
जाइयेगी तो डॉक्टर को दिखा देंगे पर मेरा दर्द तो इतनी अभी राह नहीं देख रहा था
कि मम्मी आ जाएँ तो उनके साथ जाएं । दर्द और तेज़ होने लगा फिर दर्द में कराहते हुए ही मैंने कपड़े
बदले । पापा किसी तरह मुझे स्कूटर पर बैठाकर आराम से पास के मौहल्ले में डॉक्टर
साहू अंकल थे उनके क्लिनिक पर लेकर गये । मुझसे दर्द की वजह से खड़ा भी नही हुआ जा
रहा था डॉक्टर अंकल ने चोट देखी और तुरंत दवाई दे दी और एक दर्द कम करने का एक इंजेक्शन
भी लगा दिया और कहा ध्यान रखियेगा ठीक हो जायेगी चोट पर अभी थोड़ा समय लगेगा ।
फिर हम घर आ गये घर आकर दवाई खिलाकर पापा ने
मुझे सुला दिया उस दिन स्कूल नहीं जा पाई क्योंकि चोट लगी थी पापा ने दवाई खाकर
सुला दिया था । मम्मी आई 12 बजे स्कूल से तो मम्मी ने पूछा आज स्कूल नहीं गई तो मम्मी को पूरी घटना बताई । फिर मम्मी ने भी मेरा ध्यान रखना शुरू किया क्योंकि इस
चोट कि वजह से मैं बिलकुल असहाय हो गई थी । फिर मेरी मुश्किलों वाले दिनों की
शुरुआत हुई मैं ना बैठकर नहा पाती थी , ना खड़े हो पाती थी , ना चल पाती थी , ना बैठकर खाना खा पाती
थी , ना टॉयलेट जाती पाती थी , पेअर सीधा नहीं कर पाती थी । एक बार बैठ जाती थी तो फिर दुबारा खड़े नहीं हो पाती
थी मेरे सारे काम मम्मी ही करती थी । चोट लगने की वजह से मैं बहुत दिनों तक स्कूल
भी नहीं गई थी इसलिए फिर मम्मी ने रिक्शे वाले भैया से स्कूल में छुट्टी की
एप्लीकेशन भिजवा दी थी इस तरह पूरे 10 दिन स्कूल नहीं गई ।
अप्रैल का महीना शुरू हो गया था स्कूल के साथियों ने घर वापस आते वक्त बताया कि वार्षिक परीक्षा शुरु होने वाली
है तो फिर सिलेबस पता करने के लिए तुम्हें स्कूल जाना पड़ेगा । किसी
तरह हिम्मत करके मम्मी मुझे रिक्शे में बैठाकर स्कूल जाने देती थी । स्कूल में भी मुझसे बैठा नहीं जाता था तब तक चोट तो थोड़ी सी ठीक हो गई थी
पर पूरी तरह ठीक होने में काफी वक्त लगेगा इसलिए मेरे स्कूल के साथी मेरी बहुत मदद
करते थे । मुझे झुकने नहीं देते थे , मेरे बेंच पर बैठने के लिए लोग रास्ता बना
देते थे चोट लगे होने की वजह से मेरी चाल ही बदल गई थी सीधे हाथ बेंच पकड़कर और
बाएं घुटने की तरफ का स्कर्ट अपने हाथ से उठाकर ही पूरे स्कूल में चलना पड़ता था ।
इसे ज़ूम करके देखिये दोनों सिस्टर्स के बीच में पीछे हाथ किए हुए मैं चश्मे में खड़ी हुई हूँ : कोपल |
मैंने अपने पैर से फिर कोशिश कि मगर
मेरा पैर बायाँ पैर जाकर बेंच में फंस गया और चोट वाली जगह पर फिर से चोट लग गई
पास बैठे स्टूडेंट्स ने भी कहा अरे बेंच हटा दो न उसे बैठना है तो बदतमीज़ लड़के ने
कह दिया तू क्यों बोल रहा है तू चुपचाप बैठे रह । फिर मैडम ने भी कहा मगर उनकी बात भी उसने नहीं सुनी । मैंने देखा मेरे घुटने से खून बहने लगा मैंने रोते हुए प्लीज कहा मगर वो
फिर भी नहीं माना और मेरे रोने पर वो लड़के हंसने लगे मैंने उन्हें चिल्लाया और कहा
मुझे चोट लगी है इसलिए मैंने आपसे बेंच आगे सरकाने के लिए कहा अगर चोट नहीं लगी होती
तो तो कूदकर चली जाती मैंने उन लड़कों से कहा कि आप लोग बहुत लोग बुरे औऱ बदतमीज हो जो किसी की हेल्प करना नहीं जानते
बल्कि उसकी मजबूरी सिर्फ हंसना जानते है । मेरी डांट और गुस्सा सुनकर
उन लड़कों का हंसना मजाक उड़ाना तो बंद हो गया था मगर उन
लोगो ने बेंच नहीं आगे सरकाई । मजबूरन मुझे अपने दोनों पैर बाहर निकालकर आड़े बैठे हुए 3 घंटो तक पेपर
देना पड़ा । बाद में वही पेपर मेरे बहुत अच्छा बना था ।
परीक्षाओं के दौरान मैं जब भी स्कूल जाती थी
तो रिक्शे वाले अंकल पहले दुसरे बच्चों को स्कूल छोड़कर आते थे और मुझे सबसे अंत
में लेकर आते थे ताकि मैं आराम से जा सकूं क्योंकि दुसरे बच्चों के साथ पैर रखने
में तकलीफ बहुत होती थी । जाते वक्त रिक्शे वाले अंकल मुझे गोद में उठाते थे और पेपर के बाद भी मुझे लिटाकर उतारते मम्मी और रिक्शे वाले अंकल मुझे लिटाकर
उतारते मम्मी और रिक्शे वाले अंकल ।परीक्षा के बाद 2 - 3 महीने लगे चोट पूरी तरह ठीक
होने में ।
मात्र एक मालूमी सी चप्पल भी मेरे लिए
यादगार हो गई एक चोट जो दे गई थी यह चोट मुझे हमेशा याद रहेगी आज वह चप्पल तो नहीं है
मेरे पास पर मेरे बाएँ घुटने पर उस चोट का निशान आज भी कायम है
। कभी - कभी ऐसा भी होता है कि हम बहुत सारी चीज़े खरीदते है और वो चीज़
और उससे जुडी कोई घटना हमें
हमारे लिए
हमारे जीवन की ना भूलने वाली घटना बन जाती है ये तो चीजे है जिन्हें
हम वक्त के साथ भूल जाते है या फिर जीवनपर्यन्त याद रखते है ।
3 टिप्पणियाँ:
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 15.02.2018 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2881 में दिया जाएगा
धन्यवाद
बहुत खूब !
धन्यवाद गगन जी
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