अब अमृत बांटने की जब बारी आई तो कंगन की
तरह सारे देवताओं को बैठा दिया गया और विष्णु जी उसमें मोहिनी रूप धारण करके यानी
कि स्त्री का रूप धारण करके सबको अमृत बांटने लगे । सब
अपने-अपने प्याले आगे बढ़ा रहे थे लेकिन उस बीच एक दाना भी देवताओं का रूप धारण
करके पंकज में आकर बैठ गया सूर्य और चंद्र वहीं पर बाजू में बैठे थे । पहले मनुष्य जब सूर्य और चंद्र
के बारे में नहीं जानता था तो वह देवता ही समझता था प्रकृति के सारे अनूप उसके लिए
देवता ही थे जैसे सूर्य देवता ताज चंद्र देवता तुषार एक देवी थी पानी बरसाने वाला इंद्र
एक देवता था पवन एक देवता था मारुत जिसे कहते थे ऐसे ही सारे प्राकृतिक देवी
देवताओं के नाम थे । अब जब पंगत में आकर वह दानव बैठ गया तो थोड़ी देर में ही उसे चंद्र और
सूर्य ने पहचान लिया और उसे पहचान कर और उसके इस दुस्साहस पर कि क्यों वह आकर देवी
देवताओं की पंगत में बैठ गया है विष्णु ने अपने चक्र से उसका सिर धड़ से अलग कर
दिया । लेकिन तब तक वह थोड़ा सा अमृत तो पी चुका था इसलिए उसकी मृत्यु नहीं हुई वह
अमर हो गया और उसका जो शेर था वह राहु बन गया और जो धड़ था केतू बन गया और इन्ही राहु
और केतु को ज्योतिष में छाया ग्रह कहा जाता है। ज्योतिषियों ने लोगो को इस धोखे
में रखा है यदि किसी की कुंडली में राहू और केतु गलत स्थान पर हों तो उसके जीवन
में भू-चाल ला देते हैं। इसी गलत बात के वे लोगों से पैसे लूटते है । उसके बाद से यह मान्यता चली आ रही है कि सूर्य और चंद्र से अपना बदला
लेने के लिए राहु और केतु वर्ष में एक दो बार सूर्य और चंद्र को भक्षण करते हैं
यानी कि उसको खा जाते हैं और यही ग्रहण माना जाता है । आज
विज्ञान ने खोज लिया है कि ग्रहण का कारण किसी भी तरह से सूर्य और चंद्र और राहु
या केतु द्वारा भक्षण किया जाना नहीं है जबकि सूर्य और चंद्र ग्रहण का मुख्य कारण
है कि जब सूर्य और चंद्रमा के बीच में पृथ्वी आती है तो पृथ्वी की चाल चंद्रमा पर
पड़ती है और चंद्र ग्रहण होता है उसी तरह जब सूर्य और पृथ्वी के बीच में चंद्रमा आ
जाता है तो सूर्य का वह हिस्सा पृथ्वी से दिखाई नहीं देता इसलिए सूर्य ग्रहण पड़ता
है यह एक सर्वविदित तथ्य है अब की पौराणिक कथा थी ।
अब पौराणिक कथा इस प्रकार की और लोगों को सूर्य
और चंद्र ग्रहण के बारे में नहीं मालूम था इसलिए धीरे-धीरे सूर्य और चंद्र को लेकर
ग्रहण को लेकर अंधविश्वास पनपते गए जब अंधविश्वास पर तो यह कहा जाने लगा कि
क्योंकि इस कालखंड में राहु और केतु चंद्रमा सूर्य को ग्रहण करते हैं इसलिए समय
अशुभ है लोगों को इस बीच खाना पीना नहीं चाहिए व्रत उपवास करना चाहिए और ग्रहण
खत्म हो जाने के बाद स्नान स्नान करना चाहिए यह भी मन्नत मानी गई कि इस समय कोई एक
शाम होती है जो कि धरती पर पड़ती है और उस इच्छाओं के कारण गर्भवती स्त्रियों को
बाहर नहीं निकलना चाहिए बच्चों को बाहर नहीं निकलना चाहिए स्त्री बाहर निकलेगी तो
उनके गर्भ को नुकसान हो जाएगा उसी तरह से पूरे देश की जनता को 12 राशियों में बांट
दिया गया और यह माना गया कि अलग-अलग राशि पर अलग-अलग प्रभाव होता है चंद्र ग्रहण
और सूर्य ग्रहण का लेकिन इसमें कोई भी सच्चाई नहीं है । यह
सारे नियम पंडितों ज्योतिषियों ने बनाए थे जिन्हें जनता को बेवकूफ बनाकर उनसे कमाई
करनी थी और सूर्य ग्रहण चंद्र ग्रहण के बहाने दान करने की उन्होंने अपील की ताकि
लोग डर के मारे दान करें इसमें उनका फायदा था ।
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