ग्रहण से डरे नहीं वैज्ञानिक बनें

               
                 आज हम लोग सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण के वैज्ञानिक तथ्यों को अच्छी तरह से जानते हैं लेकिन एक समय था जब कि मनुष्य इनके बारे में बिल्कुल नहीं जानता था और उसे लगता था कि यह किसी दैवीय प्रकोप के कारण होते हैं हमारे देश में राहु और केतु द्वारा सूर्य और चंद्र को भक्षण किए जाने की प्रथा की कहानी प्रचलित है पद्म पुराण के अनुसार यह कहानी इस प्रकार है कि एक बार देवताओं और दानवों में यह होड़ लगी कि कौन सर्वश्रेष्ठ है और इसके लिए उन्होंने समुद्र मंथन करने का विचार किया समुद्र मंथन करने के लिए उन्होंने मंदराचल पर्वत को मथानी की तरह इस्तेमाल करने का विचार किया और वासुकीनाथ को उस में रस्सी की तरह लपेटा जिस तरफ नाग का सिर था उस तरह उन्होंने दानों को खड़ा किया और जिस तरफ पूछी थी उस तरफ देवता खड़े हो गए नाग की फुपकार से दानों काले हो गए ऐसा भी एक मिथक है अब जब समुद्र मंथन शुरू हुआ तो समुद्र के गर्व से 11 चीजें निकलना शुरू है उसमें ऐरावत हाथी निकला धन्वंतरि निकले लक्ष्मी जी निकली और अमृत का कलश भी निकला जब अमृत का कलश निकला तो सारे देवताओं ने सोचा कि इसको अब हम आपस में बांट लेंगे सबसे पहले विश निकला था तो विश भी शिव ने अपने कंठ में धारण कर लिया था ऐसा माना जाता है कि इसके कारण शिव जी का गला नीला हो गया
                अब अमृत बांटने की जब बारी आई तो कंगन की तरह सारे देवताओं को बैठा दिया गया और विष्णु जी उसमें मोहिनी रूप धारण करके यानी कि स्त्री का रूप धारण करके सबको अमृत बांटने लगे सब अपने-अपने प्याले आगे बढ़ा रहे थे लेकिन उस बीच एक दाना भी देवताओं का रूप धारण करके पंकज में आकर बैठ गया सूर्य और चंद्र वहीं पर बाजू में बैठे थे   पहले मनुष्य जब सूर्य और चंद्र के बारे में नहीं जानता था तो वह देवता ही समझता था प्रकृति के सारे अनूप उसके लिए देवता ही थे जैसे सूर्य देवता ताज चंद्र देवता तुषार एक देवी थी पानी बरसाने वाला इंद्र एक देवता था पवन एक देवता था मारुत जिसे कहते थे ऐसे ही सारे प्राकृतिक देवी देवताओं के नाम थे अब जब पंगत में आकर वह दानव बैठ गया तो थोड़ी देर में ही उसे चंद्र और सूर्य ने पहचान लिया और उसे पहचान कर और उसके इस दुस्साहस पर कि क्यों वह आकर देवी देवताओं की पंगत में बैठ गया है विष्णु ने अपने चक्र से उसका सिर धड़ से अलग कर दिया लेकिन तब तक वह थोड़ा सा अमृत तो पी चुका था इसलिए उसकी मृत्यु नहीं हुई वह अमर हो गया और उसका जो शेर था वह राहु बन गया और जो धड़ था केतू बन गया और इन्ही राहु और केतु को ज्योतिष में छाया ग्रह कहा जाता है। ज्योतिषियों ने लोगो को इस धोखे में रखा है यदि किसी की कुंडली में राहू और केतु गलत स्थान पर हों तो उसके जीवन में भू-चाल ला देते हैं। इसी गलत बात के वे लोगों से पैसे लूटते है उसके बाद से यह मान्यता चली आ रही है कि सूर्य और चंद्र से अपना बदला लेने के लिए राहु और केतु वर्ष में एक दो बार सूर्य और चंद्र को भक्षण करते हैं यानी कि उसको खा जाते हैं और यही ग्रहण माना जाता है आज विज्ञान ने खोज लिया है कि ग्रहण का कारण किसी भी तरह से सूर्य और चंद्र और राहु या केतु द्वारा भक्षण किया जाना नहीं है जबकि सूर्य और चंद्र ग्रहण का मुख्य कारण है कि जब सूर्य और चंद्रमा के बीच में पृथ्वी आती है तो पृथ्वी की चाल चंद्रमा पर पड़ती है और चंद्र ग्रहण होता है उसी तरह जब सूर्य और पृथ्वी के बीच में चंद्रमा आ जाता है तो सूर्य का वह हिस्सा पृथ्वी से दिखाई नहीं देता इसलिए सूर्य ग्रहण पड़ता है यह एक सर्वविदित तथ्य है अब की पौराणिक कथा थी
             अब पौराणिक कथा इस प्रकार की और लोगों को सूर्य और चंद्र ग्रहण के बारे में नहीं मालूम था इसलिए धीरे-धीरे सूर्य और चंद्र को लेकर ग्रहण को लेकर अंधविश्वास पनपते गए जब अंधविश्वास पर तो यह कहा जाने लगा कि क्योंकि इस कालखंड में राहु और केतु चंद्रमा सूर्य को ग्रहण करते हैं इसलिए समय अशुभ है लोगों को इस बीच खाना पीना नहीं चाहिए व्रत उपवास करना चाहिए और ग्रहण खत्म हो जाने के बाद स्नान स्नान करना चाहिए यह भी मन्नत मानी गई कि इस समय कोई एक शाम होती है जो कि धरती पर पड़ती है और उस इच्छाओं के कारण गर्भवती स्त्रियों को बाहर नहीं निकलना चाहिए बच्चों को बाहर नहीं निकलना चाहिए स्त्री बाहर निकलेगी तो उनके गर्भ को नुकसान हो जाएगा उसी तरह से पूरे देश की जनता को 12 राशियों में बांट दिया गया और यह माना गया कि अलग-अलग राशि पर अलग-अलग प्रभाव होता है चंद्र ग्रहण और सूर्य ग्रहण का लेकिन इसमें कोई भी सच्चाई नहीं है यह सारे नियम पंडितों ज्योतिषियों ने बनाए थे जिन्हें जनता को बेवकूफ बनाकर उनसे कमाई करनी थी और सूर्य ग्रहण चंद्र ग्रहण के बहाने दान करने की उन्होंने अपील की ताकि लोग डर के मारे दान करें इसमें उनका फायदा था

             
           आज हम वैज्ञानिक युग में जी रहे हैं और बहुत अच्छी तरह से जानते हैं कि सूर्य ग्रहण या चंद्र ग्रहण किस प्रकार होते हैं लेकिन अभी भी धार्मिक लोगों द्वारा या अंधविश्वासी लोगों द्वारा सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण के समय मंदिर के कपाट बंद कर दिए जाते हैं ऐसा लगता है जैसे कि मनुष्य से ज्यादा देवताओं पर चंद्र ग्रहण या सूर्य ग्रहण का असर होने वाला है लेकिन सच्चाई तो यह है कि सूर्य ग्रहण या चंद्र ग्रहण पर बाहर निकलने पर किसी भी तरह का प्रभाव मनुष्य पर नहीं होता इसमें किसी तरह की छांव नहीं होती जो मनुष्य पर पड़ती है यदि छांव ही है तो हम छाता लेकर अगर निकलते हैं तब वह भी वहां होती है स्त्रियों के बारे में मैं एक बात कहना चाहूंगी कि गर्भवती स्त्री को चंद्र ग्रहण में बाहर निकलने पर यह कहा जाता है कि यदि ग्रहण की छाया उस पर पड़ जाएगी तो उसका गर्भ नष्ट हो जाएगा या जो शिशु उसके गर्भ में है वह विकलांग पैदा होगा यह महज एक अंधविश्वास है हमारे देश में वास्तविकता यह है कि कुपोषण की वजह से या गर्भवती स्त्रियों को पर्याप्त पोषण ना मिल पाने के कारण वैसे ही बहुत सारे बच्चे विकलांग उत्पन्न होते हैं या इसके अन्य कारण हो सकते हैं मेडिकल कारण भी कहीं होते हैं इसका कारण ग्रहण तो कदापि नहीं होता बेहतर होगा कि गर्भवती स्त्रियों को उचित खुराक दी जाए उचित विटामिन दिए जाएं समय पर टीके लगाए जाएं उन्हें बढ़िया खाना खिलाया जायफल खिलाया जाएं ताकि उनकी संतान जो है वह हष्टपुष्ट पैदा हो ग्रहण का इसमें कहीं भी कोई रोल नहीं है  आज तो गर्भवती स्त्रियाँ भी ग्रहण के दिन बाहर निकलती है घूमती फिरती है अपने काम पर जाती है इन अंधविश्वासों से बाहर निकलकर अपने विज्ञान को ग्रहण के बारे में पढ़िए समझिए वैज्ञानिक बनिए ।

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