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बीच में मैं कोपल मेरे दाएं तरफ इशरत बाएँ तरफ प्रीती |
हम तीन सखियाँ है प्रीती और इशरत और
मैं हम तीनो की मुलाक़ात तब हुई जब हम तीनों ने एम्.एस.सी के ह्यूमन डेवलपमेंट विषय
में एडमिशन लिया हालांकि मैं इशरत को पहले से जानती थी क्योंकि मैं जिस स्कूल में
थी उसी स्कूल स्कूल में इशरत भी थी वो मेरी उस वक्त सीनियर थी कॉलेज के एडमिशन
रजिस्टर में नाम देखा तो लगा कि हाँ ये वही होगी जब हम सब क्लास में पहली बार मिले
तो एक दुसरे के नाम और चेहरों से परिचित हुए , एक दूसरे की कमियां खूबियां तो साथ
रहते ही पता चला थी ।
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पीले सूट में इशरत ,गुलाबी में प्रीती , फिरोजी में मैं कोपल |
धीरे-धीरे जब क्लासेस लगना शुरू हुई तो हम रोज
एक दूसरे के आने का इन्तजार करते थे शुरुआत में हम ज्यादा बातें नहीं करते थे पर
एक क्लास में थे इसलिए बाते तो करना जरूरी था सबसे ज्यादा लड़ाई मेरी और इशरत की
होती थी उसका स्वभाव ही ऐसा था कि वह जरा सी बात पर गुस्सा करने लगती थी तो मेरी
उसकी जबर्दस्त लड़ाई हो जाती थी मैं उस पर बिफर जाती थी क्योंकि मेरी आदत भी ऐसी थी कि
किसी ने कुछ बोला तो दिमाग में चिंगारी भड़कने लगती प्रीती ही थी जो मेरी और इशरत की
लड़ाई को सुलझाती थी प्रीती और मेरी लड़ाई याद भी नही है कि हुई थी या नही पर इशरत
और मेरी लड़ाई तो क्लास के अलावा और भी लोगों को पता चल जाती थी कहते है दो बर्तन
पास आयेंगे तो बजेगे ही बस यही होता था हमारी लड़ाई नोट्स एक
दुसरे को देने के लिए , क्लास में इन्तजार नही किया कैंटीन चले गये , फोन किया कि
आज नहीं आ रहे है , मेम को क्लास में कौन बुलायेंगा ( इसलिए क्योंकि हम हमारे सब्जेक्ट
में 3 ही थे इसलिए हमें मेम को बुलाना पड़ता था ) बाद में हमने इसका तोड़ निकाल लिया
था हप्ते के 6 दिन में तीनों बारी - बारी से बुलाने जायेंगे ।
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हम तीन |
कुछ ही वक्त में हम तीनों आपस में
घुलमिल गये थे ऐसे जैसे शरबत में शक्कर घुल जाती है और नई मिठास ले आती है इतनी
गहरी दोस्ती हो गई कि हम क्लास के सारे काम मिलकर ही करते थे , एक दूसरे की मदद
करना क्योंकि हमारा विषय ही ऐसा था कि हम 2 बेंच मिलाकर 3 तीन लोग काम करते थे
बहुत सारे सब्जेक्ट के सेमीनार बनाना , प्रोजेक्ट , प्रेजेंटेशन बनाना , नोट्स
बनाना , प्रैक्टिकल का काम करना लिखने का काम ही बहुत होता था टिफिन में लाती थी
और प्रीती पर हमें खाने का ही समय नहीं मिलता हम अपने टिफिन में जानबुझकर ऐसी
चीजें रखते थे तो सूखी हो जिसे आराम से खाया जा सके हम रोज आपस में बांटकर ही खाते
थे और काम किया जा सके लिखने का । कभी - कभी ऐसा भी होता था कि हमारी चोबे मैडम हमें
कहकर जाती बेटा काम खत्म करके अब तुम लोग टिफिन भी कर लो पर वो जब आती थी लिखने का
काम खत्म ना हुआ हो तो हम खाना भूल जाते थे फिर हम मेम से बोलते मेम हम लोग टिफिन
नहीं कर पायें है क्या करे मेम तो मेम कहती ठीक है बच्चों आप लोग पहले खा लो फिर
मुझे बुला लेना हम जल्दी - जल्दी खाते और फिर जाकर मेम को बुलाते
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काम और कुछ देर का ब्रेक लाइफ का सबसे सुकून वाला टाइम |
प्रैक्टिकल के काम के लिए हमें कहीं भी जाना पड़ता था ढेर सारा काम और वक्त
कम हमारे विषय में हमें कुछ समझ ही नहीं आता सब भूल भुलैया जैसा हो जाता था दिमाग़
के ऊपर से आधी से ज्यादा चीजें हवा में उड़ जाती थी तब हम तीनों अलग - अलग बेंच पर
बैठे सोचते रहते थे कि क्या किया जाएं कुछ समझ ही नहीं आ रहा है हमारा हाल उन
चारों सेमेस्टर में ऐसा था कि पल में खुशी पल में दुखी इतना तनाव होता था फिर भी
हम साथ बैठते थे और एक दूसरे की प्रोब्लम्स को हम करते थे अरे यहाँ समझ नहीं आ रहा
है चल बैठकर ठीक करते है एक दूसरे की मदद करते - करते कभी कभी ऐसा होता था कि हम
अपना भूल जाते थे ।
हमारे सब्जेक्ट में हमारी सिर्फ दो ही
शिक्षिकाएं थी एक चोबे मेम और एक वर्मा मेम हमारी सबसे ज्यादा प्रिय चोबे मेम थी
हर सब्जेक्ट के नोट्स देना सब सब्जेक्ट्स को बहुत बारीकी से आराम से समझाना तब जब
तक कि हम समझ ना जाएं हर छोटी सी बात में चोबे मेम हमारी मदद के लिए तैयार रहती थी
हमारी परेशानी वो हमारे चेहरे पढ़कर समझ जाती थी और पास बुलाकर पूछती थी बहुत प्यार
से कि बेटा बताओ क्या बात है हमें कभी डर नहीं लगा चोबे मेम से और हमारी वर्मा मेम
चोबे मेम की बिलकुल विपरीत थी कभी - कभी वो क्लास में बुलाने पर नहीं आती थी उनका
स्वभाव ही निराला था नोट्स ना देना ना ये बताना उनके सब्जेक्ट के सिलेबस में क्या
है कहाँ से ,कौन सी किताब से पढ़ना है उन्होंने कभी हमारी मदद नहीं कि हमेशा यही
कहती फिरती थी पूरे स्टाफ में कि ये तीनों कुछ करते ही नहीं है सब मैं करती हूँ ये
लोग सिर्फ बातें करते है बैठकर
। उनकी बातें सुनकर हम तीनों बिलकुल गुस्से के रौद्र रूप में आ जाते थे
ऐसा लगता था कि अभी जाकर उनसे कहें कि हमें नहीं पढ़ना आपसे पर हम तीनों पर प्रेशर
था पढ़ाई का इसलिए कुछ नहीं कर पाते थे ।
हम तीनों मैं , प्रीती , इशरत कभी कैंटीन , कभी गार्डन , कभी किसी स्कूटी
पर , कभी एक दूसरे के घर पर बैठकर प्रैक्टिकल और बाक़ी काम करते थे और हमें देखकर
हमारे ही साथ वाले जो टेक्सटाइल सब्जेक्ट में थे कहते थे कि बाप रे कितना ज्यादा
काम करते हो तुम लोग पूरे समय लिखते रहते हो हम तीनों एक साथ बोलते थे आ जाओ ना
हेल्प कर दो तो वो लोग बोलते हुए निकल जाते अरे हमारे पास भी बहुत काम है
। धीरे - धीरे हम लोग साथ रहते हुए एक दूसरे को बहुत समझने लगे थे कोई
भी तकलीफ होती थी तो हम आपस में बाते करके सोल्व किया करते थे हमारी तिकड़ी पूरे
कॉलेज में फेमस थी क्योंकि हम हमारे सब्जेक्ट में सिर्फ तीन ही थे तो इसी नाम से
फेमस हो गए थे हम ज्यादा वक्त लाइबेरी में रहते थे । एक दूसरे से नोट्स
शेयर करते , कभी होस्पिटल में सेमीनार के टोपिक के लिए रोज चक्कर काटते रहते इस
भाभी से सवाल करने के लिए तो कभी कोई और भाभी से ऐसा भी होता था कोलेज पहुंचकर हम
क्लास ना जाकर सुबह से होस्पीटल में जाकर सवालों की तैयारी करते हम काम की शुरुआत
ही पहले कॉफ़ी बिस्किट करते थे कि काम शुरू करना कर लो वरना जे भी खाने को नहीं मिलेगा
और कभी जल्दीबाजी में चाय कॉफ़ी भी नहीं मिल पाता था ।
मोबाइल फोन हमारे लिए सबसे बड़ी चीज़ था उस वक्त एक दूसरे को टाइम तो बता
देते थे कि इतने बजे पहुंच जाना है पर जरा आगे पीछे होते ही हमारी जान सूखने लगती
कि अरे क्या हो गया पहुंचे नहीं सबसे ज्यादा देर प्रीती को ही होती थी हम उसके आते
ही इतनी जल्दी भागते थे जैसे होस्पिटल में अंदर कोई हमारे घर का भर्ती हो चुपचाप
बाहर इंजतार करते रहते कब भाभी आए तो सवाल पूछे इस चक्कर में मुन्ने के आने पर
दोनों तरफ की मिठाई का लुत्फ़ भी उठाया और डबल सवाल भी पूछते थे । कभी हमारा सेमीनार प्रोजेक्ट स्वीकार नहीं करती वर्मा मेम तो हमें लगता
था जैसे सारी मेहनत बेकार चली गई ।
इन्ही कॉलेज की ख़ास दिनों में वो
घटना कभी भुलाए नहीं भूलती जब हम एम् . सी के पहले ही सेमेस्टर में थे और उस दिन
सेकेण्ड सेमेस्टर के लिए एडमिशन फॉर्म भरना था और हमारे एक सेब्जेट में हमें
नर्सरी के बच्चों को टीचिंग देना होती थी जिसके हमें मार्क्स मिलते थे हमारी वर्मा
मेम तो स्वभाव से रुखी थी जिन्हें हमारा काम कभी पसंद ही नहीं आता था हम सब पढ़ा ही
रहे थे तभी वहां मेम आई और उन्होंने हमें बहुत डांट लगाई कि तुम कुछ करते नहीं हो
और बहुत सारी बातें सुनाई उस स्कूल की प्रिंसिपल मेम से हम लोगों की शिकायत कर दी
उन मेम ने भी हम लोगों को बहुत डांटा और ये सब देख सुनकर हम कुछ देर वही बैठे और
हमने फैसला कर लिया कि हम सब अब आगे कि पढ़ाई नहीं करेंगे और अपना सामान उठाया और
कॉलेज की और निकल गये उसी दिन सेकेण्ड सेमेस्टर की परीक्षा के लिए फॉर्म भरना था पर हम तीनों को इतना रोना आ रहा
था कि ना मन हो रहा था ना कदम उठ रहे थे कि जाकर फॉर्म ले आये हम सब क्लास में गये
और अलग - अलग बेंच पर गुमसुम से बैठ गये ऐसे जैसे सब खत्म हो गया है हम तीनों बहुत
रोए तभी वहीं से हमारी कोबे मेम निकल रही थी उन्होंने हम तीनों को ऐसे रोते हुए
देखा तो वो घबराते हुए उन्होंने प्यार से पूछा कि बताओ बेटा क्या बात पर हमारा
रोना तो बंद ही नहीं हो रहा था गले से आवाज़ ही नहीं निकल रही थी मेम ने हम तीनों
से कहा कि बेटा पहले चुप हो जाओ फिर एक - एक करके बताओ फिर हम तीनो ने बारी - बारी
से उन्हें बताया कि वर्मा मेम ने हमें कितना डांटा वो भी प्रिंसिपल मेम के सामने
चोबे मेम ने कहा वर्मा मेम को ऐसा नहीं करना चाहिए था वो प्रिंसिपल मेम कौन होती
है हमारे बच्चों को डांटने वाली मेम ने कहा घबराओ मत बच्चों मैं तुम सबके साथ हूँ
।
चोबे मेम के ही इस स्नेहपूर्ण व्यवहार के
कारण और साथ की वजह से ही हम तीनों में एम.सी की पढ़ाई आगे जारी रखने की ललक जागी
और हम सब नीचे जाकर फॉर्म लेकर आये और जमा करके कुछ नया करने के और अपने कदम आगे
बढ़ा लिए इस घटना से हमें एक सीख मिल गई थी ये कॉलेज की ज़िन्दगी है और जब तक हम
यहाँ है तब तक ऐसी छोटी -मोटी मुशिकलें तो आती पर हमें हिम्मत नहीं हारना है बल्कि
आगे बढ़ते जाना है और हर डांट को चुनौती समझकर स्वीकार करना है और इसी हिम्मत हौसले से हम तीनों एम्.एस सी बहुत अच्छे मार्क्स से पास
किया ।
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हमारी तिकड़ी |
ऐसे अनोखे दिन थे वो आज भी
याद करो सारे दिन याद कैलेंडर के पन्नों की तरह दिमाग़ में पलटने लगते है वो लम्हे
यादों में कैद होने लगते है इन दोनों के साथ रहते हुए बहुत अच्छी बातें सीखने मिल
गई जैसे एक दुसरे के साथ ईमानदारी से काम करना , मिल बांटकर रहना , किस तरह किसी
मुश्किल को कैसे हल करना है हम तीनों मैं प्रीती इशरत आज भी अच्छे दोस्त है आज इशरत और प्रीती की शादी हो गई और वे अपने परिवार में खुशहाल जिन्दगी बिता रही है आज भी हम एक दूसरे के घर जाते है तो बैठकर याद करते है कॉलेज के वक्त
की कि इशरत ,प्रीती और कोपल कैसे हुआ करती थी और याद करके हम हँसते है । आज भी कॉलेज की गलियों में उतनी ही मशहूर है हम सखियों की कहानी जितनी उस वक़्त थीं जब हम पढ़ते थे ।
5 टिप्पणियाँ:
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (28-02-2018) को ) "होली के ये रंग" (चर्चा अंक-2895) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
राधा तिवारी
अच्छी यादे सँजोये हुए पोस्ट
यादगार लम्हे और दोस्तो के साथ बिताए पल अनमोल होते हैं
धन्यवाद रोहितास जी
very nice
very nice
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