यह मेरे मम्मी पापा की वैवाहिक पत्रिका है जिसे मेरे दादाजी ने बहुत ही छोटे कार्ड में रिसेप्शन का विवरण दिया था । |
आज समय बदला है तो कार्ड छपवाने के काम में तेज़ी से परिवर्तन आया है आज लोग एक ही पन्ने वाली ही विवाह पत्रिका नहीं बनवाते है बल्कि उसमें सम्पूर्ण विवरण के लिए 2 अलग अलग पत्रों पर कार्ड बनवाते है एक पत्र जिसमें अपने गुरु भगवान का नाम , विवाह होने वाले जोड़े का नाम , माता पिता का नाम , दर्शनाभिलाषियों के नाम , प्रतीक्षारत लोगों के नाम और स्वागतकांक्षी लोगो के नाम और मंगल परिणय के लिए कुछ खूबसूरत लाइनें भी लिखी जाती है ।
पहले के ज़माने में एक सस्ता सुंदर कार्ड
छपवाया करते थे जिसमें बस यह विवरण होता था कि किनकी शादी हो रही है कहां हो रही है
कौन सी तारीख को हो रही है बस एक छोटे से से कार्ड में ही समाप्त हो जाता है और
आजकल तो लगता है जैसे कार्ड में ही सारा खर्चा निकाल देना है और देखकर बस उसे कहीं
उठाकर रख देना है ।
साथियों मेरा सवाल उन सभी से है जिनके घर में शादियाँ हुई है या होने वाली है कि हम एक कार्ड पर ही क्यों इतना खर्च करते है वो भी महंगे कार्ड छपवाकर क्या फायदा है इतने महंगे और सुंदर 2 - 4 पन्नों वाले कार्ड बनवाकर क्योंकि मुझे तो यह समझता है यह पूरी तरह व्यर्थ है पैसों का दुरूपयोग है जिन घर पर विवाह की पत्रिका जाती है वो क्या करते है जो लेकर आया है थोड़ी देर उनसे बातें करते है स्वयं देखते है कार्ड घरवालों को दिखाते है हाँ यहाँ इस स्थल पर शादी है कौन से दिन है लड़का लड़की का नाम शादी किसकी है समय क्या है बाक़ी हजारों विवरणों से उनका मतलब ही नहीं होता है कि उस कार्ड पर इन सब के अलावा और कोई डिटेल है या नहीं उसके बाद वो देखते भी नहीं है कि कार्ड कैसा है या नही है जिस नियत दिन शादी होती है उस दिन वो याद करने के लिए निकाल कर देखते है कि हाँ भई आज इस पैलेस में जाना है बस उसके बाद शादी सम्पन्न होने के बाद इतना महंगा और इतना पन्नों वाला कार्ड या तो कूड़े में फेंक दिया जाता है या फिर किसी कोने में बेकार पड़ी वस्तु जैसा पड़ा होता है हाँ कुछ शौक़ीन या कलाकार व्यक्ति ही होते है जो कार्डो को सम्हालकर रखते है उन्हें अपनी कलाकारी के इस्तेमाल करते है ।
मैं समझती हूँ समय में चाहे जितना भी
परिवर्तन आ जाएं कुछ चीजों में हम मुझे नहीं लगता कि हम आगे बढ़ेंगे नहीं हम तब तक
नहीं बढ़ सकते जब तक हम इस बात पर विचार नहीं करेंगे कि हमें ज्यादा खर्चा नहीं
करते हुए एक सिम्पल सा , कम खर्च वाला कार्ड छपवाना है क्योंकि लोगों को चाहे आप
कितना भी अच्छा कार्ड भेज दे उन्हें सिर्फ इस बात से ही मतलब होता है कि शादी किस
दिन है कहाँ है किसकी शादी है इसके अलावा कार्ड का उनके लिए कोई औचित्य नहीं होता
है ।
मेरा तो यह भी छोटा सा सुंदर सा आग्रह है कि
हमें यह कार्ड ही छपवाना बंद कर देना चाहिए हम आज कितने अच्छे समय में आगे बढ़ रहे
है जो कि टेक्नोलॉजी से जुड़ा हुआ है आज के समय में हम ऐसा भी कर सकते है कि जिन -
जिन व्यक्तियों को कार्ड देना है उनके नम्बर लेकर उन्हें बढ़िया सा छोटा सा संदेश
बनाकर व्हात्स्प या वीडियो बनाकर भेज सकते है पर फिर बात तो वही आकर कहीं न कहीं
अटक जाती है कि लोग क्या सोचेंगे कि अरे इन साहब ने अपने बेटे या बिटिया की शादी
में एक कार्ड तक नहीं छपवा सके और ज़िन्दगी भर उन्हें यह ताने सुनने को मिल जाते है
पर मेरा यकीन है कि जिस सारे विवाह योग्य जोड़े जो विवाह करने की और आगे बढ़ रहे है अगर वे यह प्रण ले ले कि
हम लोगों की नहीं सुनेगे और कार्ड पर व्यर्थ का खर्चा नहीं करेंगे बल्कि हम लोगो
को व्हात्स्प्प पर वीडियो , यूं ट्यूब पर , सुंदर सा संदेश बनाकर भेजेंगे तो मुझे लगता है फिर
व्यर्थ के खर्चे नहीं होगे ।
16 टिप्पणियाँ:
बहुत अच्छी और काम की बात कोंपल । कार्ड भी अब जरूरी सूचनार्थ रस्म न रहकर दिखावे के लबादे में आ गया है ।पहले पीले चावल के साथ गणपति बप्पा के चित्र ने अब दूल्हा दुल्हन के एलबम ने लेली है ।तकनीकि विकास ने जरूरतों को दिखावें में तब्दील कर दिया ।
कई बार ऐसा भी होता है कि कार्ड को खोल कर देखा भी नही जाता डेट ऊपर अंकित होती है उसी के आधार पर शादी अटेन्ड कर ली जाती है ।वेन्यू का कन्फ्यूजन हो तो फोन किया जाता है ।
आपका ब्लॉग अच्छा लगता है कोंपल ,शुभकामनाएं
बहुत सही लिखा कोपल ।यह समझना ही चाहिए सबको। हमारे बच्चों के कार्ड हमने ऐसे ही छप वाऐ थे। कुछ लोगों ने हँसी भी उड़ाई थी।बहुत अच्छी अच्छी सामयिक विषयों पर जानकारी मिलती रहजानकारी मिलती रहती है। बहुत बहुत शुभकामनाएँ बेटा
बहुत सही लिखा कोपल ।यह समझना ही चाहिए सबको। हमारे बच्चों के कार्ड हमने ऐसे ही छप वाऐ थे। कुछ लोगों ने हँसी भी उड़ाई थी।बहुत अच्छी अच्छी सामयिक विषयों पर जानकारी मिलती रहजानकारी मिलती रहती है। बहुत बहुत शुभकामनाएँ बेटा
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (23-02-2017) को "त्योहारों की रीत" (चर्चा अंक-2890) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
जी प्रवेश जी सही कहा आपने ।
वैसे यह दिखावे तब तक होते रहेंगें जब तक हम आगे बढ़कर इन दिखावो का विरोध ना करें ।
वैसे अब यह होने भी लगा है कि कार्ड की जगह पर वीडियो बनाकर इन्वाइट किया जाता है ।
अच्छा हो कि हर युवा यह नेक काम कर सके ।
मैंने तो सोचकर प्रण ले लिया है मैं अपने विवाह में कार्ड का व्यर्थ खर्च नहीं करूँगी ।
धन्यवाद प्रवेश जी
बढ़िया
बढ़िया
धन्यवाद नीलिमा आँटी ।
जी यह जरूरी है कि हम यह समझे कि कार्ड पर बेकार ही पैसे खर्च होते हैं जो हम आगे दूसरी चीज़ो के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं
पर अफसोस हम एक सामाजिक बेड़ी में बंध जाते हैं और सोचते हैं कि लोग क्या सोचेंगे कि इन्होंने कार्ड ऐसा नहीं बनवाया वैसा नहीं बनवाया ।
यह सब व्यर्थ की बातें हैं
लोगों का खास मतलब यही होता है कि इस दिन इस जगह पर शादी में जाना चाहिए
बस इसके अलावा अन्य कुछ और नहीं ।
मुझे तो यह व्यर्थ ही लगता है कार्ड छपवाना कुछ भी हो जाए मेरे विवाह के अवसर पर अगर कार्ड प्रकाशित करना भी हो तो मैं बिल्कुल छोटा ही कार्ड बनवाऊंगी क्योंकि कार्ड एक बार देखने के बाद मैं तो नहीं चाहूंगी कि वह कूड़े में फेंक दिया जाए ।उसके पीछे एक पिता की मेहनत , प्रेम औऱ खुशी होती है फिर इतना खर्च करके क्या फायदा ।
धन्यवाद नीलिमा आँटी ।
धन्यवाद कृपया अपना नाम बताए ।
अच्छी विचारवान बात।बधाई।
धन्यवाद पाल अंकल जी
कोपल जी आपने इस ब्लॉग में केवल निमंत्रण पत्र पर खर्च के दुरुपयोग की बात की जो हजारों रुपयों में ही होता लेकिन बेवजह के मात्र अपना स्टेटस दिखाने के लिए डेकोरेशन में खर्च किये जा रहे लाखों रुपयों की बर्बादी पर कुछ नहीं लिखा, लोगों के खाना व्यर्थ कर फेंकने पर कुछ नहीं लिखा...काश! आप इस पर भी कुछ लिखती।
राजन जी मैं उस विषय पर पहले ही लिख चुकी हूँ *कम खर्च वाला विवाह करिए आदर्श जोड़ी बनिए*इस नाम से मेरी एक पोस्ट है आप चाहे तो देख सकते हैं ।
उस पोस्ट को लिखने के बाद ही मुझे कार्ड पर लिखने के बारे में खयाल आया ।
राजन जी पहले देख लीजिए उसके बाद बोलियेगा की मैंने लिखा है या नहीं लिखा है ।
आप जरूर मेरी यह पोस्ट पढ़े
कम खर्च वाला विवाह करिए आदर्श जोड़ी बनिए । मुझे यह भलीभांति ज्ञात है तभी मैंने यह पोस्ट लिखी है कि लोग कम खर्चे करके आदर्श विवाह करेंगे ।
बात तो सोलह आने सही है पर आज के दिखावे की इस दुनिया में लोग पैसे खर्च करने में ही अपनी शान समझते हैं
जी नीलिमा जी पर हम इंसान इस व्यर्थ के खर्चों को रोक सकते हैं अपनी सूझबूझ से ।
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