कहां गया वो कागज , कलम और खतों का ज़माना


                      आज फोन, मेल ,व्हात्सप्प , फेसबुक , हाइक के जमाने वालो से पूछे जरा बताना चिट्ठी क्या होती है उनसे पूछे फोन और व्हात्सप्प आने के बाद कभी चिठ्ठी लिखी है किसी तो उस व्यक्ति का जवाब नहीं ही होगा क्योंकि फोन पर और व्हात्सप्प पर मैसेज भेज दिया सामने वाले और उनका मैसेज आ गया बस हो गई बात आज के जमाने के लोग क्या समझेगे की चिठ्ठी लिखने का मजा ही अलग था महीने में एक बार लिखी चिठ्ठी भी पूरे साल याद रहती थी और उसमें लिखे शब्द भी भेजने वाले की भावनाएं भी आज तो एक दिन में हजारों मैसेज भेज देते है और कुछ समय बाद वो मैसेज डिलीट कर देते है पर जो चिट्ठियाँ लिखी जाती थी वो गलती से भी फाड़ी नहीं जाती थी ।
                 
                   घर की चौखट पर बैठकर दूर से आते पोस्टमैन डाकिया बाबू का इन्तजार रहता था की डाकिया बाबू कब आएगा और उसके आते ही  घर में एक अलग ही माहौल होता था की डाकिया आया है घर के सारे काम निपटाकर बस उस एक खत को पढने के लिए सारा घर दरवाजे पर आ बैठता था उसकी साइकल दरवाजे पर रुकती थी और वो उतर कर चिट्ठी देता था सिर्फ चिट्ठी देना ही उसका काम नहीं होता बल्कि वह जिहे पढ़ना नहीं आता था उन्हें बैठकर पढ़कर भी सुनाता था की चलिए मैं ही सुना देता हूँ ।
                   गाँव का इतना आत्मीय और पारिवारिक वातावरण होता था की डाकिया बाबू उनसे जुड़ा होता था चाहे वो कोई खुशी की खबर हो या दुःख की मैं कहूँगी उस डाकिया बाबू का चेहरा सबसे बड़ा खत हुआ करता था जिसके चेहरे के पन्ने बता देते की ये हुआ है अगर कोई खुशी की खबर होती थी तो उसके चेहरे की खुशी बता देती थी की किसी के घर में शादी है ,या किसी की नौकरी लग है , किसी के घर में सन्तान हुई है और अगर दुःख की खबर होती थी तो उस डाकिया बाबू की आँखों के आंसू बता देते थे की जरुर कोई दुःख की बात है अधूरा खत देकर कभी डाकिया बाबू आगे बढ़ जाता था तो कभी रोते हुए सुना ही देता था की ये हो गया है किसी मृत्यु हो गई है किसी के घर में कोई दुर्घटना हो गई है । आज कल तो महीनों बीत जाते है डाकिया बाबू गली मोहल्लो में नजर ही नहीं आते है ।
                 
                   कहाँ गया वो जमाना जब सारा काम निपटाने के बाद आराम से अपने किसी प्रियजन को खत लिखा जाता था उस एक खत में परिवार,अपनी,गली मोहल्लो के लोगो की,नाते रिश्तेदारों के , आज क्या किया गेहूं पीस गया , ठंड के दिन है स्वेटर बना रहे है मटर छेल रहे है या काम हो गया या घर में किसी की तबीयत खराब हो गई है , घर के बच्चे किस क्लास में है क्या पढाई कर रहे है , कौन किसे याद कर रहा है , लिखता एक व्यक्ति था पर घर के सारे लोग उस खत में किसके लिए क्या लिखना है बता दिया करते थे , किसकी नौकरी लग गई है , कोई बाहर जाने वाला हो या आने वाला हो , गली मौहल्ले में कोई काण्ड हो गया कोई प्रेमी घर छोडकर भाग गया हो किसकी शादी टूट गई हो या जुड़ने वाली हो , पैसे भिजवाने हो सारे समाचार लिखा करते थे लोग आज तो जब जी चाहा जेब से मोबाइल निकाला लिखा और भेज दिया तब के समय में तो लम्बे - लम्बे खत हुआ करते थे आज तो एक लाइन में सब लिख दिया करते है बस इतने में उनकी दुनिया सिमट गई है आँखों से कोई दूर भी हो तो चिट्ठी पढ़ते ऐसा साकार होता था जैसे वो व्यक्ति हमारे सामने बैठा हो और बाते कर रहा हो । उसकी सूरत औऱ दृश्य ही आंखों के सामने साकार हो उठते थे ।
                 
                चाहे वो कोई व्यक्ति , प्रेमी जोड़े जो उस वक्त में अपने प्यार के इजहार , अपने दिल की बात प्यार भरे शब्दों में लिखकर दूसरों की नजर से छुपाते बचाते एक दूजे को भेजा करते थे एक - एक शब्द में वे सिर्फ अपने दिल की बातें ही नहीं तमाम सपने ,इच्छाएं , अपनी खुशी , अपने दुःख , अपना प्यार , ख्याल रखने , फिर मिलन की आस , कभी अपनी तस्वीर भिजवाने की इच्छा , कभी याद एक दुसरे की , अपने प्यार की बन्दिशो, मीठे - मीठे जज्बात , अपनी योजनायें , अपने डर , अपने जीवन से जुडी हर बात लेटर में लिखकर अपनी कलाकारी से चुपके से खत डालकर आया करते थे और इस डर से अपनी हजारों नीदें सिर्फ उड़ाकर रात को जागते थे की उसके प्रेमी तक खत सकुशल पहुंचा या नहीं या किसी ने पकड़ तो नही लिया इसी उधेड़बुन में फड़फड़ाते रहते थे या फिर इस खुशी में झूमते थे कि उसके प्रिय का पत्र आया है और अकेले बैठकर उसके एक - एक शब्दों से खुश होते गाते गुनुनाते झूमते थे या प्रेमी कब आएगा वो मिलने आ रहा है या मिलने बुलाया , कभी अपने आंखों में आँसू लिये अपनी बातों से अपने प्यार की कलम से
अपने दिनों में खत की दुनिया में खोये रहते थे ।
               
               कोई माँ जिसका बेटा घर से दूर रहकर बाहर पढ़ाई करने निकला हो या फिर दूर दराज शहर में आंखों से दूर नौकरी करने गया हो जो नौकरी में लगा है उसे छुट्टी नहीं मिल रही है उसका दुख अपना दुख के बीच सामंजस्य बैठाकर माँ खत लिखती हैं अपने दुख भूलकर बेटे को नसीहतें देती हैं पत्र में उसके लिए अपनी फिक्र प्यार लिखती हैं उसके लिए हजारों आशीष देती हैं । वो अपनी बेटी को जो अपनी ससुराल में है उसे पत्र लिखती हैं उसके हाल खबर लेती हैं उसे सिखाती है गुर अच्छी गृहस्थी बसाने के , उसके दुख में रोती है सुख में खिलखिलाते खाना बनाती है । 
               
        मित्रों चिट्ठियां लिखे जाने वाले उस जमाने में मैंने भी बहुत चिठियाँ लिखी है मेरे प्रिय काम होता था लिखना अपने दादा जी को हर महीने एक या दो चिठियाँ लिखने का वे भंडार में रहते थे उस समय फोन जैसी चीज होती तो थी पर पत्र के जमाने में मैं अपने मित्रो रिश्तेदारों को चिट्ठियाँ लिखती थी और मेरे खत का जवाब वे खत से ही देते थे उस खत में मैं दादाजी दादी माँ से अपने मन ही ढेर सारी बाते किया करती थी फिर सन 1997 में हमारे घर और दादाजी के घर पर फोन लग गया तो फोन की बातों के सिलसिलो में खतों हर महीने वाले पत्रों की बातचीत का सिलसिला बंद हो गया था  । मेरे पापा जो की लेखक है वे भी दादाजी को , और मित्रों रिश्तेदारों को चिठ्टी लिखते थे मेरे पापा ने उन्होंने अब तक जितने लोगों को खत लिखे है वो सभी सहेजकर रखे है जब दादा जी मृत्यु हुई तो उन्होंने दादा जी को हमारे परिवार के लोगों में जो पत्रों का आदान प्रदान हुआ उन पत्रों की एक किताब छपवाई जिसके लिए पापा ने बहुत मेहनत की उस किताब का नाम उन्होंने ' कोकास परिवार की चिट्ठियाँ ' रखा और उस किताब को दादा जी की पहली पूण्यतिथि पर प्रकाशित करवाया पत्रों की यह किताब एक अनमोल धरोहर है ।
               आज के लोगों के पास समय जो कम है बाते तो ढेर सारी है जिनसे फोन का खजाना भरा रहता है पर पेन उठाकर खत लिखने की जरूरत अब बहुत कम लोग करते है मुझे लगता है जिस तार पूरी तरह बंद होकर हमारी स्मृतियों में जीवित है उसी तरह शायद एक दिन आएगा जब पत्र भी सिर्फ हमारी स्मृतियों में जीवित रह जाएंगे और जब हम कभी कोई पुराना खत देखंगे जो किसी फ़ाइल के बीच में दबा हुआ मिलेगा तो उस खत हांथो में पकड़कर सोचेंगे की एक ऐसा भी दौर था जो चिट्ठियों का हुआ करता था जिस वक्त लोग फोन या व्हात्सप्प पर नही पत्रों में अपने दिल की जीवन की अनोखी कहानियां लिखा करते थे
           
                 कभी - कभी सोचती हूँ की जो चीजें जो बहुत अनमोल धरोहरें होती है एक दौर जिन चीज़ों का बहुत जोर -शोर से प्रचलन रहता है वही चीजें क्यों धूल में एक हमें लिपटी हुई मिलती है ऐसा क्यों नही होता है की हम उन चीजों को पहले ही सहज पाएं और उनका उपयोग करते रहें क्या हम इतने मशीनी जीवन के आदी हो गए है पेन उठाकर अपने प्रियजन को एक खत लिखने का अद्भुत काम नहीं कर सकते क्या यही सौगात या धरोहर है हमारी जो हम अपनी आने वाली पीढ़ियों को देंगे जरुर बताएं आने वाली पीढ़ियों को कि एक जमाना था जिसमें लोग बैठकर अपने सूख -दुःख अपनी जिन्दगी और अपने आप को चिट्ठियों में उतारा करते थे ।
             
आज बहनें बस रक्षाबंधन भाई बहन के पर्व पर चार लाईनों के पत्र लिखकर उसमें रक्षासूत्र रखकर पोस्ट कर देती हैं जैसे रक्षाबंधन ही त्योहार रह गया है जिसमें पत्र लिखने की अदायगी की जा सके। आज पत्र लिखना है बहुत बोझिल , ऊबाऊ और पिछड़े किस्म का काम माना जो जाता है इस वक़्त नहीं उठेंगी कलमें खत लिखने के लिए क्योंकि ये तो वाट्सएप औऱ हाईटेक जमाना है ।

चिट्ठियों पर कुछ गीत बने है इन्हें जरुर सुने ताकि चिट्ठियों वाले उस दौर में जाकर उनका फिर से मजा ले
फूल तुम्हें भेजा है खत में (सरस्वतीचंद्र १९६८ )
हमने सनम को खत लिखा ( शक्ति १९८२ )
हाय हाय एक लड़का मुझको खत लिखता है ( कच्चे धागे १९७३)
लिखे जो खत तुझे ( कन्यादान )
चिट्ठी आई है
यु मेरे खत का जवाब ( पंकज उदास )
ये मेरा प्रेम पत्र ( संगम १९६४ )
डाकिया डाक लाया ( पलकों की छाँव में १९७७)
किस्सा हम लिखेंगे ( डोली सजा के रखना )
फूलों के रंग से ( प्रेम पुजारी १९७० )
प्यार का पहला  खत लिखा ( सौदा १९९५ )
आयेगी जरुर चिट्ठी मेरे नाम की ( दुल्हन १९७४ )
कबूतर जा जा पहले प्यार की पहली चिट्ठी ( मैंने प्यार किया १९८९ )
लव लेटर लव् लेटर ( प्यार का ताराना )
Kagaz Kalam Davat La Likh Du  हम १९९१ )
Laa Kaagaz Kalam Main Likh Dun Sanam  ( सुहाग १९९४ )
खत लिखना हमें खत लिखना ( खुद्दार १९९४ )
खत  मैंने तेरे नाम लिखा ( बेखुदी १९९२ )
प्यार के कागज पे ( जिगर ११९२ )
ये चिठ्ठी लिखी है मैंने ( प्रेम ग्रन्थ १९९६ )
दिल की कलम से ( इतिहास १९९७ )
चिठ्टी ना कोई संदेस ( दुश्मन )
पहली पहली बार मोहब्बत की ( सिर्फ तुम १९९९ )
Chitthiye Ni Dard Firaaq Valiye Leja Leja  ( हीना १९९१ )
संदेशे आते है की चिट्ठी आती है ( बोर्डर १९९९ )
खत लिखना है ( खेल १९९२  )
आपका खत मिला आपका शुक्रिया ( शारदा (१९८१ )

बहुत जरूरी है की हमारी पीढ़ी अपने लिए औऱ हम आने वाली पीढ़ियों के लिए इस ये बची हुई चिट्ठियां सहेज सके तो ये आने वाली पीढ़ियों के लिए अपनों के अतीत में झांकने का आईना बन सके । 

क्या आपने कभी पत्र ,खत ,चिट्ठी , लेटर लिखा है तो कमेन्ट करके अवश्य बताएं । 



5 टिप्पणियाँ:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (10-01-2018) को "आओ कुत्ता हो जायें और घर में रहें" चर्चामंच 2844 पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

कविता रावत ने कहा…

सच अब तो चिट्ठी की परिभाषा ही बदल गयी है
आपका चिट्ठी संकलन एक अनुकरणीय प्रस्तुति है, इस हेतु हार्दिक बधाई .

कोपल कोकास ने कहा…

धन्यवाद कविता जी ! आपने सही कहा आज चिट्ठी की परिभाषा तो बदली है पर लोगों के पास की भावनाएं भी बदल गई है पहले के वक्त की बात अलग थी पहले लोगो के पास चिट्ठी लिखने का समय हुआ करता था आज समय बदला है लोगों अब हाइटैक हो गये है अब चिट्ठी की जगह व्हात्सप्प ने ली है जिसमें 2 मिनट में लिखकर हम अपनी भावना अपने विचार दुसरे व्यक्ति तक पहुंचा देते है जो आनन्द कलम उठाकर भेजने वाले व्यक्ति को याद करके एक - एक शब्द की भावना में डूबकर लिखा जाता था और वः आज व्हातास्प्प के हजारों शब्दों में भी वैसा आनन्द वैसी अनुभूति नही होती आज के लोगो की दुनिया ही अनोखी है

संजय भास्‍कर ने कहा…

कोपल जी नमस्कार चिट्ठी संकलन पर आपकी ये पोस्ट मुझे बहूत पसंद आई एक समय था जब बहुत चाव के साथ लोग चिठियाँ लिखते हैं दादा जी सदर चरण स्पर्श से शुरुआत करते थे तब लोगो के पास चिट्ठी लिखने का समय हुआ करता था पर आज कल शोशल मिडिया और मोबाइल इतना हाइटैक हो गये है के कुछ हद तक तो सही भी लगता है पर सब कुछ तबाह भी हो गया है अब वो पहले जैसी भाई चारे की भावना ख़त्म हो गई है पहले लोग मां मौसी बुआ फूफा सभी के आने का इंतज़ार किया करते थे दिन गिना करते थे पर अब वो बात नहीं रही अब तो सिर्फ लोगो को यही दिखता हो फेसबुक और व्हात्सप्प
.........आपकी ये पोस्ट मुझे बहूत पसंद आई :)

कोपल कोकास ने कहा…

बहुत सही कहा आपने सजंय जी मैं भी जब मेरे दादाजी जीवित थे उन्हें चिट्ठियां लिखा करती थी मेरे दादाजी ने ही मुझे किस तरह पत्र व्यवहार करना चाहिए यह सिखाया था । जी संजय जी अब उस भावना से लोग नहीं लिखते हैं मैसेज में ।
क्या यादगार दिन थे वे जब बैठकर अपनों की चिठ्ठियों के आने का जवाब देने का इंतजार करते थे ।
हां समय बहुत बदल गया है अब हम सब हाईटैक हो गए हैं इसमें शामिल तो संजय जी हम भी है ।

ज़माना चाहे बदल जाए
चिठ्ठियों वाला दिन याद रहेगा
कल जब कोई पुरानी चिठ्ठि पढेंगे
तो उस दिन में चले जाएंगे
जहां थी चिट्ठियां औऱ अपने
अपनों का प्यार ।

धन्यवाद

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