आज हमारे इनायतउल्लाह नाना जी की पुण्यतिथि है

             
बीच में नाना जी कुर्सी पर बैठे हुए , उनके बाये से नानी , नाना जी के दाएं दे लतीफ भैया , ऊपर से बाएं रफीक भैया उनके दाएं से शफीक भैया ।
सबसे नीचे  नवाब अंकल औऱ शमीम आंटी 

            इनायतउल्लाह नाना जी अंग्रेजो के समय के दरोगा थे वे बहुत अनुशासन प्रिय थे उनसे पास किस्सों का खज़ाना था कोई सुनने बैठे तो बोर नही हो सकता था , वे सभी व्यक्तियों की बहुत फिक्र किया करते थे मोहल्ले में कोई बीमार हो तो वे उसे सबसे पहले उसे देखने चले जाते थे घर के पास ही एक बाबा जी बाबा आटा चक्की के सामने रहने वाले तिवारी दादा जी उनके परम मित्र थे वे उनसे रोज मुलाक़ात करते थे , मेरे पापा श्री शरद कोकास शादी पहले बक्शी दादा जी जी के घर एक सिंगल कमरे में किराए से रहते थे शादी के बाद जब उनको बड़े कमरे की जरूरत हुई तो इनायतउल्लाह नाना जी ने पापा से कहा तुम लोग हमारे घर पर रहने चलो लेकिन उस वक्त उनके घर में नीचे का ब्लोक खाली नही था इसलिए उन्होंने पापा से कहा की अभी तुम लोगो को तिवारी जी घर पर रहने की इजाजत दे देता हूँ लेकिन जैसे ही तीन महीने बाद मकान खाली होगा तो तुम लोगो यहीं पर रहना है तीन महीने बाद जैसे ही मकान खाली हुआ तो नाना जी ने पापा से कहा की अब तुम बहू को लेकर हमारे घर रहने आ जाओ लेकिन तिवारी जी दादाजी भी उन्हें जाने नही दे रहे थे फिर दोनों मित्रों में सलाह हुई और तय हुआ की जैसे तुम्हारा बच्चा वैसे हमारा बच्चा कहीं भी रहे क्या फर्क पड़ता है इस तरह पापा और मम्मी इनायतउल्ल्लाह नाना जी के घर इनायत विला में रहने आ गये
         
             उसके एक साल बाद जब मेरा जन्म होने वाला था तब मम्मी को तकलीफ शुरू हुई तब पापा के मित्र राजू चाचा के पिताजी श्री शिवशंकर विश्वाकर्मा दादाजी ने मम्मी श्रीमती लता कोकास को हॉस्पिटल में एडमिट करवा दिया और नाना जी ने नानी से कहा बेगम तुरंत चादर लो और अस्पताल जाओ हमारी बेटी लता वहां भर्ती है उस दिन औऱ कोई नहीं था पापा के पास वो घबरा गए की अकेले सब कैसे होगा तो नाना जी ने कहा क्यों घबराते हो बेटा तुम्हारे अब्बा जी अम्मी अभी है सब सम्भहाल लेंगे बस उस दिन से जिस दिन मैं उन नाना जी की गोद में आई उस दिन से वो मेरे नाना जी बन गये । नानी पूरे हफ्ते मम्मी के साथ हॉस्पिटल में रही और मम्मी की अपनी बेटी की तरह देखभाल की । नाना जी मुझे वो बहुत चाहते थे अपनी गोद में खिलाकर घुमाते थे जिस दिन मैंने चलने के लिए अपना पहला कदम बढ़ाया उस दिन उन्होंने नवाब अंकल से मिठाई मनवाई थी और सबका मुँह मीठा करवाया था की हमारी पोती कोपल ने आज से चलना शुरू किया । उसके बाद नाना जी मुझे घर के आंगन में चलना सिखाया वे जमीन पर उकडू बैठ जाते और दोनों घुटनों पर अपने हाथ रखकर उंगली मेरी और बढ़ाते मैं छमछम अपने नन्हे - नन्हे पाँव रखते हुए और दौडकर दोनों हाथों से उनकी उँगलियाँ पकड़ लेती थी इस तरह उन्होंने मुझे चलना और बोलना सिखाया मुझे बोलना बहुत देर से आया वे एक -एक शब्द को कई बार दोहराते थे पर मैं नहीं बोल पाती थी एक दिन मैंने पहला शब्द मीठे बोली से मम्मा बोला था वे उसी शब्द को दोहराते जाते तो मैंने बार - बार वही शब्द बोलती 
         इस तरह मैं नन्ही कली इनायतउल्लाह नाना जी के घर में धीरे - धीरे बड़ी होती गई नाना जी को बीड़ी पीने का शौक था जब कभी मैं बाहर खेलती थी और वो उप्पर से नीचे अनिल भैया की दूकान बीड़ी लेने के लिए जाते थे तो मैं उनके पीछे - पीछे जाती थी की वे बिस्किट दिलायेगे फिर मुझे खूब सारी बिस्किट लेकर खिलाते थे
       जब भी मैं उप्पर जाती थी तो नाना जी को वे दाढ़ी बनाते बैठते थे तो मैं उनका कभी ब्रश लेकर तो आइना लेकर भाग जाती थी और वो बोलते कुछ नहीं थे बस मुस्कुरा देते थे , जब रमजान का महीना जब आता तो रोज मैं इफ्तारी के वक्त पर सबसे पहले पहुँच जाती थी अगर कभी मुझे देर हो जाती थी तो वे मुझे उप्पर से आवाज देते थे आजा बेटा रोजा खोलने का वक्त हो गया है वे अपने पास की सीट मेरे लिए बचाकर रखते थे की यहीं पर मैं बैठूंगी और कभी - कभी ऐसा भी होता था की मैं रोजा खोलने के वक्त पर पहुँच ही नहीं पाती तो वे नानी से कहते थे उसके हिस्से का नाश्ता अलग से निकालकर रखो वो आयेगी तो पूछेगी जरुर मेरा नाश्ता कहां हैं । फिर मैं आती तो बैठ कर मैं खाती थी
       नाना जी कभी - कभी मेरे अंगरेजी के बारे में पूछते थे तो कहते थे बेटा पढाई में कोई दिक्कत हो तो बताना जब मुझे पढ़ाई के लिए कभी - कभी मम्मी से डांत पड़ती तो वो मम्मी को बुलाकर डांटते की कोपल की मम्मी अब नहीं डांटना हमारी कोपल को मैं पूरे घर में घूमती किचन में खाना खाती , नाना जी के साथ मस्ती करती उनके साथ कभी -कभी टीवी भी देखती थी कभी जब घर के भैया लोग से डांट पड़ जाती तो वे भैया को डांटते की क्यों तुमने उसको डांट लगाई
      दिन बीतते गये अब मेरे नाना जी बुजुर्ग होने लगे थे उनकी आँखों पर एक मोटा चश्मा चढ़ गया था घर के बाहर जब लड़के बच्चे खेलते उद्दम मचाते थे वे उन्हें चिल्लाते थे मेरी परीक्षाओं का जब समय आता तो मैं पढ़ने की वजह उप्पर नही जा पाती थी एक दिन भी नहीं आती थी तो नाना जी बैचेन होकर नानी से कहते क्या बात है  आजकल कोपल नहीं आती लगता है उसकी परीक्षा चल रही है जब बहुत देर हो जाती तो वे ऊपर से आवाज देते आओ बेटा कोपल सब तुम्हारा इन्तजार कर रहे है फिर आती फिर मस्तियाँ शुरू हो जाती मेरा रिजल्ट आता तो नाना जी बहुत खुश होते थे सं २००१ में हम अपने दादा जी को दुर्ग में अपने घर रहने के लिए ले आये थे क्योंकि उसी वक्त मेरी दादी माँ का देहांत हुआ था उन्हें नये शहर में थोड़ा अजनबीपन सा लगता था पर नाना जी उनसे कहते थे अरे कोकास साहब आप अकेले नहीं हो हम लोग है न आपका घर परिवार तब नाना जी दादा जी को ढांढस बांधते थे । तब हमारे घर के ब्लॉक में ही दो सोनी दादा जी रहते थे और घर के सामने इकबाल दादाजी , तिवारी दादा जी उन दिनों मेरा स्कूल मोर्निग शिफ्ट मैं लगता था जब मैं 7 क्लास में थी तब सभी दादा जी लोग ठंड के दिनों बाहर आंगन में कुर्सी डालकर देश दुनिया की महत्वपूर्ण बातों पर चर्चा करते थे और अपने सूख -दुःख भी आपस में बांटते करते करते थे
          जब भी ईद आती थी वो मुझे अलग से ईदी देकर ढेरों आशीष दिया करते थे , नाना जी अपनी सेहत का खानपान का बहुत ध्यान रखते थे ज्यादा तेल ज्यादा मिर्ची नहीं नानी उनके लिए अलग से सब्जी बनाया करती थी उनका खाना नपा तुला रहता था उन्हें कभी कोई बीमारी नहीं थी ना शुगर ना बीपी कोई शिकायत नही थी
          बीच में एक वक्त ऐसा भी आया था नवाब अंकल के एक रिश्तेदार भैया को जिन्हें हार्ट अटैक आया था तब वे उन्हें हमारे वाले घर में रखना चाहते थे तो नवाब अंकल ने हमसे कहा था शरद भाई आप थोड़े दिनों के लिए कहीं आसपास शिफ्ट हो जाओ हमे १ ,2 घर भी देख लिए पर वो भैया जिन्हें हार्ट की समस्या हुई थी उन्हें पता चला तो वे बुरा मान गये थे की आपने शरद अंकल को क्यों बोला जाने के लिए मैं नही आऊंगा रहने के लिए नाना जी को पता चला की तो पापा से कहा तुम लोग कहीं नहीं जाओगे ये तुम्हारा घर है तुम्हें यही रहना कहीं नहीं जाना है ।
        मेरे दादा जी का २००३ में निधन हुआ तब नाना जी मुझे हिम्मत दिलाई बेटा रोते नहीं हम सब है ना मैं हूँ तेरा नाना ये है नानी तब हिम्मत और हौसला आया की हाँ है एक मेरा परिवार  इस तरह फिर दिन बीतते गये और आ गया २००५ तब मैं 9 क्लास में चली गई और मेरा स्कूल अब दोपहर की पाली में लगने लगा मेरी एक आदत थी बिना नाना जी नानी अंकल आंटी से मिले मैं स्कूल नहीं जाती स्कूल घर के पास ही था इसलिए मैं पांच मिनट पहले ही उनसे मिलकर निकलती थी और उस दिन ने भी जिन्दगी में दस्तक दे दी जिसके बारे में कभी सोचा ही नहीं थी जिन्हें कोई शिकायत नहीं जिन्होंने कभी कोई लापरवाही नहीं की वे कैसे हमें छोड़कर चले गये
         वो दिन आज का ही दिन था 10 जनवरी 2005 उस दिन भी मैं जल्दी - जल्दी तैयार होकर ठीक पोने बारह पर उनसे मिलने गई जब मैं उनसे मिलने गई वो बाहर आंगन में बैठे नानी के साथ और ठंड की धूप में बैठकर अपनी दाढ़ी बना रहे थे उनके चेहरे पर मुझे देखकर एक प्यारी सी मुस्कान और एक खुशी की हमारी पोती हमसें मिलने आई है उन्हें देखकर ऐसा आभास भी नहीं हुआ की अभी थोड़ी देर बाद उन्हें कुछ हो सकता है बस मैं उनसे यह कहा अच्छा नाना जी आती हूँ स्कूल से फिर शाम को आकर मिलती हूँ वो भी बोले हाँ बेटा जाओ जल्दी आना फिर अपन शाम को खूब सारी बातें करेंगे ।
           फिर मैं स्कूल चली गई मुझे यह बाद में पता चला की जैसे ही मैं स्कूल गई वो नहाने गये नहाकर आये और नानी ने उनके लिए करेले की सब्जी और रोटियाँ बनाई थी बस उन्होंने खाना खाया और खाकर ठीक १ बजे खाकर उन्होंने सोचा की थोड़ी देर आराम किया जाएं थोड़ी देर बाद उन्होंने बहुत तेज सीने में दर्द हुआ अपने सीने पर हाथ रखे हुए उन्होंने नानी को और शमीम आंटी यानी की दुल्हन और रफीक भैया को आवाज दी सब लोग दौड़कर आये साँसे बहुत तेजी से चलने लगी थी जितनी देर में भैया ने सोचा की नाना जी को होस्पीटल ले जाए बहुत देर हो चुकी थी नाना जी हम सबको छोड़कर चले जा चुके थे नानी बार - बार कहती रह गई डॉक्टर को बुला ले बेटा तेरे दादा की सांस चल रही है भैया ने उन्हें और आंटी को सम्भाला सम्हालते हुए यह कहा दादी , अम्मी दादा अब नहीं है हमारे बीच में ।
           रफीक भैया तुरंत नवाब अंकल को उनके ऑफिस में यह दुखद खबर दी की अब दादा नहीं रहे अंकल तुरंत ऑफिस से घर आये अंकल ने आकर सबको सम्भाला की मैं हूँ अम्मा तब तक नाना जी की देह को अच्छे से गर्म कपड़ों में लिपटाकर दरी पर रख दिया था । शाम को जब पांच जब मेरी छुट्टी हुई घर पहुँची तो घर के बाहर की रोड में बड़ा सा पंडाल लगा था और वहां बहुत सारे लोग सबके चेहरे पर एक अजीब सा दुःख दिख रहा था मुझे कुछ समझ नहीं आया मेरे एक अंकल से यह पूछने की क्या हुआ उसके पहले ही उन्होंने मुझसे कहा बेटा नाना जी नहीं रहे मैं तुरंत बैग कन्धो पर स्म्भाहलती हुई सीढियों पर दौड़ते हुए ऊपर भागी वहां मुझे बहुत से सारे लोगो के बीच नानी और आंटी मिली जो रोते हुए अपना दुःख प्रकट कर रही थी नानी ने मुझसे रोते हुए कहा देख बेटा कोपल ये क्या हो गया तेरे नाना हम सबको छोड़कर चले गये तब मेरी रुलाई छूट पड़ी और मैं जाकर नानी से लिपट कर रोने लगी मैंने उस कमरे में नाना जी की मृत देह को देखा औऱ वापस सबके बीच आकर बैठ गई ।उस दौरान मेरे पापा जबलपुर अपने बैंक की ट्रेनिंग में गये थे यह बुरी खबर उन्हें वहीं मिली उन्हें भी बहुत बुरा लगा ।फिर शाम को ही उनकी मय्यत उनका अंतिम संस्कार कर दिया गया उनकी मृत्यु ने इतना भी वक्त नहीं दिया की उनसे कुछ कह पाती उन्हें प्यार दे पाती जब तक मैं स्कूल से वापस क्या आई  वो नाना जी जो मुझे दुःख के वक्त हिम्मत ना हारने कठिन वक्त मैं दते रहने , हमेशा वक्त के पाबन्द रहने सबके साथ प्यार और अपनेपन से रहने की ,अनुशासन में रहने की सीख देते थे ये सीख देते थे की बेटे जिन्दगी में हर चीज के लिए तैयार रहो कभी भी कुछ भी हो सकता है दूसरों की मदद करते रहो जो ये सीख देते थे वही हमें अकेला छोड़कर चले गये थे
         नाना जी के गुजरने के पहले मेरे दादाजी नहीं रहे थे उनके बाद नाना जी और फिर नाना जी के बाद इकबाल दादा जी भी चले गए और तिवारी दादा जी मैं सोचती मित्र के ना रहने का दुख वाकई बहुत दुखद होता है तभी तो नाना जी के ना रहने के बाद एक बाद एक सभी उनकी टीम वाले दादा जी लोग दुनिया छोड़कर चले गए । 
          उनके दुनिया से अलविदा कहने के बाद हम सन २००७ तक केलाबाड़ी में रहे २०००७ में हमारा अपना नया घर बन गया पर आज भी जब जिक्र होता केलाबाड़ी के घर का तो मुहं से यही निकलता है ये चाहे हमारा नया घर हो पर वहीं घर पुराना अपना घर था जहां मेरे नाना जी नानी के सानिध्य में मेरा प्यारा बचपन बीता था जिस घर से घर के लोगों से मेरा बचपन बचपन की खट्टी मीठी यादों से प्यारा बना था जो आज भी मेरी यादों में कैद है ।
            मैंने अपने स्वयं के नाना जी को कभी नहीं देखा क्योंकि उनका निधन 1992 में हुआ था और उस वक्त मैं 2 साल की थी उनकी मुझे याद नहीं है पर इनायतउल्लाह नाना जी को देखा तो महसूस हुआ मेरे नाना जी भी ऐसे ही होंगें । 

दो पते मेरी जिन्दगी के ख़ास रहेंगे
एक इनायत विला केलाबाड़ी दुर्ग और
कोकास हाउस न्यू आदर्श नगर दुर्ग
मेरे मस्तिष्क में कोने में सेव रहेंगे 


इनायतउल्लाह नाना जी पर मेरे पापा ने एक कविता लिखी थी उस कविता एक अंश नाना जी को समर्पित -


 बीमार तिवारी जी को बिला नाग़ा देखने जाते
 उनके बाल सखा हाजी इनायतउल्लाह की बूढ़ी आँखों में
 साफ दिखाई देने लगा समय का यह वीभत्स चित्र
 बस यहाँ से आगे फटा है वक़्त की किताब का पन्ना
 जीवन के इस अर्धविराम पर सबके सब या तो चुप हैं
 या भविष्य की अटकलों में बहुत ज़्यादा मुखर
 यक्ष प्रश्न की तरह जनता के आगे खड़ा है सवाल
     किस धर्मराज ने धर्म की किस नीति के तहत
     इस इलाके को संवेदनशील घोषित किया है।।

15 टिप्पणियाँ:

कविता रावत ने कहा…

मर्मस्पर्शी प्रस्तुति ...
इनायतउल्लाह नाना जी को हार्दिक श्रद्धांजलि

कोपल कोकास ने कहा…

जी कविता जी

शरद कोकास ने कहा…

बहुत अच्छा लिखा है बेटा , आज हमारे अब्बाजी यानि इनयतुल्ला साहब का स्मरण दिवस है उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि

Unknown ने कहा…

किसी मंझे हुए रचनाकार की भांति संस्मरण लिखा है। उज्ज्वल रचनाधर्मिता के लिए शुभकामना

Unknown ने कहा…

आनंद व्यास, इंदौर

Unknown ने कहा…

पुरानी यादों से आपने नानाजी और उनकी बेमिसाल दरियादिली को आज आपने एक बार फिर से जीवन्त कर दिया ।
इतना सिलसिलेवार लिखना बड़ा कमाल का काम है ।
इसी तरह आप पापा के नक्शेकदम पर आगे बढ़ते रहें यही हमारी आपसे अपेक्षा है ।
इस दुनिया में एक और लेखक हमारे समाज को अपनी जिंदादिली और विशाल ज्ञान से दिशा दे सकेगा ।

कोपल कोकास ने कहा…

जी कीर्ति जी धन्यवाद मैं इसी कोशिश में हूँ की मैं कुछ अच्छा कर पाऊं ।

कोपल कोकास ने कहा…

जी ये मेरा हुनर है मेरी यादें है जिसे मुझे लिखने के लिए प्रेरित किया इस तरह लिखने के लिए । धन्यवाद जी जो जो मुझे याद आता गया उसे रचित करके लिख दिया ।

कोपल कोकास ने कहा…

धन्यवाद पापा नाना जी तो यादों में जीवित है जिन नाना नानी , दादा ,दादी की वजह से आज मैं एक सुंदर जीवन बिता रही है इसके पीछे वे ही है जिन्होंने मुझे बहुत प्यार दिया । जीते जी मैंने उनकी सेवा की यही मेरा पुण्य है की मुझे उनकी सेवा करने का सुअवसर प्राप्त हुआ । भावभीनी श्रद्धांजलि नाना जी नानी , शिवशंकर दादा जी औऱ दादी , मेरे दादा जी , दादी माँ , और दादा जी लोगों की टीम के सभी दादी जी लोगों को भी श्रधंजलि

Peoples of Chhattisgarh ने कहा…

बच्चों के संस्मरण तो मैने पहले भी पढ़े है लेकिन यह तो अद्भुत है ,प्रेमचंद की कहानी पढ़ने का एहसास हुआ इसे पढ़ते हुए . कोपल को पहले भी सीजी बास्केट में लिया है लेकिन गम्भीरता से पढ़ा पहली बार .बहुत बहुत बधाई नन्ही कोपल को और शरद को भी ,इतनी ज़हीन बेटी के लिए . डॉ .लाखन सिंह

कोपल कोकास ने कहा…

बहुत बहुत धन्यवाद लाखन सिंह जी वो तो है की मैं एक अच्छी बेटी हूँ मेरे मम्मी पापा मुझसे बहुत प्यार करते हैं इसलिए मैं इतनी अच्छी औऱ प्यारी हूँ ।

सूर्यकान्त गुप्ता ने कहा…

अत्यंत मार्मिक.. बिटिया... सुंदर संस्मरण..
अपनों को खोने का दुख क्या होता है, बहुत ही बढ़िया लिखा बिटिया ने। पढ़ते समय किसकी आँखें नहीं भर आयेगी...
यूँ ही लिखती रहो बिटिया..।

Khudeja ने कहा…

यादगार

कोपल कोकास ने कहा…

धन्यवाद सूर्यकांत अंकल जी

कोपल कोकास ने कहा…

धन्यवाद खुदैजा जी

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