आज फुर्सत के कुछ लम्हें ढूंढता हूँ ।
ठंडी छाँव है मेरे घर की
फिर इन छाँव में बैठने के बहाने खोजता
हूँ ।
उजाले है दिनों धूप की ,चमक है रात की
फिर इन सबको जीना चाहता हूँ ।
महक है मेरे घर की मुझमें
फिर इस महक से महकना चाहता हूँ ।
है रहना कुछ ही दिन मेरे बसेरे में
फिर इस बसेरे में ही रहना चाहता हूँ ।
मुझे देखकर होती हैं जिन्हें खुशी
मैं उन्हें फिर खुश करना चाहता हूँ ।
मेरे वापस जाने से होती है उनकी आँखों
में नमी
उनके चेहरे पर फिर मुस्कान बन जाने की
कोशिश करता हूँ ।
बन जाता हूँ लौटकर भीड़ का हिस्सा
फिर अपने बेसरे पर लौटने की चाहत रखता
हूँ ।
है परेशानियां इन दिनों कुछ मगर
फिर भी अपनी हंसी में परेशानी छुपाने की
कोशिश करता हूँ ।
मैं अकेला हो जाता हूँ अपने गम में फिर
एक मुस्कान से
गम मिटाता हूँ ।
मैं फिर याद करता हूँ फुर्सत के उन
लमहों को
सफर पर चलता अकेला ही हूँ
फिर सबके साथ चलने की कोशिशें करता हूँ
।
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