“मुर्दों का टीला” |
मोहन जोदड़ो की बातें इतिहास के पन्नों में बहुत ही मशहूर है। मोहन
जोदड़ो प्राचीन सिंधु घाटी का रहस्यामी महानगर है जो की
अभी दक्षिणी एशिया के सिन्धु नदी के पश्चिम में लरकाना
डिस्टिक, पाकिस्तान में मौजूद है। मोहन जोदड़ो का अर्थ है “मुर्दों का टीला”। यह मनुष्य द्वारा निर्मित विश्व
का सबसे पुराना शहर माना जाता है जो की सिन्धु घटी की सभ्यता से जुड़ा है। चार्ल्स मैसन ने सर्वप्रथम हड़प्पा के विशाल टीलों की ओर ध्यान आकृष्ट
किया था। मोहनजोदाड़ो सिंधु घाटी सभ्यता का एक नगर है जो विशालकाय टीलों से पटा
हुआ है। यह नगर सिंधु घाटी के प्रमुख नगर हड़प्पा के
अंतरगत आता है। सिंधु नदी के किनारे के दो स्थानों हड़प्पा और मोहनजोदड़ो
(पाकिस्तान) में की गई खुदाई में सबसे प्राचीन और पूरी तरह विकसित नगर और सभ्यता
के अवशेष मिले। सर जॉन मार्शल ने सिन्धु घाटी सभ्यता को ‘हड़प्पा
सभ्यता’ का नाम दिया था
जिसे आद्य ऐतिहासिक युग का माना गया।
इस सभ्यता की समकालीन सभ्यता मेसोपोटामिया थी।
इतने साल पहले बने इस शहर को इतने व्यवस्थित ढंग से बनाया गया है की जिसकी आप कल्पना भी हम नही कर सकते है. पाकिस्तान के सिधं में 2600 BC के आस पास इसका निर्माण हुआ था. खुदाई के दौरान इस शहर के
बारे में लोग को जानकारी हुई, इसमें बड़ी बड़ी इमारते, जल कुंड, मजबतू दवार वाले घर, सुंदर
चित्रकारी , मिट्टी व धातु के बर्तन , मुद्राएं
मूर्तियाँ , ईट, तराशे हुए पत्थर और भी
बहुत सी चीजे मिली . जिससे ये पता चलता है कि यहाँ एक व्यवस्थित शहर बना हुआ था,
जेसै हम आज रहते है वैसे ही वे लोग भी घर में रहते थे, खेती किया करते थे. मिट्टी के नीचे दबे इस रहस्य को जानने के बहुत से लोग उत्साहित
है, इस पर कई बार खुदाई का काम शुरु हुआ और बंद हुआ है. कहा
जाये तो अभी एक तहाई भाग का ही खुदाई हुई है. ये शहर 200 हैटेयर
में बसा हुआ है. इस प्राचीन सयता के लए पाकिस्तान को एक नेशनल आइकॉन माना जाता है ।
मोहन जोदड़ो की खोज और खुदाई
मोहन जोदड़ो की खोज साल 1922 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के ऑफिसर R. D. Banerji आर.
डी. बनर्जी ने किया था। यह शहर का अवशेष सिन्धु नदी के
किनारे सक्खर ज़िले में स्थित है। हड्डापा में दो साल तक बहुत ही ज्यादा खुदाई के
बाद, हड्डापा से कुछ 590 किलोमीटर
उत्तर दिशा में मोहन जोदड़ो की खोज हुई। साल 1930 में इस जगह
में बहुत ज्यादा खुदाई की गयी जॉन मार्शल, के. एन. दीक्षित,
अर्नेस्ट मक्के के निर्देश के अनुसार।
बाद में मोहन जोदड़ो की ज्यातर खुदाई साल 1964-1965 में डॉ. जी. ऍफ़. डेल्स ने किया। इसके बाद इसकी खुदाई को रोक दिया गया ताकि
इसकी संरचनाओं को सुरक्षित रखा जा सके और अपक्षय तथा गलने से रोका जा सके। यह माना
जाता है की यह शहर 200 हेक्टेयर क्षेत्र में फैला था और कहा
जाता है 100 साल में जितना भी खुदाई हुआ है वह मात्र इस शहर
का एक तिहाई ही है। इसकी खुदाई में बड़े पैमाने में इमारतें, धातुओं
की मूर्तियाँ और मुहरें आदि मिलें हैं।
वर्ष 1980 के व्यापक वास्तु दस्तावेज में, मोहन जोदड़ो के विस्तृत सतह सर्वेक्षण और सतह की जांच जर्मन और इटली के टीम डॉ. माइकल
जनसन और डॉ. मोरिज़ो टोसी ने किया।
मोहनजोदेड़ो के संस्थापक और कब की थी स्थापना : ऐसा माना जाता है कि 2600 ईसा पूर्व अर्थात आज से 4616
वर्ष पूर्व इस नगर की स्थापना हुई थी। कुछ इतिहासकारों के अनुसार इस
सभ्यता का काल निर्धारण किया गया है लगभग 2700 ई. पू. से 1900
ई. पू. तक का माना जाता है। हड़प्पा के इस नगर मोहनजोदड़ों को ‘सिंध का बांग’ कहा जाता है। इतिहासकारों के अनुसार
हड़प्पा सभ्यता के निर्माता द्रविड़ लोग थे।
किसने की मोहनजोदेड़ो की खोज : मोहनजोदेड़ो
और हड़प्पा सिंधु घाटी का सबसे पुरानी और सुनियोजित नगर था। दयाराम साहनी तथा
माधोस्वरूप वत्स ने 1921 ई. में हड़प्पा सभ्यता की खोज की थी
जबकि ‘मोहनजोदड़ो’ की खोज राखालदास
बनर्जी ने की थी। यह दोनों ही नगर पास पास है।
कहा जाता है यह सभ्यता 5500 साल
पुराना होने के साथ-साथ इसकी जनसँख्या 40000 से भी अधिक थी।
लेकिन IIT खरगपुर के वैज्ञानिकों ‘भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण’ (ए.एस.आई) नें हाल ही
में सबूतों से साथ खुलसा किया है कि सिंधु घटी सभ्यता और मोहन जोदड़ो 5500 नहीं बल्कि 8000 वर्ष पुरानी सभ्यता है।
प्राप्त अवशेष |
सिन्धु घाटी संस्कृति में ऐसे कई स्थान पाए
गए हैं जहाँ लोग रहा करते थे और साथ ही अवशेषों से यह भी ज्ञात हुए है की उस समय युद्ध
का कोई नाम भी नहीं लेता था। साथ ही वे पानी के लिए कुओं का भी उपयोग करते थे ।
हड़प्पा और मोहनजोदडो : पाकिस्तान
के पंजाब प्रांत में स्थित 'माण्टगोमरी जिले' में रावी नदी के बाएं तट पर हड़प्पा नामक पुरास्थल है जबकि पाकिस्तान के
सिन्ध प्रांत के 'लरकाना जिले' में
सिन्धु नदी के दाहिने किनारे पर मोहनजोदड़ो नामक नगर करीब 5 किमी
के क्षेत्र में फैला हुआ है। मोहनजोदेड़ो को हड़प्पा की सभ्यता के अंतरर्गत एक नगर
माना जाता है। इस समूचे क्षेत्र को सिंधु घाटी की सभ्यता भी कहा जाता है। मोहन
जोदड़ो विश्व की सबसे बड़ी सभ्यता के रूप में पाई गयी है जो 4 प्राचीन
नदी से जुडी हुई है तथा यह पाकिस्तान, भारत और अफगानिस्तान
में कुल 12 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है।
खोज के दौरान पता चला था कि यहाँ के
लोग गणित का भी ज्ञान रखते थे इन्हें जोड़ घटाना , मापना सब
आता था जो ईट उस समय अलग -स्लग शहर में उपयोग की गई थी वे सब एक ही वजन व् साइज की
थी जैसे मानो इसे एक ही सरकार के द्वारा बनवाया गया था ।
पुरातत्ववेक्ताओं के अनुसार सिन्धु
घाटी के सभ्यता के लोग गाने बजाने , खेलने कूदने के भी शौक़ीन
थे उन्होंने कुछ म्यूजिक इंस्ट्रूमेंट , खिलौने भी खोज
निकाले थे वे लोग साफ़ सफाई पर ध्यान देते थे पुरातत्ववेक्ताओं को कंघी ,साबुन दवाइयां भी मिली है उन्होंने कंकालो के डांट का निरीक्षण भी किया था
जिससे पता चला कि उनके नकली डांट भी लगे हुए होते थे मतलब प्राचीन सभ्यता में भी
डॉक्टर हुआ करते थे
मोहनजोदड़ो की सभ्यता के दौरान
बड़े बड़े अन्न भंडार मिले है जिससे पता चलता है उस दौर में उन्होंने अन्न को
सहेजकर साल भर इस्तेमाल करने का तरीका सीख लिया था।
मोहनजोदड़ो के समय के आभूषण |
मोहन जोदड़ो के समय काल में लोग पत्थरों के आभूषण पहनना बहुत
पसंद करते थे। ये आभूषण बहुत ही कीमती पत्थरों से तैयार किये जाते थे।
जल कुंड |
खुदाई में यह बात भी उजागर हुई है कि यहाँ भी खेतिहर और
पशुपालक सभ्यता रही होगी। सिंध के पत्थर, तथा राजस्थान के
ताँबो से बनाये गये उपकरण यहाँ खेती करने के लिये काम में लिये जाते थे। गेहूँ,
सरसो, कपास, जौ और चने
की खेती के यहाँ खुदाई में पुख़्ता सबूत मिले हैं। माना जाता है कि यहाँ और भी कई
तरह की खेती की जाती थी, केवल कपास को छोडकर यहाँ सभी के बीज
मिले है। दुनिया में सूत के दो सबसे पुराने कपड़ों में से एक का नमूना यहाँ पर ही
मिला था। खुदाई में यहाँ कपडो की रंगाई करने के लिये एक कारखाना भी पाया गया है। इतिहासकार
इरफ़ान हबीब के अनुसार मोहन जोदड़ो के लोग रबी की फसल करते थे जहाँ गेहूँ, सरसो, कपास, जौ और चने की खेती
की जाती थी जिसकी खुदाई में पुख़्ता सबूत मिले हैं।
यहां से प्राप्त मुहरों को सर्वोत्तम
कलाकृतियों का दर्जा प्राप्त है। हड़प्पा नगर के उत्खनन से तांबे की मुहरें
प्राप्त हुई हैं। इस क्षेत्र की भाषा की लिपि
चित्रात्मक थी। मोहनजोदड़ो से प्राप्त पशुपति की मुहर पर हाथी, गैंडा, बाघ और बैल अंकित हैं। हड़प्पा के मिट्टी के
बर्तन पर सामान्यतः लाल रंग का उपयोग हुआ है। मोहनजोदड़ों से प्राप्त विशाल
स्नानागार में जल के रिसाव को रोकने के लिए ईंटों के ऊपर जिप्सम के गारे के ऊपर
चारकोल की परत चढ़ाई गई थी जिससे पता चलता है कि वे चारकोल के संबंध में भी जानते
थे। हल से खेत जोतने का एक साक्ष्य हड़प्पा
सभ्यता के कालीबंगा में भी मिले हैं मोहन जोदड़ो में खुदाई पर बहुत ही बड़ा और
सुन्दर बुद्ध स्तूप भी मिला ।
मुअनजो-दड़ो की सड़कें |
यहाँ की सड़कें ग्रिड प्लान की तरह हैं मतलब आड़ी-सीधी हैं। पूरब की बस्तियाँ “रईसों की बस्ती” है, क्योंकि यहाँ बड़े-घर, चौड़ी-सड़कें,
और बहुत सारे कुएँ हैं। मुअनजो-दड़ो की सड़कें इतनी बड़ी हैं,
कि यहाँ आसानी से दो बैलगाड़ी निकल सकती हैं। यहाँ पर सड़क के दोनो
ओर घर हैं, दिलचस्प बात यह है, कि यहाँ
सड़क की ओर केवल सभी घरो की पीठ दिखाई देती है, मतलब दरवाज़े
अंदर गलियों में हैं।इतिहासकारों का कहना है कि मुअनजो-दड़ो सिंघु घाटी सभ्यता में
पहली संस्कृति है जो कि कुएँ खोद कर भू-जल तक पहुँची। मुअनजो-दड़ो में करीब ७००
कुएँ थे। यहाँ कि बेजोड़ पानी-निकासी, कुएँ, कुंड, और नदीयों को देखकर हम यह कह सकते हैं कि
मुअनजो-दड़ो सभ्यता असल मायने में जल-संस्कृति थी ।
मोहनजोदड़ो शहर की गलियों में आज
भी आप घूम सकते हैं। वहां की दीवारें आज भी बहुत मज़बूत हैं। इस शहर के किसी सुनसान
मार्ग पर कान देकर उस बैलगाड़ी की रुन-झुन सुन सकते है जिसे आपने पुरातत्व की
तस्वीरों में देखा है ।
मोहनजोदड़ो के संग्रह की गयी वस्तुओं का संग्राहलय |
आज भी कराची,
लाहौर, दिल्ली और लंदन में मोहनजोदड़ो के
संग्रह की गयी वस्तुओं का संग्राहलय है। इस संग्रह में काला
पड़ गया गेहूँ, ताँबे और काँसे के बर्तन, मुहरें, वाद्य, चाक पर बने
विशाल मृद्-भांड, उन पर काले-भूरे चित्र, चौपड़ की गोटियाँ, दीये, माप-तौल
पत्थर, ताँबे का आईना, मिट्टी की
बैलगाड़ी और दूसरे खिलौने, दो पाटन वाली चक्की, कंघी, मिट्टी के कंगन, रंग-बिरंगे
पत्थरों के मनकों वाले हार और पत्थर के औज़ार हैं। संग्राहलय में कम करने वाले अली
नवाज़ ने बताया है की यहाँ कुछ सोने के गहने भी हुआ करते थे जो चोरी हो गए ।
संग्रहालय में रखी वस्तुओं में कुछ सुइयाँ भी हैं। खुदाई में ताँबे और काँसे की बहुता सारी सुइयाँ मिली थीं। काशीनाथ दीक्षित को सोने की तीन सुइयाँ मिलीं जिनमें एक दो-इंच लंबी थी। समझा गया है कि यह सूक्ष्म कशीदेकारी में काम आती होगी। खुदाई में सुइयों के अलावा हाथीदाँत और ताँबे के सुए भी मिले हैं।
मोहन जोदड़ो की खुदाई के समय बहुत ज्यादा अन्न के भंडार भी
मिलें हैं जिनसे यह पता चलता है की उस समय के लोगों को अनाज संग्रह करना भी आता
था ।
सिधु घटी सभ्यता के पतन का कारण आज तक सही तरीके से ज्ञात
नहीं हो पाया है शोधकर्ताओं का कहना है इसका कारण रेडियोएक्टिव रेडिएशन था ।
मोहन जोदड़ो में कुछ ऐसे भी सबुत मिले हैं जिससे यह पता लगता
है कि सिन्धु घाटी के लोगों ने शतरंज से मिलता झूलता खेल भी सिख लिया था।
1 टिप्पणियाँ:
बहुत ही खूबसूरत पोस्ट आपने किया है, सभी यूजर्स के लिए बहुत ही ज्ञानवर्धक है कृपया ऐसे ही और ज्ञान की बातें शेयर करें!धन्यवाद!
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