मदन महल का किला
मध्यप्रदेश के जबलपुर शहर में लोकप्रिय पर्यटक आकर्षण है जिसे दुर्गावती किले के
नाम से जाना जाता हैं। मदन महल का किला एक ग्रेनाइट पत्थर पर बना है, जो उसी नाम की पहाड़ी
पर करीब 515 मीटर की ऊंचाई पर है। मदन महल का किला 11
वीं शताब्दी में 37 वें गोंड शासक मदन सिंह के
शासनकाल के तहत बनाया गया है। इस किले की ईमारत को सेना अवलोकन पोस्ट के रूप में
भी इस्तमाल किया जाता रहा होगा ।
इस इमारत की बनावट में अनेक छोटे-छोटे कमरों
को देख कर ऐसा प्रतीत होता है कि यहाँ रहने वाले शासक के साथ सेना भी रहती होगी।
शायद इस भवन में दो खण्ड थे। इसमें एक आंगन था और अब आंगन के केवल दो ओर कमरे बचे
हैं। छत की छपाई में सुन्दर चित्रकारी है। यह छत फलक युक्त वर्गाकार स्तम्भों पर
आश्रित है। माना जाता है, इस महल में कई गुप्त सुरंगे भी हैं जो जबलपुर के 1000 AD में बने '६४ योगिनी 'मंदिर से
जोड़ती हैं ।
जिस पहाड़ी पर मदन महल
किला बना हुआ है एक समय पहाड़ी खूबसूरत वृक्षों से हरी भरी थी यहाँ सीताफल के बगीचे
थे जो पूरे देश में प्रसिद्ध थे यहाँ जंगल में चीते ,शेर और जंगली जानवर भी थे
हालांकि सैनिक छावनी होने कीवजह से यहाँ सख्त पहरा होता था और परिंदो को मारने की
यहाँ अनुमति नहीं थी ।
यह किला आज खंडहर
में बदल चुका है फिर भी आप शाही परिवार का मुख्य कक्ष , युद्द कक्ष छोटा सा अस्तबल
देख सकते है वह पत्थर आज भी दिखने को मिलता है जिस पर दुर्गावती रानी अपने घोड़े पर
बैठकर किले के नीचे छलांग लगाकर युद्द का अभ्यास करती थी ।
मदन महल किला एक बड़ी
ग्र्नाईट चट्टान को तराशकर बनाया गया है जो एक पहाड़ी पर जमीन से लगभग ५०० उंचाई है
किले की चोटी पर पहुंचने पर आपको जबलपुर श्ह्ह्र का खूबूसरत नजारा दिखाई देगा ।
यह दसवें गोंड राजा मदन शाह
का आराम गृह भी माना जाता है। यह अत्यन्त साधारण भवन है। परन्तु उस समय इस राज्य
कि वैभवता बहुत थी। खजाना मुग़ल शासकों ने लूट लिया था।
गढ़ा-मंडला में आज भी
एक दोहा प्रचलित है - मदन महल की छाँव में, दो टोंगों के बीच। जमा गड़ी नौं लाख की, दो सोने की ईंट। कहावत के कारण मशहूर होने की बात बताई जाती है हालांकि इस
खोज में यहाँ कई और विशेषज्ञ भी आए लेकिन उन्हें कुछ नहीं मिला आज भी ये ईटे खोज
का विषय है ।
गोंड राज्य पर लगातार मुगलों द्वारा हमले
किए जा रहे थे जिसके कारण इस किले वॉच टॉवर के रूप में तब्दील कर दिया गया ।
किला गोंड रानी रानी
दुर्गावती से और उनके बेटे मदन सिंह के साथ जुड़ा
हुआ है। जो दसवें गोंड शासक थे। रानी दुर्गावती अंततः मुग़ल से लड़ते हुए शहीद हुईं
थी ।
सुरंग |
जबलपुर के शासकों ने जबलपुर, मंडला और आसपास के क्षेत्रों पर राज्य किया। मदन महल
उनके द्वारा निर्मित एक ऐसा किला है। यद्यपि बिल्कुल वास्तुशिल्प के चमत्कार नहीं,
छोटे किले को भारत में प्राचीन स्मारकों के रूप में देखा जाता है ।
मदन महल किले की वास्तुकला
किले ने शासक, अस्तबल, युद्ध कक्ष, प्राचीन लिपियों, गुप्त मार्ग, गलियारों और एक छोटे से जलाशय के मुख्य सुख-मंडल को सम्मिलित किया,
जो कि सभी किले के अंदर दिखाई दे सकते हैं। किले के कमरों को
रणनीतिक रूप से डिजाइन किया गया था, मुख्य ढांचे के सामने जो
शायद शाही सेना के सैनिकों को दर्ज करा रहे थे ।
मदन महल किले पर कैसे पहुंचे
रेलवे यात्रा: जबलपुर
मध्य भारत की मुख्य स्टेशन है इसलिए दिल्ली,मुम्बई समेत सभी बड़े स्टेशनों से यहाँ
के लिए आपको बहुत आसानी से ट्रेन मिल जाएगी हैदराबाद, पुणे, वाराणसी, आगरा, ग्वालियर, भोपाल, इंदौर, रायपुर, पटना, ,हावड़ा, गुवाहाटी
और जयपुर जाने वाली ट्रेनों का जबलपुर स्टोपेज है ।
सड़क यात्रा: मदन
महल का किला जबलपुर शहर के इलाके में स्थित है, इसलिए जबलपुर शहर तक पहुंचने वाली सभी बसें किले परिसर में जाने के लिए
उपयुक्त हैं। सभी ही बड़े शहरों से जबलपुर तक सड़क के जरिए आसानी से पहुंचा जा सकता
है जबलपुर से एनएच गुजरता है जो वाराणसी से कन्याकुमारी तक के कई शहरों को आपस में
जोड़ता है इसके अलावा नागपुर ,भोपाल से भी जबलपुर तक पहुंचा जा सकता है ।
हवाई यात्रा: मदन
महल किला जाने के लिए आपको पहले जबलपुर जाना होगा दिल्ली और मुम्बई से यहाँ जो
डुमना एयरपोर्ट के लिए रोज प्लाइट्स है एयरपोर्ट से मदनमहल तक पहुंचने के लिए आपको
टैक्सी मिल जायेगी ।
9 टिप्पणियाँ:
मदन महल किले के बारे में बहुत अच्छी जानकारी मिली, धन्यवाद!
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरूवार (25-01-2018) को "कुछ सवाल बस सवाल होते हैं" (चर्चा अंक-2859) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
धन्यवाद कविता जी
कविता जी मेरे इस महल के बारे में इसलिए भी लिखा है की लोग जाने हमारे महलों के बारे में और मेरा ननिहाल जबलपुर का ही है तो मुझे लगा की इस पर लिखा जा सकता है ।
.
पहली बार सन् 1982 में जबलपुर गया था । तभी मदनमहल के मदनशाह के किले को देखा था ।
उस किले के पास ही एक बैलेंसिंग रॉक भी है । जिसका जिक्र आपकी पोस्ट में नहीं है । इसके बिना मदनमहल अधूरा सा लगता है ।
प्राकृतिक तौर पर एक बड़ा गोल सा पत्थर एक विशाल चट्टान पर इस तरह टिका हुवा है , कि मानो अब गिरा या तब । इसलिये इसे बैलेंसिंग रॉक कहते हैं ।
इसके आलावा मदन महल की एक खास बात बड़े पहाड़ पर उस किले की संरचना किया जाना बड़ा रोमांचक काम होगा ।
एक और अद्भुत बात यह है कि उस किले में एक आधुनिक शौचालय भी बनाया गया था ।
इस प्रकार यह महल भले ही खण्डहर में तब्दील हो चूका है , लेकिन किसी जमाने में उस दौर के सुविधाओं से सम्पन्न किला रहा होगा ।
आपने जो एक प्राचीन किले की जानकारी बड़ी खूबसूरती से प्रेषित किया , उसके लिये आपकी जितनी प्रशंसा की जाये कम ही है ।
धन्यवाद ।
जानकारी के बहुत बहुत धन्यवाद मुझे बैलेंसिंग रॉक के बारे में लिखने का ध्यान नहीं आया ।
अब जोड़ दूंगी ।
प्रंशसा के धन्यवाद ।
वन्दना जी धन्यवाद
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