झुग्गी झोपडी में रहने वाले परिवार और बच्चे

       झुग्गी झोपडी में रहने वाले प्यारे बच्चे 

                     
मैं और मेरी दोस्त अंजू 
                      
नये साल के पहले रविवार को हम कॉलेज के कुछ दोस्त मिलकर हमारे छतीसगढ़ के महासमुंद जिले में एक गांव सिरपुर वहां पिकनिक पर गये थे । यह सिरपुर शहर महानदी नदी के तट पर राजधानी रायपुर से 78 किमी दूर और महासामंद शहर से 35 किमी दूर बसा हुआ है यहां पर घूमने के लिए बहुत सारी जगहें है हमने भी काफी सारी जगहों का भ्रमण किया बहुत मस्ती की बीच में हम कोडार डैम गये घूमने के लिए गए डैम घूमने के बाद मैं अपनी एक सहेली अंजना  के उसके साथ वहां पास के गाँव में घूमने के लिए गई जैसे गाँव के अंदर हमने प्रवेश किया वहां गाँव के बच्चों ने हमें घेर लिया उन्होंने सोचा हम कोई डॉक्टर है और हमसें दरवाजे की आड़ में छुपते हुए बोले मैडम जी आप हमें सूई तो नहीं लगाने आई हो मैंने और मेरी सहेली ने बोला अरे नहीं बेटा हम लोग बस आपके गाँव में हुमने आये है आप बच्चे लोग हमसे डरो नहीं आप लोग खेलों आराम से 
                  
गाँव के सुकून वाले घर 
                       
गाय भैंस का खाना 
                           
 पापड नड्डा बेचता हुआ बच्चा 
                   
       फिर मैंने और अंजू दीदी ने गाँव का भ्रमण करना शुरू किया गाँव बहुत ज्यादा बड़ा नहीं था बहुत छोटा सा गाँव था गाँव के शुरूआत में ही एक पान की दूकान थी जहां पर दो भाईसाहब खटिया बैठकर दीन दुनिया की बातों में लगे हुए थे  वही पर एक बच्चा पापड नड्डा बेच रहा था क्योंकि डैम था तो लोग खरीदने आते थे हमने भी लिए ताकि उस प्यारे बच्चे की कुछ जरूरतें पूरी हो जाएं  गाँव के घर प्यार की मिट्टी से गोबर से लिपे हुए छप्पर वाले कच्चे घर थे चारों तरफ हरी - भरी हरियाली पेड़ -पौधे लगे थे कहीं - कहीं हमें गाय भैंसे भी स्टाइल से बैठे हुए मिली थी उनकी भी हमने फ़ोटो ली । अंदर सड़के नहीं पगडंडिया थी तो कहीं पत्थरों के बीच गाय - भैंस के लिए उसका खाना ( चारा ) रखा हुआ था  जिनमें से कुछ घरों में तो कुछ - कुछ कंस्ट्रकशन का काम चल रहा था क्योंकि एक दो घरों के सामने गिट्टी रेती रखी हुई थी गांव में एक अदभुत सा शांत माहौल था  गाँव की खुशबू को  हमने मन से पूरी तरह महसूस किया कोई शोर नहीं था । ऐसा माहौल था जिस माहौल की तलाश में हम कभी दार्जलिंग जाते है तो कभी उटी जाते है ऐसा सुकून उस एक पल में हमने बहुत कुछ महसूस किया की ऐसा सुकून हजारों रुपए खर्च करके भी नहीं मिलता हम पैसे खर्च करते है कुछ दिन बाहर होलीडे मनाकर कुछ ढेर सारी खरीदारी करके दर्जनों पोज में फोटो खींचकर यहाँ - वहां घूमकर वापस घर आ जाते है पर फिर भी हम तनाव में ही रहते है  एक व्यस्त दिनचर्या हर चीज हमारी अप टू डेट बोले तो हमारी लाइफ में सबकुछ एकदम आल सेट होता है सब कुछ 
बैठी हूई अम्मा बच्चों को खेलते देखती हुई 
                          यहाँ गाँव की बात ही निराली थी हम एक घर के अंदर भी गये जैसे ही घर के अंदर प्रवेश किया तो देखा एक बहुत बुज़ुर्ग बाबा जी खांसते हुए खटिया पर बैठकर टीवी देख रहे है हम हौले से कदम रखते हुए घर अंदर गये तो एक बुजुर्ग अम्मा कमरे के दरवाजे के सामने बैठी हुई है आंगन मिट्टी का था वहां खाना पकाने के लिए चूल्हा बना हुआ था गैस सिगड़ी नहीं थी घर में ही बाड़ी में लगी सब्जियां तोड़कर ही सब्जी बनाते है , खटिया का दांचा रखा था बगल में रसोई थी जहां पर कोई महिला खाना बनाने की तैयारी कर रही थी , आंगन में परिवार के लोगो के कुछ कपड़े रस्सी पर टंगे हुए थे आंगन में ज्यादा कुछ तो नहीं पर हाँ तुलसी चौरा था ।

                        एक - एक करके वहां बहुत सारे बच्चे अपनी बॉल और छड़ी लेकर खेलने के लिए आ गये मेरे दिमाग़ में उस वक्त ख्याल आया क्यों ना इन बच्चों का कैमरे से एक वीडियो बना लिया जाए हमें वापस जाने में देर भी हो रही थी फिर मैंने सोचा की ऐसा मौका फिर मिलेगा या नही वह तो संयोग की बात है पर शायद ही फिर कभी मैं इस गाँव में दोबारा आऊ , बस बना लिया वीडियो गाँव के बहुत से घरों में बिजली ही नही थी सुनकर दुःख हुआ एक या दो ही घरों में थी बिजली , हम लोग अपने घरों में हर रोज हजारों रुपयों की बिजलियाँ जलाकर रोशनी कर देते है और कुछ घर ऐसे भी होते है जहां रोशनी भी नहीं होती है उन घरों में वे लोग लालटेन या मोमबती जलाते है पानी लाने के लिए दूर एक हैन्डपम्प लगा था वहां गाँव की स्त्रियाँ रोज सुबह होते ही हैंडपंप के पास लाइन लगाकर पानी भरकर लाती है गाँव में स्कूल नहीं है तो बच्चे पढ़ने भी नहीं जाते है बच्चे खेलते है गांव की गलियों में घूमते हैं । शाम होते ही तारों की छांव में घर की महिलाएं खाना बनाती है घर के काम करती है काम निपटाकर कुछ देर आराम करती है या तो गांव की सखियों संग बातें करती है । गाँव के पुरुष वर्ग मजदूरी करके अपने परिवार का पेट पालते है । बच्चों के पास कुछ कपड़े थे हम रोज यहाँ नए - नये कपड़े पहनते है मेरा निवेदन है अगर आपके पास पुराने कपड़े हो तो उन्हें उन लोगों को दे दीजिए जिन्हें इनकी जरूरत है । कितना अलग जीवन था गाँव के लोगों का हमारे जीवन से बिलकुल अलग जिसके बारे में सोचते नही है ऐसा भी जीवन होता है हम दर्जनों तनाव अपने दिमाग़ में पाले घूमते रहते है  जरूरतें सीमित ना किसी बात का तनाव , ना ज्यादा खर्चे , ना कोई फैशन ना दिखावा , थोड़ी सी चीजों से सूख थोड़े साधनों से मनोरंजन, थोड़ी सी जरूरतें, थोड़े से पैसों में गुजारा , बच्चों को स्कूल जाने की ना अपने आने वाले की कल की चिंता ना और ना इस बात की फ़िक्र की उन्हें बड़े होकर क्या बनना है 
                   
                          वापस जाते वक्त सारे बच्चों ने हमारी टीम को बाय - बाय बोलकर विदा किया गाँव के लोगो का यह अपनापन देखकर बहुत अच्छा लगा ऐसा लग रहा था की काश थोड़ा वक्त और होता तो यहाँ कुछ देर रुक सकते थे पर क्या कर सकते थे वापस तो आना ही था । मैंने गाँव के लोगो उनके जीवन को बहुत बारीकी से महसूस किया और उसी वक्त बस में बैठते ही सोच लिया था की इनके जीवन के बारे में गांव के इस सुखद माहौल पर तो पोस्ट लिखूँगी ही   दुर्ग वापस आते वक्त बहुत सारी सोच रही थी मेरे दोस्तों ने पूछा अरे कोपल क्या बात है भई क्या सोच रही हो मैंने कहा की गाँव और गाँव के माहौल के बारे में सोच रही हूँ क्या ये बच्चे  इसी तरह झुग्गी झोपड़ी में रहकर अपना सारा जीवन बीता देंगे क्या ये बच्चे कभी स्कूल जाकर पढ़ाई नहीं कर सकेगे क्या गाँव के लोगों का जीवन सैदेव एक जैसा ही रहेगा फिर लगा ये तो वक्त है हो सकता है वक्त बदलें तो उनके जीवन में भी बदलाव आये 
गाँव के सुखद वातावरण में खेलते बच्चों पर वीडियो 

झुग्गी झोपड़ी में रहने वाले ये बच्चे
ना स्कूल फ़िक्र ना कन्धो पर इनके बस्ते
ना किताबें ना एक निशिचिनता में जीते
खेल तमाशे ना कल की चिंता
मिट्टी में घर बनाते लकड़ी से खेलते
तारों वाली रात में बिन सपने सोते
ना खर्चे ना कोई फैशन वाला जीवन
झुग्गी में झूलते गिरते उठते चलते
झुग्गी झोपड़ी में खिड़की से झांकते बच्चे





5 टिप्पणियाँ:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (20-01-2018) को "आगे बढिए और जिम्मेदारी महसूस कीजिये" (चर्चा अंक-2854) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
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डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

Onkar ने कहा…

बहुत सुन्दर प्रस्तुति

कोपल कोकास ने कहा…

धन्यवाद ओंकार जी

Jyoti Dehliwal ने कहा…

यदि इन लोगो को शिक्षा मिल सकी तो ये भी समाज की मुख्य धारा में आ सकते हैं। सुंदर प्रस्तुति।

कोपल कोकास ने कहा…

जी ज्योति जी सही कहा आपने आएगा वो दिन भी जिस दिन वे भी समाज के औऱ लोगों की तरह शिक्षा ले सकेंगे ।
धन्यवाद

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