आज के दिन चिपको आन्दोलन की शुरुआत

     
       जब कभी भी हम पर्यावरण संरक्षण की बात करते है तो दिमाग़ में आता है उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्र में ८० के दशक में चले चिपको आन्दोलन के बारे में आज 26 मार्च के ही दिन चिपको आन्दोलन किया गया था वनों को संरक्षित करने के लिए इस अनूठे आन्दोलन की वजह से आज देशभर में पर्यावरण के प्रति जागरूकता फ़ैल गई है यह आन्दोलन पर्यावरण व् प्रकृति की रक्षा के लिए चलने वाली प्रक्रिया है ।

क्या है चिपको आन्दोलन की कहानी 

भारत में पहली बार 1927 में वन अधिनियम 1927 को लागू किया गया था इस अधिनियम के कई प्रावधान आदिवासी और जंगलो में रहने वाले लोगों कि हितों के खिलाफ़ थे । ऐसी ही नीतियों के खिलाफ़ १९३० में टिहरी में एक बड़ी रैली का आयोजन किया गया अधिनियम के कई प्रावधानों के खिलाफ़ जो विरोध १९३० में शुरू हुआ था वह 1970 में एक बड़े आन्दोलन के रूप में सबके सामने आया जिसका नाम चिपको आन्दोलन रखा गया । 1970 से पहले महात्मा गांधी के एक शिष्य सरला बेन ने १९६१ में एक अभियान की शुरुआत की जिसके तहत उनहोंने लोगों को जागरूक करना शुरू किया । 30 मई १९६८ में बड़ी संख्या में आदिवासी पुरुष और महिलाएं पर्यावरण संरक्षण के मुहीम के साठ जुड़ गए । इस प्रकार आगे चलकर इन्ही छोटे - छोटे आंदोलनों से मिलकर विश्वव्यापी जनांदोलन की शुरुआत हुई ।

चिपको आन्दोलन की शुरुआत 

१९७४ में वन विभाग ने जोशीमठ के रैनी गाँव के करीब ६८० हेक्टेयर जंगल ऋषिकेश के एक ठेकेदार को नीलाम कर दिया । इसके अंतर्गत जनवरी १९७४ में रैनी गाँव के २४५९ पेड़ों को चिन्हीत किया गया । 23 मार्च को रैनी गाँव में पेड़ो का काटन किये जाने के विरोध में गोपेश्वर में एक रैली का आयोजन हुआ , जिसमें गौरा देवी ने महिलाओं का नेतृत्व किया ।

प्रशासन ने सड़क निर्माण के दौरान हुई क्षति का मुआवजा देने की तिथि 26 मार्च टी की गई जिसे लेने के लिए सभी को चमोली आना था । इसी बीच वन विभाग ने सुनियोजित चाल के तहत जंगल काटने के लिए ठेकेदारों को निर्देशित कर दिया कि 26 मार्च को गाँव के मर्द चमोली में रहेंगे और सामाजिक कार्यकर्ताओं को वार्ता के बहाने गोपेश्वर बुला लिया जाएगा और आप मजदूरों को लेकर चुपचाप रैनी की और चल पड़े और पेड़ों को काट डालो इसी योजना पर अम्ल करते हुए श्रमिक रैनी की और चल पड़े । इस हलचल को एक लड़की द्वारा देख लिया गया और उसने तुरंत इससे गौरा देवी को अवगत कराया पारिवारिक संकट झेलने वाली गौरा देवी पर आज एक सामूहिक उतरदायित्व आ पड़ा गाँव में उपस्थित 21 महिलाओं और कुछ बच्चों को लेकर वह जंगल की और चल पड़ी । ठेकेदार और जंगलात के आदमी उन्हें डराने धमकाने लगे लेकिन अपने स्साहस का प्रदर्शन करते हुए उन्होंने डटकर सामना किया और उन्होंने गाँव की महिलाओं को गोलबंद किया और पेड़ों से चिपक गए ठेकेदार व् मजदूरों को इस विरोध का अंदाज न था जब सैकड़ो की तादाद में उन्होंने महिलाओं को पेड़ों से चिपके देखा तो उनके होश उड़ गए उन्हें खाली हाथ लौटना पड़ा ओरिस तरह यह विरोध चलता रहा ।

उस समय अलकनंदा घाटी से उभरा चिपको का संदेश जल्दी ही दोसोरे इलाकों में भी फ़ैल गया नैनीताल और अल्मोड़ा में आन्दोलनकारियों ने जगह - जगह हो रहे जंगल की नीलामी को रोका ।

टिहरी से ये आन्दोलन सुन्दरलाल बहुगुणा के द्वारा शुरू किया गया जिसमें उन्होंने गाँव -गाँव जाकर लोगो में जागरूकता लाने के लिए १९८१ से १९८३ तक लगभग 5000 कि. मी लम्बी ट्रांस - हिमालय पदयात्रा की । और १९८१ में हिमालयी क्षेत्रों में एक हज़ार मीटर से ऊपर के जंगल में कटाई पर पूरी पाबंदी की मांग लेकर आमरण अनशन पर बैठे इसी तरह से कुमाऊं और गढ़वाल के विभिन्न इलाकों में अलग - अलग समय पर चिपको की तर्ज पर आन्दोलन होते रहे ।

अंतत: सरकार ने एक समिति बनाई जिसकी सिफारिश पर इस क्षेत्र में जंगल काटने पे 20 सालों के लिए पाबंदी लगा दी गई ।

आन्दोलन का प्रभाव 

इस आन्दोलन की मुख्य उपलब्धि ये रही कि इसने केन्द्रीय राजनीति के एजेंडे में पर्यावरण को एक सघन मुद्दा बना दिया जैसा कि चिपको के नेता रहे कुमाऊं यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर डॉ शेखर पाठक कहते है '' १९८० का वन संरक्षन अधिनियम और यहाँ तक कि केंद्र सरकार में पर्यावरण मंत्रालय का गठन भी चिपको की वजह से ही सम्भव हो पाया .''

उत्तर प्रदेश में इस आन्दोलन ने १९८० में तब एक बड़ी जीत हासिल की जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने प्रदेश के हिमालयी वनों में वृक्षों की कटाई पर 15 वर्षो के लिए रोक लगा दी बाद के वर्षो में यह आन्दोलन पूर्व में बिहार , पश्चिम में राजस्थान , उत्तर में हिमाचल प्रदेश , दक्षिण में कर्नाटक और मध्य भारत में विंध्य पर्वतमाला में वृक्षों ली कटाई को रोकने में सफल रहा साथ ही यह लोगों की आवश्यकताओं और पर्यावरण के प्रति अधिक सचेत प्राकृतिक संसाधन नीति के लिए दबाब बनाने में भी सफल रहा l


नोट 

चिपको आन्दोलन के सूत्रधार श्रीमती गौरा देवी थी l

इस आन्दोलन को शिखर तक पहुँचाने का काम पर्यारवरणविद सुन्दरलाल बहुगुणा ने किए l

सं १९८१ में सुन्दरलाल बहुगुणा को पद्मश्री पुरस्कार दिया गया लेकिन उन्होंने स्वीकार नही किया कि क्योंकि उन्होंने कहा जब तक पेड़ों की कटाई जारी मैं अपने को इस समान के योग्य नहीं समझता हूँ ।

इस आन्दोलन को १९८७ में सम्यक जीविका पुरस्कार ( Livelihood Award से सम्मानित किया गया ।

जिस तरह से इन लोगों ने एक आंदोलन के माध्यम से वनों को काटने से रोका उसी तरह हमें भी अपने पेड़ पौधों, वनों को बचाना चाहिए । एक दिन कहीं ऐसा ना आ जाए कि धरती पर पेड़ ही ना बचे फिर बिना पेड़ो का जीवन कैसा होगा यह तो सोचा ही जा सकता है । इसलिए पेड़ो को बचाइए और हरियाली के बीच अपना जीवन अच्छे से बिताइए । 

12 टिप्पणियाँ:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (27-03-2017) को "सरस सुमन भी सूख चले" (चर्चा अंक-2922) पर भी होगी।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

Sarala Sharma ने कहा…

ज्ञानवर्धक जानकारी
धन्यवाद

Mahendra Kumar ने कहा…

ज्ञानवर्धक जानकारी । बधाई।

कोपल कोकास ने कहा…

धन्यवाद सरला जी

कोपल कोकास ने कहा…

धन्यवाद महेन्द्र जी

Unknown ने कहा…

ज्ञानवर्धक और रोचक जानकारी ।आपको बधाई

Unknown ने कहा…

ज्ञानवर्धक और रोचक जानकारी ।आपको हार्दिक बधाई ...

राजेश अग्रवाल ने कहा…

ज्ञानवर्धक और सामयिक जानकारी के लिए धन्यवाद..।

कोपल कोकास ने कहा…

धन्यवाद आशा जी

कोपल कोकास ने कहा…

धन्यवाद राजेश जी

Geek Info ने कहा…

LIC JEEVAN

BATHROOM NEAR ME

LAPTOP INSURANCE

OTHER ONLINE FREE

VOTER ID

VOTER CARD AADHAR CARD

DUPLICATE VOTER ID

SBI BALANCE ENQUIRY

Surjeet ने कहा…

मुझे खुशी है कि आपने इस विषय पर चर्चा की है और लोगों को जागरूक कर रहे हैं। आपने मुद्दे की गहराई में जाकर उसके प्रभाव को समझाया है। आपके ब्लॉग आगे बढ़ने के लिए शुभकामनाएं! चिपको आंदोलन उत्तराखंड

एक टिप्पणी भेजें