जाने कब वो सयानी हो जाती है



विश्व कविता दिवस पर पढ़िए

छुपकर माँ से लिपस्टिक लगाती है
जाने कब वो सयानी हो जाती है
माँ की साड़ी को पहन वो इतराती है
आंचल में सुरमुई सी हो जाती है
माँ की तरह रसोई सम्हालती है
अपने हुनर से वो सयानी हो जाती है
पिता के दुःख में कंधा बन जाती है
दुःख सुख में वो सयानी हो जाती है
पिता की शर्ट देख हमसफर के सपने सजाती है
नई उमंगो में वो सयानी हो जाती है
उम्र की नई ढलानों पर चढ़ती जाती है
जाने कब वो सयानी हो जाती है
सबका मान ध्यान रखती जाती है
सबकी प्यारी रानी  हो जाती है
मन में बजती शहनाई धुन पर सजती है
अपने सपनों में जाने कब बड़ी हो जाती है
दो दो कुलों की लाज बन जाती है
जाने कब वो सयानी हो जाती है
बारीकी से सब सीख नई गृहस्थी बसा लेती है
अपने अनुभवों में जाने कब वो सयानी हो जाती है
पहले पूछकर शर्माती थी ये हमारे क्या लगते है
जाने कब रिश्तों को निभाना सीख जाती है
हाथों में किताबें बस्तें सम्भलती स्कूल जाती है
वो सयानी कब पूरे घर की धुरी बन जाती है
बेटी से बहू पत्नी माँ जाने कितने रिश्तों में ढल जाती है
जाने कब वो सयानी हो जाती है
जाने कब वो सयानी हो जाती है





1 टिप्पणियाँ:

डॉ. दिलबागसिंह विर्क ने कहा…

आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 22.03.2017 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2917 में दिया जाएगा

धन्यवाद

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