पीरियड्स के विषय पर अपने दिमाग़ को अपनी सोच को खुला छोड़िये

                  पीरियड्स गन्दी चीज़ नहीं है ना ही कोई महिला अस्वच्छ जब तक हमारे देश में महिलाओं के माहवारी सम्बन्धी रूढ़ियाँ खत्म नहीं होगी तब तक हमारा देश विकसित हो नहीं सकता यह रूढ़ियाँ तब तक इसी तरह आगे बढती रहेंगी जब तक लोगो के दिमाग़ से यह बात बाहर नही निकल जाती कि महिलाओं को होने वाला मासिक धर्म गन्दी चीज़ है आज भी बहुत सारी जगहें ऐसी है जहां लोग आज भी महिलाओं के साथ उनके मासिक धर्म के दौरान उनके साथ बुरा व्यवहार किया जाता है आचार पापड को हाथ मत लगाओ , मन्दिर मत जाओ ,पूजा पाठ मत करो , बाहर बरामदे ज़मीन पर सो ,रसोई में मत जाओ , घर की किसी वस्तु को हाथ मत लगाओ किसी व्यक्ति को मत छुओ

            आज तो थोड़ी स्थितियां बदली है पर बदलाव तो उतना भी नहीं हुआ है जितना होना चाहिए आज भी जब कोई महिला मेडिकल स्टोर पर जाकर पैड मांगती है तो दुकानदार उसे अखबार के टुकड़े में पैक करके काली पन्नी में बंद करके देता है मुझे तो ऐसा लगता है जैसे वो कोई बम विस्फोट करने वाली चीज़ है या चरस गांजा नशा करने वाली चीज़ है जिसे कोई पुलिस पकड़ लेगी जिसे इतना छुपाकर दिया जा रहा है

            लोगों का ब्रेन साफ़ होना ही चाहिए यह कोई शर्म का विषय है ही नहीं जिसके बारे में बात ही नहीं कि जाए आज भी बहुत से पुरुष ऐसे है जो मासिक धर्म के टॉपिक पर बात ही नहीं करते है इसका मतलब यह समझा जाए कि मासिक धर्म का टोपिक गन्दी चीज़ है या इस पर बात ही ना की जाएं दरअसल बात तो सिर्फ इतनी सी है कि हम शर्माते है और इस टॉपिक पर बात करने के बजाय मुहं पर चुप्पी तानकर बैठ जाते है कि अरे यह तो गंदा विषय है इस पर कोई बात ना कि जाएं

            पीरियड्स के मुश्किल वक्त में जब कोई महिला दर्द से गुजर रही है उसे ब्लीडिंग हो रही है तो लोग क्या करते है हम उसे हर चीज छूने की मनाही करते है जबकि उस वक्त उसके मूड में कितने बदलाव होते है उसे सपोर्ट देने के बजाए उसके साथ बुरा व्यवहार किया जाता है उस पर हजारों पाबन्दिया लगा दी जाती है उस स्त्री से उसकी पीड़ा ही नहीं पूछी जाती है कि वो इस बात क्या महसूस कर रही है , उससे यह कह दिया जाता है अचार हाथ मत लगाना गंदा हो जाएगा जब आपके ही दिमाग़ में गन्दगी भरी है तो यह तो लगेगा ही वह स्त्री जिसके पीरियड्स चल रहे है वह अचार हाथ ना लगाये ।  जब उस स्त्री के मासिक धर्म का समय हो तो जब तक खत्म ना हो तब उसके हाथ में अचार की बरनी लेकर बैठा दीजिए  और पीरियड्स होने के बाद देखिए अचार खराब होता है या नहीं कुछ कोई अचार पापड किसी स्त्री के हाथ लगाने से नहीं खराब होता है बल्कि यह लोगों के दिमाग़ की गन्दगी है जो उन्हें अच्छा सोचने ही नहीं देती है

               एक स्त्री आराम चाहती है तो उसे यह कहकर उसके कमरे से बाहर सुला दिया जाता है कि वह तो अपवित्र है उसके शरीर की गन्दगी सारे घर को अपवित्र कर देगी यदि वो घर के अंदर अपने कमरे में सोयेगी तो । आराम तो उसे तब मिलेगा जब यह गलत विचार रखने वाले यह समझेगे की आराम तो उस महिला को अंदर कमरे में सोकर मिलेगा । बाहर वो किस तरह सो रही है गलत सोचने वालों एक बार उसके इन दिनों में सोने वाली जगह पर सोकर देखो पता चल जाएगा कि उसे कैसा महसूस होता होगा । क्या नींद आती होगी उसे जो आप अंदर आराम से पंखे की हवा में सोते हैं ।

  

                                 
            बात तो समझने की है मासिक धर्म कोई खराब चीज़ नहीं है बल्कि यह तो एक प्रक्रिया है जिससे हर स्त्री हर महीने गुजरती है यह उसकी शारीरिक स्वच्छता की बात है हम लोगो के साथ जबरदस्ती नही कर सकते है कि वे अपनी सोच बदले पर थोड़ा सा प्रयास तो कर सकते है अपनी सोच बदलने का। मेरी तो सलाह यह है कि पुरुषो को मासिक धर्म के विषय को अच्छी तरह समझना चाहिए मासिक धर्म पर लिखी अच्छी किताबें पढ़ना चाहिए इस विषय पर खुलकर बात होनी चाहिए चाहे वो आपकी बेटी , बहन ,पत्नी या माँ या आपकी टीचर ही हो उनसे बातें कीजिए मैं तो यह कहती हूँ कि किसी पुरुष को अपने घर की महिला को गहने कपड़े या कोई कीमती गिफ्ट देने के जगह सैनिटरी पैड गिफ्ट देना चाहिए इससे अच्छा गिफ्ट और कोई नहीं हो सकता है आप उनसे प्यार करते है उनकी देखभाल करते है उनकी इज्जत करते है पर आप पैड देकर उनकी स्वच्छता का ध्यान रख सकते है और फिर जो चीज़ प्राकृतिक है उसके विषय में शर्माना कैसा । जो स्त्री रोज आपके लिए बहुत कुछ करती है उसके साथ आपको कतई ऐसा व्यवहार नहीं करना चाहिए कि जिस वक़्त वो मासिक धर्म की पीड़ा से गुजर रही है उसे हजारों रूढ़ियों में बांधकर इस तरह व्यवहार किया जाए कि वह अस्वच्छ है । प्रकृतिक है उसमें उस स्त्री की गलती नहीं है कि आप उसकी भावनाओं को ही ना समझे जो इस तरह से महिलाओं को कहे कि वो पीरियड्स के समय गन्दी है उस व्यक्ति के लिए चाहे वो कोई महिला हो या पुरूष उनके लिए मैं यही कहूंगी कि अपनी सोच को बदलिए आज दुनिया इतनी आगे बढ़ गई हैं और आज भी बहुत सी जगहें ऐसी है जहां पर महिलाओं के साथ आज भी बुरा व्यवहार किया जाता है जब उनकी भावनाओं को समझे कोई यह सब तो तभी बदलेगा जब लोग अपनी इस सोच से बाहर निकलेंगे  ।

           सुपरस्टार अक्षय कुमार की पैडमैन फ़िल्म भी जरुर देखिए पैडमैन कहानी अरुणांचलम मुरुगननांथम की जिंदगी से प्रेरित है। इस आविष्कारक की यात्रा इस फिल्म में दिखाई गई है। वह छोटे से शहर का रहने वाला है और अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त करता है। भारत में महिलाओं के लिए सस्ते सेनिटरी नैपकिन उपलब्ध कराने के लिए वह एक सपना देखता है और उसे पूरा करता है। इस फ़िल्म से भी एक अच्छा मैसेज मिलेगा


मुझे टिप्पणी में बताएं कि आप क्या सोचते है पीरियड्स के विषय में !

16 टिप्पणियाँ:

dinesh gautam ने कहा…

बिल्कुल सहमत, अब समय आ गया है कि हम इन रूढ़ियों को उखाड़ फेंके समय के साथ सोच में बदलाव बहुत आवश्यक है।

dinesh gautam ने कहा…

बिल्कुल सहमत, अब समय आ गया है कि हम इन रूढ़ियों को उखाड़ फेंके समय के साथ सोच में बदलाव बहुत आवश्यक है।

कोपल कोकास ने कहा…

जी दिनेश अंकल जी सोच बदलना बहुत जरूरी है और हम इंसान ही इन व्यर्थ की रूढ़ियों से बाहर निकल सकते हैं ।

Unknown ने कहा…

कोपल वक्त बदल रहा है ।धीरे-धीरे सब समझेंगे। हमारी सोच तुम्हारी तरह ही है।शतकों की परंपराओं को बदलने में वक्त लगता है

Unknown ने कहा…

कोपल वक्त बदल रहा है ।धीरे-धीरे सब समझेंगे। हमारी सोच तुम्हारी तरह ही है।शतकों की परंपराओं को बदलने में वक्त लगता है

कोपल कोकास ने कहा…

जी आँटी जी बहुत सही कहा आपने सोच बदलना जरूरी है औऱ इन परम्पराओं औऱ रुढियों की बेड़ियों को हम सभी को मिलकर तोड़ना है । ताकि हर महिला हर बच्ची किसी रूढ़ियों की बेड़ियों में ना जकड़ी जाए ।

Unknown ने कहा…

सही कहा आपने

कोपल कोकास ने कहा…

जी राजन जी

कोपल कोकास ने कहा…

मेरा तो यही मानना है कि लड़की सयानी हो गई तो इसका अर्थ यह नहीं है कि वह रिवाजों की बेड़ियों में बाँधने को तैयार हो गई ।

बल्कि हर किसी को इन रूढ़ियों का विरोध करना चाहिए यह तो प्राकृतिक प्रक्रिया है अगर हम इसे अपवित्र छूत, गंदगी समझगे

तो फिर मुझे यह समझा दीजिए कि पवित्र कौन सी चीज़ है ?

जब आपके दिमाग में गंदगी भरी रहेगी तो मैं तो यहीं कहूंगी की आपको आपके घर की स्त्री उसके मासिक धर्म के वक्त अपवित्र ही नजर आएगी ।

सोच बदलिए आगे बढ़िए एक बेकार सी चीज़ के लिए एक स्त्री के साथ गलत व्यवहार ना करें ।

मधु सक्सेना ने कहा…

पंडितों और रूढ़ियों की भेंट चढ़ गई ये शारीरिक सामान्य क्रियाएं ।मैंने झेले है इन रूढ़ियों के दुष्परिणाम।विद्रोह भी किया ।पहला तो उस उपवास को तोड़ा जो इसके पाप का शमन करता है दूसरा एक पंडित को मुंहतोड़ जवाब दिया जिसने मेरे पति को मेरा चेहरा देखने के लिए मना किया ।
खूब लानत मलानत सहन की । बड़ो की डांट खाई । अकेली थी इस लड़ाई में ।
अब अगली पीढ़ी को मुक्त रखा है मैंने ।
कोमल ने बहुत बढ़िया लिखा ।
इसे fb पर पोस्ट करिये और बहस होने दीजिए ।
आभार .....

कोपल कोकास ने कहा…

धन्यवाद मधु जी
मैं इसे fb पर पोस्ट तो कर दूं
लोग सिर्फ बहस करते हैं औऱ घर जाकर अपने घर की स्त्रियों के साथ इस तरह का व्यवहार करते हैं।

सिर्फ बहस करने से क्या होगा ये काम तो स्त्री पुरूष को मिलकर करना है । कि वे किसी स्त्री के साथ इस तरह का व्यवहार ना होने दे ।

कोपल कोकास ने कहा…

मधु जी मुझे फेसबुक पसंद नहीं है

कोपल कोकास ने कहा…

जब मैं 13 साल की थी तब मैं भी पहली बार पीरियड से हुई थी मेरे अनुभव बहुत ज्यादा अच्छे तो नहीं थे पीरियड्स के परंतु मेरे साथ अच्छा व्यवहार किया मेरे पापा मम्मी । यह एक सामान्य प्रक्रिया है औऱ हर स्त्री इससे होकर गुजरती है ।

मेरे पापा भोपाल गये थे तो एकलव्य प्रकाशन से मेरे लिए एक किताब लेकर आए थे *बेटी करे सवाल* उस किताब में हर बेटी हर स्त्री के सवालो के जवाब थे पीरियड क्यों होते हैं , क्या करना चाहिए क्या नहीं । बेटी जब बड़ी होती है उसके शरीर में किस तरह के बदलाव होते हैं । पैड कैसे उपयोग करना चाहिए । कैसे साफ़ सफाई रखना चाहिए । एक लड़की के शरीर के बदलाव कैसे होते हैं ।

मुझे पढ़कर बहुत अच्छा लगा मैंने अपने डैडी को थैंक्यू बोला एक बेटी के लिए उसके पीरियड्स होने पर किताबों से अच्छा कोई तोहफा नहीं हो सकता ।
आजकल तो कोर्स में पढ़ाया जरूर जाता है परन्तु उसे किसी मान्यताओं या रीत रिवाज से नहीं जोड़ना चाहिए ।
हर स्त्री पुरूष को पीरियड्स के विषय में अच्छी तरह पढना चाहिए ।

Unknown ने कहा…

कोपल जी मैं आपकी बात से पूरी तरह सहमत हूँ । अब समय आ गया है कि लोगो को पीरियड्स को गन्दा न समझ कर उस पर बात करनी चाहिए और महिलाओ का सपोर्ट करना चाहिये । मासिक धर्म के दौरान महिलाओ को शारीरिक पीड़ा होती है परंतु उस समय उन्हें भावनात्मक सपोर्ट की आवश्यकता होती है और पुरुष वर्ग को उन्हें सपोर्ट अवश्य करना चाहिए ।

कोपल कोकास ने कहा…

जी सही कहा आपने आजकल पुरूष सपोर्ट करते है । यह कोई शर्म करने वाला या शर्म की चादर ओढ़ कर बैठने का वक़्त नहीं है ।
बिना सपोर्ट कुछ भी संभव नहीं है जो स्त्री आपके घरों के लिए इतना सब कुछ करती है उसके लिए एक पुरूष का यह हक बनता है कि वह अपनी मां बहन पत्नी बेटी या घर की कोई और स्त्री हो तो उसके मासिक धर्म के समय अच्छा फील करवाए । क्योंकि रहना एक साथ एक ही छत के नीचे।

बुरा तब लगता है जब यह सुनने मिलता है कि घर की ही कोई दादी या माँ घर की अन्य स्त्रियों से कहती है कि वे हजारों तरह की रिवाजों को माने और मासिक धर्म के दौरान यह सब व्यर्थ के काम करे ।

पर यह हम स्त्रियों पर भी निर्भर करता है कि हम उन्हें यह समझाए कि यह रीत रिवाज जो रूढियां बनाई गई उनका कोई अर्थ नहीं है ।

धीरे धीरे यहा परिवर्तन आया है और आगे भी आएगा ।

कोपल कोकास ने कहा…

आज का हर युवा खुली सोच के साथ आगे बढ़ रहा है ।
मुझे लगता है इस सोच को औऱ अच्छा बनाने का काम सुपरस्टार अक्षय कुमार की फ़िल्म पैडमन ने भी किया होगा।

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