घर की ठंडी छाँव में छुट्टियां

         
           प्रिय मित्रों इस पूरी दुनिया में कितने सारे लोग है जो घर से बाहर निकलकर या तो पढ़ाई करने दुसरे शहर जाते है या घर से दूर नौकरी करने जाते है जब वो छुट्टीयों में अपने घर जाता है तब क्या महसूस करता है जब छुट्टियां खत्म हो जाती है तब उसके मन में किस तरह के विचार आते है मेरे जीवनसाथी भी मुझसे दूर है , अपने माता पिता से , घर से दूर है तो उनके और उनके जैसे तमाम लोग जो अपने परिवार दूर एक अलग ज़िन्दगी बिताते है तो उनके मन में किस तरह के विचार उमड़ते होंगे उन्ही विचारों को सोचकर मैंने यह कविता लिखी है


आज फुर्सत के कुछ लम्हें ढूंढता हूँ ।
ठंडी छाँव है मेरे घर की
फिर इन छाँव में बैठने के बहाने खोजता हूँ ।
उजाले है दिनों धूप की ,चमक है रात की
फिर इन सबको जीना चाहता हूँ ।
महक है मेरे घर की मुझमें
फिर इस महक से महकना चाहता हूँ ।
है रहना कुछ ही दिन मेरे बसेरे में
फिर इस बसेरे में ही रहना चाहता हूँ ।
मुझे देखकर होती हैं जिन्हें खुशी  
मैं उन्हें फिर खुश करना चाहता हूँ ।
मेरे वापस जाने से होती है उनकी आँखों में नमी
उनके चेहरे पर फिर मुस्कान बन जाने की कोशिश करता हूँ ।
बन जाता हूँ लौटकर भीड़ का हिस्सा
फिर अपने बेसरे पर लौटने की चाहत रखता हूँ ।
है परेशानियां इन दिनों कुछ मगर
फिर भी अपनी हंसी में परेशानी छुपाने की कोशिश करता हूँ ।
मैं अकेला हो जाता हूँ अपने गम में फिर एक मुस्कान से गम मिटाता हूँ ।
मैं फिर याद करता हूँ फुर्सत के उन लमहों को
सफर पर चलता अकेला ही हूँ
फिर सबके साथ चलने की कोशिशें करता हूँ


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