भारत और विश्व के पहले अन्तरिक्ष यात्री विंग कमांडर राकेश शर्मा का जन्मदिन


भारत के पहले और विश्व के 138 वें अंतरिक्ष यात्री राकेश शर्मा का जन्म: 13 जनवरी 1949, पटियाला, पंजाब में हुआ था
कार्यक्षेत्र: परीक्षण पायलट, स्क्वाड्रन लीडर (विंग कमांडर सेवानिवृत्त) भारतीय वायुसेना, भारत के पहले अंतरिक्ष यात्री
राकेश बचपन से ही विज्ञान में काफी रूचि रखते थें। बिगड़ी चीजों को बनाना और इलेक्ट्रॉनिक चीजों पर बारीकी से नजर रखना उनकी आदत थी।
राकेश जब बड़े हुए तो आसमान में उड़ते हवाई जहाज को तब तक देखा करते थे जब तक वह उनकी आंखो से ओझल ना हो जाए। जल्द ही राकेश के मन में आसमान में उड़ने की तमन्ना जाग गई। फिर क्या, वह बस उसी ओर लग गए और एक दिन वो कर दिखाया जिससे हर भारतीय को उन पर गर्व है।
विंग कमांडर राकेश शर्मा एक पूर्व परिक्षण पायलट और पहले भारतीय अंतरिक्ष यात्री हैं। लम्बे समय तक सेवा के बाद वे भारतीय वायुसेना में विंग कमांडर के पद से सेवानिवृत्त हुए। 3 अप्रैल, 1984 को उन्होंने एक नया कीर्तिमान रचा जब उन्होंने लो ऑर्बिट में स्थित सोवियत स्पेस स्टेशन के लिए उड़ान भरी और सात दिन स्पेस स्टेशन पर बिताए। इस प्रकार वे भारत के पहले अंतरिक्ष यात्री बन गए। भारत और सोवियत संघ के इस संयुक्त अंतरिक्ष मिशन के दौरान राकेश शर्मा ने भारत के कई भागों की फ़ोटोग्राफी भी की। इस अंतरिक्ष यात्रा के साथ वे विश्व के 138 वें अंतरिक्ष यात्री बने।

करियर
सन 1966 में उनका चयन राष्ट्रिय सुरक्श अकादमी (एनडीए) में हुआ और वे इंडियन एयर फोर्स में कैडेट के रूप शामिल हुए। एनडीए पास करने के बाद वे 1970 में भारतीय वायु सेना में बतौर टेस्ट पायलट भर्ती हो गये। राकेश ने कुछ ऎसा कर दिखाया कि आज उनके नाम से हर भारतीय का सीना फक्र से चौड़ा हो जाता है।
सन 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान राकेश शर्मा ने मिग एअर क्रॉफ्ट से महत्वपूर्ण सफलता हासिल की। अपनी योग्यता और मेहनत के बल पर वे आगे बढ़ते रहे और सन 1984 में स्क्वाड्रन लीडर के पद पर पहुँच गए। युद्ध के बाद से राकेश शर्मा चर्चा में आए और लोगों ने उनकी योग्यता की जमकर तारीफ की। शर्मा ने दिखा दिया था कि कठिन परिस्थितियों में भी किस तरह शानदार काम किया जा सकता है।

इस बीच 20 सितम्बर 1982 को उनका चयन भारत (इंडियन स्पेस रिसर्च सेण्टर) और सोवियत संघ (इन्टरकॉसमॉस) के एक संयुक्त अंतरिक्ष मिशन के लिए हो गया जिसके अंतर्गत उन्हें अंतरिक्ष यात्रा का मौका मिलने वाला था।
आठ दिन के लिए अंतरिक्ष में रहे 1984 में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन और सोवियत संघ के इंटरकॉसमॉस कार्यक्रम के एक संयुक्त अंतरिक्ष अभियान के अंतर्गत राकेश शर्मा आठ दिन तक अंतरिक्ष में रहे। ये उस समय भारतीय वायुसेना के स्क्वाड्रन लीडर और विमानचालक थे।
अंतरिक्ष यात्रा
भारत (इंडियन स्पेस रिसर्च सेण्टर) और सोवियत संघ (इन्टरकॉसमॉस) के इस संयुक्त अंतरिक्ष मिशन में चयन के उपरान्त राकेश शर्मा को सोवियत संघ के कज़ाकिस्तान में स्थित बैकानूर में अंतरिक्ष प्रशिक्षण के लिए भेज दिया गया। उनके साथ एक और भारतीय रविश मल्होत्रा भी भेजे गए थे। प्रशिक्षण के उपरान्त आखिर वो दिन ही गया जिसका सभी भारतियों को इंतज़ार था। 3 अप्रैल, 1984 का वह ऐतिहासिक दिन था, जब तत्कालीन सोवियत संघ के बैकानूर से सोयूज टी-11 अंतरिक्ष यान ने तीन अंतरिक्ष यात्रियों के साथ उड़ान भरी। इस अंतरिक्ष दल में राकेश शर्मा के अतिरिक्त अंतरिक्ष यान के कमांडर वाई. वी. मालिशेव और फ़्लाइट इंजीनियर जी. एम स्ट्रकोलॉफ़ थे। इस उड़ान में और साल्युत 7 अंतरिक्ष केंद्र में उन्होंने उत्तरी भारत की फोटोग्राफी की और गुरूत्वाकर्षण-हीन योगाभ्यास किया। अंतरिक्ष यान सोयूज टी-11 ने सफलता पूर्वक तीनों यात्रियों को सोवियत रूस के ऑर्बिटल स्टेशन सेल्यूत-7 में पहुँचा दिया।

राकेश शर्मा ने अंतरिक्ष में कुल 7 दिन 21 घंटे और 40 मिनट बिताया। इस अंतरिक्ष दल ने 43 प्रयोग किये जिसके अंतर्गत वैज्ञानिक और तकनीकी अध्ययन शामिल था। इस मिशन पर राकेश शर्मा को बायो-मेडिसिन और रिमोट सेंसिंग के क्षेत्र से सम्बंधित जिम्मेदारी सौंपी गयी थी।
इस अंतरिक्ष यात्रा के दौरान उड़ान दल ने मास्को में सोवियत अधिकारियों के साथ और फिर तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी के साथ एक जॉइंट टेलीविज़न न्यूज़ कांफ्रेंस किया। जब इंदिरा गाँधी ने राकेश शर्मा से पूछा, “अपना भारत अंतरिक्ष से कैसा दिखता है?” तब उन्होंने जबाब दिया, “सारे जहाँ से अच्छा …..” इस मिशन के साथ भारत अंतरिक्ष में मानव भेजने वाले देशों की श्रेणी में गया। भारत ऐसा करने वाला विश्व का 14वां देश बन गया। इस महत्वपूर्ण क्षण को लाखों भारतवासियों ने अपने टेलीविज़न सेट पर देखा। धरती से तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का यह सवाल और अंतरिक्ष में रूसी अंतरिक्ष यान से भारत के अंतरिक्ष यात्री राकेश शर्मा के इस जवाब ने हर हिन्दुस्तानी को रोमांचित कर दिया था।
इसके पश्चात राकेश शर्मा भारतीय वायु सेना से विंग कमाडर के पद पर सेवानिवृत्त हो गए और हिन्दुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेडमें टेस्ट पायलट के तौर पर कार्य करने लगे। उन्होंने सन 1992 तक  हिन्दुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेडके नाशिक मंडल में बतौर मुख्य टेस्ट पायलट कार्य किया।
राकेश शर्मा लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (एल सी ) तेजसके विकास से भी जुड़े रहे।
सम्मान
अंतरिक्ष से वापस लौटने के उपरान्त सोवियत सरकार ने उन्हें हीरो ऑफ़ सोवियत यूनियनके सम्मान से नवाज़ा। भारत सरकार ने उन्हें शान्ति-काल के सबसे उच्च बहादुरी पुरस्कार अशोक चक्रसे सम्मानित किया। विंग कमांडर के पद पर सेवा-निवृत्त होने पर राकेश शर्मा ने हिन्दुस्तान एयरोनाटिक्स लिमिटेड में परीक्षण विमानचालक के रूप में काम किया।

व्यक्तिगत जीवन
राकेश का विवाह सेना के अवकाश प्राप् कर्नल पी0 एन0 शर्मा की सुपुत्री मधु शर्मा से हुआ। अपने रूस प्रवास के दौरान दोनों ने रूसी भाषा सीखी। उनके पुत्र कपिल एक निर्देशक है और पुत्री कृतिका एक मीडिया कलाकार।
टाइम लाइन (जीवन घटनाक्रम)
1949: राकेश शर्मा का जन्म पटिआला के एक पंजाबी परिवार में हुआ
1966: उनका चयन राष्ट्रिय सुरक्षा अकादमी (एन.डी..) में हो गया
1970: एन.डी.. से निकलने के बाद राकेश शर्मा को भारतीय वायु सेना में टेस्ट पायलट नियुक्त हुए 1971: राकेश ने रूसी विमान मिकोयाँ-गुरेविच उड़ाया
1982: 20 सितम्बर 1982 को उनका चयन भारत (इंडियन स्पेस रिसर्च सेण्टर) और सोवियत संघ (इन्टरकॉसमॉस) के एक संयुक्त अंतरिक्ष मिशन के लिए हुआ
1984: अंतरिक्ष यात्रा करने वाले पहले भारतीय बने
1987: भारतीय वायु सेना से विंग कमाडर के पद पर सेवानिवृत्त हो गए
1987: ‘हिन्दुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेडमें टेस्ट पायलट के तौर पर कार्य करने लगे
2006: राकेश ने भारतीय अन्तरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) की एक समिति में भाग लिया जिसने एक नए भारतीय अन्तरिक्ष उड़ान कार्यक्रम को स्वीकृति दी




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