आज मेरी दादी माँ का जन्मदिन है

           
मेरी दादी माँ के पसंदीदा फूल गुलाब उनके जन्मदिन पर 

                     मेरी दादी माँ भंडारा शहर में रहती थी मैं हर साल दीपावली मनाने अपने मम्मी पापा के साथ भंडारा शहर जाती थी वहां मेरे दादाजी और दादी माँ रहते थे
बालमन में तो कई सवाल आते है एक बार 1996 में जब दीपावली आई तो मैंने यूही अपनी दादी माँ श्रीमती शीला कोकास से पूछ लिया की दादी माँ आपका जन्मदिन कब आता है आप अपना जन्मदिन क्यों नहीं मनाती दादी माँ ने बहुत सुंदर जवाब दिया बेटा जन्मदिन तो छोटे बच्चों का मनाया जाता है हम तो बड़े हो गये है फिर भी मेरा मन नहीं माना तो फिर पूछा दादी माँ आपका जन्मदिन आता कब है दादी माँ ने बोला बेटा हमारा जन्मदिन तो पूरा देश मनाता है लोग खरीदारी करते है , अच्छे कपड़े खरीदकर पहनते है मिठाई बनाते है , सुंदर - सुंदर रंगोली डालते है ,पूजा करते है , फटाखे फोड़ते है खुशियाँ मनाते है
त्यौहार के साथ दादी माँ का जन्मदिन 
                   जी हां दीपावली का दिन मैंने जैसे ही उनका सुंदर जवाब सुना तुरंत मैंने यही कहा दादी माँ मतलब आपका जन्मदिन दीपावली के दिन आता है मतलब जिस दिन आपका जन्म हुआ था वो दीपावली का दिन था फिर मैंने पूछा तो आपके जन्म की डेट तारीख क्या थी दादी माँ ने मुस्कुराकर कहा बेटा अब तारीख याद नहीं है पर हां सन 1936 था
                  मतलब अलग से जन्मदिन मनाने की जरूरत ही नहीं दीपावली के दिन जन्मदिन ही मना ले ये बहुत खुशी की बात है की मेरे घर बड़े बुजुर्गो का जन्मदिन त्योहारों पर ही आता है और इसे सिर्फ हम और हमारा परिवार नहीं बल्कि पूरा देश त्यौहार के रूप में मनाता है मेरे दादा जी श्री जगमोहन कोकास का दशहरे के दिन और दादी माँ का जन्मदिन दीपावली के दिन आता है
            दादी माँ बहुत उत्साह से दीपावली के तैयारियां करती बहुत सारे पकवान बनाती थी (रवे की बर्फी,चूडा,सलोनी,गुजिया, कभी बेसन के लड्डू) क्योंकि हमारे घर में घर की बनी मिठाई ही चढ़ाई जाती थी पर दादा जी मैसूर पाक भी बाजार से ले आते थे वे कभी अकेले और जब मम्मी पहुँच जाती थी तब दोनों मिलकर बनाते थे , वे खुद कुछ नहीं खाती थी पर बनाती सबके लिए बहुत कुछ थी महाराष्ट की परम्परा है की दीपावली की रात को पूजा के बाद या अगले दिन पास - पड़ोस के घर में पकवान लेकर जाते है और सबसे मिलते जुलते है आज लोगो के पास वक्त की कमी है पर इस परम्परा का अपना ही एक अलग आनन्द है वे सबके घर पकवान पहुंचाती थी और आज मैं परम्परानुसार दीपावली के अगले दिन पड़ोस के सभी घरों में प्रसाद देने जाती हूँ दादी माँ को बर्फी ,कलाकंद ,पूरम पूड़ी , दूध मलाई ,मैसूर पाक बहुत पसंद थी
                 दादी माँ दीपावली के दिन गोबर से लीपकर चाक पूरकर मस्त - मस्त सुंदर रंग भरकर रंगोली डालती थी अब यहाँ तो गोबर से लीपकर डालना सम्भव नहीं हो पाता पर मैं दीपावली के दिन सुंदर डिजाइन की रंगोली डालती हूँ दादा जी पान में चमनबाहर डालते थे उसके डिब्बे और अन्य डब्बे दादी माँ मेरे लिए सम्हालकर रखती थी इनमें ही रंग रखूंगी
मैं अपने दादाजी दादी माँ के साथ 
                   दादा जी मेरे साथ मिलकर आम के पत्तो की तोरण बनाते थे और मुख्य द्वार पर तोरण बांधते थे पूजा के समय नए सिक्के रखना ,लाइ बताशा रखना , फल रखना पीतल के लोटे में आम की पत्तियों के बीच मिट्टी का दिया रखना , दिया कपूर अगरबती जलाना सब पूजा की तैयारी करते थे और पूजा के बाद सबसे पहले दादी माँ प्रसाद मुझे देती थी मेरे साथ सबके घर जाती थी वो और हाँ दादा जी के पास की प्यारी सी पीतल की घंटी थी वो दादी माँ निकालकर रखती थी और पूजा के समय मैं उसे बजाती थी
               दादी माँ स्वभाव से बहुत संतोषी थी वे कभी नहीं कहती थी की दीवाली पर मेरे लिए नई साड़ी लेकर आये पर हर बार मैं जब भी भंडारा जाती थी वे मेरे लिए नई फ्राक , नए चप्पल , नई डॉल और खूब सारे खिलौने दिलाती थी मुझे और दादी माँ दोनों को फटाखे अच्छे नहीं लगते थे इसलिए हम दोनों मिलकर अंदर के कमरे में जाकर मस्ती करते थे
              हम उनके रहते हुए हर दीवाली में दीपावली के 2 दिन पहले ही पहुँच जाते थे दोनों हमारे आते तक दरवाजे पर कुर्सी डालकर इन्तजार करते रहते थे दादी माँ खाना ही नहीं खाती थी हम आ जाए फिर सब साथ में खायेगे
1996 भंडारा में मैं और मेरी मम्मी रंगोली डालते हुए 
            आज दादी माँ और दादा जी हमारे बीच नहीं है पर उनके जाने के बाद आज मैं दीपावली के दिन उनका जन्मदिन अच्छे से तैयार होकर बहुत खुशी और उत्साह से अपने मम्मी पापा के साथ मनाती हूँ भगवान की पूजा के साथ - साथ उनकी पूजा भी करती हूँ मेरे लिए मेरे दादा जी और दादी माँ दोनों भगवान है दोनों की फोटो पर माला पहनाती हूँ फूल चाढाती हूँ सब पकवान मिठाई उनकी पसंद की बनाती हूँ और मैसूर पाक पर हम बाजार से जरुर लाते है सभी साज सजावट सब रस्में करती हूँ दादी माँ उनको रंगीन लाईट झालर के साथ घी के दीये जलाना बहुत पसंद था आज अपनी मम्मी के साथ मिलकर जलाती हूँ पूरे घर को दीये की रोशनी के साथ रंगीन झालर से जगमगा देती हूँ
               
२०१६ की दीपावली 





               मन वापस बचपन की गलियों में घूमने चला जाता है जहाँ बचपन के उन दिनों में चला जाता है जहाँ उनका प्यार और लाड़ दुलार था आज जब इस दुनिया में नहीं है फिर भी हर साल जब भी उनका जन्मदिन और दीपावली का त्यौहार मनाती हूँ मैंने उनकी आवाज रिकार्ड कर सम्हाल कर रखी ही कम्प्यूटर का टेप चालू कर देती हूँ उनकी आवाजे सुनाई आने लगती है ऐसा लगता है जैसे दादा - दादी हमारे बीच मौजूद है और हम उनके साथ उनके जन्मदिन और दीपावली त्यौहार मना रहे है
मेरे आंगन में रंगोली 
              कल भी दीपावली के दिन मैं अपनी दादी माँ का जन्मदिन उत्सव के जैसे अपने मम्मी पापा के साथ खुशी और उल्लास से मनाउंगी खूब सारी फोटो खीचूंगी और दादा जी - दादा माँ को याद करूंगी पाद पड़ोस में जितने भी बड़े बुजुर्ग है उन सबके घर जाकर उनका आशीर्वाद लेकर उन्हें दीवाली की बधाइयां दूंगी मेरा मानना है पास में बड़े - बुजुर्ग है तो हम त्यौहार पर उनके पास जाकर उनके स्वास्थ्य के बारे में पूछना चाहिए और उनका आशीर्वाद जरुर लेना चाहिए


   सभी पाठकों को दीपावली की मीठी - मीठी खुशियों भरी शुभकामनाएं 

3 टिप्पणियाँ:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरूवार (19-10-2017) को
"मधुर वाणी बनाएँ हम" (चर्चा अंक 2762)
पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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दीपावली से जुड़े पंच पर्वों की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

सूर्यकान्त गुप्ता ने कहा…

बिटिया सचमुच उन दिनों की यादें हमें भी बहुत सताती हैं।
हम तो अपने पिता तुल्य स्व. बड़े मामाजी के घर विधि विधान से उन्हें माँ लक्ष्मी जी की पूजा करते देख और स्वयं पूजा करते हुये इस पर्व का आनंद लेते थे।
आज समझ में नहीं आता क्यों दो शब्द बोलकर बधाई देने में संकोच होता है....बहुत सुंदर संस्मरण लिख बिटिया ने पर्व मनाया....आप सबों को शुभकामनाओं सहित सहृदय प्रणाम/शुभाशीष....दिनो दिन भैया (आपके पापाजी) के पदचिन्हों पर चल साहित्य जगत में अपनी नई पहचान बनायें...अनंत शुभकामनायें

कोपल कोकास ने कहा…

धन्यवाद सूर्यकांत अंकल जी
आपको भी दीपावली पर्व की अनेकों शुभकामनाएं
मैं अपनी मेहनत से पापा की तरह अपनी पहचान बनाने की पूरी कोशिश कर रही हूँ

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