मेरे मार्गदर्शक का जन्मदिन

     
         आज मेरे मार्गदर्शक दिवगंत दादा जी का जन्मदिन है उनका जन्म विजयादशमी पर्व पर हुआ था औऱ उस दिन गांधी जयंती भी थी आज अगर वे जीवित होते 89 वर्ष के होते मेरे लिए वो सिर्फ मेरे दादा जी नहीं थे वे दिन भर के साथी , मित्र शिक्षक मार्गदर्शक थे दिन में उन्हें खाना परोसकर देना । उनके लिए चाय बनाना । शाम को उनके साथ सैर पर जाना वहां से फूल तोड़कर लाना औऱ हर सोमवार को जिस भी रास्ते से निकलते थे बच्चों को टॉफी जरूर देते थे ये उनका पक्का नियम था (दादा जी का देहांत गुरुवार 28 अगस्त को हुआ था उसके बाद जो सोमवार आया मैं उसी रास्ते से किसी काम के लिए निकली दादा जी को साथ ना पाकर औऱ मेरे हाथ में टॉफी ना देखकर बच्चों ने पूछा दीदी दादा जी कहाँ है मैंने कहा बेटा अब दादा जी मायूस हो गए फिर कुछ दिन तक मैं उस रास्ते से निकलती रही बच्चों के लिए हर सोमवार टॉफी लेकर पर उस दिन के बाद मुझे फिर कोई बच्चा उसी समय बाहर नहीं दिखा )

     
       हां जब कभी मौका मिलता है बच्चों को टॉफी जरूर देती हूं देते हुए सोचती हूँ दादा जी की तरह अपना प्यार देना बहुत जरुरी है क्योंकि बच्चे मुस्कुराते हुए थैंक्यू कहते हैं तो अच्छा लगता है , फिर पूजा करना बैठकर रामचरित मानस का पाठ सुनना । दिन भर उनके साथ रहने की इस तरह की आदत हुई मुझे की उनके ना रहने पर मेरे लिए एक लड़की को रखा था जिससे वो मेरी देखभाल कर सके क्योंकि सबको डर था अकेले में पागल ना हो जाऊं । उनके ही मार्गदर्शन औऱ अथक सहयोग से मेरा दाखिला अंग्रेजी माध्यम से हिंदी माध्यम में हुआ क्योंकि वे ध्यान देते थे कि मुझे अंग्रेजी पढ़ने में दिक्कत होती है भले ही आज में किसी पद पर नहीं हूँ परंतु जो मैं इतनी पढ़ाई की है सच मानो तो उसके पीछे सहयोग दादा जी का ही है ।
   
        मुझे ख़ुशी होती है जब कोई कहता है आप अपने दादा जी की तरह दिखती हो । हां हूं मैं उनकी तरह । क्योंकि उनके साथ रहते हुए मैंने बहुत सारी बातें सीख ली थी जैसे बुजुर्गों का सम्मान करना, सेवा करना , अपने से छोटो को प्यार देना , कड़ी मेहनत करना , जीवन में कितना भी कठिन वक़्त क्यों ना आ जाए ना घबराते हुए हिम्मत से काम लेना , मीठा बोलना , दूसरों का सहयोग करना, जीवन में किसी भी परिस्थिति में घबराना नहीं । खेल खेल में बहुत सारी बातें सीखा गए ।
       बस एक ही अफसोस मुझे रह गया कि उनके अंतिम समय में उनकी मृत्यु ने इतना भी समय नहीं दिया कि कुछ बातें उनसे कर पाती कुछ पूछ पाती जो अधूरा था वो अधूरा ही रह गया । हर साल उनके जन्मदिन पर कुछ विशेष करते थे हम ।

     
        उनके होने से मुझे एक जीवन की बहुत बड़ी सीख मिली की जब तक एक बुजुर्ग इंसान आपके बीच है उनकी बहुत सेवा कर लीजिए क्योंकि ना होने पर कुछ भी शेष नहीं रहता है । कल वो बुजुर्ग थे कभी आप भी होंगे अगर अपेक्षा नहीं करते कि आपके साथ बुरा व्यवहार हो तो उन बुजुर्गों के साथ मत कीजिए वे तो सिर्फ प्यार औऱ थोड़ी सेवा चाहते हैं । दादा जी ने हमें अपने निजी काम करने के मौके नहीं दिए अपने जीवन के अंत समय तक वे स्वंय ही करते रहे बस कुछ दिन जब वे असमर्थ हो गए तब हमने उनकी बहुत सेवा करो । सेवा कर लीजिए फिर जो पुण्य औऱ आशीर्वाद मिलता है वो जीवन भर की पूंजी होती है । फिर तो कहीं से भी वापस नहीं आ सकते औऱ उनके बिना बड़ी सी दुनिया में अकेले रह जाने के अलावा कुछ नहीं रहता।

       
      हर विजयादशमी पर मुझे मेरे दादा जी याद आते हैं । हां दादा जी अपने जन्मदिन पर भंडारा में पूरी कॉलोनी के स्वयं बाजार जाकर चॉकलेट का पूरा पैकेट लेकर आते थे बच्चों को बुलाकर उनसे कहते थे पहले सोनापत्ती दो बच्चे सोनापत्ती देकर आशीर्वाद लेते एक - एक करके सभी बच्चों को दादा जी चॉकलेट देते औऱ खूब दुलारते क्योंकि उन्हें बच्चे बहुत पसंद थे । दादा जी मेरे मार्गदर्शक आप मुझे बहुत याद आते हैं मुझे आपकी तरह हरा भरा छाया देने वाला वृक्ष बनना है जिससे मैं अपने सभी अपनों को जोड़कर रख सकूं ।
जन्मदिन की शुभकामनाएं दादा जी 🍁☘️🍀

15 टिप्पणियाँ:

शरद कोकास ने कहा…

दादा जी बहुत अच्छे थे वह विजयादशमी के दिन यानी कि आज के दिन यानी अपने जन्मदिन के दिन सारे बच्चों को चॉकलेट बांटते थे बच्चे उनके पास आकर बहुत खुश होते थे

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (09-10-2019) को    "विजय का पर्व"   (चर्चा अंक- 3483)     पर भी होगी। --
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। 
 --विजयादशमी कीहार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
दादा जी को सादर...नमन!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'  

कोपल कोकास ने कहा…

हां मैं भी उनकी तरह हूँ जहां बच्चे दिखते हैं या कोई एक बच्चा भी हो चॉकलेट जरूर देती हूं मन प्रसन्न हो जाता है ।

seema gondnale ने कहा…

दादाजी को याद करनेका सबसे अच्छा यही तरीका है बेटा..यह सब यादें उनके पास जरुर पहुँचेगी... ना जाने कितनेही बच्चों के मार्गदर्शक रहे .उनका व्यक्ति मत्व बहुत ही अनोखा है..जितना सोचो उतना गहरा हो जाता है..

कोपल कोकास ने कहा…

हां बुआ हमारे दिल औऱ दिमाग के अलावा अब कंही शेष नहीं है वो अब । पर रोज याद आती है उनकी उनके साथ बिताए दिनों की ।। बहुत अनोखे थे वो

Dr.Manikvishwakarma'navrang' ने कहा…

रोचक एवं प्रेरक संस्मरण।

कोपल कोकास ने कहा…

धन्यवाद मणिक जी

सूर्यकान्त गुप्ता ने कहा…

तीसरी पीढ़ी को अपने पितामह का आशीर्वाद मिलना अत्यंद सुखद अविस्मरणीय बन जाता है। चि. कोंपल बिटिया को सादर बधाई.... और उनके दादाजी को कोटि कोटि नमन...
🌹🌹🌹🌹🎈

कोपल कोकास ने कहा…

हां अंकल बात सुखद है

Unknown ने कहा…

यह वृत्तान्त पढ़ा।सुखद अनुभूति हुई।बड़े बुजुर्गों का आशीर्वाद बच्चों को मिलता रहे।बच्चे दादा दादी को याद रखें, उनके विषय में कुछ लिखें तो माता पिता का सीना भी गर्व से चौड़ा हो जाता है।नई पीढ़ी को संस्कार भी मिलते हैं।

कोपल कोकास ने कहा…

जी सही कहा आपने

कोपल कोकास ने कहा…

अपने दादा दादी नाना नानी के प्रति स्नेह बना रहे ये भावना हर बच्चे में हो तो उनका बुढापा सुखद होगा क्योंकि अच्छी बातें हमेशा बाद में ही याद आती है और समझ भी ।

भास्कर चौधुरी ने कहा…

सबसे बड़ी बात दाद जी के सद्गुणों का पोती में आ जाना.. दादाजी की स्मृतियों को नमन। कोपल को स्नेहाशीष।

कोपल कोकास ने कहा…

हां बिल्कुल सही कहा आपने भास्कर अंकल ।।

Geek Info ने कहा…

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