वो 5 मार्च 1993 की शाम की थी मेरी उम्र उस वक्त करीब - करीब 3 साल थी उस वक्त मुझे बोलना नहीं आता था सिर्फ मम बोलना ही आता था । केलाबाड़ी
मोहल्ले के सभी लोगों की आवाजों और चेहरों से मैं भली भांति परिचित थी क्योंकि मैं
अपने स्वयं के घर में कम दूसरो के घर में ज्यादा रहती थी वो इसलिए क्योंकि मौहल्ले
में मेरी उम्र जितना कोई छोटा बच्चा नहीं था पूरे मौहल्ले में कोपल कौन है सब
जानते थे ।
मेरे पापा बैंक जाते थे और मम्मी
स्कूल जाती थी वे दोनों शाम 5 बजे घर आते थे । मैं दिनभर बाई के भरोसे ही घर पर रहती थी सारा
दिन घर में एक कमरे में रहती , खेलती , खाती सोती थी मम्मी पहले आ जाती थी । पापा बैंक से 5.30 बजे तक आते थे चूंकि मैं बहुत शरारती और तूफ़ान मेल थी
कहने का मतलब यह है कि मैं एक जगह पर स्थिर नहीं रहती थी इसलिए मैं बाहर ना निकल
जाऊ तो मम्मी अपने घर आने के बाद दरवाजा बंद कर देती थी और पापा भी आते थे तो
मम्मी तुरंत दरवाजा बंद कर देती थी क्योंकि मैं बाहर निकलने की ताक में ही रहती थी
।
5 मार्च को जब मम्मी स्कूल से घर आई मम्मी
ने दरवाजा बंद कर दिया पर जब पापा बैंक से आये तो मम्मी उस दिन दरवाजा बंद करना
भूल गई और मम्मी पापा चाय पीते हुए बात करने लगे खेलते - खेलते मैं दरवाजे के बाहर
निकल गई और कुछ छोटी बच्चियां जो खेलने जा रही थी उनके साथ जहां वो जा रही थी वहां
चली गई चलते - चलते घर से बहुत दूर निकल गई समझ लीजिए3 कि.मी दूरी थी ।
जब मम्मी पापा की चाय खत्म हुई तो
मम्मी को ध्यान आया कोपल कहाँ गई पापा ने बोला अरे किसी पड़ोसी के घर पर होगी तो आ
जायेंगी पर बहुत देर होने लगी तो मम्मी को चिंता होने लगी क्योंकि मैं जिसके भी घर
जाती थी उनके घर से कोई न कोई आकर मम्मी को बता देता था आंटी कोपल हमारे घर पर है
आप परेशान ना हो पर उस दिन बहुत देर तक ना मैं वापस आई ना कोई बताने आया ।
मैं जितने भी आस पड़ोस के घर पर जाती
थी मम्मी एक - एक करके सभी घरों में देख आई पर मैं कहीं नहीं थी उस वक्त हमारे पास
लूना थी मेरे पापा ने लूना उठाई और तुरंत मुझे ढूढने निकल गए ढूढंते हुए १ घंटा
बीत गया लेकिन पापा को मेरा कहीं पता नहीं चल रहा था आसपास की सारी गलियाँ ,
मौहल्ले से बाहर जाने वाले तमाम रास्ते देख लिए लेकिन पापा को मेरा कहीं पता नहीं
चला ।
उस दौर का माहौल ऐसा था कि सारे मौहल्ले वाले हमारे घर पर आ गये थे पूरे मौहल्ले वाले परेशान हो गये थे कि कोपल कहाँ चली गई । एक तो मेरा नाम अनोखा था कोपल और काम भी अनोखा ही था । मौहल्ले में जितने भी भैया , अंकल लोग सब अपने - अपने काम छोड़कर मुझे ढूढने निकल गए थे हर एक दरवाजे पर जा जाकर पूछते कि आपके घर में कोपल आई है क्या , आपने उसे कहीं देखा है क्या अपरिचित व्यक्तियों से भी पूछ रहे थे कि एक पीले फ्राक पहने हुए ढाई साल की बच्ची है उसे देखा है क्या वो अब्दुल अजीज नवाब खान के घर के नीचे रहती है ।
पापा के एक दोस्त नासिर अहमद अंकल जो पापा से
यूंही मिलने आये थे वो भी परेशान हो गये क्योंकि मैं अंकल की बिट्टी थी वो भी पापा
के साथ मेरी तलाश में निकल गये । पापा लोग ढूंढ कर आते और वापस घर पर आकर पूछते कि कोपल आई कि नहीं तब
मेरी मम्मी का रो - रोकर बुरा हाल हो गया था पड़ोस की सभी आंटियां दीदीयां अपने घर
के काम छोड़कर मेरी मम्मी के पास घर के आंगन में आकर बैठ गई थी कोई मम्मी को समझा
रहा था कि आ जायेगी लता परेशान मत हो हम लोग है ना भैया लोग गये है ना ढूँढने मिल
जायेगी । कोई मेरी मम्मी के आंसू पोछ रहा था , तो कोई बार - बार पानी पिला रहा था । मम्मी का रोना बंद ही नहीं हो रहा था क्योंकि मुझे बोलना भी नहीं तो आता
था इतनी देर होने पर मम्मी को लगने लगा था कि मेरी बच्ची मेरे हाथ से गई । अब तो बाहर पूरी तरह अँधेरा हो गया था मम्मी पापा और सभी लोगों की घबराहट
बढ़ती जा रही थी ।
हम जिस मौहल्ले में रहते थे घर के पास एक मस्जिद थीं शाम की अजान का वक्त हो रहा था माहौल को देखते हुए मस्जिद से किसी भले व्यक्ति ने ऐलान कर दिया था कि ध्यान से सुनिए एक बच्ची जिसने
पीले रंग की फ्राक पहनी है वो अब्दुल अजीज नवाब खान के घर के नीचे रहती है जिस
किसी को यह बच्ची मिलती है तुरंत उसे नवाब खान जी के यहाँ लाकर छोड़ दे मस्जिद सभी
जगह से कनेक्ट थी और उसकी आवाज सभी जगह तक पहुंचती थी ।
बहुत देर बाद मैं मिली घर के सामने एक
भैया रहते थे वो अपने किसी काम से सुभाषनगर से लौट रहे थे वे विकलांग थे पर साइकल
चला लेते थे । उन्हें मैं पड़ोस की बच्चियां जो खेलते हुए लौट रही थी उनके साथ मिली
क्योंकि मैं उन्हें चेहरे से पहचानती थी इसलिए उन्हें मुझे उतरकर उठाया और साइकल
के बास्केट में बैठाया और घर की और बढ़ गए । बहुत देर तक पापा ढूँढने
और मेरे ना मिलने पर पापा घर वापस आ गए थे और बस पापा अंकल लोगो के साथ पुलिस में
रिपोर्ट लिखाने जा ही रहे थे कि भैया ने आवाज दी आंटी अंकल ये लीजिए कोपल ये
सुभाषनगर तक पहुँच गई थी पड़ोस की बच्चियां जो खेलते हुए लौट रही थी उनके साथ मिली
और भैया ने मुझे मम्मी की गोद में दे दिया । मुझे देखकर मम्मी पापा
को और सभी पड़ोसियों को राहत मिली सब खुश हो गए नवाब अंकल खुश हो गये अरे वाह भाई
हमारी कोपल घर आ गई , आंटी ,भैया , दीदी लोग सबकी खुशियाँ मेरे साथ लौट आई थी सबने
मम्मी से कहा अब परेशान मत होना कोई जरूरत हो तो बताना कहते हुए सब अपने घर चले गए
।
मम्मी पापा मुझे लेकर घर के अंदर लेकर
आए मम्मी ने मुझे जोर के एक तमाचा मारा गाल पर और कहा कि अब से बिना बताए जायेगी
पर मुझे तो मम के अलावा बोलना कुछ आता नहीं था इसलिए मैंने मम्मी की साडी पर ही
सूसू कर दी पापा ने मुझे मेरे बड़े होने पर इस हादसे के बारे में बताया कि बच्चा
ऐसा भी एक हादसा हुआ था नहीं मिलती तो पता नहीं क्या हो जाता ।
आज भी 5 मार्च ही है आज इस हादसे को
घटित हुए पूरे 25 साल बीत गए है पर मम्मी पापा जिस तरह उस दिन को याद करते है तो
मुझे महसूस होता है कि जैसे वो उसी दिन के सामने खड़े है क्या महसूस हुआ होगा उस
वक्त उन्हें ये आज मैं समझ सकती हूँ क्योंकि वो कहते है ना बेटी बड़ी हो जाती है तो
माता पिता की तकलीफों को , उनके दुखों को ज्यादा गहराई से समझने लगती है इसलिए आज
मैं गहराई से अनुभव कर पाती हूँ कि उन्हें ऐसा ही लगा होगा कि एक नन्ही सी जान
जिसे बोलना नहीं आता , जो अपने मम्मी पापा का नाम तक नहीं जानती , कहां रहती है , घर
का पता क्या है , मम्मी पापा कैसे दिखते है कुछ भी नहीं जानती थी वो जान जो उनका
सब कुछ है वो ही गुम हो जाए तो मम्मी पापा की तो जान ही रुक गई होगी वो पल वो घंटे
, एक - एक सेकंड ,वो दिन कैसे गुजारा होगा उन्होंने ।
आज टेक्नोलॉजी इतनी बढ़ गई है हर हाथ
में मोबाइल है , सब हाईटेक है पहले का समय का अलग था फोन नहीं थे तो पड़ोसियों के घर
जाकर पूछते थे । काश उस वक्त भी मोबाइल फोन होते । लोगों में बहुत आत्मीयता
थी वरना उन्हें क्या अपनापन था कि वे अपने घरों के काम छोड़कर आ गये मौहल्ले का सही
अर्थ जाना था जब रहते थे हम केलाबाड़ी मौहल्ले में । उस दिन होने को तो
बहुत कुछ घटित हो सकता था परन्तु उस मौहल्ले की बात ख़ास थी
मौहल्ले के लोगों के अलावा आसपास के लोगों से जान पहचान थी । भले
ही मेरे पापा मम्मी को कम लोग जानते थे पर कोपल को उस वक्त भी सब जानते थे और आज
भी सब जानते है ।
21 टिप्पणियाँ:
बहुत रोचक
ओह!!!!!! हम उस तकलीफ को समझ सकते हैं कोपल कि उतनी देर का समय कैसे कटा होगा जान ही नहीं जाती बाकीकुछ नहीं बचता आँखों को अपने बच्चे के सिवा कुछ दिखता नहीं है उसके नाम के सिवा कुछ सुनाई नहीं देता।
हमारे बड़े बेटे कोभी देखना पड़ता था ।नीची नजर करके सड़क देखकर चलता था। स50-60 केपरिवार में सबकी नजर रहती, मुहल्ले की भी ,पर एक दिन पीछे की तरफ से निकल गया 2घंटे ढूँढा फिर किसी ने घाट की तरफ जाते देखा था । उसे सिर्फ माँ बोलना आता था।मजे से सीढ़ी पर बैठ पैर नर्मदाजी में छप-छपकर रहा था सुबह11_12 बजे के करीब की घटना है।बच्चे जान होते हैं।
अच्छा संस्मरण लिखा है
ओह!!!!!! हम उस तकलीफ को समझ सकते हैं कोपल कि उतनी देर का समय कैसे कटा होगा जान ही नहीं जाती बाकीकुछ नहीं बचता आँखों को अपने बच्चे के सिवा कुछ दिखता नहीं है उसके नाम के सिवा कुछ सुनाई नहीं देता।
हमारे बड़े बेटे कोभी देखना पड़ता था ।नीची नजर करके सड़क देखकर चलता था। स50-60 केपरिवार में सबकी नजर रहती, मुहल्ले की भी ,पर एक दिन पीछे की तरफ से निकल गया 2घंटे ढूँढा फिर किसी ने घाट की तरफ जाते देखा था । उसे सिर्फ माँ बोलना आता था।मजे से सीढ़ी पर बैठ पैर नर्मदाजी में छप-छपकर रहा था सुबह11_12 बजे के करीब की घटना है।बच्चे जान होते हैं।
अच्छा संस्मरण लिखा है
बहुत रोचक संस्मरण और सीख बजी। एक साँस में पढ़ने लायक। बधाई।
धन्यवाद अजीत जी
धन्यवाद महेन्द्र जी
धन्यवाद नीलिमा आँटी
जी हाँ बच्चे तो जान होते हैं मम्मी पापा के ।
हलो कोपल !
कोपल बहुत बढ़िया लिखा तुमने ।बहुत बहुत बधाई !
पढते हुए मेरा भी दिल धक से रह गया था.
रोचक लिखा है.
धन्यवाद अर्चना जी
धन्यवाद विश्वास जी
हैलो आँटी
बहुत दिलचस्प संस्मरण लिखा है कोपल ने। हम सभी बचपन में कभी न कभी ग़ायब हुए हैं और माता-पिता इसी तरह परेशान हुए हैं। मुझे इस ब्लॉग को पढ़ कर अपने बचपन की ऐसी ही एक घटना याद आ गयी। बचपन की याद ताज़ा करने के लिए कोपल का शुक्रिया।
धन्यवाद तिथि दीदी
ओह बहुत टची 👍👌
दिलचस्प संस्मरण।
धन्यवाद सन्ध्या जी
धन्यवाद ज्योति जी
बहुत ही दिलचस्प संस्मरण लिखा है वैसे मैंने भी एक बार बचपन में ग़ायब हुआ था गायब क्या बेड के नीचे घुस गया था माता जी बहुत परेशान हो गई थी भूल गया था बचपन की बात है पर जैसे ही आपका ब्लॉग पढ़ा तो वही घटना याद आ गयी..... कोपल जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया !!
बहुत व्यस्त था ! बहुत मिस किया ब्लोगिंग को ! बहुत जल्द सक्रिय हो जाऊंगा !
धन्यवाद सजंय जी
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