ये नेमप्लेट निकलती ही नहीं



मेरी बात पढ़ने से पहले पढ़िये पापा क्या कहते हैं
केलाबाड़ी उस मोहल्ले का नाम है जहाँ मैने अपनी नौकरी के शुरुआती दिन बिताये पत्नी और बिटिया कोपल के साथ । बेटी वहीं पैदा हुई और वहीं उसने होश सम्भाला । यह वह इलाका है राजनीतिक भाषा में जिसे सम्वेदनशील इलाका कहा जाता है । लेकिन प्यार की चाहत से भरा बचपन न मज़हब की दीवारों को समझता है न राजनीति को । कोपल ने जहाँ अपना बचपन बिताया उ घर को उस मोहल्ले को और वहाँ के नाना नानी ,दादा दादी ,चच्चा-चच्ची ,खाला, फूफी और बाज़ी को वह उसी तरह याद करती है जैसे कोई अपने घर के लोगों को याद करता है ।यहाँ जो कुछ उसने लिखा है अपनी भाषा में ,उसके शब्दों पर या वाक्य विन्यास पर न जायें, उसका निहितार्थ समझने की कोशिश करें । कभी कभी बच्चे भी बड़ों को बहुत कुछ सिखाते है -आपका- शरद कोकास

मेरा प्यारा मोहल्ला
’ एक इंसा
न मोहल्ले को बनाता है और मोहल्ला इंसान को बनाता है या कहलें मोहल्ला इंसान की पूरी दुनिया होता है और पूरी दुनिया ही एक मोहल्ला है

दोनों बातें मिलकर तो एक ही मतलब होता है मोहल्ला ,मोहल्ला वह जगह है जहाँ हम पलते हैं,बढ़ते हैं , पढ़ते-लिखते हैं और कुछ बनते हैं, आगे बढ़ते हैं और हम में से कुछ ऐसे होते है जो कुछ समय के बाद उस जगह से हमेशा के लिये अलग हो जाते हैं । आज भी उस मोहल्ले की खूबसूरत यादें मेरे साथ हैं मेरे पास हैं मेरे उस मोहल्ले की प्यारी प्यारी, मीठी मीठी यादों को मैं आज यहाँ आप के संग बांटना चाहूँगी । मेरा बहुत प्यारा सा मोहल्ला है । ये बात और है कि वो मोहल्ला वहीं पर् है पर अब मैं वहाँ नहीं हूँ । मेरे उस मोहल्ले का नाम है केलाबाडी । मै‘’इनायतविला‘’ में यानि नबाब अंकल के उस प्यारे से घर में ही पैदा हुई । इस घर का नाम नानाजी श्री हाजी इनायत ल्लाह यानि नबा अंकल के अब्बा जी के नाम से है। इस पते के नाम से ही मेरे इस घर में भी चिट्ठियाँ आती है । उस घर में ही पली बढ़ी, पढना, लिखना ,चलना, खेलना, कूदना, खाना खाना,बोलना,दोस्त बनाना,रिश्तों को बनाना, समझना और खुद को जाना अपनों को समझा और बहुत कुछ सीखा । ये घर हमेशा मेरे दिल के करीब रहा है और हमेशा रहेगा । वो घर मेरा अपना प्यारा सा घर है। उस घर और मोहल्ले से मेरी बहुत सारी खटटी मीठी और प्यारी प्यारी यादें जुडी है । इन यादों ने मुझे अभी तक उस घर से जोडकर रखा है । हम किराये के एक छोटे से घर में रहते थे । पर पता नहीं उस घर में ऐसा क्या था जो आज तक उस घर से लगाव है। आज भी उस घर में रहने की हसरत है । हमारा तीन कमरों का प्यारा सा घर था । मैनें अपने उस घर में सत्रह साल बिताये एक व्यक्ति के लिये इससे प्यारी बात और क्या हो सकती है कि उसने एक किराये घर में पूरे सत्रह साल बिताये। किसी के लिए सत्रह साल एक जगह पर रहना या बिताना मामूली बात नहीं है । मै आज भी उस मोहल्ले से हर रुप से जुडी हुई हूँ । हमारे मकान मालिक जो ऊपर की मंज़िल पर रहते है श्री हाजी इनायत उल्लाह ।उनके घर मैं उनकी पत्नी शम्सुन्निसा उनके बेटे अब्दुल अज़ीज़ खान , बहू शमीम और तीन पोते रहते हैं। लतीफ सबसे बडे ,रफीक मँझले और शफीक सबसे छोटे ।आज मेरे इन प्यारे प्यारे भाईयो की शादी हो गई है लतीफ भैया की पत्नी का नाम असमा है । भैया भाभी की दो प्यारी बेटियाँ है आयशा सबसे बडी और अज़मा सबसे छोटी । रफीक भैया की पत्नी का नाम नाजनीन है भैया भाभी की एक प्यारी सी बेटी है आरुष । शफीक भैया की पत्नी का नाम बुशरा है ।इन भैया भाभी के दो प्यारे से बेटे अम्मार और अबदुल्ला । ये सभी मुझे बहुत प्यार करते है । आंटी अंकल मुझसे सबसे ज्यादा प्यार करते है क्योंकि उनकी कोई बेटी नहीं है इसलिए वे मुझे अपनी बेटी से बढकर प्यार करते है । मैं अपने आंटी अंकल की प्यारी सी बेटी हूँ । मेरे लिए यही मेरी जिदंगी के सबसे सच्चे ज़रुरी और प्यारे रिश्ते हैं जिन्हे मैनें सबसे पहली बार अपनी से आँखों देखा और बडे होने पर महसूस किया । इन रिश्तों से अलग होकर रहना मेरे लिये आसान नहीं है । आज वहाँ का माहौल बहुत बदल गया है । आज मैं हमारे खुद के घर में रहती हूँ पर उस घर में आज मेरी प्यारी सी याद के रुप पापा के नाम की नेमप्लेट लगी है । जिसे नबाब अंकल निकालना नही चाहते । उस नेमप्लेट को मैनें कई बार निकालने की कोशिश की पर थककर हार गई पर वो नेमप्लेट नहीं निकली उसके बाद मैं समझ गई कि वो अब पक्की हो गई है । मतलब यह है कि मैं तो वहाँ से चली गई पर अब भी वो मुझे वहाँ से जाने नहीं देना चाहती है । मैं जब भी वहाँ जाती हूँ तो उस नेमप्लेट को देखती ज़रुर हूँ । देखना अच्छा तो नहीं लगता पर वहाँ नजर चली ही जाती है मै भी उस नेमप्लेट को निकालना नहीं चाहती ।

यहाँ जो तस्वीर है उसमें नवाब चचा मेरे घर में अपने नन्हे नाती-पोतों के साथ बैठे हैं । और दूसरी तस्वीर उस घर की और वहाँ के लोगों की है ,हम लोग नीचे रहते थे जहाँ पापा के नाम की नेमप्लेट लगी है .आपको नेम प्लेट दिखी या नही? मुझे ज़रूर बताईये और यह भी कि उसमें किसका नाम है । आज बस इतना ही, आगे की स्टोरी बाद में - आपकी कोपल


5 टिप्पणियाँ:

डा. अमर कुमार ने कहा…


अले वाह.. कोंपल बिटिया की यादाश्त तो बहुत अच्छी है ।
हाँ हाँ , वह बीच वाले खँभे पर ऊपर की तरफ़ नेम प्लेट लगी तो है,
पर नाम जहाँ तक अनुसँधान कर पाया, इनायत विला ही लिखा है !
ऎम आई राइट ?

शरद कोकास ने कहा…

डॉ.साहब कोपल बिटिया तो सोने चली गई है सो मै बता देता हूँ कि आप ने नेमप्लेट की जगह तो सही पहचान ली पर नाम.. खैर और ट्राय कीजिये ..

अजित वडनेरकर ने कहा…

नाम मैं बता देता हूं...शरद कोकास ...

कोपल ने बहुत अच्छी पोस्ट लिखी है। यूं ही यादों की गठरी से ऐसे लम्हात की चांदनी बिखेरती रहो। जहां ज़रूरत पड़े शब्दों की सीवन से सिलती भी रहो।

शुभाशीष

शरद कोकास ने कहा…

नवाब चाचा की बात सही है चाचा है तो मकान मालिक क्यों और नाना भी होते तो उन्हे क्या अच्छा लगता ?

बेनामी ने कहा…

hi kopal
how's life? hope everything is fine in there.
so,what are u doing nowadays, i am eager to talk with u. Hope u remember me

Regards
Sapan Ashok Sharma

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